विश्ववार्ता

ईजराइल का जन्म

-फखरे आलम-

israealflag19Sep1253335965_storyimageकुछ राष्ट्रों का जन्म अपनो को संरक्षण देने, विकास और प्रगति के लिए हुआ तो कुछ राष्ट्रों ने अपनी उत्पत्ति मानवता को दुख देने, पड़ोसियों को परेशान करने के लिए हुआ। जबकि एक नऐ देश की उत्पत्ति का मंत्र मानवता की सेवा, विकास, प्रगति, वैज्ञानिक खोजों के साथ मानव जाति के कल्याण और विश्व शान्ति के लिए होना चाहिए। कुछ देशों ने तो कहीं सीधे तौर पर और कहीं अप्रत्यक्ष रूप से अमानवता को इनतेहा कर दी है और अमानवता की सारी हदों से गुजरता, हिटलर के भविष्यवाणी के विरोध् में एक देश ईजराइल है। इजराइल के मनमानी के आगे सभ्य से सभ्य देश, मानव स्वतंत्रता, मानव अधिकार, सब झुक गये।

ईजराइल देश की नींव ही हमानवता और गैरकानूनी एवं जबरदस्ती पर आधरित है। यहूदी मान्यताओं के आधर पर इब्राहीम ने स्वपन में निर्देश दिया था कि वह विश्व के प्रान्त प्रान्त से इकट्ठा होकर कैनान ;अर्थात् फिलिस्तीन में बस जाऐद्ध! ईसा के 70 वर्ष पश्चात् अर्थात् 1900 वर्ष पूर्व ई.! रोम ने बेतुलमुकदस ;अर्थात् पवित्रा स्थानद्ध पर सैन्य आक्रमण किए थे। और रोमन सैनिकों ने यहूदियों के पूजा स्थल को ध्वस्त कर दिए और उस धर्मिक पूजा स्थल का पश्चिमी दीवार रहने दिया गया और इस स्थान पर रोमन साम्राज्य का अधिपत्य इस्लाम धर्म के आगमन तक रहा था। यहूदियों की एक और मानरूताओं के अनुसार वर्तमान समय में जिस दीवार के समीप खड़े होकर यहुदी अपनी पवित्र और धर्मिक पुस्तक तोरेत पढ़ते हैं। वह सुलेमानी पुजाघर है। उनके अनुसार यह वही भवन ;पवित्र मंदिर का भाग है, जहां पर गोल्डन बॉक्स में तौरेत की असली पुस्तक दपफन है। अन्य धर्मिक विघटन की भांति यहुदियों में भी दो संप्रदाय है। जब फिलिस्तीन रोमन साम्राज्य के अधीन आ गया, तब यहूदी यहां से निकल कर विश्वभर में फैल गए और उन्हें आशा थी कि वह एक न एक दिन अपने जमीन पर अवश्य ही वापस लौटेंगे। मगर ईसा के आगमन और इस्लाम धर्म के उदय के साथ इस स्थान पर यहूदियों की संख्या कम होती चली गई। ईसा के आगमन के समय भी यहूदियों ने ईसाइयों के विरोध में अपनी कूटनीति चाल चल रहे थे। और ईसा को सुली पर पहुंचाने में यहूदियों की प्रमुख भूमिका रही। और इसी कारण से ईसाइयों ओर यहूदियों में मतभेद उत्पन्न हुए थे। इसके पश्चात ईसाइयों ने यहूदियों पर अत्याचार ही अत्याचार किऐ। इस्लाम के उदय के पश्चात् फिलीस्तीन में वापस आने वाला यहूदि ईसाइयों के अत्याचार के कारण बड़ी संख्या में मुसलमान होते चले गए, जो उनके लिए सेपफ जोन था। अरबी भाषी यहूदियों का विश्व के अन्य प्रान्तों से फिलिस्तीन आ आ कर बसना और इस्लाम धर्म में परिवर्तन होना अरब और ईसाइयों के मध्य खटास का प्रमुख कारण बना जिसके तहत अंग्रजों ने इस्लाम के विरूद्ध इस्लाम का प्रयोग। इस्लामी जगत में एक नया प्रयोग किए और वह पूरी तरह सफल रहे। मुसलमानों की ओर से अंतिम विजेता के रूप में सलाहउद्दीन अयूबी के हाथों सम्पन्न हुआ था। इस्लाम के आगमन के साथ इस स्थान का इतना महत्व इस्लाम धर्म में था कि इसकी ओर मुंह करके नमाज पढ़ने का आदेश हुआ था और यह वही स्थान है। जहाँ से पैगम्बर साहेब को मेराज अर्थात् खुदा से संवाद का अवसर भी प्राप्त हुआ था।

यहूदियों ने अपने धर्मिक और पवित्र ग्रन्थ में फेरबदल और परिवर्तन किए। उन्होंने मूलभूत तथ्यों में परिवर्तन करके अपने आप को विश्व के श्रेष्ठतम जाति और धर्म का घोषित किया फिर ईसा के विरूद्ध संयंत्र में इतने बदनाम हुए कि रोम के अत्याचार से भाग गए। ईसाइयों ने ईसा को भगवान का पुत्र इसी आधार पर घोषित किया था, जब यहूदियों ने अपने आप को सबसे सर्वोच्च बताया था। जब इस प्रान्त में इस्लामी सरकारों का गठन हुआ अथवा खिलाफत का शासन आया तो इस्लामी शासकों ने इन प्रान्त में रहने वाले यहूदियों और ईसाइयों के साथ बिना किसी भेदभाव के शासन किया था। और इन्हें धर्म पर चलने और उनके धर्मों में दखल नहीं दिया गया। महत्वपूर्ण और उत्तरी अफ्रीकी देशों पर इस्लामी शासन स्थापित होने से पूर्व स्पेन पर मुसलमानों ने करीब 800 वर्षों की शासन में यहूदियों के इतिहास का 4000 वर्षों का सबसे अच्छा काल था। मगर आज का ईजराइल इस्लाम का अंत और इस्लामी देशों की तबाही चाहता है।
बुतों से मेल खुदा पर नजर यह खुब कही!
शब-ए-गुनाह व नामज ऐ सहर यह खूब कही!!
बुतों से तुमको उम्मीद खुद से ना उम्मीदी!
मुझे बता तो सही और काफरी क्या है!!