डरें नहीं: बात ही हथियार है

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
फिल्म कलाकार नसीरुद्दीन शाह और भाजपा नेताओं ने एक बार फिर इस विवाद को छेड़ दिया है कि भारत में कितनी सहनशीलता है। शाह ने सिर्फ यही कहा है कि उन्हें अपने बच्चों का डर सता रहा है। यदि उन्होंने कह दिया कि वे मुसलमान हैं तो कहीं भीड़ उन्हें नोच न डाले। बिल्कुल इसी तरह का डर डेढ़-दो साल पहले फिल्म अभिनेता आमिर खान ने उनकी पत्नी किरन राव के हवाले से प्रकट कर दिया था। नसीरुद्दीन शाह की पत्नी भी हिंदू हैं। यदि इन दोनों अभिनेताओं ने ऐसा डर व्यक्त किया है तो उन पर गुस्सा होने या उनकी मजाक उड़ाने की बजाय हमको यह सोचना चाहिए कि यदि उनकी जगह हम होते तो क्या होता ? क्या हमारे दिल में भी उसी तरह के विचार नहीं आते ? कुछ लोगों ने शाह को लगभग देशद्रोही कह दिया। कुछ उन्हें पाकिस्तान भेजने की सलाह दे रहे हैं लेकिन इमरान खान के बयान पर शाह ने जो प्रतिक्रिया दी है, उससे उन्हें अंदाज हो गया होगा कि शाह भी उनकी तरह ही देशभक्त और राष्ट्रवादी हैं। जहां तक असहनशीलता का प्रश्न है, गृहमंत्री राजनाथसिंह का यह कथन सर्वथा सही है कि सारी दुनिया में भारत की गिनती सबसे सहनशील देशों में होती है। जितने धर्म, संप्रदाय और जातियों के लेाग भारत में जितनी बड़ी संख्या में रहते हैं, दुनिया के किसी देश में नहीं रहते। यदि आप पड़ौसी देशों में कुछ समय रह जाएं तो आपको भारत के अपने लोगों पर गर्व होने लगेगा। अब से पचास साल पहले मुझसे काबुल के एक अनपढ़ पठान ने पूछा आपका बादशाह कौन है ? मैंने कहा, डाॅ. जाकिर हुसैन। वे हमारे राष्ट्रपति हैं। उसे विश्वास ही नहीं हुआ। वह कहने लगा कि आप तो हिंदुओं का देश हैं। यह कैसा हिंदुस्तान है ? यदि आपको अमेरिका और यूरोप के महान विकसित राष्ट्रों के भेद-भाव और असहनशीलता के अपने अनुभवों के किस्से सुनाऊं तो आप चकित रह जाएंगे। नीग्रो लोगों को कैसे जिंदा जला दिया जाता था, यहूदियों की जर्मनी में कैसी दुर्दशा होती थी, अफगानिस्तान में हजारा लोगों और पाकिस्तान में ईसाइयों और हिंदुओं की क्या दशा है, इस पर जरा विचार कीजिए। जहां तक हिंसक कार्रवाइयों का सवाल है, कोई कम नहीं है। यदि गाय के नाम पर कुछ मुसलमानों की हत्या हुई है तो मुस्लिम आतंकवादियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्या गोधरा, क्या अक्षरधाम, क्या मुंबई, क्या जम्मू का रघुनाथ मंदिर, क्या वाराणसी का संकट मोचन मंदिर और क्या कश्मीरी पंडितों को मार भगाना- उन्होंने कुछ छोड़ा नहीं। बददिमाग लोग दोनों तरफ है। और दुनिया में सब जगह हैं। उनसे डरने और घृणा करने का कोई फायदा नहीं है। उनके लिए फौज और पुलिस की लात तैयार है लेकिन आम आदमी के पास क्या है ? बात है। उसका हथियार बात ही है। बुद्ध और गांधी का हथियार भी यही था। 

2 COMMENTS

  1. लेखक ठीक ही कहते हैं कि डरें नहीं: बात ही हथियार है| सरलमति लोगों के रक्त-चाप को बढ़ाए और कम किये जाने वाली बात के हथियार से अच्छी लगने वाली बातें बताते लेखक कहते हैं कि नसीरुद्दीन शाह द्वारा सिर्फ बात करने पर भाजपा नेताओं ने एक बार फिर विवाद की बात छेड़ दी है| लेकिन बात तो यह है कि लेखक व्यर्थ की बातों का बतंगड़ बनाते मीडिया को नहीं कोसते बल्कि उनके द्वारा नसीरुद्दीन और स्वयं अपने चहेते आमिर खान की बात करते लेखक बातों-बातों में भाजपा के नेताओं को बात का विषय बनाए आम चुनावों के मौसम में सरलमति भारतीयों को कोई नए डर की बात कहने को उतावले हुए जाते हैं|

    युगपुरुष मोदी द्वारा कही एक ही बात “कांग्रेस-मुक्त भारत” को ध्यान में रखते उनके नेतृत्व व दिशा-निर्देशन के अंतर्गत आगामी चुनावों में राष्ट्रवादी भाजपा को अपना समर्थन देकर राष्ट्र-विरोधी राजनीतिक गठबंधन को पराजित करना होगा| ऐसी स्थिति में अब कोई बताए कि राष्ट्रीय शासन के साथ एक-जुट हुए विकास-उन्मुख प्रयासों में व्यस्त भारतीयों को व्यर्थ की बातों से कैसा डरना!

  2. सज्जन के ही वास्ते बात बड़ा हथियार
    जो लातों से मानता मारो जूते चार ।

Leave a Reply to इंसान Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here