बेवजह जमा न करें परायी पुस्तकें

2
173

 डॉ. दीपक आचार्य

तनावग्रस्त रहते हैं पुस्तक चुराने वाले  बेवजह जमा करें परायी पुस्तकें

 दुनिया में हर कहीं एक से बढ़कर एक अजीब लोग रहते हैं। इनमें मनुष्यों की एकदम अलग प्रजाति है पुस्तक चोर।  ये वो किस्म है जिसमें सारे के सारे पढ़े-लिखे होते हैं। इनमें कई तो लोगों की नज़र में विद्वान होते हैं और कई पढ़ाकू ।

 इस किस्म के लोग हर कहीं उपलब्ध होते हैं। इनका एकमात्र काम पुस्तकों को चुरा-चुरा कर जमा करना होता है। कभी ये प्रत्यक्ष तो कभी परो़क्ष से पुस्तकें हथियाने की कला में माहिर होते ही हैं।

ये बड़ी ही चालाकी से लोगों से किताबें निकलवा लेते हैं और कुछ दिन पढ़ने के लिए ले जाते हैं, फिर लौटाने का नाम तक नहीं लेते। ऐसे में देने वाला भला मानुष अगर भूल जाए तो फिर कोई झंझट नहीं। उनका भूलना मतलब किताब का हमारा होना। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो मुफ्त में हथियायी पुस्तक को पढ़ने में टाईम खपाएं।

ऐसे लोग इन अवैध रूप से जमा की गई पुस्तकों को अपने घर में ड्राइंग रूम की बजाय किसी अंधेरे कमरे में सुरक्षित रखते हैं। पुस्तकें लेने अथवा चुराने के बाद ये उस दिन की ही प्रतीक्षा करते रहते हैं जिस दिन पुस्तक का स्वामी इसे पूरी तरह भुला बैठे।

कभी दस-पन्द्रह दिन के बाद लौटाने की बात कहकर ले ली तो फिर कभी वापस करने का नाम नहीं। माँगने पर बहाने भी ऐसे-ऐसे बनाते हैं कि अच्छे-अच्छे बहानेबाज भी लज्जित हो जाएं।

पढ़ने का कोई शौक नहीं बल्कि घर में जमा कर रखने का शौक पालने वाले ऐसे लोग जिन्दगी भर संग्रह की मनोवृत्ति तथा छुपाए रखने की आदत से लाचार होने के कारण तनावों में रहते हैं। लक्ष्मी और सरस्वती समाज के लिए है, छिपाने के लिए नहीं।

ये किताबें उनके भण्डार में कुलबुलाती हैं और अभिशाप देती हैं उन्हें जो किताबों को घर में कैद कर रखते हैं। जिन लोगों को अपनी किताबों के बारे में याद रहता है वे ऐसे पुस्तक चोरों को हमेशा याद रखते हुए बद्दुआएं देते रहते हैं। जो भूल जाते हैं उन्हें ये पुस्तक चोर भी किताब लौटाना भूल जाते हैं और अध्याय यहीं समाप्त हो जाता है।

हममें से कई लोग ऐसे हैं जिनकी पुस्तकें और बड़े-बड़े उपयोगी ग्रंथ और सामग्री कई लोगों ने चुरा रखी है। कुछ ने चुपचाप चुरा रखी है तो कुछ ने हमें मुगालते में रखकर। कई पुस्तक चोर तो ऐसे होते हैं जो किताबें ले जाने के बाद दादागिरि से कहेंगे- जाओ नहीं देंगे। ज्यादा कुछ कहो तो फिल्मी डॉन या विलन की तरह कुछ न कुछ बक लेंगे।

पुस्तक को किसी भी रूप में चुराने वालों की कई प्रजातियां हमारे आस-पास हैं। बड़े अफसरों से लेकर कर्णधार और बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग इस दौड़ में शामिल हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें आप और हम कुछ नहीं कह सकते। उनकी सत्ता का पॉवर भी 440 वोल्ट से कम नहीं होता।  इन लोगों को कुछ कहना मतलब आफत मोल लेना ही है।

कुछ समझदार और चालाक पुस्तक-चोरों के रंग-ढंग तो वाकई अजीब होते हैं। एक बार कोई व्यक्ति किसी संत-महात्मा के अनुभवों पर आधारित ऊँचे दामों वाली एक पुस्तक खरीद कर लाया। अभी घर तक पहुंच ही न पाया था कि बीच में एक महाशय टपक पड़े और कुछ दिन पढ़ने का कह कर अपने यहां ले गए। तीन-चार साल बाद भी पुस्तक नहीं लौटाने पर  पूछा तो उन महाशय ने जवाब दिया कि वे पुस्तक इस शर्त पर दे सकते हैं कि वापस उन्हीं को लौटायी जाए। इसे नैतिकता का घोर पतन नहीं तो और क्या कहा जाए। जिसकी पुस्तक है उसे ही लौटाने की बजाय अनोखी शर्त।

ऐसे ही एक अन्य जनाब हैं जो जाने कब किताब ले गए और बरसों बाद किसी मौके पर कहा कि आपकी किताब मेरे पास इतने सालों से है, जब जरूरत पड़े मंगवा लेना।  ये दोनों ही उदाहरण क्या संकेत करते हैं। ऐसी शर्तें तो रात में माल चुरा कर ले जाने वाले डकैत भी नहीं रखते।

हमारे आस-पास ऐसे ढेरों लोग हैं जिन्हें पुस्तक-दस्यु कहा जाना ज्यादा समीचीन होगा। पुस्तकालय चलाने वाले लोग पुस्तक चोरों पर फिल्म बना डालने तक की दक्षता और अनुभव रखते हैं। इनके पास पुस्तक चोरों की ऐसी-ऐसी सूचियां होती हैं जिनमें शामिल नाम यदि जगजाहिर हो जाएं तो आधे जमाने के प्रति लोगों की श्रद्धा और सम्मान ही खत्म हो जाए।

पुस्तक चोरों का सबसे बड़ा गुण होता है पुस्तकों पर धेला तक खर्च नहीं करना। ये लोग सामान्य से लेकर धनाढ्य तक हो सकते हैं। इनमें अभिजात्य वर्ग की हस्तियों से लेकर जात-जात के अफसर और सफेदपोश बगुलाछाप तोन्दू शामिल होते हैं। जमाने की नज़र में जिनको ज्ञानवान और गुरुजी कहा जाता है उनमें भी इस किस्म के लोग शामिल होते हैं।

पुस्तकों की चोरी और बेवजह संग्रहण करने वाले लोग जिन्दगी भर तनावों में रहते हैं और कभी भी आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो उन्हें किताबों की पिछली तारीखें पिछे धकेलती रहती हैं। एक भी पुस्तक चोर ऐसा नहीं मिलेगा जो किसी न किसी समस्या या बीमारी से ग्रस्त नहीं हो। ऐसे पुस्तक चोरों के घर का पानी और अन्न भी जो ग्रहण करता है वह नाकारा तथा स्मृतिहीन हो जाता है।

अधिकतर पुस्तक चोर जीवन की अंतिम अवस्था में स्मृतिभ्रम में खो जाते हैं और उनकी याददाश्त समाप्त हो जाती है। इसलिए भावी जीवन को सुखमय बनाना चाहें तो पुस्तकों की चोरी न करें। पुस्तकें खरीद कर पढ़ें अथवा उपहार में सहर्ष प्राप्त पुस्तकों का उपयोग करें।

आइये आज पुस्तक दिवस के दिन उन सभी ज्ञात-अज्ञात पुस्तक चोरों और ग्रंथ डकैतों को अंजलि दें और भगवान से प्रार्थना करें कि उन्हें सद्बुद्धि दे ताकि जिनके वहां से वे पुस्तकें लेकर आए हैं उन्हें लौटाएं।

2 COMMENTS

  1. प्रवक्ता.कॉम पर नवोदित-कलाकार योहन द्वारा प्रतिलिप्याधिकारित “Book Thief” देख मेरा ध्यान चित्र से समुचित तौर से संबंधित लेख, बेवजह जमा न करें परायी पुस्तकें, की ओर खिंच गया| “विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस” के वार्षिक पर्व पर लिखे इस उत्तम लेख और इसी वार्षिक पर्व पर स्मृति जोशी द्वारा अन्यत्र लिखा विशेष लेख, पुस्तकों से प्यार कीजिए, दोनों समय की महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं| जहां भारतीय प्रकाशन उद्योग कभी से सफलता के शिखर पर पहुँच चुका है वहां समाज में पुस्तकालय चिरकाल से एक मामूली विषय बना हुआ है| आज के सुचना युग में सभ्य व उन्नतिशील समाज में पुस्तक और पुस्तकालयों के प्रति जागरूकता बहुत ही आवश्यक है और इन आलेखों में यह प्रयास प्रशंसनीय है|

  2. भाई वाह ! क्या लिखा है आपने. जो भी लिखा है वाह बिलकुल सही लिखा है मै भी इन दस्युओं से भयभीत रहता हूँ. मेरी एक छोटी सी लाइब्रेरी है वाह मेरी निजी संपत्ति है ,चल कहे या अचल .उसे मैंने बहुत जतन से निर्मित किया है अपना धन और श्रम उस पर खर्च किया है .मेरे यहाँ जो भी बंधू आते है और उस सम्पदा पर अपनी निगाह डालते है तो मै सिहर जाता हूँ क्यों की जैसा आपने कहा न की वे ले जरूर जायेंगे पर अपनी दौलत समझ कर और लौटाने का तो कोई सवाल ही नहीं.मेरे एक बुजुर्ग कहा करते थे इस विषय पर कि जिसने किताब उधार दी व एक आंख का अँधा और जिसने उसे वापस कर दी वाह दोनों आंख का अँधा है शायद इसी बात को ध्यान में रख कर लोग पुस्तके नहीं लौटाते दूसरी एक बात मै और कहना चाहता हूँ कि कुछ ऐसे महाशय भी होते है कि पुस्तक में लिखे हूए लाइनों के नीचे अंडर लाइन करना अपना पुनीत कर्तव्य समझते है . एक बार मै आपने शहर कि लाइब्रेरी से एक किताब इसु करवा कर लाया तो उनके पन्नो पर आटा दाल का भाव लिख छोड़ा था .
    बहरहाल मै तो इस वाक्य का सदेव स्मरण रखता हूँ जो मैंने बसों में लिखी देखी थी कि यात्री गण अपनी संपत्ति कि रक्षा स्वयं करे तो मै सतर्क रहता हूँ जब भी किसी आगंतुक कि नजर उस पर पड़ती है वैसे मै सोच रहा हूँ बुक सेल्फ के पास एक नोटिस लगा दूं कि बुरी नजर वाले तेरा मुह काला एक बार फिर धन्यवाद देता हूँ इस लेख के लिए
    बिपिन्कुमार सिन्हा

Leave a Reply to इंसान Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here