डॉ. मुकर्जी बलिदान दिवस

लालकृष्ण आडवाणी

विशुद्ध ऐतिहासिक रुप से जून का महीना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भाजपा में हमारे लिए इसकी अनेक तिथियां कभी न भूलने वाली हैं।

मैं यह ब्लॉग 25 जून को लिख रहा हूं। सन् 1975 में इसी दिन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आंतरिक आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करवाये थे। प्रधानमंत्री ने केबिनेट से विचार-विमर्श नहीं किया था। गृहमंत्री और विधि मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं थी।

सन् 1975 की 12 जून वह तिथि है जिस दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती इंदिरा गांधी का लोकसभाई निवार्चन रद्द किया तथा भ्रष्ट चुनावी तरीकों के आधार पर अगले 6 वर्षों तक उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया था।

आपातकाल की घोषणा जिस पर राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवाए गए थे, का उद्देश्य उच्च न्यायालय के निर्णय से सामने आए नतीजों को निष्प्रभावी करने हेतु सरकार को शक्ति प्रदान करना था।

आपातकाल की घोषणा केबिनेट को 26 जून की सुबह 6 बजे दिखाई गई। दो घंटे बाद 8 बजे प्रधानमंत्री ने स्वयं रेडियो के माध्यम से जनता को सूचित किया कि देश में आपातकाल लगा दिया है।

गत् रात्रि को घोषणा पर हस्ताक्षर होने के बाद मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया गया, मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप थोप दी गई और आतंरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत व्यापक पैमाने पर लोगों को गिरफ्तार करने तथा नजरबंद करने का अभियान छेड़ दिया गया। पूरे देशभर से हजारों प्रमुख नेता, सांसद, विधायक, पत्रकारों और अन्य अनेक लोग जो आपातकाल का विरोध कर रहे थे तथा मांग कर रहे थे कि उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद श्रीमती गांधी को त्यागपत्र दे देना चाहिए, को जेलों में डाल दिया गया।

उस दिन गिरफ्तार होने वालों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी भाई देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और चन्द्रशेखर भी थे।

इन दिनों देश भ्रष्टाचार, केन्द्र सरकार के अनेकों घोटालों और विदेशी बैंको में जमा काले धन के मुद्दे पर आंदोलित है। लेकिन हम भाजपा के कार्यकर्ता यह कभी नहीं भूल सकते कि हमारी राजनीतिक यात्रा सन् 1951 में डा0 श्यामा प्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में शुरु हुई और जनसंघ के द्वारा आरंभ किया गया पहला राष्ट्रीय आंदोलन जम्मू एवं कश्मीर राज्य के भारत के पूर्ण विलीनकरण के लिए था। डा0 मुकर्जी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और राज्य सरकार द्वारा बंदी बना लिए गए। 23 जून, 1953 को वह रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पाए गए; जम्मू एवं कश्मीर के एकीकरण के लिए शहीद हो गए।

दो दिन पूर्व 23 जून को डा0 श्यामा प्रसाद मुकर्जी का 58वां बलिदान दिवस था। भाजपा की दिल्ली इकाई ने गत् दिवस तालकटोरा स्टेडियम में श्यामा प्रसाद मुकर्जी बलिदान दिवस आयोजित किया था। न केवल यह विशाल स्टेडियम में खचाखच भरा था अपितु हजारों लाग बाहर लॉन में एकत्रित थे जिनके लिए स्क्रीन और लाऊड स्पीकर पर लगाए गये थे जिनसे वे अंदर हो रहे भाषणों को सुन सकें।

सन् 1952 मे पहला आम चुनाव हुआ। भारतीय जनसंघ के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने वाले हम सभी डा0 मुकर्जी के इस आवाहन् कि: एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे- से अत्यंत उत्साहित हुए थे।

टेलपीस (पश्च्य लेख)

पिछले सप्ताह 19 जून को मैंने एक समाचार देखा जो भोपाल से था जिसमें कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने पीटीआई को बताया ”मैं समझता हूं कि अब समय है कि राहुल प्रधानमंत्री बन सकते हैं।”

इस एक वक्तव्य से कांग्रेस नेता ने अपने आप को बंधन में बांध लिया है।

दि इक्नामिक्स टाइम्स (20 जून) ने पीटीआई के इस समाचार का उपयोग करते हुए समाचार का शीर्षक दिया है: राहुल 41 के हुए, सरकार का काम संभालना चाहिए : दिग्विजय सिंह (Rahul turn 41 should take charge of govt : Digvijay singh) समाचार निम्न है

नई दिल्ली: सरकार की छवि पर गहराते धब्बों को भर पाने में सरकार के नेतृत्व की असफलता पर कांग्रेस मे असहजता रविवार को उस समय और गहरा गई जब पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि राहुल गांधी को कामकाज संभाल लेना चाहिए। हालांकि सिंह ने कहा प्रधानमंत्री का भार संभालने के बारे में निर्णय करने का फैसला नेहरु-गांधी परिवार के उत्तराधिकारी पर छोड़ दिया है।

”अब यह राहुल गांधी पर है कि वे कैसे इसे लेते हैं। अब वह परिपक्व व्यक्ति हैं जिसके पास अच्छी- खासी राजनीतिक समझ है और प्रधानमंत्री बन सकते हैं- सिंह ने कहा। कांग्रेस महासचिव ने यह भी कहा कि राजीव गांधी ने सक्रिय राजनीति में काफी वर्ष व्यतीत किए हैं।” राहुल गांधी अब 41 के हो गए हैं और वे पिछले सात- आठ वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहें है” सिंह ने कहा। इस वक्तव्य का स्पष्ट आयाम यह है कि सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री पर बैठे व्यक्ति को अवश्य ही अपना स्थान नेहरु परिवार के उत्तराधिकारी के लिए खाली कर देना चाहिए।

मुझे आश्चर्य है कि क्या किसी अन्य लोकतंत्र में सत्तारुढ़ दल का महासचिव ऐसा सार्वजनिक वक्तव्य देने की हिम्मत कर सकेगा। कम्युनिस्ट देश में, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव (first secretary) को शायद ऐसा कहने का अधिकार हो, लेकिन वह भी ऐसा करने से पहले सोचेगा। वस्तुत: सभी जानते हैं कि डा0 मनमोहन सिंह की तरह श्री चन्द्रशेखर, श्री देवेगौड़ा, श्री इन्द्र कुमार गुजराल भी कांग्रेस के मनोनीत प्रधानमंत्री थे। लेकिन जब वे प्रधानमंत्री थे तब कांग्रेस के किसी महासचिव की ऐसा वक्तव्य देने की हिम्मत हो सकती थी? और यदि कोई ऐसा वक्तव्य दिया गया होता, तो क्या वे पद पर बने रहते?

अभी हाल में मैंने एनडीटीवी को दिए गए दिग्विजय सिंह के इंटरव्यू की स्क्रिप्ट देखी जिसमें उन्होंने अपने पूर्व के गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य को सुधारते हुए मनमोहन सिंह की प्रशंसा की है (वे अपेक्षाकृत अच्छे प्रधानमंत्री हैं) और तभी यह भी जोड़ दिया ”मैं अपने जीवनकाल में राहुल को प्रधानमंत्री के रुप में देखकर प्रसन्न होऊंगा।”

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