कविता

जाने क्यों मुझे देवता बनाते है?

जाने क्यों मुझे देवता बनाते है?
मैं उन्हें कैसे समझाऊ 
कि मैं कोई देवता नहीं हॅू 
एक सीधा-साधा इंसान हॅू 
जो इंसानियत से जीना चाहता हॅू।
पर वे मानते ही नहीं 
मुझे देवता की तरह पूजे आते हैं, 
जाने क्यों मुझ इंसान को देवता बताते है?
ये दुनिया बड़ी जालिम है 
जो हम जैसों के पीछे पडी है
कभी ढंग के इंसान तो न बन पाये 
पर ये देवता बनाने पर अड़ी है।
किन्तु मैं देवता नहीं बनना चाहता 
एक इंसान बनना चाहता हॅू ?
इनके लिये किसी को भी 
देवता बनाना कितना सरल है 
ये हर सीधे सादे इंसान को 
पहले पत्थर जड बनाते हैं।
उजाडकर दुनिया उसकी 
ये उसे नीरस बनाते है।
जिन्हें ये देवता बनाते है 
अक्सर वह इनके करीब होता है 
इनका अपना तो कम 
उनके अपनों का सपना होता है।
दूसरों के सपनों को चुराकर 
ये अपनी हकीकत बनाते है।
प्रेम को जीने वालों को 
निजी स्वार्थ सिद्धि हेतु ही 
पीड़ा का ताज पहनाकर 
बेबसी की माला पहनाते है।
उनकी आँखों से जुदाई के आँसू बहाकर 
उनके हृदय में गर्मी का सैलाव लाते है।
दो प्रेम करने वाले इंसानों को 
ये पहले बिछुडवाते है।
प्रेम की लाश ढोने वाले हर इंसान को 
ये देवता बनाते है।

आत्‍माराम यादव पीव