राजनीति

कांग्रेस पार्टी के दो चेहरे

वीरेन्द्र सिंह परिहार

कहा जाता है कि इतिहास अपने-आप को दुहराता है। कुछ ऐसा ही नजारा इन दिनों देखने को मिल रहा है। कभी वर्ष 2001 में तात्कालिन रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीज का संसद में बहिष्कार कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगियों ने किया था। कुछ इसी तर्ज पर भाजपा और उसके सहयोगी दल इन दिनों देश के गृहमंत्री पी चिदम्बरम का संसद में बहिष्कार कर रहे है। तब कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने जार्ज फर्नाडीज को देश का रक्षा मंत्री मानने से इंकार कर दिया था,कुछ इसी तर्ज पर भाजपा और उसके सहयोगी पी. चिदम्बरम को गृहमंत्री मानने से इंकार कर रहे है। भाजपा के एक प्रवक्ता ने तो यहां तक कहा कि हम चिदम्बरम को गृहमंत्री मानने के बजाय एक अभियुक्त मात्र मानते है। यह भी उल्लेखनीय है कि तब कांग्रेस ने तहलका प्रकरण को लेकर सिर्फ जार्ज फर्नाडीस का बहिष्कार ही नही किया था,वरन् कई दिनों तक संसद भी नही चलने दी थी। अब कांग्रेस पार्टी का भाजपा पर यह आरोप है कि वह और उसके सहयोगी जार्ज प्रकरण के चलते बदले की भावना से यह बहिष्कार कर रहे हे। दूसरे कांग्रेस पार्टी का यह भी कहना हे कि चिदम्बरम को किसी न्यायालय या जॉच एजेन्सी द्वारा दोषी भी नही ठहराया गया है कि उनसे इस्तीफा लिया जावे। कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी का यह कहना है कि 2 जी स्पेक्ट्रम पर सी0बी0आई0 जॉच सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी मंे चल रही है, इसलिए इस मामले में कोई फैसला सर्वोच्च न्यायालय ही ले सकता है। कुल मिलाकर ऐसी स्थिति में यह देखे जाने की जरूरत है कि वह कौन सी परिस्थितियॉ थी, जिसके चलते कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगियों ने कई दिनों तक संसद नही चलने दी और जार्ज फर्नाडीस का बहिष्कार करते हुए उन्हे रक्षा मंत्री तक मानने से इंकार कर दिया था।

बहुत से लोगों की याददाश्त में यह बात होगा कि वर्ष 2000 में एन0डी0ए0 शासन के दौरान तहलका डॉट काम द्वारा एक स्टिंग आपरेशन किया गया था, जिसमें सेना के कुछ अधिकारियों को सैन्य सौदों की प्रत्याशा में घूंस दी गई थी। साथ ही तबकी समता पार्टी की अध्यक्षा जया जेटली और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को क्रमशः दो लाख एवं एक लाख रू. बतौर चंदा कहकर दिए गए। इसके चलते जया जेटली और बंगारू लक्ष्मण को अपने-अपने पद तो खोने ही पड़ें, वह परिदृश्य से भी बाहर हो गए। लेकिन कांग्रेस पार्टी का कहना था कि इस मामले में रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस का भी इस्तीफा होना चाहिए। वजह यह है कि समता पार्टी जिसकी अध्यक्षा उस समय श्रीमती जया जेटली थी, उसका कार्यालय जार्ज फर्नाडीस के निवास में था। अब इसी बिना पर कांग्रेस पार्टी न सिर्फ जार्ज से इस्तीफा मॉगने लगी, बल्कि उन्हे रक्षा मंत्री मानने से भी इंकार कर दिया। तहलका प्रकरण की जॉच के लिए बाजपेयी सरकार ने बेंकटचलैया आयोग का गठन कर उसे चार महीने में अपनी जॉच रिपोर्ट देने को कहा पर कांग्रेस पार्टी उक्त जॉच रिपोर्ट के लिए इंतजार करने को भी तैयार नही थी।

इब इस तरह से देखा जा सकता है कि इस प्रकरण में जार्ज फर्नाडीस पर न तो किसी न्यायालय का, न आयोग का और न जॉच एजेन्सी का कोई निष्कर्ष तो दूर कोई टिप्पणी तक नही थी। प्रथम दृष्टया भी जार्ज के विरूद्ध कोई प्रकरण नही बनता था, क्योकि जार्ज किसी भी तरह से लेन-देन में संलिप्त नही दिखायी देते थे। फिर भी कांग्रेस पार्टी न तो संसद चलने दे रही थी, और न जार्ज को रक्षा मंत्री मानने को तैयार थी। बाबजूद इसके उच्च नैतिक पंरपराओं के तहत तात्कालिन प्रधानमंत्री बाजपेयी ने कुछ महीनों के लिए जार्ज को मंत्री पद से इस्तीफा भी लिया, परन्तु बाद में उनके विरूद्ध कही कुछ भी मामला बनता न देख उन्हे दुबारा रक्षा मंत्रालय सौंप दिया।

इतना ही नही वर्ष 1998 में करगिल युद्ध को लेकर रक्षा सौंदों के लेकर भी जार्ज पर कांग्रेस पार्टी द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और वर्ष 1999 में मध्याविधि चुनावों में उन्हे ताबूत चोर तक कहकर प्रचारित किया। लेकिन वर्ष 2004 में जब कांग्रेस ने नेतृत्व में संप्रग सरकार सत्ता में आई तो वर्ष 2005 में अप्रैल के पहले सप्ताह में एक जनहित याचिका के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा था कि करगिल युद्ध के समय हथियारों और उपकरणों की खरीद में किसी नियम या प्रक्रिया का उल्लंघन नही किया गया है। इतना ही नही फूॅकन आयोग जिसे ऱक्षा सौदों की जॉच के लिए बाजपेयी सरकार द्वारा बनाया गया था, उसकी रिपोर्ट आने के बाद तात्कालिन रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सार्वजनिक रूप से यह कहां था कि करगिल युद्ध के दौरान रक्षा-आयूधों की खरीद-फरोख्त में किसी किस्म का भ्रष्टाचार नही हुआ है। अब ऐसी स्थिति में भी कांग्रेस पार्टी की दृष्टि में जार्ज बहुत बड़ें भ्रष्टाचारी थे, और पी0 चिदम्बरम निर्दोष है। कांग्रेस पार्टी के अनुसार इन्हे दोषी तभी माना जाएगा जब सर्वोच्च न्यायालय उन्हे दोषी बता देगा।

अब कांग्रेस पार्टी के इस तरह से दो चेहरे देखे जा अथवा दो अलग-अलग मापदण्ड देखे जा सकते है। तहलका प्रकरण में तो वह जार्ज फर्नाडीज और दूसरे लोगों को बगैर किसी जॉच-पड़ताल के ही अभियोजन के लिए अड़ी थी और यहां चिदम्बरम के विरूद्ध किसी किस्म की जॉच के लिए ही तैयार नही है। सरकार की जेबी संस्था सी0बी0आई0 कहती है कि सरकार कहेगी भी तो हम चिदम्बरम के विरूद्ध जॉच नही करेगें। यानी जहां अपना मामला है, वहां जब अदालत जॉच कराएगी तो जॉच होगी, अदातल पद से हटाने को कहेगी तो मजबूरी में पद से हटाया जाएगा। कांग्रेस पार्टी और सरकार का अपनी तरफ से कोई दायित्व नही है। पता नही कांग्रेस पार्टी यह कौन नई परंपरा डाल रही है? अब कांग्रेस पार्टी कहती है-चिदम्बरम को किसी ने दोषी नही ठहराया। अरे चिदम्बरम को दोषी तो यह संप्रग सरकार ही बता चुकी है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर 25 मार्च 2011 की वित्त मंत्रालय द्वारा पी0एम0ओ0 को लिखी वह चिट्ठी पूरी दुनिया के सामने आ चुकी है। जिसमे यह कहा गया है यदि तात्कालिन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम चाहते तो इस घोटाले को रोक सकते थे । अब भला यह चिट्ठी सार्वजनिक होने पर कांग्रेस पार्टी इसे वित्त मंत्रालय के किसी कनिष्ठ अधिकारी की चिट्ठी बताकर हल्का करने का प्रयास किया हो या उसे दो मंत्रियों के बीच का मतभेंद प्रचारित कर उसे सुलटाने का आदेश कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गॉधी ने दिया हो। पर असलियत यही है कि वह चिट्ठी न तो किसी कनिष्ठ अधिकारी, न वरिष्ठ अधिकारी की हैं। असलियत यह है कि 29 सितम्बर को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने स्वतः प्रधानमंत्री एवं सोनिया गॉधी को यह लिखा था कि यह नोट सिर्फ उनके मंत्रालय द्वारा नही, बल्कि चार मंत्रालयों द्वारा मिलकर बनाया गया था, जिसमें कैबिनेट सचिव के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय भी विचार-विमर्श में शामिल था। इस तरह से प्रकारान्तर से यह सरकार का ही नोट था। बाबजूद इसके मामले को टालने के लिए अदालत की आड़ ली जा रही है। फिर अहम बात यह कि सरकार किस मर्ज की दवा है? वैसे कांग्रेस पार्टी और यह सरकार अदालतों को कितना महत्व देती है, यह पूर्व में कई प्रकरणों में देखा जा चुका है। सी.वी.सी. थामस प्रकरण में नियुक्ति को लेकर इसी सरकार ने कहा था कि सी.बी.सी. की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय को कुछ नही लेना-देना है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वतः सर्वोच्च न्यायालय को मर्यादा में रहने की धमकी दे चुके हैं फिर भी इनके पास न्यायालय का सुरक्षा-कवच लेने के अलावा कोई चारा नही है। उपरोक्त परिस्थितियो में यह कैसे कहा जा सकता है कि 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर भाजपा और उसके सहयोगियों का बहिष्कार उचित नही है