धनकुबेरों का कालाधन

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प्रमोद भार्गव

अभी तक विदेशो में नेताओं और अधिकारियों का ही कालाधन जमा होने की जानकारियां जनचर्चा में थीं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के नए खुलासे से साफ है कि देश के उन धनकुबेरों का भी कालाधन सिवस बैंकों में जमा है, जिनकी नवोन्मेशी सोच और औधोगिक कर्मठता पर देश गर्व करता है। यही वे उधोगपति हैं जो उधोगों के घाटे में चले जाने की आशकाएं गढ़के करोड़ों की करों में छूट लेते हैं। मुफत में जमीन और बिजली, पानी लेते हैं। तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने संसद में श्वेत-पत्र जारी करके इस हकीकत को झुठलाने की कोशिश की थी कि देश का धन, विदेशो में है। उन्होंने यह दावा भी किया था कि किसी भी कांग्रेसी सांसद का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा नहीं है। लेकिन अब उन्नाव से कांग्रेस की महिला सांसद अनु टंडन और उनके पति संदीप टंडन का नाम केजरीवाल द्वारा जारी सूची में दर्ज है। दोनों के सवा-सवा सौ करोड़ रुपए सिवटजरलैंड के जेनेवा स्थित हांगकांग एंड शंघाई बैंकिंग कार्पोरेशन यानी एचएसबीसी में जमा हैं। इस बैंक की गतिविधियां हमेशा संदिग्ध रही हैं। बिना सिवटजरलैण्ड जाए यह बैंक हवाला के जरिये कालाधन भारत में ही जमा करने की सुविधा देता है। कालाधन जमा करने, आतंकी संगठनों का वित्तपोषण करने और डग माफियाओं के लेनदेन से भी यह बैंक जुड़ा रहा है। अमेरिका तो इस पर जुर्माना लगा चुका है। अभी भी डेढ़ अरब जुर्माने का प्रस्ताव लंबित है। जाहिर है, एचएसबीस बड़े पैमाने पर गैर-कानूनी गोरखधंधों से जुड़ा है।

अब यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं रह गया है कि भारतीयों का विदेशो में कितना कालाधन है, बलिक जरुरी यह है कि जिन नामों का खुलासा हो रहा है, उनसे धन वापिसी के सिलसिले की शुरुआत हों, कयोंकि जिस सीडी को आधार बनाकर इंडिया अगेंस्ट करप्शन की टोली ने नामों का खुलासा किया है, वह सीडी दो साल से जनचर्चा में है। इस सीडी की अधिकृत प्रतिलिपि भारत सरकार के पास भी है। क्योंकि इस सीडी को एचएसबीसी बैंक के कर्मचारी हर्व फेलिसयानी ने चोरी-छिपे तैयार किया था। हर्व फ्रांस के ही एचएसबीसी बैंक में कर्मचारी था। फें्रच अधिकारियों ने सिवस सरकार की हिदायत पर हर्व के घर छापा मारा और काले खाताधारियों की सूची बरामद की। इसी सूची के आधार पर फ्रांस ने उदारता बरतते हुए अमेरिका, इंग्लैण्ड, स्पेन और इटली के साथ, खाताधारकों की जानकारी बांटकर सहयोग किया। यही सीडी ‘ग्लोबल फाइनेंशल इंसिटटयूट ने हासिल कर ली। यही सीडी बाद में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय को प्राप्त हुर्इ। इसमें भारतीयों समेत कुल 700 काले खातेधारियों के नाम है। अनु टंडन, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, रिलांयस समूह का मोटेक साफटवेयर, रिलायंस इंडस्टीज, संदीप टंडन, नरेश गोयल, डाबर बंधु और यषोवद्र्धन बिरला के नाम इसी सूची में दर्ज हैं। कोकिला बेन और धीरुभार्इ अंबानी के भी सिवस बैंक में खाते है। लेकिन इन खातों में फिलहाल कोर्इ ध्नराशि नहीं है। हो सकता है धीरुभार्इ की मौत के बाद किसी और खाते में स्थानंतरित कर दी गर्इ हो। सिवस बैंक के एक और सेवा निवृत कर्मचारी रुडोल्फ ऐल्मर ने भी दो हजार खाताधारियों की सूची की सीडी गोपनीय ढंग से तैयार करके विकिलीक्स के संपादक जूलियन अंसाजे को सौंप दी थी। इसी दबाब के चलते सिवस सरकार ने खुद आधिकारिक तौर से कालाधन जमा करने वालों की एक सूची जारी कर दी। जिससे ऐल्मर की सूची की कोर्इ महत्ता न रह जाए।

हर्व फेलिसयानी से इसी सीडी को जर्मन सरकार ने बरामद किया। जब जर्मन सरकार अपने देश के लोगों के नाम से जमा धन की सच्चार्इ से वाकिफ हुर्इ तो जर्मनी ने कठोर पहल करते हुए ‘वित्तीय गोपनीय कानून शिथिल कर कालाधन जमा करने वाले खातेधारियों के नाम आधिकारिक रुप से उजागर करने के लिए सिवटजरलैण्ड सरकार पर दबाव बनाया। इसी मकसद पूर्ति के लिए जर्मनी ने इटली, फ्रांस, अमेरिका और बि्रटेन को भी उकसाया। यही 2008 का वह समय था, जब दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही थी। दुनिया की आर्थिक महाशक्ति माना जाने वाला देश अमेरिका भी इस मंदी की जबरदस्त चपेट में था। लिहाजा पश्चिमी देशो का यह समूह सकि्रय हुआ और इसी समूह ने काले पक्ष में छिपे, इस उज्जवल पक्ष की जानकारी अन्य पश्चिमी देशो को देते हुए इस सत्य की पुष्टि की, कि कालाधन ही उस आधुनिक पूंजीवाद की देन है, जो विष्वव्यापी आर्थिक संकट का कारण बना हुआ है। 911 के आतंकवादी हमले ने भी अमेरिका की आंखें खोलीं। उसे खुफिया जानकारियां मिलीं कि दुनिया के नेता, नौकरशाह, कारोबारी और दलालों का गठजोड़ ही नहीं, उस समय आतंकवाद का पर्याय बना, ओसामा बिन लादेन भी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए कालाधन का उपयोग हवाला और गोपनीय खातों के माध्यम से कर रहा है और इस लेनदेन में एचएसबीसी बैंक सहायक की भूमिका निभा रहा है। इसी साल अमेरिकी सीनेट की एक समिति ने अपनी जांच में पाया कि एचएसबीसी ने आतंकियों और मनीलांडिंग से जुड़े लोगों के साथ अरबों डालर का लेनदेन किया है। यही नहीं इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2001 से 2010 के बीच इस बैंक ने अमेरिकी सरकारी तंत्र का भी इस्तेमाल किया। साथ ही अमेरिकी संसद के उपरी सदन सीनेट की जांच संबंधी स्थाया उप समिति ने पाया है कि एचएसबीसी ने सउदी अरब के अल रजही बैंक के साथ भी कारोबार किया है। इस बैंक के मुख्य संस्थापक को पहले अलकायदा का वित्तीय संरक्षण मिला हुआ था। इन गैरकानूनी गतिविधियों की वजह से ही अमेरिका इस बैंक पर शिकंजा कस रहा है और उसने डेढ़ अरब डालर जुर्माने की तलवार एचएसबीसी पर लटकार्इ हुर्इ है।

इस परिप्रेक्ष्य में अरबिंद केजरीवाल के बयान को गंभीरता से लेने की जरुरत है। धनकुबेरों के कालेधन से जुड़े खुलासे के दौरान एचएसबीसी को कठघरे में खड़ा करते हुए अरविंद ने कहा है कि एचएसबीसी बैंक देश में अपहरण,भ्रष्टाचार और आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है। बैंक हवाला और मनीलांडिंग का रैकेट चला रहा है। इसीलिए इस बैंक के भारत स्थित बड़े अधिकारियों को तत्काल हिरासत में लेकर जांच करने के बात भी अरविंद ने रखी है। अरबिंद ही नहीं अमेरिकी सीनेट की समिति ने भी इस बैंक के भारतीय कर्मचारियों पर आतंकियों के साथ लेनदेन को रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया हुआ है। एचएसबीसी के मनीलांडिंग रोकने वाले विभाग में भारतीय कर्मी भी हैं, हालांकि इनकी संख्या नगण्य है। जांच में अमेरिका के अधिकारियों को 2007 में भारत दौरे के दौरान इस बात का पता चला था कि बैंक के आंतरिक नियंत्रण तंत्र की निगरानी प्रणाली कमजोर व पक्षपाती है। ऐसे नाजुक हालातों को रेखांकित करते हुए यदि केजरीवाल कह रहे हैं कि भारत सरकार काले खातेधारियों को दंड देने के बदले, उनके दोशों पर परदा डालने का काम ज्यादा कर रही है, तो इसमें गलत क्या है ? इसीलिए जब प्रणव मुखर्जी वित्तमंत्री थे, तब उन्होंने सभी 700 खाताधारियों को क्षमा कैसे किया जाए, इस योजना पर अमल करना शुरु कर दिया था। यही नहीं पुणे के अष्व कारोबारी हसन अली खान को भी शीर्श न्यायालय की फटकार के बावजूद बचाने की कोषिषें की गर्इं। हालांकि अब ग्रहमंत्री सुशील कुमार सिंधे ने माना है कि सरकार के पास ऐसे सबूत हैं कि भारत और भारत के बाहर आतंकी समूह कर्इ तरीकों से स्टाक मार्केट में निवेश कर रहे है और मनीलाडिंग के जरिये भारत में सकि्रय आतंकी संगठन को मदद दी जा रही है।

हर्व फलिसयानी और रुडोल्फ ऐल्मर की सूचियों के आधार पर अमेरिका की बराक ओबामा सरकार ने सिवटजरलैंड पर इतना दबाव बनाया कि वहां के यूबीए बैंक ने कालाधन जमा करने वाले 17 हजार अमेरिकियों की सूची तो दी ही 78 करोड़ डालर काले धन की वापिसी भी कर दी। अब तो मुद्रा नकदीकरण से जूझ रही पूरी दुनिया में बैंकों की गोपनीयता खत्म करने का वातावरण बनना शुरु हो चुका है।

हालांकि केंद्र सरकार का केजरीवाल द्वारा लगाए आरोपों के बाद जो बयान आया है, उससे साफ हुआ है कि केजरीवाल के आरोप ठोस हैं। सरकार उन्हें नकार नहीं पा रही है। लिहाजा सरकार को कहना पड़ा कि ‘फ्रांस से मिली जानकारी पर वह उचित कार्यवार्इ कर रही है। लेकिन कुटिल चतुरार्इ बरतते हुए सरकार ने यह बहाना भी गढ़ दिया कि, ‘गोपनीय श्रेणी की इस जानकारी का इस्तेमाल सिर्फ कर संबंधी मामलों में किया जा सकता है। यहां सवाल उठता है कि नेता और अधिकारी कोर्इ उधोगपति नहीं हैं कि उन्हें आयकर से बचने के लिए, कर चोरी की समस्या के चलते विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने की मजबूरी का सामना करना पड़े। यह सीधे-सीधे घूसखोरी से जुड़ा अपराध है। इस पेंच को सांसद अनुटंडन और उनके आयकर अधिकारी पति संदीप टंडन के सिवस बैंक में जमा कालेधन से भी जोड़कर समझा जा सकता है। संदीप टंडन ने रिलायंस समूह पर आयकर की बड़ी कार्यवार्इ की। बाद में उनकी पत्नी अनु टंडन रिलायंस की एक कंपनी में प्रशासनिक अधिकारी बना दी गर्इं और उनके दोनों बेटों को भी रिलायंस ने नौकरी दे दी। जाहिर है संदीप टंडन ने र्इमानदारी से पड़ताल न करते हुए, रिलायंस से लेनदेन की सांठगांठ कर ली और रिलांयस ने घूस की राशिअनु और संदीप टंडन के नाम सिवस बैंक में जमा करा दी। अनुटंडन कांग्रेसी सांसद हैं और उनके जैसे कांग्रेस के कर्इ सांसद व मंत्रियों के नाम भी सीडी में हो सकते हैं, लिहाजा सरकार कर चोरी के बहाने काले धन की वापिसी की कोशिशों को पलीता लगा हरी है। जिससे कि नकाब हटने पर कांग्रेस की फजीहत न हो। वरना सिवटजरलैंड सरकार तो न केवल सहयोग के लिए तैयार है, अलबत्ता वहां की संसदीय समिति ने भी जमाखोरों के नाम उजागर करने की स्वीकृति दे दी है।

 

प्रमोद भार्गव

शब्दार्थ 49,श्रीराम कालोनी

 

 

 

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