वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं के कारण, समस्याएं एवं समाधान

डां. रमेष प्रसाद द्विवेदी

इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीन काल में वृद्धों की सिथति अत्यंत उन्नत एवं सम्मानीय रही हैं। उन्हें समाज एवं परिवार में अलग वर्चस्व था। परिवार की समस्त बागडोर उनके हाथों हुआ करती थी। परिवार को कोर्इ फैसला उनकी सलाह व मसविरे के आधार पर होता था। उन्हीं की सत्ता एवं प्रभाव के कारण पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, वे परिवार के सदस्यों को एक धागे में बांधें रखते थे, परंतु भौतिकवादी युग में वृद्धों की समस्याओं का बढ़ना एवं समाज में उनकी उपयोगिता कम और समस्याएं बढ़ती नजर आ रही है। बुढ़ापा जीवन का अंतिम पड़ाव है और इस पड़ाव में जीवन असक्त हो जा है। कार्य करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। भरण-पोषण के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही निर्भरता वृद्धों की समस्याओं की मूल हैं। शारीरिक एवं आर्थिक दृषिट से घुटन भरी जिन्दगी जीने को विवश हो जाती है। चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित क्यों न हो, इस अवस्था में उनकी गाड़ी चरमराने लगती है, वह युवा पीढ़ी से तालमेल नहीं बैठा पाते है, जिससे उनकी समस्याओं की वृद्धि हो जाती है। विश्व में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है कि जहां वृद्धावस्था में अब सामाजिक एवं आर्थिक असुरक्षा के कष्ट झेलते है। युवा वर्ग वृद्धों को कोर्इ महत्व नहीं देते हैं।

 वृद्ध पुरूषों के समस्या के कारण :

आज हमारे देश में समस्याओं को बढ़ने के अनेक कारण है जो समाज की देन है। भारतीय समाज ऐसा समाज है जहां आज भी देखा जाता है लेकिन जैसे-जैसे पशिचमीकरण, भैतिकवाद का विकास हुआ वैसे-वैसे वृद्धों को उपेक्षा का शिकार होकर समस्याओं में घिर गये है। आज इन वृद्धों की समस्याओं के बहुत से कारण है, जो इस प्रकार है:-

1. संयुक्त परिवार का विघटन : संयुक्त परिवारों का अशांत व घुटन भरा माहौल और नगरों की ओर तेजी प्रस्थान करती हुर्इ युवा पीढ़ी को अपने वृजुर्गों के प्रति उदासीनता ने आज हमारे समाज में गंभीर समस्या उत्पन्न कर दी है। यह वही देश है कि जहां की संस्कृति में परिवार के बुजुर्गों को भगवान के समान माना जाता है और आज की पीढ़ी ने प्रथम पढ़ी नहीं होगी अगर पढ़ी होगी तो भी क्या आज के हर क्षण के बदलते परिवेश में इस प्रकार की आपेक्षा की जा सकती है। आज की नर्इ युवा पीढ़ी न तो बड़ों के अनुशासन में रहना चाहती और न ही आदर सम्मान कारना चाहती है।

2. भौतिक सुख सुविधाओं की वृद्धि : भौतिक सुख सुविधाओं की वृद्धि होने के कारण औधोगीकरण व संस्कृतिकरण के फलस्वरूप आज की युवा पीढ़ी का रहन-सहन एवं जीवन शैली में बदलाव तेजी से देखा जा रहा है। इस युग में कोर्इ भी व्यकित अपने कार्यों में इतना व्यस्त हो रहे है कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठना अब आवश्यकता ही नही समझते है, जिसकी सबसे बड़ी पीड़ा बृजुर्गों को ही झेलनी पड़ती है। परिवार की अवधारणा केवल पति-पत्नी एवं बच्चों तक ही सीमित होने लगा है और ये वृद्ध समाज एवं परिवार के क्षेत्र या सीमा से बाहर होते जा रहे है। आज की युवा पीढ़ी अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं को अधिक महत्व देते है और वृद्धों पर कम। व्यकित को अपने आराम की हर वस्तु खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा होता है लेकिन वृद्धों के बीमारियों के लिए पैसे नहीं। नर्इ पीढ़ी को अकेले रहने की ललक है और वे इन वृद्धों को भूल जाते है। जो पालन-पोषण के अनेकों कष्टों का सामना करते है और स्वप्न सजोते है कि यही बालक बुढ़ापे की लाठी बनेगा लेकिन वह तो निष्ठुरता, अनैतिकता, भौतिक सुख-सुविधा, पाश्चात्य सभ्यता की गोद में सो जाते है।

3. नर्इ-पुरानी पीढ़ी के बीच फासला : इसके संबंध में कुछ फासला हमेशा से रहा है जिसको पीढ़ी का अंतराल कहा जाता है। अगर विचार किया जाय तो यह पीढि़यों के आचार-विचार, जीवन शैली, सोच का अंतर ही है। हालांकि नर्इ पीढ़ी पुरानी पीढ़ी विरासत में न केवल जीवन शैली वरन जीवन दर्शन भी पाती है। अपने लिए सारे परिवर्तन या सशोधन भी उसी में से करती है। फिर भी न जाने क्यों पुरानी पीढ़ी उसे बोझ सी लगती है। इसका कारण है कि पुरानी पीढ़ी नर्इ पीढी से सहमत नहीं हे पती है।

4. धन का महत्व : आज के युग में धन का महत्व बढ़ने के कारण वह धन कमाने में वे इतना व्यस्त हैं कि उन्हे दूसरों को ध्यान देने का समय नहीं है। बच्चे बड़े होकर माता-पिता को तभी अपनाते है जब तक उनके पास धन होता है धन समाप्त होन के बाद उनके वृद्धों का कोर्इ महत्व नहीं बचता है और वे बोझ बन कर रह जाते है।

5. व्यकितवादिता या व्यकिगत स्वार्थ : आज के युग में नर्इ पीढ़ी स्वार्थी हो गर्इ है। वह अपना स्वार्थ देखकर ही कार्य करती है वह अपने परिवार के वृद्धों की देखभल तभी करते है जब वह समझते है कि उन्हे धन-दौलत, संपतित प्राप्त हो सकती है वह अपने स्वार्थों के प्रापित के लिए प्रेरित हो जाते है। उनके अंदर अपने बुजुर्गों के प्रतिसाद सेवा, दया एवं त्याग कम होता जा रहा है क्योंकि वह वृद्धों की सेवा व कर्तव्य को अपनी स्वतंत्रता में बाधक मानते है। इसलिए व अपने हित के लिए वृद्धों को अनदेखा कर देते है।

 

वृद्ध पुरूषों की समस्याएं :

वृद्धावस्था को जीवन का अंतिम पड़ाव एवं समस्या से घिरी हुर्इ अवस्था माना जाता है क्योंकि इस अवस्था में वृद्धों को अनेक समस्याएं घेर लेती है, जिसके परिणामस्वरूप दूसरों के साथ संबंध स्थापित करने में असमर्थ रहते है। समय की रफतार के साथ-साथ समाज में नये नये परिवर्तन होने लगे हैं। नर्इ पीढ़ी के लोग पुराने विचारों के लोगों को अपने जीवन में आने को उपयुक्त नही समझते है। इस कारण युवा पीढ़ी उनके अनुभवों एवं विचारों की उपेक्षा करते है। वद्धों की समस्याओं एवं उनकी उपयोगिता भी समाज में कम होती नजर आने लगी है, जो इस प्रकार है:-

1 शारीरिक समस्या : वृद्धावस्था उतरते या ढलते काल है। इस अवस्था में शरीर शिथिल होने लगते है। वृद्धावस्था में शरीर में बदलाव का परिणाम सामाजिक बदलाव पर होता है। इस अवस्था में अनेक समस्याएं निर्मित होती है। कोर्इ व्यकित 60 साल में भी जवान दिखार्इ देता है तो कोर्इ 40 साल में ही वृद्ध दिखने लगता है। वृद्धावस्था में व्यकित के शरीर में झुर्रिया, चिड़चिड़ापन जैसे अनेक लक्षण दिखार्इ देने लगते है।

2 मानसिक समस्या : शारीरिक बदलाव के अनुसार मानसिक परिवर्तन भी होता है। इस अवस्था के प्रवेश करते ही मानसिक तनाव की सिथति बनने लगती है तथा लोगों से संपर्क बनाना सहयोगी या मित्रों के निधन हो जाने से मानसिक तनाव एक महत्वपूर्ण कारण है। सर्व विदित है कि यदि पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाने से हीन भावना की वृिद्ध होती है तथा आत्मविश्वास का अभाव दिखने लगता है जिससे मानसिक विकृत, अकेलापन आदि जैसे दोष निर्माण होते है। अत: समाज को अपना कुछ भी उपयोग नहीं होने से निरूपयोगिता की भावना का जन्म होने लगता है।

3 स्वास्थ्य की समस्या : शारीरिक बदलाव के अनुसार मानसिक परिवर्तन भी होता है। इस अवस्था के प्रवेश करते ही स्वास्थ्य की समस्या बनने लगती है तथा लोगों से संपर्क बनाना सहयोगी या मित्रों के निधन हो जाने से स्वास्थ्य की समस्या एक महत्वपूर्ण कारण है।

4 आर्थिक समस्या : यह समस्या वृद्धों की महत्वपूर्ण समस्या है। वृद्धों को आर्थिक समस्या का अभाव ज्ञात होने लगता है। कार्य क्षमता की कमी होती है जिससे दूसरों पर निर्भरता बढने लगती है और युवाओं द्वारा या परिवार के सदस्यों द्वारा उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता हैं।

5 पारिवारिक एवं सामाजिक समस्या : सर्व विदित है कि इस अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण वे समूह एवं परिवार से अलग होने लगते है जिसके कारण सामाजिक व पारिवारिक संबंधों में बुरा असर होने लगता है। जहां तक मैने देखा है कि परिवार में सदस्यों के साथ मतभेद निमार्ण होने लगता है और नौकरी या व्यवसाय से मुक्त होने के कारण समाज एवं परिवार में उनका वर्चस्व, मान-सम्मान कम हाने लगता है, जिससे इन्हे अपना जीवन यापन करना कठिन हाने लगता है। प्राय: देखा जा रहा है कि आधुनिक युग में परिवार या समाज के युवओं की भावना एवं विचार में काफी बदलाव देखने को आता है, उनके सहन-सहन, व्यवहार आदि में अंतर हो जाता है।

6 अकेलापन की समस्या : परिवार से सामन्जस्य न कर पाना, अलगाव, पृथक्कीकरण की अनुभूति, युवा पढ़ी द्वारा वृद्ध के अनुभवों, विचारों, परामर्श को दुलक्षित करने के कारण उन्हे घर से अलग या वृद्धा आश्रमों में रखा जाना या घर से निकाल देने जैसी समस्याएं देखने को मिलती है, जिससे वृद्धों में अकेलापन की समस्या का निर्माण होता है।

7 घर व समाज में अनादर की समस्या : किसी भी वृद्ध को समाज व परिवार में मान-सम्मान की अपेक्षा होती है लेकिन आज के पष्चात्य संस्कृति के प्रवेष होने के कारण वृद्धों का अनादर देखने को मिलने लगा है, जिससे उन्हें घर में अपेक्षानुसार मान-सम्मान की जगह अनादर मिलने लगा है।

8 पराबलंबन की भावना की समस्या : वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था है जब उसे अपने परिवार व बच्चों पर निर्भरता ज्यादा होती है और इस समय पर उन्हें घर व परिवार से अलग करने की रणनीति आज के समाज के युवा बनाने लगते है, तब उन्हें पराबलंबन की भावना की समस्या निर्माण होने लगती है।

 निष्कर्ष व सुझाव

निष्कर्ष : इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि नागपुर शहर की मलिन वसितयों में रहने वाले पुरूष वृद्धों की मध्य आयु 66 वर्ष है। वे हिन्दू या बौद्ध धर्म के है। अधिकतर मराठी भाषी है और वे अधिकतर पिछड़े वर्ग के है तथा वे साक्षर है। लेकिन वे व्यवसिथत नहीं हैं। 3 से 6 सदस्य के परिवार में रहने वाले इन वृद्धों को 3 से 4 संतानें है। अधिकांश वृद्धों को तंबखू व शराब दोनों का व्यसन है। आधे से अधिक और आधे से कुछ वृद्ध अभी भी जीवन यापन के लिए कमार्इ करते है जिसकी मासिक आय 2000 रूपये है एवं अधिकांष वृद्ध स्वयं के घर में रहते है।

वृद्धों को महसूस होने वाली प्रमुखतम शारीरिक समस्या है और अधिकांष वृद्धों को स्वास्थ्य सेवाओं में अभाव की समस्या से काफी तीव्रता से महसूस होती है। वृद्धों की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या है। उनकी आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें आर्थिक संसाधनों की कमी तीब्रता से महसूस होती है। तीसरी प्रमुखमत समस्या पराबलंबन की भावना, समाज एवं परिवार में अनादर, अकेलेपन की भावा, अनुपयोगिता की भावना इत्यादि अन्य समस्याएं हैं जो वृद्धों को महसूस होती है।

वृद्धों के मतानुसार वृद्ध लोग समाज के लिए बहुत उपयोगी हो सकते है लेकिन उनके अनुभवों का उपयोग समाज अच्छी तरह नहीं कर रहा है। अधिकांंश वृद्धों ने अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए यह सुझाव दिया कि बच्चों को समाज के लोगों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जिससे वे वृद्धों का आदर करना सीखें। दूसरा मुख्य सुझाव आर्थिक सहायता का है।

सुझाव :

अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि शारीरिक समस्या वृद्धों की प्रमुखतम समस्या है और इस बजह से संषोधनकर्ताओं का सुझाव है कि मलिन वसितयों में वृद्धों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराया जाए एवं स्वास्थ्य षिक्षा के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाय। वृद्धों की आर्थिक समस्या कम करने के लिए और अकेलापन की भावना इत्यादि को कम करने के लिए वृद्धों के लिए स्वयं सहायता समूह विकसित किये जाए, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता मिलेगी। उनका अनुभव विकसित होगा और अकेलेपन की भावना भी कम होगी। वसितयों में परिवार जीवन, षिक्षा के क्षेत्र में कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे वृद्धों की देखभाल एवं उनकी उचित आदर से संबंधित बातें लागों को बताना चाहिए।

4 COMMENTS

  1. वृद्धों की समस्याओं पर आपने उत्तम लेख लिखा है इसमें अगर कमी की बात की जाए तो आपने सिर्फ वृद्ध पुरुषों की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दिया है जबकि वृद्ध महिलाओं की समस्याएं भी कम नहीं है

  2. लेख लिखने वाला या तो वेवकुफ है या किताबी कीड़ा l उन्होने वही बाते लिखी जो हम छठी कक्षा में पढ़ चुके हैं l इन्हे कोई भी व्यवहारिक ज्ञान नहीं है l

    क्या इन्हें मालुम नहीं परिवार टुटने और बर्बाद होने का मूल कारण है *नारी कानुन और अधिकार* जब इनकी बहू इनपर झूठा केस कर घर से धक्के मार कर निकालेगी तब इनको घर टूटने का सही कारण मालुम पड़ जाएगा l

    आज तक जितने भी परिवार टूटे हैं सबकी वजह है सबकी यही वजह है “बहू और बहू के मायके वालों द्वारा बहू कानूनो का दुरपयोग l क्योकि कानुन की नजर में नारी केवल वह होती है जो जवान हो और संभोग करा रही हो यानी केवल बहू और इंसान केवल वही होते जो इस बहू नामक जवान नारी के मायके वाले होते हैं ……

    वाकी सबों को कानुन क्रुर और अत्याचारी मानता है ……

  3. वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में समस्याएं हैं और उनका केस अध्ययन करके इसका समाधान भी सुझाने की चेष्टा की गयी है,पर एक सत्यता बयान करने में सब कोई हिचकिचा जाता है वह यह है की आज की वरिष्ठ पीढ़ी वह प्रथम पीढ़ी है जसने संयुक्त परिवार वाली परम्परा को बंधन माना था.भ्रष्टाचार के व्यापक फैलाव और संयुक्त परिवार की परम्परा को तोड़ने का प्रथम दोषी यही पीढ़ी है.आज भी अगर यह पीढ़ी अपनी गलती को स्वीकार कर ले और आज के युवा पीढ़ी से क्षमा मांगते हुए उनको वैसा न करने की सलाह दे तो यह ज्यादा प्रभावशाली होगा.

Leave a Reply to dr. ishwar chandra Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here