डा. डेविड फ्रॉले उर्फ वामदेव शास्त्री

-लालकृष्‍ण आडवाणी

गत् सप्ताह मुझे योग और आयुर्वेद के विशेषज्ञ एक महान वैदिक विद्वान जो वर्तमान में न्यू मैक्सिको के सांटा फे स्थित अमेरिकन इंस्टीटयूट ऑफ वैदिक स्टडीज के प्रमुख हैं, से मिलने का सुअवसर मिला। यह वेदाचार्य डेविड फ्रॉले के रुप में जन्मे परन्तु हिन्दू धर्म के प्रति उनके आकर्षण से वह वामदेव शास्त्री के रुप में पहचाने गए।

मुझे इन अमेरिकी विद्वान के साठवें जन्म दिवस यानी उनकी षष्ठिपूर्ति के कार्यक्रम में निमंत्रित किया गया था।

श्री वैंकया नायडू के नई दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित इस कार्यक्रम में उनके चुनींदा प्रशंसक एकत्रित हुए थे। सांसद श्री चंदन मित्रा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय हॉसबोले सहित सभी वक्ताओं ने उनके इस अमूल्य काम की प्रशंसा की कि वे दुनिया के सामने हिन्दु धर्म द्वारा प्रतिपादित मूल्यों और धारणाओं को व्याख्यायित कर रहे हैं जोकि न केवल हिन्दू समाज अपितु समूचे ब्रह्माण्ड के लिए लागू होती हैं।

डा. फ्रॉले ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक है ”यूनिवर्सल हिन्दूज्म: टूवॉर्डस ए न्यू विजन ऑफ सनातन धर्म।” डा. फ्रॉले ने डा. दीपक चोपड़ा और डा. डेविड साइमन के साथ मिलकर काम किया है जो चोपड़ा वेल्नेस सेंटर के संकाय सदस्य हैं।

डा. फ्रॉले के साथ विगत् सप्ताह की मेरी बातचीत ने मेरे दिमाग में ऐसे अनेक पश्चिमी ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का नाम स्मरण करा दिया जो एक बार किसी हिन्दू विद्वान के सम्पर्क में आए और हिन्दूधर्म और भारत के रंग में ऐसे रंगे कि उन्होंने अपने जीवन की दिशा ही बदल दी।

ऐसा ही एक अंग्रेज-आयरिश सामाजिक कार्यकर्ता मारर्गेट एलिजाबेथ नोबल के साथ हुआ जो 1895 में स्वामी विवेकानन्द से लंदन में मिलीं और 1898 में उनके साथ भारत का दौरा किया। स्वामी विवेकानन्द ने उन्हें रामकृष्ण मिशन में शामिल किया और उन्हें निवेदिता (भगवान को समर्पित) नाम दिया।

तत्पश्चात् ऐसी ही घटना ब्रिटिश रियर एडमायरल सर एडमंड स्लेड की पुत्री मेडेलाइन स्लेड के साथ घटी। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ रहने और काम करने के लिए इंग्लैंड में अपना घर बार छोड़ दिया।

वास्तव में वह बीथोवेन के संगीत के प्रति अगाध रुप से समर्पित थी। जब उन्होंने रोमेन रॉलेन्ड द्वारा लिखित इस महान संगीतज्ञ की जीवनी के बारे में सुना तो वे उनसे मिलने गईं। रोमेन रॉलेन्ड ने महसूस किया कि बोथोवेन के प्रति उनका स्नेह भाव आध्यात्मिक झुकाव वाला है, जिसके लिए महात्मा गांधी जैसे आध्यात्मिक नेता कहीं ज्यादा उपयुक्त होगें। गांधीजी ने उन्हें सलाह दी कि वे स्कूल शिक्षक के अपने बुनियादी प्रशिक्षण का उपयोग भारत में कन्याओं को शिक्षित करने में करें।

ब्रिटेन की ही एनी बुड, फ्रेंक बेसेंट से शादी के बाद एनी बेसेंट बनीं। एनी बेसेंट महिला अधिकार कार्यकर्ता और ब्रह्मविद्यावादी थीं। 1898 में उन्होंने भारत की यात्रा की और भारत की राजनीति तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय हुईं। 1917 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं।

डा0 डेविड फ्रॉले के षष्ठिपूर्ति कार्यक्रम में मैंने इन उदाहरणों का स्मरण करते हुए कहा कि स्वयं एक पत्रकार के नाते मैं मार्क टुली (भारत में बी0बी0सी0 के संवाददाता रहे और सेवानिवृति के बाद जिन्होंने भारत को अपने घर के रुप में चुना) से काफी प्रभावित हुआ हूं जिनकी हिन्दूधर्म के बारे में समझ इतनी गहरी है कि जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इण्डियाज़ अनएण्डिंग जर्नी’ के बारे में लिखा है:

”यह पुस्तक वर्णन करती है कि भारत की सहिष्णुता और बहुलवाद, इसकी तार्किक और तर्कमूलक परम्परा और इसकी निश्चितता की अनिश्चितता की स्वीकृति क्या है, का मेरे लिए क्या अर्थ है और मैं सोचता हूं कि भारत यह संदेश दुनिया को दे सकता है।”

मार्क टली की पुस्तक स्वयं कहती है: भारत में मेरे अनुभवों ने मुझे फिर से उस धर्म के बारे में सोचने पर बाध्य किया जो मुझे सिखाया गया था क्योंकि मैंने महसूस किया कि जो मेरी नजरों के सामने सही है उसे मैं उपेक्षित नहीं कर सकता: भगवान तक पहुंचने के अनेक मार्गों का अस्तित्व……जब मुझे यह समझ आया कि हजारों वर्षों से विभिन्न देशों और संस्कृतियों और माहौल में बदलती ऐतिहासिक परिस्थितियों में लोगों का यह अनुभव कि जो दिखता है वही समान सच्चाई है यद्यपि उस सच्चाई को भिन्नता से वर्णित किया गया है, मैंने देखा कि एक सर्वव्यापी भगवान कहीं अधिक तार्किक लगता है बजाय उस एक के जो भगवान अपनी गतिविधियां इसाइयों तक सीमित रखता है।”

हमारे जैसे अनेकों जिन्होंने कांग्रेसी शासन के आपातकाल के विरुध्द संघर्ष किया था, मार्क टली ने भी इसके विरोध में अपना साहसी प्रतिरोध किया था। यह अनेक हमारे पत्रकारों से अलग था जिनके बारे में मैंने कहा था कि जब सरकार ने आपको सिर्फ झुकने के लिए कहा था तो आप में से कुछ रेंगने को तैयार हो गए! निश्चित रुप से टली को अपने इस रुख के लिए नुक्सान सहना पड़ा। उन्हें भारत से निर्वासित कर दिया गया और वे तभी लौट सके जब सरकार बदल गई और आपातकाल समाप्त कर दिया गया।

1 COMMENT

  1. आदरणीय नमस्कार .
    खोजपूर्ण तथ्यपरक आस्थामूलक आलेख के लिए बधाई .
    आप मेरी टेलर को भूल गए .वह आपातकाल से कुछ दिनों पहले रिसर्च स्कालर की हैसियत से भारत आई थी . आपातकाल लागु होने के तुरंत बाद उसे बिहार के राज्ग्र्ही क्षेत्र से नक्सलवादी समझकर रांची की जेलऔर बाद में पता नहीं कहाँ कहा उसने तत्कालीन बर्बर वीभत्स भारतीय कुरूपता का साक्षात्कार किया यह सब पढ़ें -भारतीय जेलों में पांच साल -लेखिका मेरी टीओलर.

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