द्विज-अद्विज


—विनय कुमार विनायक
तुम वाणी के वरद पुत्र,
श्रुति सूक्त के सूत्रधार!
विधिविधानकेनियंता,
श्री के स्वयंभू अवतारी!

सृष्टि के पतवार को थामे,
तुमनेंही मानव को बांटा!
घृणितमानसिक सोचसे,
द्विज-अद्विज के पाटों में!

द्विज वही,जो तुम थे,तेरे थे,
अद्विज वही,जिसे तुम घेरेथे
सदियों से,दासता औ गुलामी के
दुखदायीशासन केघेरे में?

तुम शासक और वे शासित,
तुम शोषक और वे शोषित,
शस्त्र-शास्त्रथे,तुम्हारे रक्षक,
शस्त्र-शास्त्र थे,उनके भक्षक!

विधि-विधानऔज्ञान-विज्ञान,
सबपर रहा अधिकार तुम्हारा!
उनके लिए सबकुछ वर्जित,
कभी कुछ भी नहींहैसहारा!

तुमने वाणीहीन, श्रीहीन,
मूक, बधिर,पंगुजन को
पालतू पशु बनाकर भोगा,
जो पालतू नहीं बन पाए थे!

उन्हें जंगली आदिमानवया
असुर, राक्षस, दानवकहकर
इतिहास में अंकित किया था,
घृणित-प्रवंचित छवि देकर!

रोकता कौन तुम्हें,तुम्हारे
इस कूट-लेखनविधान से,
क्या ये दीन, हीन,मलीन,
रक्तहीन,मांस के लोथड़े?

जो जीवित नहीं,मृतप्राय खड़े थे,
वेद-पुराण-इतिहास चीख-चीखकर
कहते सदाचतुष्वर्ण की बातको,
किन्तु अस्तित्वमात्र थादो का!

याकि ब्राह्मण, या किशूद्र,
अन्य कहां, कोईवर्णवजाति,
क्षत्रिय वही,जो घोषित था,
पोषितथासदाब्राह्मणत्व से!

वैश्य वही,जो शासित था,
शोषित सदा ब्राह्मणत्वसे!
ये मध्य कीसारीजातियां,
एकमात्र प्रतिस्पर्धाभरथी!

ब्राह्मणत्व को पाजानेकी,
याशूद्रत्वकीओर जाने की,
सबकुछ निर्भर था तुम पर,
वेद-सूत्रों के कर्ता धर्तापर,
पुरोधावर्ग की स्वेच्छा पर!

जाति कहांरहीकर्ममूलक?
जाति होगयीजन्ममूलक,
जाति कहांरहीसंस्कारगत?
जाति कहां बनीधर्ममूलक?
सबकुछसदानिर्भरतुम पर!

तुम्हारीबनाईगईव्यवस्था पर,
ब्राह्मणधर्मकेठेकेदारोंपर,
तूनेशापितकर ब्रह्मत्व छीना,
कूटनीति से क्षत्रियत्वकोछीना,
औरअनीतिवश वैश्यत्व छीना!

वर्नासबब्रह्मा था, ब्राह्मण था,
द्विज था,क्षत्रिय था,वैश्य था,
मानव;मनु-पुरुरवा-नहुष-ययाति
यदु-सहस्त्रार्जुन की परम्परा का!

किंतु आज मानव नहीं,बैकवर्ड,
एकगाली, भावना पुरानी वाली,
जिसे मिटानासका,गौतम-गांधी ने,
हमारीप्रबल प्रतिभा की आंधी ने!

जो अब भी छिपामस्तिष्क में
तेरे,एक गंदी नाली के कीड़े सा,
पतानहींक्योंआज भी लगता द्विज,
अद्विज वर्णजातियोंसेचिढ़ेसा!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,798 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress