डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान

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बलिदान दिवस 23 जून पर विशेष

विजय कुमार

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता श्री आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति थे। उनके देहांत के बाद केवल 23 वर्ष की अवस्था में श्यामाप्रसाद जी को वि0वि0 की प्रबन्ध समिति में ले लिया गया। 33 वर्ष की छोटी अवस्था में ही वे कलकत्ता वि0वि0 के उपकुलपति बने।

डा0 मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए बलिदान दिया। परमिट प्रणाली का विरोध करते हुए वे बिना अनुमति वहां गये और वहीं उनका प्राणान्त हुआ।

कश्मीर सत्याग्रह क्यों ?

भारत स्वतन्त्र होते समय अंग्रेजों ने सभी देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय अथवा स्वतन्त्र रहने की छूट दी। इस प्रक्रिया की देखभाल गृहमंत्री सरदार पटेल कर रहे थे। भारत की प्रायः सब रियासतें स्वेच्छा से भारत में मिल गयीं। शेष हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही से तथा जूनागढ़, भोपाल और टोंक को जनदबाव से काबू कर लिया; पर जम्मू-कश्मीर के मामले में पटेल कुछ नहीं कर पाये क्यांेकि नेहरू जी ने इसे अपने हाथ में रखा।

मूलतः कश्मीर के निवासी होने के कारण नेहरू जी वहां सख्ती करना नहीं चाहते थे। उनका मित्र शेख स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर का राजा बनना चाहता था। दूसरी ओर वह पाकिस्तान से भी बात कर रहा था। इसी बीच पाकिस्तान ने कबाइलियों के वेश में हमला कर घाटी का 2/5 भाग कब्जा लिया। यह आज भी उनके कब्जे में है और इसे वे ‘आजाद कश्मीर’ कहते हैं।

नेहरू की ऐतिहासिक भूल

जब भारतीय सेनाओं ने कबायलियों को खदेड़ना शुरू किया, तो नेहरू जी ने ऐतिहासिक भूल कर दी। वे ‘कब्जा सच्चा, दावा झूठा’ वाले सामान्य सिद्धांत को भूलकर जनमत संग्रह की बात कहते हुए मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये। सं.रा.संघ ने सैनिक कार्यवाही रुकवा दी। नेहरू ने राजा हरिसिंह को विस्थापित होने और शेख अब्दुल्ला को अपनी सारी शक्तियां सौंपने पर भी मजबूर किया।

शेख ने शेष भारत से स्वयं को पृथक मानते हुए वहां आने वालों के लिए अनुमति पत्र लेना अनिवार्य कर दिया। इसी प्रकार अनुच्छेद 370 के माध्यम से उसने राज्य के लिए विशेष शक्तियां प्राप्त कर लीं। अतः आज भी वहां जम्मू-कश्मीर का हल वाला झंडा फहराकर कौमी तराना गाया जाता है।

जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रवादियों ने ‘प्रजा परिषद’ के बैनर तले रियासत के भारत में पूर्ण विलय के लिए आंदोलन किया। वे कहते थे कि विदेशियों के लिए परमिट रहे; पर भारतीयों के लिए नहीं। शेख और नेहरू ने इस आंदोलन का लाठी-गोली के बल पर दमन किया; पर इसकी गरमी पूरे देश में फैलने लगी। ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान – नहीं चलेंगे’ के नारे गांव-गांव में गूंजने लगे। भारतीय जनसंघ ने इस आंदोलन को समर्थन दिया। डा0 मुखर्जी ने अध्यक्ष होने के नाते स्वयं इस आंदोलन में भाग लेकर बिना अनुमति पत्र जम्मू-कश्मीर में जाने का निश्चय किया।

जनसंघ के प्रयास

इससे पूर्व जनसंघ के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर जाकर परिस्थिति का अध्ययन भी नहीं करने दिया गया। वस्तुतः शेख ने डा0 मुखर्जी सहित जनसंघ के प्रमुख नेताओं की सूची सीमावर्ती जिलाधिकारियों को पहले से दे रखी थी, जिन्हें वह किसी भी कीमत पर वहां नहीं आने देना चाहता था। यद्यपि अकाली, सोशलिस्ट तथा कांग्रेसियों को वहां जाने दिया गया। कम्युनिस्टों ने तो उन दिनों वहां अपना अधिवेशन भी किया। स्पष्ट है कि नेहरू और शेख को जनसंघ से ही खास तकलीफ थी।

कश्मीर की ओर प्रस्थान

डा0 मुखर्जी ने जाने से पूर्व रक्षामंत्री से पत्र द्वारा परमिट के औचित्य के बारे में पूछा; पर उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। इस पर उन्होंने बिना परमिट वहां जाने की घोषणा समाचार पत्रों में छपवाई और 8.5.1953 को दिल्ली से रेल द्वारा पंजाब के लिए चल दिये। दिल्ली स्टेशन पर हजारों लोगों ने उन्हें विदा किया। रास्ते में हर स्टेशन पर स्वागत और कुछ मिनट भाषण का क्रम चला।

इस यात्रा में डा0 मुखर्जी ने पत्रकार वार्ताओं, कार्यकर्ता बैठकों तथा जनसभाओं में शेख और नेहरू की कश्मीर-नीति की जमकर बखिया उधेड़ी। अम्बाला से उन्होंने शेख को तार दिया, ‘‘ मैं बिना परमिट जम्मू आ रहा हूं। मेरा उद्देश्य वहां की परिस्थिति जानकर आंदोलन को शांत करने के उपायों पर विचार करना है।’’ इसकी एक प्रति उन्होंने नेहरू को भी भेजी। फगवाड़ा में उन्हें शेख की ओर से उत्तर मिला कि आपके आने से कोई कार्य सिद्ध नहीं होगा।

गिरफ्तारी

अब डा0 मुखर्जी ने अपने साथ गिरफ्तारी के लिए तैयार साथियों को ही रखा। 11 मई को पठानकोट में डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उन्हें बिना परमिट जम्मू जाने की अनुमति दे दी गयी है। वे सब जीप से सायं 4.30 पर रावी नदी के इस पार स्थित माधोपुर पोस्ट पहुंचे। उन्होंने जीप के लिए परमिट मांगा। डि0कमिश्नर ने उन्हें रावी के उस पार स्थित लखनपुर पोस्ट तक आने और वहीं जीप को परमिट देने की बात कही।

सब लोग चल दिये; पर पुल के बीच में ही पुलिस ने उन्हें बिना अनुमति आने तथा अशांति भंग होने की आशंका का आरोप लगाकर पब्लिक सेफ्टी एक्ट की धारा तीन ए के अन्तर्गत पकड़ लिया। उनके साथ वैद्य गुरुदत्त, पं0 प्रेमनाथ डोगरा तथा श्री टेकचन्द शर्मा ने गिरफ्तारी दी, शेष चार को डा0 साहब ने लौटा दिया।

डा0 मुखर्जी ने बहुत थके होने के कारण सबेरे चलने का आग्रह किया; पर पुलिस नहीं मानी। रात में दो बजे वे बटोत पहुंचे। वहां से सुबह चलकर दोपहर तीन बजे श्रीनगर केन्द्रीय कारागार में पहुंच सके। फिर उन्हें निशातबाग के पास एक घर में रखा गया। शाम को जिलाधिकारी के साथ आये डा0 अली मोहम्मद ने उनके स्वास्थ्य की जांच की। वहां समाचार पत्र, डाक, भ्रमण आदि की ठीक व्यवस्था नहीं थी।

वहां शासन-प्रशासन के अधिकारी प्रायः आते रहते थे; पर उनके सम्बन्धियों को मिलने नहीं दिया गया। डा0 साहब के पुत्र को तो कश्मीर में ही नहीं आने दिया गया। अधिकारी ने स्पष्ट कहा कि यदि आप घूमने जाना चाहते हैं, तो दो मिनट में परमिट बन सकता है; पर अपने पिताजी से मिलने के लिए परमिट नहीं बनेगा। सर्वोच्च न्यायालय के वकील उमाशंकर त्रिवेदी को ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका’ प्रस्तुत करने के लिए भी डा0 मुखर्जी से भेंट की अनुमति नहीं मिली। फिर उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप पर यह संभव हो पाया।

हत्या का षड्यन्त्र

19-20 जून की रात्रि में डा0 मुखर्जी की पीठ में दर्द एवं बुखार हुआ। दोपहर में डा0 अली मोहम्मद ने आकर उन्हें ‘स्टैªप्टोमाइसिन’ इंजैक्शन तथा कोई दवा दी। डा0 मुखर्जी ने कहा कि यह इंजैक्शन उन्हें अनुकूल नहीं है। अगले दिन वैद्य गुरुदत्त ने इंजैक्शन लगाने आये डा0 अमरनाथ रैना से दवा के बारे में पूछा, तो उसने भी स्पष्ट उत्तर नहीं दिया।

इस दवा से पहले तो लाभ हुआ; पर फिर दर्द बढ़ गया। 22 जून की प्रातः उन्हें छाती और हृदय में तेज दर्द तथा सांस रुकती प्रतीत हुआ। यह स्पष्टतः दिल के दौरे के लक्षण थे। साथियों के फोन करने पर डा0 मोहम्मद आये और उन्हें अकेले नर्सिंग होम ले गये। शाम को डा0 मुखर्जी के वकील श्री त्रिवेदी ने उनसे अस्पताल में जाकर भेंट की, तो वे काफी दुर्बलता महसूस कर रहे थे।

23 जून प्रातः 3.45 पर डा0 मुखर्जी के तीनों साथियों को तुरंत अस्पताल चलने को कहा गया। वकील श्री त्रिवेदी भी उस समय वहां थे। पांच बजे उन्हें उस कमरे में ले जाया गया, जहां डा0 मुखर्जी का शव रखा था। पूछताछ करने पर पता लगा कि रात में ग्यारह बजे तबियत बिगड़ने पर उन्हें एक इंजैक्शन दिया गया; पर कुछ अंतर नहीं पड़ा और ढाई बजे उनका देहांत हो गया।

अंतिम यात्रा

डा0 मुखर्जी के शव को वायुसेना के विमान से दिल्ली ले जाने की योजना बनी; पर दिल्ली का वातावरण गरम देखकर शासन ने उन्हें अम्बाला तक ही ले जाने की अनुमति दी। जब विमान जालन्धर के ऊपर से उड़ रहा था, तो सूचना आयी कि उसे वहीं उतार लिया जाये; पर जालन्धर के हवाई अड्डे ने उतरने नहीं दिया। दो घंटे तक विमान आकाश में चक्कर लगाता रहा। जब वह नीचे उतरा तो वहां खड़े एक अन्य विमान से शव को सीधे कलकत्ता ले जाया गया। कलकत्ता में दमदम हवाई अड्डे पर हजारों लोग उपस्थित थे। रात्रि 9.30 पर हवाई अड्डे से चलकर लगभग दस मील दूर उनके घर तक पहुंचने में सुबह के पांच बज गये। इस दौरान लाखों लोगों ने अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन किये। 24 जून को दिन में ग्यारह बजे शवयात्रा शुरू हुई, जो तीन बजे शवदाह गृह तक पहुंची।

इस घटनाक्रम को एक षड्यन्त्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि डा0 मुखर्जी तथा उनके साथी शिक्षित तथा अनुभवी लोग थे; पर उन्हें दवाओं के बारे में नहीं बताया गया। मना करने पर भी ‘स्टैªप्टोमाइसिन’ का इंजैक्शन दिया गया। अस्पताल में उनके साथ किसी को रहने नहीं दिया गया। यह भी रहस्य है कि रात में ग्यारह बजे उन्हें कौन सा इंजैक्शन दिया गया ?

उनकी मृत्यु जिन संदेहास्पद स्थितियों में हुई तथा बाद में उसकी जांच न करते हुए मामले पर लीपापोती की गयी, उससे इस आशंका की पुष्टि होती है कि यह नेहरू और शेख अब्दुल्ला द्वारा करायी गयी चिकित्सकीय हत्या थी। यद्यपि इस मामले से जुड़े प्रायः सभी लोग दिवंगत हो चुके हैं, फिर भी निष्पक्ष जांच होने पर आज भी कुछ तथ्य सामने आ सकते हैं।

14 COMMENTS

  1. आप पाठको को मेरा सहृदय प्रणाम ,
    हिंदुस्तान हिन्दू का स्थान है जो कालांतर से विश्व उद्धार करते आई है !
    इतिहास उदाहरण है की हमने मानवता को सदैव प्रश्रय दिया है !!
    हमारे पूर्वज विश्वगुरु थे और हमे खोई हुई अतीत पाने में जो दिक्कते आ रही है वो हम भारतीयों को परिपक्व बनाएगी !
    ये हिन्दू प्रधान ही देश है जिसने कलम साहब की दक्षता को सम्मान दिया !१
    जरा सोचिये……………
    आप क्या कर रहे हैं !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

  2. सुथार जी मेरी समझ नहीं आता की आप पूर्वाह्ग्रस्त लोगो की टिप्पणिया पढ़ते भी क्यों हो, अगर पढ़ते हो तो उसे महत्त्व क्यों देते हो, अभी मैं सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ(इन भाई साहब को छोड़कर) अपने मित्रों से की सी.बी.आई स्वामी बालकृष्ण को फर्जी बता कर उनकी जांच में जुट गयी है, क्या कभी रौल विंची की इन्होने या किसी सरकार ने जांच की पूरा देश जानता है की सोनिया गांधी ने भारत की नागरिकता कब ली फिर भी जब तक उनका मन चाहा वे बिना किसी परेशानी के इस देश में ऐश के साथ रहीं, जबकि बालकृष्ण का तो जन्म ही भारत में हुआ है, ये हिन्दुओं के साथ भेदभाव नहीं तो और क्या है. हमारा देश और हम ही अपमानित हों ये अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा.

  3. राम नारायण जी, कोई ज़रूरी नहीं जो सेना लेकर लड़े वो सही हो, जिस तरह अमेरिका ने बे वजह इराक और लीब्या पर हमला करके लाखों बेगुनाहों की जान ली है और जिस तरह फिलिस्तीन पर हमला किया जा रहा है क्या वो आतंकवाद नहीं है. लेकिन इलज़ाम हमाशा कमज़ोर पर लगाया जाता है. ताकतवर का गलत काम भी लोगों को सही लगता है.

  4. आप भारत के होकर कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानते ये देश्तोड़क बात नहीं है तो और क्या है देश के प्रति वफादार मुसलमानों की इस देश में कोई कमी नहीं है बेशक आपकी कुरबानिया आज भी देश के लिए आदर्श बनाये हुए है

    खान भाई साहब हिंसा का अर्थ क्या है इस पर विचार करे हिंसा का अर्थ निरीह शस्त्रहीन पशु बालक स्त्री निरपराध को मारना होता है न की किसी वीर पुरुष को हमारे यहाँ शस्त्रो की मर्यादाये है देवी देवताओ के अश्त्र शस्त्र कभी निरीह निरपराध पर नहीं चलते कृष्ण या राम के युद्ध को समझने के लिए आपको इस बारे में बहुत गहन अध्यन करना पड़ेगा नहीं तो आपको उतना ही समझ आएगा जितना आपने लिखा है
    जहा तक संघ का सवाल है जब तक अदालत में ये सिद्ध नहीं होता तब तक ऐसे आरोपों का कोई महत्त्व नहीं है महात्मा गाँधी की हत्या का आरोप भी संघ पर लगाया गया परन्तु ये बिलकुल गलत साबित हुआ
    निरंतर नई नई साजिसो का शिकार हो रहा है संघ यदि कोई संघ से जुड़ा हुआ सदस्य वास्तव में आरोपी साबित होता है तो उसने संघ के आदर्शो का उलघन किया है या वो संघ की महत्वकांक्षा के बजाय अपनी महत्वकांक्षा पूरी कर रहा है संघ का उद्देश्य कभी दशहत फेलाना नहीं हो सकता बल्कि शांति और भाईचारा कायम करना है

    “आप युद्ध करें तो धर्म युद्ध, कोई और इंसाफ कायम करने के लिए लड़े तो आतंकवाद! ”
    इन शब्दों से लग रहा है की आप आंतकवाद के भी समर्थक है जहा पर निरीह निरपराध हजारो लाखो लोगो का जेहाद के नाम पर खून बहाया जाता है अगर वास्तव में ये हक़ के लिए लड़ रहे है तो सशत्र सेना लेकर लड़े कायरता से लुक छिप कर निरीह निरपराध लोगो पर गोलिया चलाना कभी हक़ की लड़ाई नहीं हो सकता

  5. हिन्दुस्तानी जी, आप जब जी चाहे उपचार कर सकते हैं, हिंदुस्तान में मुसलमानों को मारना पशुओं को मारने से भी आसान है

  6. राम नारायण जी, मेरी कोई भी बात देश को तोड़ने वाली नहीं है. हमें आपसे कहीं ज्यादा अपने वतन से प्यार है, हमने इसके लिए बहुत सी कुर्बानियां दी हैं.
    आप ने कहा “हमारे यहाँ अहिंसा की पूजा की जाती है हिंसा की नहीं” आप बताइए? क्या महाभारत में कृष्ण अर्जुन को अहिंसा की शिक्षा दे रहे थे? क्या राम अपने सैनिकों को अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे थे? क्या आज के युग में संघ के लोग बम धमाके करके अहिंसा का सन्देश दे रहे है? क्या भाजपा और वीएचपी द्वारा दंगो में अहिंसा पर लेक्चर होता है?
    अगर अहिंसा की ही पूजा करनी है तो पहले हिंसा बंद कीजये, अपने देवी देवताओं की मूर्तियों के हाथों से अस्त्र शस्त्र निकाल कर फूल मालाएं पकड़ा दीजये.
    आप युद्ध करें तो धर्म युद्ध, कोई और इंसाफ कायम करने के लिए लड़े तो आतंकवाद! धन्यवाद

  7. नेहरु का हाथ सिर्फ डॉ मुखर्जी की हत्या में ही नहीं था, बल्कि इसने तो नेताजी सुभाष की मृत्यु में भी भूमिका निभाई थी.

  8. मोहम्मद अतर खान भाई आप ऐसी देश तोड़क बयानबाज़ी कैसे कर सकते हैं?
    भारतीयों ने अपने आक्रान्ता मुसलामानों को भी अपना भाई मानकर इस देश में स्थान दिया| इसलिए नहीं कि वे हमारे ही देश को तोड़ने का घृणित कार्य करें|
    भारत में रहने के लिए आपको भारत से प्रेम करना होगा| यदि केवल इस्लाम प्रेम आपके मन में हैं तो दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जहाँ आपको इस्लाम के नाम पर शरण मिल जाएगी|
    कश्मीर तो क्या हम तो हमारा अखंड भारत का सपना भी साकार करेंगे, जिसमे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, बर्मा जैसे देश शामिल हैं| उस समय भारत उसी मुसलमान को स्वीकार करेगा जिसे भारत से प्यार होगा|
    अब आप भी सोच लें आपको क्या चाहिए भारत या केवल इस्लाम?

    राम नारायण जी ने सही लिखा है कि सच्चा मुसलमान कभी देश तोड़क बात नहीं करता| मुंबई में आतंकी हमले के समय पुलिस मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों को मुंबई के मुसलामानों ने अपने कब्रिस्तान में दफनाने से भी मना कर दिया था| गर्व है हमे ऐसे राष्ट्रभक्त मुसलामानों पर|
    गर्व है हमे डॉ. कलाम जैसे हीरे पर जिसने रूढ़िवादी विचारधारा को त्याग कर राष्ट्रवाद की विचारधारा को अपनाया|
    गर्व है हर उस मुसलमान पर जो पहले एक भारतीय है फिर मुसलमान, आपकी तरह लकीर का फ़कीर नहीं|
    वहीँ दूसरी और sharm aati है शाहरुख खान व सलमान खान जैसे दो कौड़ी के मुसलामानों पर| इनको भारत की जनता ने सुपर स्टार बनाया| शोहरत दी, प्यार दिया| फिर भी ये रहे देशद्रोही ही| बाबा रामदेव के आन्दोलन पर इनकी टिप्पणी निंदनीय है| इनका कहना है कि बाबा को राजनीति नहीं करनी चाहिए| ऐसी बयानबाजी करके वे खुद क्या कर रहे हैं, ये बताएंगे?

  9. अभी चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक़ जताता है इसका अर्थ ये तो नहीं की अब वो भारत का अभिन्न अंग नहीं है
    जेहाद चाहे सचाई के लिए लड़ना हो या किसी और उद्धेश्य के लिए परन्तु इसका अंतिम परिणाम मारना होता है जो की बिलकुल गलत है हमारे यहाँ अहिंसा की पूजा की जाती है हिंसा की नहीं
    देश की सीमाओ की सुरक्षा सेना द्वारा ही की जाती है किसी भारेसे के आधार पर नहीं
    जहा तक गोलियों की बात है तो राजस्थान पश्चमी बंगाल व् अन्य कई राज्यों में अभी कुछ सालो के भीतर कई बार गोलीकांड हो चुके है इससे भारत की अखंडता पर सवाल उठाना कहा तक सही है
    आपके सवाल देश की अखंडता को खंडित करने का क्रूर प्रयत्न है तो इसे देशद्रोह से कम कैसे आँका जा सकता है
    सचा मुस्लमान कभी देशद्रोह की बात नहीं करता मुंबई की मुसलमानों की यही पहचान है कुछ उनसे व् कुछ डा. कलाम से आपको सिखाना चाहिए

  10. Mohammad Athar Khan ( ji ) , संघ का उद्धेश्य यदि किसी को अपनी ताकत से भयभीत करना होता ना तो आज तुम और तुम जैसे अलगाववादी भाषा में भोंकने वाले यहाँ दिखाई नहीं देते |
    सवालों में दम नहीं है …

    हाथी चले बाजार , कुत्ते भोंके हजार …

    ————
    रामनारायण जी ! सही लपेटा है इसको …
    जरा नाम – पते भी पूछ लो , इसे उचित उपचार की आवश्यकता है 🙂
    ———-
    जय भवानी …

  11. राम नारायण जी, आखिर किस आधार पर आप कह रहे हैं कि कश्मीर भारत का अंग है, विश्व समुदाय भी कश्मीर विवादित मानता हैं. कश्मीर को सेना के ज़रिये भारत का अंग बनाया जा रहा है. अगर कश्मीर भारत का अंग होता तो भारत सरकार कश्मीर के लोगों पर इस तरह गोली न चलवाती. सिर्फ १/३ कश्मीर ही भारत के कब्ज़े में है, तो अभिन्न अंग कैसे हुआ?
    जेहाद के बारे में आपको गलत फहमी है, सच्चाई के लिए लड़ना जेहाद है, इंसानियत की हिफाज़त के लिए लड़ना जेहाद है, बुराई से लड़ना जेहाद है. आतंकवाद से लड़ना जेहाद है. लेकिन आज जेहाद का गलत मतलब बता कर जेहाद को अपमानित किया जा रहा है. जेहाद आतंकवाद हरगिज़ नहीं है. १८५७ में अल्लामा फज्लेहक खैराबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा दिया था, जिसके लिए उन्हें सजा ऐ कालापानी दी गयी. वतन की मोहब्बत और आज़ादी के लिए हमने जाने दी हैं और आप हम पर शक करते हैं. आप ने कहा “तिरंगा फेहराना कभी दंगा फसाद का कारन नहीं हो सकता” लेकिन बीजेपी वाले सिर्फ तिरंगे का दुरूपयोग कर रहे थे, आज तक जितने दंगे हुए है उसमे कहीं न कहीं बीजेपी और उसके संघ परिवार का ही हाथ रहा है. आपको याद होगा मुंबई के मुसलमानों ने मुंबई हमलावरों के शवों को अपने कब्रिस्तान में दफ़नाने की इजाज़त नहीं थी, ले जब संघ के लोग आतंकवाद में लिप्त पाए गए तो संघ और बीजेपी उनके बचाव में आ गए. आप मुझे देश द्रोही कह रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की तरफदारी करके आपके देश के ही नहीं बल्कि मानवता के भी द्रोही साबित होते है,

  12. ‘‘ मैं बिना परमिट जम्मू आ रहा हूं। मेरा उद्देश्य वहां की परिस्थिति जानकर आंदोलन को शांत करने के उपायों पर विचार करना है।’’ इन शब्दों से आपको लगता है की मुखर्जी वहा हिंसा भड़काने गए थे
    मोहमद अतर खान आपकी मानसिक व्यथा समझाने योग्य है आपके सवाल हमेसा देशद्रोह से संबधित होते है जो संघ को सदिग्ध आतंकवादी संगठन करार देने से भी नहीं चुकते जरा इतिहास के पन्नो को खोलकर संघ के बारे में पढना पता चल जायेगा की आंतकवादी आरोप लगाने वाला है या संघ
    आपको पता है कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है फिर भी आप की पाकिस्तान के पर्ती वफ़ादारी सराहनीय है
    नेहरूजी की कुछ गलत नीतियों के कारन आज कश्मीर एक विस्व स्तर का मुद्दा बन गया है
    सरदार पटेल ने राज्यों के विलय में केवल एक कश्मीर को छोड़ दिया था वो कहा करते थे की मेरी केवल नेहरू के ससुराल में नहीं चलती है इसी कारन कश्मीर आज देश की एक जटिल समस्या बन गया है
    इसी मुद्दे के कारन सरदार और नेहरूजी के बिच में अनबन हो गयी थी
    कश्मीर में तिरंगा फहराना देशभक्ति का कार्य है उसका सम्मान करना चाहिए आप जैसे लोग जिस देश का अन्न खाते है उसी के साथ गद्दारी करते हो शर्म आनी चाहिए
    १ शांति का अर्थ आपके लिए समझाना काफी पेचीदा है कश्मीर में अशांति का कारन आप जैसे लोग ही है अभी पिछले दिनों कश्मीर में जो दंगा फसाद हुआ था उसका के लिए कई मुस्लिम राजनेता जिमेदार थे एक दो को इस अपराध में दोषी भी पाया गया था परन्तु कांग्रेस के साथ होने के कारन उन पर कोई उचित करवाई नहीं हुई और धर्म क्या होता यह आपके लिए समझने की बात है धर्म कभी सेधान्तिक नहीं होता बल्कि वय्हवारिक होता है
    तिरंगा फेहराना कभी दंगा फसाद का कारन नहीं हो सकता यह राष्ट्र की एकता का प्रतीक है यदि आप जैसे लोग इसका विरोध करते है तो ये देशद्रोह है और ऐसे अराष्ट्रीय तत्वों पर क़ानूनी करवाई करनी चाहिए
    २ इंसानियत का अर्थ बिलकुल जेहाद का विलोम है इसलिए आप को इसबारे में गहनता से विचार करना चाहिए फिर देखिएगा दिल किसका पसीजता है

    नरेंद्र मोदी को वीसा न मिलने का कारन कांग्रेस की मुस्लिम वोट निति है क्योंकि कांग्रेस मुसलमानों को इन्सान नहीं वोट समझती है

  13. विजय जी, जानकारी के लिए धन्यवाद. लेकिन आपके लेख से साफ ज़ाहिर होता है कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी कश्मीर में हिंसा भडकाने गए थे. जब उन्हें मालूम था कि हालत ठीक नहीं है, तो कश्मीर जाने की क्या ज़रूरत थी, आखिर कश्मीर के कानून से इन्हें क्या समस्या थी? ये तो बिलकुल बीजेपी द्वारा तिरंगा फहराने जैसी घटना है जिसका मकसद अशांति फैलाना था. आप तो उनकी तारीफ ही करेंगे, क्योंकि आपभी संघ और बीएचपी जैसे संदिग्ध आतंकवादी संगठनों से जुड़े है.
    कुछ सवाल आपसे,
    १.आखिर आपलोग क्यों नहीं चाहते की भारत में शांति हो और सभी धर्मों के लोग सुख से रहें
    २. दंगे फसाद फैला कर क्या आपलोगों का दिल नहीं पसीजता आखिर इंसानियत भी कोई चीज़ है
    वैसे नरेंद्र मोदी को भी अमेरिका जाने के लिए वीसा नहीं मिलता.

  14. डॉ. मुख़र्जी की रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई मृत्यु से पूरे देश में शोक की लहर फ़ैल गयी थी. लोग इसकी जांच चाहए थे जबकि नेहरु ने जांच से साफ़ इंकार कर दिया. जब डॉ. मुख़र्जी की माताजी जोगमाया देवी ने नेहरु को पत्र लिख कर जांच की मांग की तो नेहरु ने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.सबसे बड़ा रहस्य ये है की उनको दी गयी दवाओं का विवरण भी उपलब्ध नहीं कराया गया. उनको स्त्रेपतो मेसिन की एलर्जी थी उन्होंने ये बताया भी था फिर भी उन्हें ये देदी गयी. अफ़सोस इस बात का है की एन डी ऐ की सर्कार के दौरान भी डॉ. मुख़र्जी, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. होमी जहाँगीर भाभा, पंडित दीन दयाल उपाध्याय की रहस्य मयी मृत्यु की जांच का कोई प्रयास नहीं किया गया.विलम्ब से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कथित मृत्यु की जांच का प्रयास किया भी गया तो वह काम पूरा होने से पहले ही यूं पी ऐ द्वारा समाप्त कर दिया गया. बी जे पी को भारत माता के इन महँ सपूतों की रहस्य मयी मृत्यु की जांच के लिए कमीशन की आवाज़ उठानी चाहिए.इस में उसे फारवर्ड ब्लाक जैसी पार्टियों का भी सहयोग मिल सकेगा.

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