मुक्केजी की हुई सगाई,
सबने खूब मिठाई खाई।
वरमाला ले दौड़ी आई,
दुल्हन बनकर घूँसा बाई।
फिर कुछ दिन के बाद तमाशा,
शुरू हो गया मेरे भाई।
घूँसा बाई की मुक्के से
हर दिन होने लगी लड़ाई।
मुक्केजी की हुई सगाई,
सबने खूब मिठाई खाई।
वरमाला ले दौड़ी आई,
दुल्हन बनकर घूँसा बाई।
फिर कुछ दिन के बाद तमाशा,
शुरू हो गया मेरे भाई।
घूँसा बाई की मुक्के से
हर दिन होने लगी लड़ाई।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।