सार्वजनिक जीवन में नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना यानी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो गया है| रविवार को अहमदाबाद में जैन समाज के एक कार्यक्रम में भाग लेने आए महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद व लोकमत मीडिया के प्रमुख विजय दर्डा ने मोदी को शेर कहते हुए राष्ट्रीय संत की उपाधि क्या दी, महाराष्ट्र से लेकर गुजरात तथा दिल्ली की राजनीति गर्मा गई| इसी कार्यक्रम में योगगुरु बाबा रामदेव ने भी मोदी की तारीफ़ में कसीदे गढ़े| विजय दर्डा को जहां अपने बयान पर स्पष्टीकरण देना पड़ा वहीं एक दिन बाद ही उन्हें मोदी राष्ट्रीय संत की जगह राष्ट्रीय कलंक प्रतीत होने लगे| हालांकि इसमें दर्डा साब की कोई गलती नहीं है| चार पीढ़ियों से कांग्रेस के प्रति वफादार दर्डा परिवार की पृष्ठभूमि तथा राजनीतिक वजूद के खातिर उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े, जिसका उन्हें निश्चित तौर पर मलाल रहा होगा| वहीं बाबा द्वारा मोदी की तारीफ पर टीम अन्ना ने बाबा से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए उनकी आलोचना कर दी है| हाल ही में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता शाहिद सिद्दीकी को भी मोदी का इंटरव्यू लेना, उसे अपने अखबार में प्रकाशित करना तथा बाद में टीवी चैनलों पर उस पर सकारात्मक रूप से चर्चारत रहना पार्टी को रास नहीं आया और उसने सिद्दीकी को घर निकाला दे दिया| यहाँ तक कि समाजवादी पार्टी की ओर से इस तरह का बयान भी आया कि सिद्दीकी का सपा से कोई लेना-देना ही नहीं है| इससे पूर्व दारुल उलूम देवबंद के तत्कालीन वाईस चांसलर मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को भी जनवरी में पदभार ग्रहण के कुछ समय बाद ही अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था| उन्होंने मोदी के गुजरात की यह कहकर तारीफ की थी कि गुजरात की तरक्की मुसलमानों के लिए भी सौगात लाई है| इसी तरह सांसद ए.पी. अब्दुल्ला कुट्टी को मार्च २००९ में माकपा ने इसी वजह से निलंबित कर दिया था कि उन्होंने दुबई में मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि केरल को भी गुजरात मॉडल पर चलाकर आगे बढ़ाया जा सकता है| बाद में इन्हीं कुट्टी को कांग्रेस ने अपने साथ जोड़ा और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया जिसमें ये विजयी भी रहे| यहाँ कांग्रेस का दोहरा चरित्र दिखाई देता है| एक ओर जहां कांग्रेस से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मोदी के बारे में सकारात्मक नहीं बोल सकता वहीं वोट बैंक के चलते दूसरे दल के निलंबित व्यक्ति को पार्टी में शामिल कर उसे बतौर प्रत्याशी प्रस्तुत करना कहाँ की राजनीति है?
फिर जहां तक मोदी की तारीफ की बात है तो यह सर्वविदित है कि मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति की है| २००२ के गुजरात दंगे बेशक मोदी के माथे पर कलंक के रूप में लक्षित किए जाते हों किन्तु दंगों की भयावहता को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने वाले गोधरा को क्यों भूल जाते हैं? दंगों के बाद मोदी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अछूत हुए हों किन्तु यह भी सत्य है कि देश के शीर्ष उद्योगपतियों से लेकर जापान, चीन, कोरिया, रूस जैसे राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष मोदी के विकास मॉडल से प्रभावित हो उनके सम्मान में पलक-पावडे बिछाने तो तैयार रहते हैं| अभी जापान में हुआ मोदी का स्वागत देश भुला नहीं है| पहली बार जापान ने मोदी के लिए अपनी परंपरा में बदलाव करते हुए उन्हें जो प्रोटोकॉल दिया वह सिर्फ कैबिनेट स्तर के मंत्री को प्राप्त होता है न कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री को| यह है मोदी की लोकप्रियता जिसने सात समंदर पार गुजरात और मोदी को वैश्विक पहचान दिलाई है| टाईम जैसी पत्रिका भी अपने आर्थिक संकट के दौर में मोदी को कवर पृष्ठ पर स्थान देती है| आज गुजरात की गिनती देश के शीर्षस्थ राज्यों में होती है| न सिर्फ विकास के मामले में बल्कि मूलभूत सुविधाओं के मामले में भी गुजरात को कोई सानी नहीं है| मोदी पर लाख इल्जाम लगाए जाते हों पर क्या उनकी इमानदारी को लेकर संदेह किया जा सकता है? अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मोदी की छवि जहां एक सख्त प्रशासक की बनी वहीं उनपर घपलों-घोटालों के छींटें तक नहीं पड़े| वर्तमान राजनीतिक दौर में ऐसी इमानदारी अकल्पनीय है|
मात्र लोकप्रियता की दम पर मोदी के रूप में आज देश के सामने ऐसा विकल्प प्रस्तुत है जिसपर आँख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है| उनके पास विकास का खाका है, प्रशासक की भूमिका का लंबा अनुभव है, छवि ईमानदार है| आखिर देश की जनता को और क्या चाहिए| सपनों के भारत का निर्माण जिसकी कल्पना हो यदि ऐसे व्यक्ति की कोई विपक्षी भी तारीफ़ करता है तो यह उसके कद को दर्शाता है| हाँ, बाद में पलटना उसी सियासी मजबूरी हो सकती है पर दिल से वह भी जानता है कि उसने कुछ गलत नहीं कहा| आज ऐसे कई मंत्री सरकार में हैं जिनपर गंभीर आरोप हैं| अन्ना उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हैं तो उनकी ओर से जवाब आता है कि मामला न्यायालय में हैं और अभी हम दोषी करार नहीं दिए गए हैं| मगर मोदी के मामले में सभी कानून पर संदेह करने लगते हैं| मोदी को भी तो न्यायालय ने गुजरात दंगों का दोषी नहीं ठहराया है और मोदी भी यह कह चुके हैं कि यदि कानून मुझे दोषी करार देता है तो मैं फांसी पर चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ| तब मोदी के मामले में इस तरह की राजनीतिक उत्तेजना कहाँ तक उचित है? राजनीतिक दलों को इस विषय पर आत्ममंथन करना चाहिए क्योंकि यदि आप किसी पर एक ऊँगली उठाते हैं और चार आपकी तरफ भी उठती हैं| मोदी की तारीफ से जुड़ा अनुशासन का डंडा न जाने कब तब सियासी बलि लेता रहेगा?
लेख और प्रतिक्रियाएं भावनाओं की अतिरेकता में हैं
मैं भी मोदी को प्रधानमत्री के लायक नहीं समझता हूँ पर उन कारन से नहीं जो उनके विरोधी कहा करते हैं
मेरे विचार से राज्य और राष्ट्र की राजनीती में अंतर होता है
इसलिए यदि नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते हैं तो उन्हें काफी पहले राज्य से निकल जाना चाहिए था – उन्हें मौक़ा मिला भी था पर वे गुजरात लौट गए थे
भाजपा या कोई भी राष्ट्रिय पार्टी प्रांतीय छत्रपों का जमावड़ा होने पर राष्ट्रिय नहीं रह पायेगी
विकास के गुजराती आंकड़ों को बीमारू भारत में पाना गुजराती नजर से संभव नहीं है
देश में २० गुजरात हैं जिनको मिला कर बढ़ने की पात्रता के लिए नेतृत्व खडा करने में भाजपा विफल रही है , उसमे आत्मालोचना इस विषय पर होना चाहिए और देश केवाक्ल अगले चुनाव के लिए नहीं यह जान रास्ट्रीय स्टार के कार्यकर्ताओं की श्रेणी खादी की जानी चाहिए
====>निम्न तथ्य, रट्टा मार चिन्तकों की सीमा के बाहर का विषय है.
मेरा वयक्तिक अनुभव और जानकारी के आधारपर निम्न कथन करता हूँ.
==>मोदी जी –>बुद्धिमान है,—> चतुर है, और—> देशभक्त भी.
आज के युग में, ऐसे व्यक्ति को कुछ मात्रा में ताना शाह होना ही चाहिए. बहुत उदार हो कर दुर्जनों के हाथ में शासन पहुंच जाता है.
किसी भी सूक्ति के, किसी के कथन के, या सिद्धान्त के भी उपर उठकर, स्वतन्त्र चिन्तक ही इस पर विचार व्यक्त करें.
यह रट्टा मार चिन्तकों की सीमा के बाहर का विषय है.
(क) शासकों द्वारा होता थोक भ्रष्टाचार प्रायः समाप्त(कुछ अपवाद अवश्य है) किया है.
सारे विभागों का निर्णय वे देते हैं. क्रियान्वयन (एक्सिक्युशन) ही केवल संबंधित मंत्री का उत्तरदायित्व रह गया है.{ क्यों कि बी जे पी के मन्त्री भी कुछ मात्रामें भ्रष्ट ही थे.}अब मन्त्री किसी की दलाली नहीं कर सकते.ऐसे मन्त्री भी कुछ असंतुष्ट होने की संभावना है.{यही लोग उनको हिटलर कहने वाले हो सकते हैं} ऐसे लोग उनका राष्ट्रीय स्तर पर भी विरोध करवाने वाले हो सकते हैं.
(ख) फुटकर अधिकारियों द्वारा आचरित भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश आया है, इ गवर्नेन्स के कारण, पर पूरा नहीं आ पाया है.
(ग) दिन भर में फाइलें कितनी निपटाइ गयी, इस संख्या पर आप को रिपोर्ट करना होता है.
(घ) पहले आप कार्यालय में कितने घंटे कुरसी पर थे, इसका रिपोर्ट देना होता था।
(च)और किसी समस्या की जानकारी आने के दिनसे, कितने दिन में समस्या सुलझायी गयी, इसका रिपोर्ट अब महत्वका हो गया है. अनगिनत अवधि तक अब आप फाइलें पट्टीपर नहीम रख सकते.
(ग) शिक्षकों की नियुक्ति पहले देढ लाख की रिश्वत से होती थी। अब हर जिलाह में शिक्षक की नौकरीके इच्छुकों का ३ दिन का शिविर लगता है, और शाला शाला के हेड-मास्टर सभी के सामने शिक्षकों की नियुक्ति करते हैं. (उनकी शिक्षा मन्त्री, श्रीमती आनंदी बहन पटेल की बैठक जो मेरे घर में हुयी थी, उसमें आपने पूरा विवरण दिया था)
बहुत कुछ कहा जा सकता है।
बड़ा आश्चर्य होता कि आप जैसे बुद्धिजीवी लोग, घोर सांप्रदायिक और हिंसा वादी नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं.
जनमत मिल जाने से किसी का पाप नहीं धुल जाता, अगर ऐसा होता तो किसी मंत्री पर कोई केस न चलाया जाता. २००२ की हिंसा नरेंद्र मोदी ही पर नहीं बल्कि भाजपा पर भी कलंक है लेकिन ये लोग इस कलंक को अपनी शोभा मानते है. इस पार्टी का नाम भारतीय जनता पार्टी न होकर भारतीय दंगा पार्टी होना चाहिए, क्योंकि ये लोग समय समय पर पूरे भारत में सुनियोजित दंगे कराते रहते हैं. इसमें नरेंद्र मोदी का ही दोष नहीं है बल्कि उनकी पार्टी ही ऐसी है.
गुजरात के दंगो से पूरा देश कलंकित हुआ, अटल बिहारी ने खुद इसे कलंक बताया और कहा अब किस मुंह से विदेश यात्रा पर जाऊंगा. सब जानते है २००२ के बाद अमेरिका ने आपके विकास पुरुष को वीजा नहीं दिया.
जो देश संसार की बड़ी से बड़ी ताकत से टकराने की हैसियत रखता हो, क्या वो दंगा करने वालों को नहीं रोक सकता? अगर रोक सकता है तो क्यों नहीं रोका?
नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा कसूर यही है.
हजारों लोग मारे गए और इसका जिम्मेदार कोई नहीं?
देखो गे तो मिल जाएँगी हर मोड पे लाशें
ढूँढो गे शहर में, कोई कातिल न मिले गा.
आखिर इस धर्म निपेक्ष राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता कैसे कायम रहेगी अगर उसका प्रधानमंत्री एक साम्प्रदयिक आदमी होगा?
एक ऐसा आदमी जो सांप्रदायिक संगठन संघ से सम्बन्ध रखता हो, क्या उसके शासन में दूसरे धर्म के लोग सुरक्षित रहेंगे?
चुनाव आयोग को भाजपा की मान्यता ही रद कर देनी चाहिए क्योंकि ये एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्म के नाम पर राजनीती करते है. धर्म के नाम पर पक्षपात करते हैं और धर्म के नाम पर हिंसा फैलाते हैं.
ARE KUTE ASAM KE DANGE,1984 KE DANGE MUMBAI HINSA,1961,1967,1989 KE DANGE CONGRESS NAHI DIKHTI .60 SALO TAK CONGRESS KA RAJ PHIR BHI MODI PAR AROP . EK HI VIKALP MODI …. MODI MODI MODI SAMJE
अख्तर साहब, यही आप लोगों का दोगलापन है की जिसने सत्यता देखी उसका सर कलम कर दिया, पहला पैरा जरा ध्यान से पढ़ लीजिये. यही सत्य है और ध्रुव सत्य है. अपने जेहन को साफ़ कीजिये. जितना मौलवी साहब बताते हैं वही सत्य नहीं है. चौदहवीं शताब्दी से बाहर आइये, ये इक्कीसवीं सदी है. मुसलमानों की तरक्की में आप जैसे लोग ही बाधक हैं. जो अपने फायदे के लिए उनकी आखें बंद किये हुए हैं. भड़का के अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं. मानसिक गुलामी से बाहर आइए.
कोई दिवाल पर लिख्खा पढ सकता है, तो पढ ले।
जनता, मोदी के पक्ष में परिवर्तित होती दिख रही है।
कुछ राह देखिए, यु पी ए का जहाज डूबने ही वाला है। और चूहे डूबते जहाज से भाग जाएंगे, कुछ डुबाकर भागेंगे।
जहाज के मालिक भी स्विस बॅन्क से पैसे उठा चुके हैं। वे पैसे कहाँ लगाए हैं? इसका पता भी कुछ समय में आ ही जाएगा।
चेतक करो, अब चेत करो।
चेतक की टाप सुनाई दी।
भागो भागो भाग चलो —
मोदी की दहाड सुनाई दी।