विविधा

अंग्रेजी नववर्ष पर निवेदन

विजय सोनी

प्रवक्ता डॉट कॉम के माध्यम से मैं हिन्दुस्तान के उन सभी देशप्रेमियों को निवेदन करना चाहता हूँ, आज ३१ दिसम्बर २०१० है, सारे भारतवर्ष के सभी चौक-चौराहों पर आधी रात तक शोर शराबा या उत्साह मना कर अपनी बेशकीमती ताकत और ऊर्जा का नाश ना करें। ये याद रखिये कि यदि अंग्रेजी वर्ष २०११ ख़त्म हो रहा है तो हिन्दू कलेंडर विक्रम संवत २०६४ अभी चल रहा है, हम इंग्लिश्तानियों से ५३ वर्ष आगे हैं, हमारा नव वर्ष चैत्र शुदी ऐकम से प्रारंभ होगा, इसे नई पीढ़ी अगर भुला रही है तो याद दिला दूँ कि हिन्दू नववर्ष जिस दिन शुरू होता है, उस दिन देश के सभी परिवारों में घर-घर में माँ दुर्गा के चैत्र नवरात्र उत्सव आराधना की जाती है, हम नववर्ष के दिन सड़क पर उछल कूद नहीं बल्कि शक्ति की देवी माँ की आरती पूजा करते हैं, हमारी परंपरा फाइव स्टार होटल में नाचने या अन्यानन्य तरीके से दुनिया का नाश करने की नहीं बल्कि मानव समाज की उत्थान का चिंतन करने की है, बेशक दूरदर्शन के प्रचार प्रसार ने हमें इसके लिए उकसाया हो, ये उनका कारोबार और टी आर पी का प्रश्न हो, किन्तु हम क्यों अंधाधुंध उनका समर्थन करें? हमें अपनी संस्कृति को बचाना सहेजना और कायम रखना है, देश के होनहार नवयुवकों को बहुतों को तो ये पता ही नहीं है कि हमारा नव वर्ष कब शुरू होता है, हम कौन से वर्ष में प्रवेश कर चुकें हैं, नव वर्ष के शुरू दिन हम क्या करतें हैं, हमारी संस्कृति क्या है, हमें क्या करना चाहिए ….हम तो केवल नाच कूद कर अपनी ऊर्जा को बहुमूल्य उर्जा को 31st मना कर खो रहे हैं, हे ऊर्जावान नवयुवकों-नवयुवतियों इस बात को अपने मनो मष्तिक में स्पष्ट लिख लीजिये कि इस देश पर २०० वर्षों तक अंग्रेजों ने राज किया, देश का भरपूर शोषण किया, सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश को लूट लिया। अंतत: बड़ी कुर्बानी और लम्बे संघर्ष के बाद हमने अपने आप को बचाया है, आज आजादी के ६४ वें वर्ष में भी गरीब गरीब ही रह गया है, शिक्षा-चिकित्सा आज भी ६०% जनता को नसीब नहीं हो रही है, समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति आज भी लाचार बेबस खड़ा है, भ्रष्टाचार अनाचार चरम पर है ,जीवन को हमने केवल भौतिक और भौतिकता के न्योछावर कर दिया है, अब समय आ गया है कि हम सोचें समझें कि भारतवर्ष दुनिया का मार्गदर्शक और शक्तिशाली राष्ट्र था, इसे फिर इसी मुकाम तक लेजा कर साबित करना है जिसके लिए हमें उछ्ल-कूद की नहीं बल्कि गहरी सोच की जरुरत है।