समन्वय नंद
ओडिशा- झारखंड सीमा पर माओवादियों ने एक महिला होमगार्ड कांदरी लोहार की गोली मार कर हत्या कर दी है। जनजातीय वर्ग की महिला कांदरी पहले माओवादी संगठन में रह चुकी थी। उसने वहां हथियारों का प्रशिक्षण भी लिया था। लेकिन 2004 में उसने प्रशासन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। आत्मसमर्पण करते समय उसने जो कारण बताये थे उसका यहां उल्लेख आवश्यक है। उसने कहा था कि माओवादी संगठन में महिलाओं का शोषण किया जाता है। यही कारण है कि वह माओवादियों से त्रस्त हो कर आत्मसमर्पण कर अपना जीवन नये सिरे से शुरु करना चाहती है। उसके आत्मसमर्पण के बाद उसे होमगार्ड की नौकरी प्रदान की गई और इंदिरा आवास योजना के तहत आवास उपलब्ध करवाया गया था। प्रशासन ने उसका विवाह करवाय़ा था। यह विवाह मीडिया की उपस्थिति में हुआ था। उस समय यह घटना काफी चर्चा में थी। यह 2004 की बात है।
2011 के 11 फरवरी को कांदरी की माओवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। केवल उसकी ही हत्या नहीं की बल्कि उसके 3 साल के बच्चे शिव की भी माओवादियों ने हत्या की। दोनों का शब महिपाणी गांव के निकट मिला। माता कांदरी को तो माओवादियों ने गोली मार कर हत्या की लेकिन उसके बच्चे को इतनी आसान मौत माओवादी कैसे दे सकते थे। इसलिए उन्होंने मासूम बच्चे को गला रेत कर हत्या की। वैसे कांदरी जब माओवादी संगठन छोड कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गई थी तभी से वह उनके शत्रु बन चुकी थी । इसलिए उसकी हत्या की गई हो। इस तीन साल का बच्चा किस वर्ग में आता है। क्या माओवादियों ने उसका वर्गीकरण किया था। माओवाद को वैचारिक आंदोलन बता कर निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतारने बालों के तर्क के अनुसार क्रांति के लिए वर्गशत्रुओं की शिनाख्त व उनका खात्मा जरुरी है। तभी क्रांति हो सकती है। इस क्रांति के लिए वे लगे हुए हैं। तो फिर उनकी दृष्टि में तीन साल का बच्चा शत्रु की सूची में आता है। तभी तो उन्होंने इस बच्चे की इतनी बेरहमी से गला काट कर हत्या की।
कांदरी होमगार्ड के रुप में काम करती थी। रिकार्ड के लिए यहां लिखा जाना जरुरी है कि होमगार्ड के पास किसी भी प्रकार का हथियार नहीं होता है। कई बार तो उनके पास लाठी भी नहीं होती है। उनका मानदेय इतना कम होता है कि उनकी आजीविका काफी कठिनाई से चलती है। लेकिन सर्वहारा की लडाई का दावा करने वाले माओवादियों की दृष्टि में कांदरी तो वर्ग शत्रु थी ही, साथ ही उसका मासूम बच्चा शिव भी वर्ग शत्रु था। बच्चा अधिक खतरनाक था, शायद इसलिए उसकी गला रेत कर हत्या करना माओवादियों ने उचित समझा। इस बच्चे को माओवादी इतना खतरनाक क्यों मानते थे इसका बेहतर जवाब गणपति या किशनजी दे सकते है। कुल मिलाकर इस घटना ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। इस घटना ने माओवादियों के असली चेहरे को बेनकाब कर दिया है। इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि माओवादी किसी भी तरह का वैचारिक आंदोलन नहीं चला रहे हैं बल्कि एक ऐसा गिरोह चला रहा हैं जो पैसे वसूलता है, आतंक के बल पर एक इलाके में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते है।
तीन साल के बच्चे शिव के बाद अब बात करें विनायक सेन की। छत्तीसगढ में रहते हैं। माओवादियों के हर कुकृत्य का समर्थन करते हैं। उन्हें हर प्रकार का सहयोग करते हैं। माओवादियों के लिए बौद्धिक, कानूनी व अन्य सभी प्रकार के सहयोग उपलब्ध करवाते हैं। कोई बडा नक्सली नेता गिरफ्तार होता है तो उसे छुडाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाते हैं। फिर भी जमानत नहीं मिली तो जेल में जा कर उससे मिलते हैं। प्रतिदिन मिलते हैं। महीने में 30 बार मिलते हैं। भूमिगत माओवादियों का पत्र जेल में माओवादी नेता को पहुंचाते हैं। उनका संदेशवाहक का काम करते हैं। लेकिन अभी हाल ही में छत्तीसगढ के एक अदालत ने इस तथाकथित सिविल राइट्स एक्टिविस्ट विनायक सेन को माओवादियों को सहयोग करने का दोषी पाया था। इस आधार पर विनायक को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। विनायक के खिलाफ प्रमाण इतना पुख्ता है कि उच्च न्यायालय ने भी उनकी जमानत की याचिका खारिज कर दी है। वर्तमान में विनायक सेन के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे वह एक मसीहा हों। महात्मा गांधी के साथ उनके चित्र छाप कर बितरित किये जा रहे हैं। हिंसा का खुले आम समर्थन करने वाला और दरिंदगी की सभी सीमाओं को लांघने वाले माओवादियों को हर प्रकार का सहायता प्रदान करने वाला व्यक्ति को अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के साथ तुलना की जा रही है। इससे बडा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। विनायक के पक्ष में चलाया जा रहा अभियान सामान्य अभियान नहीं है। इसे काफी बडे पैमाने पर चलाया जा रहा है। दुर्भाग्य इस बात का है कि माओवाद प्रभावित इलाके विशेष कर छत्तीसगढ के अलावा विनायक सेन को कोई ठीक से नहीं जानता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ के बाहर पूरे देश में विनायक की छवि एक मसीहा की बनायी जा रही है। लेकिन छत्तीसगढ के लोग विनायक सेन को ठीक से जानते हैं। यह वही व्यक्ति है कि जो बस्तर के गरीब जनजातीय लोगों की माओवादियों द्वारा हत्या का समर्थन में बौद्धिक जुगाली करता है। जो लोग विनायक सेन के समर्थन में उतरे हैं और विभिन्न स्थानों पर नुक्कड सभाएं कर रहे है उनका नक्सल प्रभावित इलाकों से कोई लेना देना नहीं है। वे दिल्ली व मुंबई के वातानुकूलित कमरों में बैठ कर माओवादियों के पक्ष में तर्क गढते हैं। विनायक सेन के पक्ष में प्रकाश करात, सीताराम येचुरी से लेकर तीस्ता सितलवाड तक हैं। विनायक के समर्थन में उतरने वालों की एक लंबी सूची है । अब तो कई नोबल पुरस्कार विजेताओं ने भी विनायक के पक्ष में पत्र लिखना प्रारंभ कर दिया है।
लेकिन तीन साल का बच्चा शिव के पक्ष में कोई नहीं है। शिव के समर्थन में व उसके हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर देश में कहीं प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं। भुवनेश्वर के मास्टर कैंटिन में भी नहीं और नई दिल्ली के जंतर मंतर पर भी नहीं। कोई बुद्धिजीबी उसके पक्ष में पत्र नहीं लिख रहा है। कहीं कोई गोष्ठी आयोजित नहीं हो रही है।
यह कोई अकेला शिव की कहानी नहीं हैं। ढूढने निकलेंगे तो ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ, आंध्र प्रदेश महाराष्ट्र समेत सरंडा, दंडकारण्य व अन्य जनजातीय इलाकों में ऐसे अनेक शिव हमें मिलेंगे। इन शिवों को मार्कसवाद की शब्दाबली का भी ज्ञान नहीं होता है। इन बेचारों को तो यह भी नहीं पता कि उनकी हत्या क्यों की जा रही है। शिव व अन्य गरीब जनजातीय लोगों के इस पुकार को सुनने के लिए कोई नहीं है लेकिन विनायकों के लिए पूरी फौज तैयार है। केवल देश से ही बल्कि विदेशों से भी।
अब प्रश्न आता है क्या शिब के पक्ष में विनायक सेन खडे होंगे और अपनी आवाज उठायेंगे। या फिर विनायक सेन को कंधे पर उठा कर अपनी रोटियां सैंकने वाले तथाकथित मानवाधिकारवादी इस तीन साल के बच्चे के जिंदा रहने के अधिकार को समाप्त किये जाने पर भी कोई अभियान चलाएंगे।
वीभत्स और शर्मनाक भटना. जितनी भी निंदा की जानी चाइये कम है.
सरकार अभी भी आख मूँद कर बैठी है, ग्रामीण और जवान मारे जा रहे है. सरकार में इक्षाशक्ति हो तो एक हफ्ते में पूरी समस्या का निदान हो सकता है.
माओवादी महिलाओ का अत्याधिक शोषण करते है. पुरुषो को आकर्षित करने के लिए वह महिलाओ का वस्तु की भांती प्रयोग करते है. जब महिला की अंतरात्मा विद्रोह करती है तो माओवादी उनका सफाया करने से भी नही हिचकते है.
लेकिन ईतिहास गवाह है की अबला नारियो पर हात डालने वालो का सर्वनाश हुआ है चाहे वह रावण हो या दुर्योधन. यह घटना दरसाती है कि इन जालिमो का निकट है. इनके पाप का घडा भर चुका है.
अब गांधी गिरी से काम नही चलेगा, विनायक सेन और उसका समर्थन करने वाले कुत्तों की नसबंदी जरूरी हो गई है।
समन्वय नन्द जी दिल भर आया यह निर्दयतापूर्ण हत्या की घटना को पढ़ कर| इस बेचारे छोटे से बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा था जो उसे इस प्रकार बेरहमी से मारा गया| शर्म आती है इन तथाकथित मानवाधिकारवादियों पर| शर्म आती है इन विनायक सेन जैसे समाजसेवकों(?) पर| इनकी जितनी निंदा की जाए कम है|
आदरणीय समन्वय जी बहुत दुःख हुआ आपका लेख पढ़ कर, दिल रो उठा है|
यह महत्वपूर्ण जानकारी हम तक पहुचाने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद|
सादर
दिवस…
वीभत्स और शर्मनाक घटना
थू थू कितने jaalim हैं ये माओवादी . लानत है इनपर और विनायक सेन पर . उससे ज्यादा लानत उनपर जो इन कुत्तों का समर्थन करते है.