दिवाली पर दोहे – हिमकर श्याम

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चाक घुमा कर हाथ से, गढ़े रूप आकार।

समय चक्र ऐसा घुमा, हुआ बहुत लाचार।।

 

चीनी झालर से हुआ, चौपट कारोबार।

मिट्टी के दीये लिए, बैठा रहा कुम्हार।।

 

माटी को मत भूल तू, माटी के इंसान।

माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान।।

 

कोई मालामाल है, कोई है कंगाल।

दरिद्रता का नाश हो, मिटे भेद विकराल।।

 

चकाचौंध में खो गयी, घनी अमावस रात।

दीप तले छुप कर करे, अँधियारा आघात।।

 

दीपों का त्यौहार यह, लाए शुभ सन्देश।

कटे तिमिर का जाल अब, जगमग हो परिवेश।।

 

ज्योति पर्व के दिन मिले, कुछ ऐसा वरदान।

ख़ुशियाँ बरसे हर तरफ़, सबका हो कल्याण।।

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1 COMMENT

  1. कविता की पंक्तिया प्रभावशाली हैं। लेखक महोदय को धन्यवाद।

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