जन-जागरण

आयोग कांग्रेस के चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजे’ को वापस ले

एक बार मेरे गांव में मुझसे एक दिहाड़ी कर रहे मजदूर ने राजनीति पर बात छेड़ दी। उसके तर्क और उसकी भाषा निस्संदेह राजनीतिक परिदृष्य से बाहर थी, क्योंकि वो वही बातें कर रहा था, जो अखबार में पढ़ने के बाद आमतौर पर एक अराजनीतिक व्यक्ति टूटे-फूटे लहजे में अपने वाक्यांश को पूरा करता है। लेकिन उससे वार्तालाप के दौरान उस कामगार व्यक्ति ने एक ऐसा सवाल पूछा जिसने मेरे दिलो-दिमाग पर भी एक सवालिया निशान चिन्हित कर दिया। उसका सवाल था कि कांग्रेस का चिन्ह तो हिन्दुस्तान के तिरंग की तरह है, इसका मतलब कि यहीपार्टी केवल इस देश का हित करने का विचार रखती है या अच्छी पार्टी है ? इस सवाल का जवाब मैंने साफगोई से दिया, समझाया कि ये केवल पार्टी का चुनाव चिन्ह है, इससे विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं। लेकिन इस जवाब के बाद मैं सोच में पड़ गया कि क्या किसी राजनीतिक दल को ये अधिकार है कि वह तिरंगे पर ही छेड़छाड़ कर अपना चुनाव चिन्ह बना ले ? और यदि वह कामगार व्यक्ति जानकारी के अभाव में यह सोच सकता है तो देश की बाकी आबादी भी तो है, जो ऐसा सोच सकती है ? हो सकता है कि विद्बानों के अलग-अलग तर्क हों, लेकिन आज दिल्ली समाज कल्याण बोर्ड की दो बार चेयरमैन रह चुकी और वर्तमान में दरियागंज इलाके से दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की पार्षद सिम्मी जैन ने जो याचिका दाखिल की है, वह सवाल और याचिका तर्कसंगत है। इस सवाल को साकार इसलिए आज तक नहीं जाता रहा, क्योंकि आजादी के 67 वर्षों के शासनकाल के दौरान 55 वर्षों से अधिक का शासन कांग्रेस के नेतृत्व में हुआ है।
ऐसे में कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों पर सवाल उठने का औचित्य ही नहीं था। लेकिन आज जब यह प्रश्न उठा है तो इस पर चुनाव आयोग को भी गौर करना चाहिए और केंद्र सरकार समेत समेत संवैधानिक पुरोधाओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए। याचिका में गुजारिश की गई है कि इंडियन नेशनल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को भारतीय तिरंगे के इस्तेमाल से रोका जाए। याचिका में यह आग्रह भी किया गया है कि आयोग कांग्रेस के चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजे’ को वापस लेकर उसे कोई नया निशान आवंटित किया जाए। रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट-1951 की धारा 123 (3) में साफतौर पर कहा गया है कि किसी भी उम्मीदवार को ऐसा निशान आवंटित नहीं किया जा सकता जो धार्मिक व राष्ट्रीय चिन्ह हो और उसमें भावनात्मक अपील हो। तो प्रश्न है कि कांग्रेस इस फॉर्मूले से कैसे बाहर है ? कांग्रेस का चुनाव चिन्ह उस वक्त से है जब कांग्रेस के पक्ष में एकीकृत निर्णय हुआ करता था, लेकिन आज जहां हर ओर बदलाव की मांग उठ रही है और संवैधानिक कई नियमों को भी परिवर्तन के स्वर उठ रहे हैं, ऐसे में तिरंगे के इस अपमान को भी बंद करने की पहल शुरू की जाए। इस सरकार और चुनाव आयोग से उम्मीद है कि वह देशवासियों और राष्ट्रीय शान की भावना का कद्र करेंगे।