पर्यावरण कानून और उत्तर प्रदेश राज्य: एक समग्र दृष्टिकोण

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 पवन शुक्ला

“प्रकृति स्वयं धर्म है, उसका संरक्षण ही हमारा कर्तव्य है।” यह कथन आधुनिक समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ विकास की परिभाषा केवल आर्थिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और संसाधनों के सतत उपयोग के साथ जुड़ गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की लगभग 77% जनसंख्या ऐसी वायु में सांस ले रही है जो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं मानी जाती। प्रदूषण के कारण भारत में हर वर्ष करीब 16.7 लाख लोगों की समयपूर्व मृत्यु हो जाती है। उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। लखनऊ, कानपुर, आगरा जैसे शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अक्सर 180 से 250 के बीच रहता है, जो ‘खराब’ से ‘अत्यंत खराब’ श्रेणी में आता है। भारत में पर्यावरण की रक्षा एक संवैधानिक कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद 48A के अनुसार राज्य का दायित्व है कि वह पर्यावरण और वनस्पतियों की रक्षा करे। वहीं अनुच्छेद 51A(g) प्रत्येक नागरिक को यह कर्तव्य सौंपता है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए कार्य करे। इस संवैधानिक भावना को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार ने अनेक कानून लागू किए हैं, जैसे — पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986), जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम (1974), वायु अधिनियम (1981), और जैव विविधता अधिनियम (2002)। इन कानूनों के तहत राज्यों को प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA), और सतत विकास की निगरानी के दायित्व सौंपे गए हैं। उत्तर प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण का कार्य मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) के अधीन है, जिसके कार्यालय अब राज्य के हर जिले में सक्रिय हैं। बोर्ड ने ठोस, तरल, जैव-चिकित्सा और खतरनाक अपशिष्टों के प्रबंधन के लिए अलग-अलग इकाइयाँ स्थापित की हैं। 2024 तक लगभग 10,000 औद्योगिक इकाइयों की नियमित निगरानी की जा रही है, जिससे पर्यावरणीय अनुपालन में सुधार आया है। राज्य सरकार ने जल प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए ‘नमामि गंगे’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘एक जिला, एक नदी’ जैसी योजनाएं चलाई हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत 37,000 से अधिक तालाबों का निर्माण और 12,000 से अधिक गांवों में जल संरक्षण परियोजनाओं का क्रियान्वयन हुआ है। भूजल संरक्षण हेतु 2019 से लागू भूजल अधिनियम के तहत जिलेवार परिषदें बनाई गई हैं। वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए ‘ग्रैप’ (Graded Response Action Plan) लागू किया गया है, जो सर्दियों में प्रदूषण स्तर के अनुसार कड़े कदम उठाने की योजना है, जैसे निर्माण कार्य पर रोक, वाहन प्रतिबंध, और सड़क धूल नियंत्रण। राज्य में 1,500 से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन लगाए गए हैं और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे अभियानों के माध्यम से 210 करोड़ से अधिक पौधे लगाए गए हैं। कचरा प्रबंधन भी राज्य की बड़ी चुनौती रही है। उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन 13,000 टन से अधिक ठोस कचरा उत्पन्न होता है। इसके निपटारे के लिए 1,200 नगर निकायों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजनाएं लागू की गई हैं और आधुनिक कचरा प्रबंधन संयंत्र स्थापित किए गए हैं। अवैध डंपिंग पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार ने ₹5,000 से ₹50,000 तक के जुर्माने का प्रावधान किया है। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने 2022 में नई नीति लागू की है, जिसका लक्ष्य 2027 तक 22 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन करना है। इसके साथ ही पिछले पाँच वर्षों में पर्यावरण विभाग का बजट 150% तक बढ़ाया गया है, जिससे योजनाओं के क्रियान्वयन को बल मिला है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पर्यावरण संरक्षण को केवल सरकारी जिम्मेदारी न मानते हुए इसे सामूहिक भागीदारी का कार्य बताया है। उन्होंने ‘राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस-2025’ पर कहा कि प्रकृति की रक्षा हमारी सांस्कृतिक विरासत है और हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी भूमिका निभाए। नागरिक जल की बचत, कचरे का पृथक्करण, वृक्षारोपण और स्वच्छता अभियानों में भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। ‘वेस्ट टू वंडर’ और ‘हरित नगर’ जैसे अभियानों में जनता की सक्रिय भागीदारी इसका प्रमाण है। निष्कर्षतः, उत्तर प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार की योजनाओं पर निर्भर नहीं, बल्कि नागरिकों की जागरूकता, सहभागिता और कर्तव्यनिष्ठा पर भी आधारित है। यदि राज्य और जनता मिलकर कार्य करें, तो उत्तर प्रदेश को स्वच्छ, हरित और सतत विकास की ओर अग्रसर करना पूरी तरह संभव है।

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