कुत्ता प्रसंग और युधिष्ठिर 

प्रमोद भार्गव
आजकल न्यायालय से सड़क तक कुत्ता प्रसंग चल रहा है। यह गोवंश को बचाने से कहीं ज्यादा अहम् हो गया है। अब अह्म तो दोनों ही हैं, गाय दूध के लिए माता कही जाती है और कुत्ता आदमी का वफादार मित्र है। उसकी यही कृतज्ञता के फलतः महाभारत युग में धर्मराज युधिष्ठिर अपने अनुजों के साथ भक्त कुत्ते को भी स्वर्गारोहण के लिए ले गए थे। जैसे कुत्ता न हुआ शरीर का कोई अभिन्न हिस्सा हुआ।
आवारा और अनाथ बच्चों के आश्रयों की तरह देश में पशु-आश्रय स्थल भी बन गए हैं। इनमें आवारा, कटखना, खोए हुए कुत्तों और बिल्लियों को शरण दी जाती है। घर के कई बुजुर्ग, कई-कई संतान होने के बाद भी वृद्धाश्रमों में दिन काटने को मजबूर हैं। नाती-पोतों से वंचित रहते हुए अकेलेपन को अवसाद में भोग रहे हैं। बढ़ते एकल परिवारों में बूढ़ों का यही हश्र हो रहा है। लेकिन देश को इन बूढ़ों से कहीं ज्यादा कुत्तों की चिंता हैं। अतएव शीर्ष न्यायालय का आदेश है कि आवारा एवं कटरखने कुत्तों को पकड़कर उनकी टीकाकरण के साथ नसबंदी भी की जाए। तदुपरांत उन्हें छोड़ा जाए। यदि कोई कुत्ता हिंसक होने के साथ रेबीज से संक्रमित है तो वह संरक्षण में ही रहे। पशु प्रेमी चाहें तो ऐसे कुत्तों को गोद भी ले सकते हैं।
भला करें राम! जिस देश के बाल संरक्षण गृह, नशा मुक्ति केंद्र और आंगनवाड़ियां अर्थाभाव के चलते बच्चों को कुपोषित होने से नहीं बचा पा रही हैं, वहीं अब बच्चों से ज्यादा कुत्तों की चिंता बढ़ रही है। अदालतें भी कुत्तों पर मेहरबान हैं। चूंकि न्यायालयों पर काम का बोझ बहुत है, करोड़ों मामले लंबित हैं। इस परिप्रेक्ष्य में न्यायालय ने आवारा कुत्तों के स्थायी पुनर्वास के संबंध में निर्देश दिए हैं कि  इस आदेश के विरुद्ध अर्जी पेश करने वाले व्यक्ति को अब 25 हजार और सरकारी संगठनों को दो लाख रुपए पंजीकरण हेतु शीर्ष न्यायालय को देने होंगे। यह राशि कुत्तों के लिए बुनियादी सुविधाएं हासिल कराने के काम आएगी। इस कमाल की बाध्यता के चलते जनहित याचिकाएं लगाने वाले लोगों की संख्या घट जाएगी।
अंततः कुत्ते के प्रति असली मोह न तो अदालत का है और न ही अर्जीकत्ताओं का ? श्वान की वफादार प्राकृतिक प्रवृत्ति के प्रति असली मोह तो आदमी और कुत्ते के बीच जीव-जगत के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक निर्लिप्त भाव से युधिष्ठिर ने ही जताया है। उनका कुत्ता मोह इतना अटूट है कि स्वर्गारोहण तक बना रहता है। जबकि पत्नी द्रोपदी से लेकर भाई तक उनका साथ छोड़ते चलते हैं पर कुत्ता साथ बना रहता है।
तो भला करें पांडवों का राम! पांडव पृथ्वी की परिक्रमा लगाकर योग बल के बूते हिमालय पर उत्तर दिशा में चल रहे हैं। योग के संयम से द्रोपदी का मन भंग हो गया और वे प्राण छोड़ते हुए पृथ्वी पर गिर पड़ीं। तब भीम ने धर्मराज युधिश्ठिर से इस मृत्यु का कारण जाना। वे बोले, द्रोपदी पक्षपात करते हुए अर्जुन से सबसे ज्यादा प्रेम करती थी, अब उसी का फल भोग रही है।
इसके बाद अपनी बौद्धिक विद्वता का भ्रम पाले रखने वाले सहदेव धरा पर लुढ़क गए। भीम ने फिर कारण जाना। धर्मराज बोले, सहदेव अपने जैसा किसी को बुद्धिजीवी नहीं समझता था। बुद्धि-भ्रम उसका आजीवन बड़ा दोष रहा। अतएव चलता बना। स्वर्ग के कथित मार्ग पर आगे बढ़े तो सर्वश्रेष्ठ रूपवान नकुल धराशयी हो गए। भीम ने अनुज की मौत पर प्रश्न किया। तब र्धमराज वाले नकुल का सुंदरता के संदर्भ में सोच अत्यंत संकुचित था, वे रूप में अपने से ज्यादा सुंदर किसी अन्य को नहीं मानते थे। इसलिए यही दोष उनके पतन का कारण बना।
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुशधारी अर्जुन अपने भाईयों की मृत्यु से शोक-संतप्त अर्जुन भी खेत रहे। तब भीम की जिज्ञासा का ष्माण करते हुए धर्मराज बोले, इसे अपनी शूर -वीरता का यहां तक अहंकार था कि मैं एक दिन में ही सभी शत्रुओं को भस्म कर डालूंगा। किंतु ऐसा कर नहीं पाया, इसलिए अपने कर्म का फल भोग रहा है।
अब अग्रज के साथ चलते प्राण त्यागते भीम भी धरती पर गिरते हुए बोले, अब भ्राता मेरी भी इस गति का कारण बताइए ? तुम बहुत भोजन करने के साथ अपने शक्ति बल की डींगे हांकते थे, यही अभिमान तुम्हारे अंत का कारण है। यह कहते हुए युधिश्ठिर भीम की दशा देखे बिना ही आगे बढ़ गए। उनका प्रिय कुत्ता उनका अनुसरण करता रहा। अब इस पक्षपाती व अहंकार से भरी दुनिया में कौन ऐसा श्वान-प्रेमी होगा, जिसके साथ स्वामी भक्त कुत्ता स्वर्गारोहण कर जाए ? क्योंकि अब कुत्तों के तथाकथित संरक्षकों और कुत्ता पीड़ितो में अपने-अपने अस्तित्व बचाए रखने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है और दोनों का जीवनदान की इबारत लिखने में लगी है।

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