कैंसर उपचार की असफलता के कारण

डा. मनोज शर्मा

आज भी प्राय: मुझ से यह यह प्रष्न पूछा जाता है कि ”क्या कैंसर का कोई कारगर इलाज निकला है?”

ऐसे प्रश्‍नों का प्रमुख कारण है कि कैंसर के इलाज के बाद भी अधिकांश रोगियों को पूर्ण जीवन की अवधि का प्राप्त नहीं हो पाती है वास्तविकता यह है कि कैंसर के उपचार की सम्पूर्ण विधियों का संचालन करने के बाद या उपचार की अवधि पूर्ण करने के बाद भी रोगी में रोग का पुनरागमन, आवृत्तियाँ या विस्तार एक प्रमुख घटना होती ही है जो डाक्टर, मरीज एवं उसके साथियों को मानसिक रूप से हिला कर रख देते है।

भारतीय असपफलताओं को हम कई प्रकार से समझ सकते हैं। उदाहरणार्थ

उपचार या कैंसर निदान होने के पहले के कारण:

1. साक्षर एवं निरक्षर समाज में कैंसर सम्बन्ध्ति ज्ञान का अभाव एवं उसका प्रमुख कारण इलेक्ट्रानिक एवं प्रिन्ट मीडिया द्वारा समस्या की निरन्तर अनदेखी करना होगा।

2. कैंसर के प्रति अज्ञानता के कारण इस रोग का आखिरी दशा में पता चलना जब उससे मुक्ति पाना ही असम्भव है।

3. शुरूआती दशा के कैंसरों का उपचार गलत हाथों द्वारा गलत तरीके से किया जाना क्योंकि कैंसर रोग का ठीक से निदान नही नहीं किया गया इसकी सद्य परीक्षा यानि बायप्सी करके। या अन्य विकसित परीक्षणों द्वारा उसका सत्यापन ही नहीं किया गया। मरीज़ पड़ गया किसी नीम हकीम ख़तरे जान के हाथों में।

निदान के उपरान्त कैंसरोंपचार में असफलता

1. रोगी का सर्वागींण उपचार विधियों द्वारा एवं संतुलित उपचार योजना का नियमन नहीं होना अर्थात ब्वउचतमीमदेपअम जतमंजउमदज ेजतंजमहल चसंददपदह का न होना।

2. शल्य, विकिरण, औषधि रसायन; कीमोथेरेपी या रोग प्रतिकार चिकित्सा; इम्यूनोथेरेपीध्द के किसी एक विषेशज्ञ द्वारा रोगी के रोग से पहले ही छेड़खानी कर देना जिससे उस पर प्रमुख चिकित्सा विधियों द्वारा बहुआयामी प्रहार न किया जा सके।

3. रोगी के रोग का निदान होने के पश्चात स्वीकृत उपचार पद्वतियों से दूर भागकर बाबाओं, आश्रमों एवं अन्य चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद होमियोपैथी, सिद्ध या यूनानी पद्धति की चिकित्सा विधियों से इलाज कराना जहाँ सपफलता के दावे अध्कि किये जाते है परन्तु ऑंकड़ों के साक्ष्य कम हैं।

4. रोगी द्वारा सरकारी अस्पतालों के धक्‍के खाकर खिन्न हो जाना और इलाज की शुरूआत ही ना कराना। अस्पताल जाने के नाम से ही डर लगने लगना।

5. रोगी की आर्थिक दशा अचानक कमजोर हो जाना और इलाज के लिये खर्चा ना जुटा पाना – यहाँ तक कि मुफ्त चिकित्सा केन्द्रों में जाने वाले रोगियों के लिये भी। या

6. बड़े 5 तारांकित कैंसर अस्पतालो द्वारा मधयम वर्गीय रोगी को भरपूर लूटा जाना – तरह तरह की नयी ”क्रान्तिकारी” जांचों या ”क्रान्तिकारी” इलाजों की लुभावना देकर। जबकि ऐसे रोगों एवं रोग दशा की सच्चाई ऑंकड़ों में आ चुकी है।

7. इसमें रोगी द्वारा आन्धनुकरण एवं कैंसर विशेषज्ञ की विवेकहीनता या संतुलित विचारधरा या अनुभव हीनता ही जिम्मेदार है। वो इसलिये कि अनुभवानुसार यह कहा जा सकता है कि अमुक अमुक दशा के कैंसर रोगी की जीवित रहने की संभावनाएं क्या हैं? एवं इन तथ्यों से परे हटकर स्वार्थ वश कैसा स्वार्थ? 1. उन दवाओं या उपचारों का कम्पनियों से कमीशन खाने से लेकर। 2. उन दवाओं के उपयोग का अनुभव बूठे डरों से पालायन कर जाना।

13. कैंसर चिकित्सा केन्द्र का घर से बहुत दूर होना, या अपने गृह नगर से कहीं और होना और उसके लिये प्रतिदिन या प्रति महीने आने जाने का किराया ना जुटा पाना; भारत में समुचित कैंसर चिकित्सा केन्द्रों का कतिपय भीषण अभाव, इसका प्रमुख कारण है।

14. कैंसर घातक दवाओं का दुष्प्रभाव साधरण स्वस्थ अंगों पर रोकने या कम करने के लिये दी जाने वाली दवाओं जैसे उल्टी-दस्त रोकने की दवाओं, रोग प्रतिरोध क्षमता बीनापन आ जाना उपचार से उत्पन्न लक्षणों से मुक्ति पाने मे ही जब देर होने लगे तो रोगी की हिम्मत पस्त हो जाती है अगला कोर्स लेने के लिये।

15. निदान के पश्‍चात् उपचार प्रारम्भ करने में ही देरी होना जिसके प्रमुख कारण हो सकते है।

क. घर में घटी दुर्घटना, मृत्यु या रोग।

ख. परिस्थिति – बाल बच्चों की परीक्षा, इन्टरव्यू, शादी, उत्सव, नौकरी छूट जाना, मुकदमें की तारीख।

ग. घर की आर्थिक परिस्थिति: व्यापार में घाटा, कमाई का साध्न न होना, गरीबी रेखा के नीचे। या गरीबी रेखा के नीचे वाला बी पी एल कार्ड ना होना।

घ. प्राकृतिक मानव निर्मित विपदा के कारण घर ही उजड़ जाना आंधी, तूफान, सैलाब, हिमपात, बुलडोज़र, भूकम्प, भ्रष्‍ट बिल्डर, भूस्खलन।

ड. परिवार के मुखिया की अनिच्छा: उपचार पर खर्च और उसका पफायदा देखने की प्रवृत्ति खास कर यदि वैघर के बू

1 COMMENT

  1. डा. राजेश कपूर जी की दी हुई निम्न जानकारी दृष्टव्य है 🙁 मूल लेख ” कैंसर के इलाज का झूठ ” से उधृत )
    लाखों लोग कैंसर से पीड़ित होकर इलाज पर करोड़ों रुपया नष्ट कर रहे हैं. दुखद पक्ष यह है कि……………………… # आधुनिक चकित्सा करवाने पर आजीवन कैसर का इलाज करवाना पड़ता है.
    # इस इलाज से आयु घट जाती है …
    # इलाज के प्रभाव से मृत्यु बड़ी वेदना के साथ होती है……..
    # कैंसर का एलोपैथिक इलाज करवाने से म्रत्यु इसी रोग से होती है, चाहे कितना भी इलाज करवाए. ठीक होकर पुनः यही रोग होता रहता है. इसका अर्थ यह हुआ कि आधुनिक चिकित्सा से केवल लक्षण दबते हैं, रोग जड़ से नहीं जाता.
    ** इसके विपरीत प्राकृतिक, आयुर्वैदिक, योग-प्राणायाम, होम्योपैथिक आदि चिकित्सा से ठीक होने वालों का रोग जड़ से जाता है. यदि किसी कारण पूरे ठीक न भी हों तो उनकी आयु एलोपैथिक दवा लेने वालों की तुलना में अधिक होती है. अंत समय में बिना कष्ट के प्राण निकलते हैं. डा. मनु कोठारी और डा. लोपा मेहता ने अनेक वर्षों के अध्ययन के बाद इस पर एक प्रमाणिक पुस्तक लिखी है. …………### अतः अंत में पुनः निवेदन है कि कैंसर रोग से रक्षा करने वाले निम्बू जल के इस प्रयोग की अमूल्य जानकारी को अधिकतम लोगों तक पहुँचाने में सहयोग करें , धन्यवाद !
    # विश्व प्रसिद्ध कैंसर हस्पताल ”होपकिंस हॉस्पिटल – अमेरिका” के अनुसार रेडिएशन या ऑपरेशन से कन्सर की चिकित्सा सम्भव हो ही नहीं सकती, क्यूंकि इस रोग के करोड़ों रोगाणु तो रक्त में होते हैं. जब उनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है तब रोग का पता चलता है. अतः ऑपरेशन या कीमोथिरेपी से तो मात्र लक्षणों की स्थानीय चिकित्सा होती है और रोग शरीर में बना ही रहता है. अतः डा. मनोज के लेख में दी सावधानियों का कोई विशेष अर्थ नहीं रह जाता.

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