डॉ. लोहिया की सोच-गंगा-स्वामी निगमानंद का बलिदान

अरविन्द विद्रोही

डॉ. राम मनोहर लोहिया सिर्फ एक व्यक्ति का नाम नहीं एक सम्पूर्ण आन्दोलन है | समाज-देश के हर पहलु पर सजग नज़र व सटीक – प्रखर – सार्थक विचार रखने वाले युग दृष्टा डॉ लोहिया भारत की राजनीति में कमज़ोर तबके के अमिट हस्ताक्षर है | डॉ लोहिया का साफ़ कहना था कि मैं आस्तिक नहीं हूँ लेकिन नदिया हमारे जीवन से जुडी है,इसलिए इनके बदहाली पर चिंतित हूँ | २४ फरवरी ,१९५८ को बनारस में दिये गये अपने भाषण में डॉ लोहिया ने नदियो के महत्व व हमारे कर्त्तव्य को विस्तार पूर्वक समझाया था | यह बात डॉ लोहिया जगह जगह बताते थे | डॉ लोहिया ने अपने सारगर्भित भाषण में कहा था — विशेष संस्कृति व जलवायु के कारण भारत में राम कि अयोध्या सरयू के किनारे, कुरु-पंचाल – मौर्या और गुप्त गंगा नदी के किनारे , मुग़ल व सौर्शेनी नगर और राजधानिया यमुना के किनारे रही | इन नदियो में स्वाभाविक रूप से साल भर पानी रहता था | डॉ लोहिया ने बताया कि एक बार वे महेश्वर गये, महेश्वर वह स्थान है जहा अहिल्या अपनी शक्ति से गद्दी से बैठी थी | उस जगह पर तैनात एक संतरी ने डॉ लोहिया से पूछा था कि तुम किस नदी के हो? डॉ राम मनोहर लोहिया के शब्दों में — यह दिल में घर कर जाने वाली बात है | उसने शहर नहीं पूछा , भाषा भी नहीं पूछी, नदी पूछी| जितने साम्राज्य बढे,किसी ना किसी नदी के किनारे बढे ..चोल कावेरी के किनारे,पांड्या वैगई के और पल्लव पालार के | उस समय आज से लगभग ५२ वर्ष पहले डॉ लोहिया ने प्रश्न उठाया था कि क्या हिंदुस्तान कि नदियो को साफ़ रखने का और साफ़ करने का आन्दोलन उठाया जाय? हिंदुस्तान की करोडो जनता का मन और क्रीड़ायें इन नदियो से बंधे है| नदिया है कैसी ? शहरो का गन्दा पानी इनमे गिराया जाता है| बनारस के पहले के जो शहर है,इलाहाबाद,मिर्ज़ापुर,कानपूर इनका मैला कितना मिलाया जाता है इन नदियो में ? कारखानों का गन्दा पानी नदी में गिराया जाता है- कानपूर में चमड़े आदि का गन्दा पानी | यह दोनों गन्दगी मिल कर क्या हालत बनाती है? यह थे उसी समय नदियो के हालत और युग दृष्टा डॉ लोहिया ने उस समय कटाक्ष भी किया था धर्म के गुरुओ पर कि,— आज मैं आपसे एक बात ऐसी करूँगा जिसे धर्म के गुरुं को करनी चाहिए,लेकिन वे नहीं कर रहे और वह बात है नदियो को साफ़ करो|

आह समाजवादी विचारक युग दृष्टा डॉ लोहिया आज आप नहीं हो हमारे बीच श-शरीर और नदी क्या कहू जीवन दायिनी गंगा की सफाई की आपकी पुरानी मांग पर सत्याग्रह कर रहा भारत भूमि का एक संन्यासी स्वामी निगमानंद गंगा के आस पास खनन रोकने की हसरत ह्रदय में समेटे चिर निद्रा में सो गया | सरकारों का घोर जनविरोधी – स्वार्थी व पूंजीवादी मानसिकता सत्याग्रहियो को गरियाने, धमकियाने , लतियाने तक ही नहीं रुका| सत्याग्रही स्वामी निगम नन्द का गंगा को बचाने हेतु हुई मौत सरकारों की निर्दयता का परिचायक है | ब्रह्म-लीन स्वामी निगमानंद का संकल्प अब आम जन का संकल्प कैसे बने ? क्या चाहते थे स्वामी निगमानंद ? सिर्फ यही ना कि जीवन दायनी पतित पावनी माँ गंगा में प्रदूषित जल व सामग्री-कचरा ना प्रवाहित हो| क्या दिक्कत थी शासन-प्रशासन को यह वाजिब मांग पूरी करने में? खैर शासन – प्रशासन में काबिज भ्रष्ट तंत्र के वाहक तो भारत की आत्मा, भारत की ग्राम्य व्यवस्था तथा भारत के जल-जंगल-जमीन पर पूंजीवादियो-साम्राज्यवादियो के दबाव-प्रलोभन में अनवरत कुठारा- घात कर ही रहा है, अब मनन तो यह करना होगा की आम जन क्या करे और कैसे करे ? डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि हिंदुस्तान कि नदियो कि योजना बननी चाहिए,इसके लिए आन्दोलन होना चाहिए,ऐसे आन्दोलन का मैं साथ दूंगा| आज गंगा की निर्मल धारा के लिए स्वामी निगमानंद के बलिदान के उपरांत गंगा सहित सभी नदियो में कचरा बहाने वाले , गंगा में गंदगी करने वाले सभी कारखानों की बंदी का आन्दोलन धार्मिक गुरुओ, साधू-संतो के साथ साथ प्रत्येक उस नागरिक को करना चाहिए जो गंगा को सिर्फ नदी ही नहीं माँ स्वरूपा मानता है | समाजवादी विचारक डॉ लोहिया के ही शब्दों में — मैं चाहता हूँ कि इस काम में ,ना केवल सोशलिस्ट पार्टी के , बल्कि और लोग भी आयें ,सभा करे, जुलुस निकले, सम्मेलन करे और सरकार से कहें कि नदियो के पानी को भ्रष्ट करना बंद करो | क्या डॉ लोहिया के कथन के ५२ वर्ष बाद बदतर हो चुके हालत और स्वामी निगमानंद के अमर बलिदान के बाद भी सरकार नहीं चेतेगी?

1 COMMENT

  1. आदरणीय अरविन्द जी ,
    सादर प्रणाम
    हमारे सत्ताधीशों को हमेशा सत्ता को बनाये रखने की चिंता रहती है और उन्होंने अपनी सारी उर्जा आम जनता को मजबूर बनाये रखने तथा टुकड़ों में बाँटने में ही लगा रखी है /
    इनको भारतवर्ष के इतिहास ,वर्तमान ,भविष्य से कोई लेना देना नहीं है / भारतमाता की आत्मा कराह रही है , हम खुद (प्रकृति) से दूर होते जा रहे हैं ,मानवता निरर्थक शब्द बन रहा है /
    हमें ये गुलामी तोड़नी होगी वर्ना बहुत देर हो जाएगी, लेकिन कैसे ? क्योंकि गुलामी का अफीम तो हमारे रक्त में दौड़ रहा है /

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