राष्ट्रमंडल खेलों के बहाने मीडिया को नारी पूजा याद आयी?


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

खबरें बेचने के लिये मीडिया अनेक प्रकार के तरीके ईजाद करने लगा है। यदि घटनाएँ नहीं हो तो पैदा की जाती हैं। वैसे घटनाएँ रोज घटित होती हैं, लेकिन कितने लोगों को लूटा गया, कितनी स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ, कितनों की दुर्घटना में मौत हुई, कितने करोड किसने डकारे आदि खबरों को मीडिया नहीं बिकने वाली खबर मानकर, इन्हें अत्यधिक महत्व की नहीं मानकर, किनारे कर देता है। ऐसे में खबरों की जरूरत तो होती ही है। ऐसे में खबरों का सृजन किया जाने लगा है। जिस प्रकार से नये और चमकदार कलेवर में कम्पनियाँ अपने उत्पाद बेचने लगी हैं, उसी प्रकार से लोगों की संवेदनाओं को छूने वाले कलेवर में खबरें भी बेची जा रही हैं। ऐसे मुद्दे सामने लाये जा रहे हैं कि लोग पढने या देखने या सुनने के लिये मजबूर हो जायें। इसमें अकेले मीडिया का ही दोष नहीं है। दोष पाठकों और दर्शकों का भी है, जो बिना नमक मिर्च की खबर को देखने, सुनने या पढने में रुचि ही नहीं लेते।

इसी पृष्ठभूमि में इन दिनों एक खबर जोरशोर से उछाली जा रही है कि राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन के दौरान भारत सरकार की मंजूरी से या भारत सरकार की ओर से या सरकार की मौन सहमति से हजारों असुरक्षित सेक्स वर्कर राजधानी नयी दिल्ली में आने को तैयार हैं।

कहा जा रहा है, कि यह न मात्र हमारी स्वर्णिम और नारी की पूजा करने वाली संस्कृति को नष्ट कर देने वाली पश्चिमी जगत की चाल है, बल्कि इससे ऐड्‌स के तेजी से फैलने की भी भारी आशंका है। इससे देश का चरित्र भी नष्ट होना तय है। कुछ ने तो सीधे सीधे भारत सरकार पर आरोप जड दिया है कि स्वयं सरकार ही नारी को भोग की वस्तु बनाकर पेश करने जा रही है और नारीवादी संगठन चुपचाप सरकार का साथ दे रहे हैं।

इस प्रकार से नारीवादी संगठनों को सडकों पर उतरने के लिये भी उकसाया जा रहा है, जिससे कि यह मुद्दा बहस का मुद्दा बने और उनकी खबर बिकती रहे। माल कमाया जाता रहे। यह है मीडिया की नयी खबर उत्पाद नीति। जो स्वयं नैतिक मानदण्डों पर खरे नहीं हैं, उन्हें दूसरों से नैतिक या सांस्कृतिक मानदण्डों पर खरे नहीं उतरने पर कोसने का या आलोचना करने का कोई हक नहीं होना चाहिये, लेकिन मीडिया का कोई क्या कर सकता है? जब चाहे, जिसकी, जैसे चाहे वैसे आलोचना या प्रशंसा या चरणवन्दना करने का हक तो केवल मीडिया के ही पास है!

अब हम मीडिया द्वारा उत्पादित विषय पर आते हैं। पाठकों/दर्शकों के समक्ष सवाल दागा गया है कि गया है कि जिस भारत वर्ष में हजारों वर्षों से नारी की पूजा की जाती रही है, उसी महान भारत देश की राजधानी में स्त्री को स्वयं सरकार द्वारा भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना देश को रसातल में ले जाने वाला कदम है! इस सवाल को उठाकर मीडिया जहाँ एक ओर तो अपने काँग्रेस विरोध को सरलता से प्रकट कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कथित राष्ट्रवादी दलों के नेताओं की दृष्टि में उभरने का अवसर भी प्राप्त कर रहा है।

सवाल उठाया जा रहा है कि भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के संरक्षण के बजाय, उन्हें नष्ट-भ्रष्ट करके तहस-नहस किया जा रहा है। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि विदेशों में राष्ट्रमण्डल जैसे आयोजन होते हैं, तो वहाँ पर स्वयं सरकार द्वारा सुरक्षित सेक्स की उपलबधता सुनिश्चितता की जाती है। जिससे मीडिया का यह विरोधाभाषी चेहरा भी उजागर होता है कि यदि भारत में भी ऐसे आयोजनों के दौरान यदि सेक्स सुरक्षित हो तो वह ठीक है, फिर भारत की संस्कृति या पूजा की जाने वाली नारी की इज्जत को कोई क्षति नहीं पहुँचेगी?

मेरा सीधा सवाल यह है कि जब भारत के एक हिस्से नवरात्रों के दौरान युवा अविवाहित लडकियों एवं औरतों के द्वारा गर्वा नाच(डांडिया डांस) में माँ दुर्गा की भक्ति के पवित्र उद्देश्य से भाग लिया जाता है, उस दौरान स्वयं सरकार द्वारा गर्वा नाच में भाग लेने वाली अविवाहित लडकियाँ गर्भवति नहीं हों, इस उद्देश्य से गर्भनिरोधक गोलियाँ/साधन मुफ्त में बांटे जाते हैं। इस सबके बावजूद भी यदि स्थानीय मीडिया की बात पर विश्वास किया जाये तो गर्वा नाच आयोजन क्षेत्रों में गर्वा कार्यक्रम समापन के बाद गर्भपात नर्सिंग होंम में गर्भपात की दर तीन सौ से पाँच सौ प्रतिशत तक बढ जाती है। क्या इसमें भी किसी विदेशी/पश्चिमी संस्कृति का हाथ है? और क्या इसके लिये अकेली स्त्री ही जिम्मेदार होती है? पुरुष का इसमें कोई दोष नहीं है?

सेक्स वर्कर की बात पर हो हल्ला मचाने वालों से पूछना जरूरी है कि-

क्या भारत के अतीत में सेक्स वर्कर नहीं रही/रहे हैं?

क्या बिना किसी आयोजन के सेक्स वर्कर अपना व्यवसाय नहीं करती/करते हैं?

कुछ पूर्व न्यायाधीशों सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं का तो स्पष्ट तौर पर यहाँ तक मानना है कि सेक्स व्यवसाय को कानूनी मान्यता मिल जाने पर ही पुरुषों के लिये सुरक्षित सेक्स की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये जा सकते हैं। अन्यथा इस देश में सेक्स व्यवसाय फलता-फूलता तो रहेगा, लेकिन सुरक्षित कभी नहीं हो सकता।

जहाँ तक मीडिया की ओर से पश्चिमी देशों के अन्धानुकरण का सवाल है, तो इसमें यह भी विचारणीय है कि हमें पश्चिम की वो सब बातें तो उचित और सहज-स्वीकार्य लगती हैं, जिनसे हमें सुख-सुविधाएँ, आराम और धन प्राप्त होता है, लेकिन पश्चिम की जिन बातों से हमारी कथित पवित्र संस्कृति को खतरा नजर आता है। या ये कहो कि संस्कृति के नाम पर दुकान चलाने वालों के स्वार्थों को खतरा नजर आने लगता है तो वे सब बातें बुरी, बल्कि बहुत बुरी लगने लगती हैं।

इसी प्रकार से जब भी पश्चिम की ओर से कोई मानवकल्याणकारी खोज की जाती है तो हम कहाँ-कहाँ से आडे-टेडे तर्क/कुतर्क ढँूढ लाते हैं और सिद्ध करने में जुट जाते हैं कि पश्चिम की ओर से जो कुछ आज खोजा गया रहा है, वह तो हमारे वेद-पुराणों के अनुसार हजारों वर्षों पहले ही हमारे पास मौजूद था। क्या यह हमारा दौहरा और नाटकीय चरित्र नहीं है?

मुद्दा ये है कि इस प्रकार के (राष्ट्रमण्डल खलों के) आयोजनों के समय को छोड कर सामान्य आम दिनों में भारत में सेक्स वर्कर्स का धन्धा क्या बन्द रहता है? मन्दा अवश्य रहता होगा, लेकिन धन्धा तो 365 दिन चलता ही रहता है। जब राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन से पूर्व किये जा रहे हर प्रकार के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का धन्धा जोरों पर है, सैलानियों के लिये हर प्रकार की उपभोग की वस्तुओं का धन्धा जोरों पर चलने वाला है तो सेक्स वर्कर्स बेचारी/बेचारे क्यों इतने बडे अवसर से वंचित रहें? उनका धन्धा क्यों मन्दा रहे?

सच्चाई यह है कि हममें से अधिकतर आदर्शवादी होने या दिखने का केवल नाटकभर करते हैं। इसी नाटक को अंजाम देने के लिये हममें से अनेक लोग, अनेक प्रकार के विवाद तक खडे कर देते हैं। जबकि सच्चाई से हम सभी वाकिफ हैं। हम यदि किसी छोटे से शहर में भी रहते हैं तो भी पश्चिमी सभ्यता की खोजों के बिना 24 घण्टे सामान्य जीवन जीना असम्भव हो जायेगा? इसलिये क्या तो पश्चिमी और क्या पूर्वी, अब तो सारा संसार एक गाँव बन चुका है। ऐसे में कोई भी किसी भी देश की संस्कृति को फैलने या लुप्त होने से रोक नहीं सकता! क्या इण्टरनैट, हवाई जहाज, कम्प्यूटर, पैक्ट फूट, पैण्ट-शर्ट, फटी-जींस, स्कर्ट आदि इस देश की संस्कृति है? जब हम सब कुछ, बल्कि 50 प्रतिशत से अधिक पश्चिमी तरीके से जीवन जी रहे हैं, तो अकारण पूर्वाग्रहों को लेकर ढोंगी बनने से क्या लाभ है, बल्कि हमें पश्चिमी और पूर्वी की सीमा को पाटकर वैश्विक सोच को ही विकसित करना चाहिये? जिससे न तो किसी हो हीन भावना का शिकार होना पडे और न हीं किसी को अहंकार पैदा हो। न ही मीडिया या समाज की भावनाओं को भडकाकर रोटी सेंकने वालों को ऐसे अवसर मिलें।

अब मीडिया द्वारा उठाये जा रहे मुद्दे की बात पर आते हैं कि जहाँ (भारत में) नारी की पूजा की जाती है, उस महान राष्ट्र भारत में स्त्री को स्वयं सरकार द्वारा भोग की वस्तु बनाकर पेश किया जाना कहाँ तक उचित है? या कहाँ तक नैतिक है?

पहली बात तो सरकार द्वारा यह सब किया जा रहा है, यह विश्वसनीय ही नहीं लगता, दूसरे ऐसी खबरें फैलाने वालों का कर्त्तव्य है कि वे अपने विचारों को या पूर्वाग्रहों को दूसरों के मुःह में डालकर पुख्ता बनाने का घिनौना कृत्य करने से पूर्व पाठकों/दर्शकों की भावनाओं के बारे में भी सोचें।

जहाँ तक नारी या स्त्री की पूजा की जाने की बात है तो पहली बात तो ये कि नारी की इस देश में कहीं भी न तो पूजा की जाती है, न की जाती थी। केवल नारी प्रतिमा दुर्गा देवी, कालिका देवी आदि अनेकों नामों से देवियों के रूप में पूजा अवश्य की जाती रही है।

मनु महाराज के जिस एक श्लोक (यत्र नार्यस्त पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः) के आधार पर नारी की पूजा की बात की जाती रहती है, लेकिन उन्हीं मनुमहाराज की एवं अन्य अनेक धर्मशास्त्रियों/धर्मग्रन्थ लेखकों की बातों को हम क्यों भुला देते हैं? इनको भी जान लेना चाहिये :-

मनुस्मृति : ९/३-

स्त्री सदा किसी न किसी के अधीन रहती है, क्योंकि वह स्वतन्त्रता के योग्य नहीं है।

मनुस्मृति : ९/११-

स्त्री को घर के सारे कार्य सुपुर्द कर देने चाहिये, जिससे कि वह घर से बाहर ही नहीं निकल सके।

मनुस्मृति : ९/१५-

स्त्रियाँ स्वभाव से ही पर पुरुषों पर रीझने वाली, चंचल और अस्थिर अनुराग वाली होती हैं।

मनुस्मृति : ९/४५-

पति चाहे स्त्री को बेच दे या उसका परित्याग कर दे, किन्तु वह उसकी पत्नी ही कहलायेगी। प्रजापति द्वारा स्थापित यही सनातन धर्म है।

मनुस्मृति : ९/७७-

जो स्त्री अपने आलसी, नशा करने वाले अथवा रोगग्रस्त पति की आज्ञा का पालन नहीं करे, उसे वस्त्राभूषण उतार कर (अर्थात्‌ निर्वस्त्र करके) तीन माह के लिये अलग कर देना चाहिये।

आठवीं सदी के कथित महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य के विचार भी स्त्रियों के बारे में जान लें :-

“नारी नरक का द्वार है।”

तुलसी ने तो नारी की जमकर आलोचना की है, कबीर जैसे सन्त भी नारी का विरोध करने से नहीं चूके :-

नारी की झाईं परत, अंधा होत भुजंग।

कबिरा तिन की क्या गति, नित नारी के संग॥

अब आप अर्थशास्त्र के जन्मदाता कहे जाने वाले कौटिल्य (चाणक्य) के स्त्री के बारे में प्रकट विचारों का अवलोकन करें, जो उन्होंने चाणक्यनीतिदर्पण में प्रकट किये हैं :-

चाणक्यनीतिदर्पण : १०/४-

स्त्रियाँ कौन सा दुष्कर्म नहीं कर सकती?

चाणक्यनीतिदर्पण : २/१-

झूठ, दुस्साहस, कपट, मूर्खता, लालच, अपवित्रता और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।

चाणक्यनीतिदर्पण : १६/२-

स्त्रियाँ एक (पुरुष) के साथ बात करती हुई, दूसरे (पुरुष) की ओर देख रही होती हैं और दिल में किसी तीसरे (पुरुष) का चिन्तन हो रहा होता है। इन्हें (स्त्रियों को) किसी एक से प्यार नहीं होता।

पंचतन्त्र की प्रसिद्ध कथाओं में शामिल शृंगारशतक के ७६ वें प में स्त्री के बारे में लिखा है कि-

“स्त्री संशयों का भंवर, उद्दण्डता का घर, उचित अनुचित काम (सम्भोग) की शौकीन, बुराईयों की जड, कपटों का भण्डार और अविश्वास की पात्र होती है। महापुरुषों को सब बुराईयों से भरपूर स्त्री से दूर रहना चाहिये। न जाने धर्म का संहार करने के लिये स्त्री की रचना किसने कर दी!”

मेरा तो ऐसा अनुभव है कि इस देश के कथित धर्मग्रन्थों और आदर्शों की दुहाई देने वाले पुरुष प्रधान समाज और धर्मशास्त्रियों ने अपने नियन्त्रण में बंधी हुई स्त्री को दो ही नाम दिये हैं, या तो दासी (जिसमें भोग्या और कुल्टा नाम भी समाहित हैं) जो स्त्री की हकीकत बना दी गयी है, या देवी जो हकीकत नहीं, स्त्री को बरगलाये रखने के लिये दी गयी काल्पनिक उपमा मात्र हैं।

स्त्री को देवी मानने या पूजा करने की बात बो बहुत बडी है, पुरुष द्वारा नारी को अपने बराबर, अपना दोस्त, अपना मित्र तक माना जाना भारतीय समाज में निषिद्ध माना जाता रहा है? जब भी दो विषमलिंगी समाज द्वारा निर्धारित ऐसे स्वघोषित खोखले आदर्शवादी मानदण्डों पर खरे नहीं उतर पाते हैं, जिन्हें भारत के इतिहास में हर कालखण्ड में समर्थ लोगों द्वारा हजारों बार तोडा गया है तो भी 21वीं सदी में भी केवल नारी को ही पुरुष की दासी या कुल्टा क्यों माना जाता है? पुरुष के लिये भी तो कुछ उपमाएँ गढी जानी चाहिये! भारत में नारी की पूजा की जाती है, इस झूठ को हम कब तक ढोते रहना चाहते हैं?

जहाँ तक वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन के दौरान सेक्स परोसे जाने की बात पर किसी को आपत्ति है तो कथित हिन्दू धर्म की रक्षक पार्टी की सरकार के समय गर्वा नाच (डांडिया डांस) में शामिल लडकियों को गर्भनिरोधक मुफ्त में बांटे जाने पर तो इस देश के हिन्दू धर्म के कथित ठेकेदारों को तो मुःह दिखाने का जगह ही नहीं मिलनी चाहिये, लेकिन किसी ने एक शब्द तक नहीं बोला। आखिर क्यों हम बेफालतू की बातों में सामयिक मुद्दों को शामिल करके अपनी आलोचना का केन्द्र केवल सरकारों को या विदेशी संस्कृतियों को ही बनाना चाहते हैं?

हम स्वयं की ओलाचना क्यों नहीं कर सकते?

आत्मालोचना के बिना कुछ नहीं हो सकता।

जो अपेक्षा हम दूसरों से करते हैं, क्या उसी प्रकार की अपेक्षाएँ अन्य लोग हमसे नहीं करते हैं?

कितना अच्छा हो कि हम हर सुधार या परिवर्तन की शुरुआत अपने आप से करें?

कितना अच्छा हो कि हम जो कुछ भी कहें, उससे पूर्व अपने आप से पूछें कि क्या इस बात को मैं अपने आचरण से प्रमाणित करने में सफल हो सकता हँू?

शायद नहीं और यहीं से हमारा दोगलेपन का दौहरा चरित्र प्रकट होने लगता है।

मुखौटे लगाकर जीने की हमारी कथित आदर्शवादी सोच को हम अपने खोखले संस्कारों से ऐसे ही सींचने की शुरूआत करने लगते हैं।

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

26 COMMENTS

  1. !! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

    आदरणीय सम्पादक जी,

    आपके माध्यम से प्रवक्ता.कॉम के सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक अनुरोध/अपील करना चाहता हूँ कि-

    1- इस मंच पर हम में से अनेक मित्र अपनी टिप्पणियों में कटु, अप्रिय, व्यक्तिगत आक्षेपकारी और चुभने वाली भाषा का उपयोग करके, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

    2- केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से कुछ ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पादक की नीयत पर भी सन्देह किया है। लेकिन जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, फिर से दौहरा रहा हूँ कि प्रवक्ता. कॉम पर, स्वयं सम्पादक के विपरीत भी टिप्पणियाँ प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य अनेक पोर्टल पर ऐसा कम ही होता है। जो सम्पादक की नीयत पर सन्देह करने वालों के लिये करार जवाब है।

    3- सम्पादक जी ने बीच में हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि हम में से कुछ मित्र चर्चा के इस प्रतिष्ठित मंच को खाप पंचायतों जैसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उनके नाम लेकर मामले को बढाना/तूल नहीं देना चाहता, क्योंकि पहले से ही बहुत कुछ मामला बढाया जा चुका है। हर आलेख पर गैर-जरूरी टिप्पणियाँ करना शौभा नहीं देता है।

    4- कितना अच्छा हो कि हम आदरणीय डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, श्री आर सिंह जी, श्री श्रीराम जिवारी जी आदि की भांति सारगर्भित और शालीन टिप्पणियाँ करें, और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचें, इससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। कम से कम हम लेखन से जुडे लोगों का उद्देश्य तो पूरा नहीं हो सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि कोई हमसे सहमत या असहमत हो सकता है, यह उसका अपना मौलिक अधिकार है।

    5- समाज एवं व्यवस्था पर उठाये गये सवालों में सच्चाई प्रतीत नहीं हो या सवाल पूर्वाग्रह से उठाये गये प्रतीत हों तो भी हम संयमित भाषा में जवाब दे सकते हैं। मंच की मर्यादा एवं पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखने के लिये एकदम से लठ्ठमार भाषा का उपयोग करने से बचें तो ठीक रहेगा।

    6- मैं माननीय सम्पादक जी के विश्वास पर इस टिप्पणी को उन सभी लेखों पर डाल रहा हूँ, जहाँ पर मेरी जानकारी के अनुसार असंयमित भाषा का उपयोग हो रहा है। आशा है, इसे प्रदर्शित किया जायेगा।

  2. Tattoo ki tarah se ade rahne se kuchh nahin hota, sachai ko koi bhi nakar nahi sakta. lekhak ki aur se uthaye gaye sawalon ke uttar dene ke bajay mamle ko ghumaya ja raha hai?

    bharat ki sanskrati ke rakhwalo is bat ka jawab do jo lekhak ne saaf saaf likhi hai aur iski pushti mai hi nahi clinics ke aankde karte hai –

    जहाँ तक वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन के दौरान सेक्स परोसे जाने की बात पर किसी को आपत्ति है तो कथित हिन्दू धर्म की रक्षक पार्टी की सरकार के समय गर्वा नाच (डांडिया डांस) में शामिल लडकियों को गर्भनिरोधक मुफ्त में बांटे जाने पर तो इस देश के हिन्दू धर्म के कथित ठेकेदारों को तो मुःह दिखाने का जगह ही नहीं मिलनी चाहिये, लेकिन किसी ने एक शब्द तक नहीं बोला। आखिर क्यों हम बेफालतू की बातों में सामयिक मुद्दों को शामिल करके अपनी आलोचना का केन्द्र केवल सरकारों को या विदेशी संस्कृतियों को ही बनाना चाहते हैं?

    hai koi jawab?

  3. आप लोग झूठे विवादों में उलझाने के कुशल खिलाड़ी हैं. कट / पेस्ट में भी अप कुशल हैं. ज़रा प्रमाण दें कि मैंने स्वामी विवेकानंद और राममोहन राय को भारत निंदा का शिकार बतलाया है. कैसे संभव है कि स्वामे विवेकानंद जैसे महान देशभक्तों की तुलना भारत के निदकों से की जाय. ऐसा पाप और अपराध करने का कोई मतलब नहीं. खैर आप लोग बाज तो आने से रहे. इसी की रोटी खाते हैं न आप जैसे.

  4. meena ji,
    मुझ पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप न लगे इस्ल्ये मेरा सोचना है की धर्म का दूसरा अर्थ स्त्री विरोध ही है सभी धर्मों ने स्त्री को नकारा है………..
    is shabd ke liye mujhe afsos hai lekin baaki mene kisi aur dharm ke bare me nahi likha na hi wo mera aadhar banta hai me hindu brahman hun to sirf adhiktar unki kamiyon par dhyaan deti hun jo mera dharm hai aapka kehna shai hai margdarshan ka shukriya
    मेरा विनम्र मत है कि सौभाग्य से या दुर्भाग्य से हम जिस परिवार एवं धर्म में पैदा हुए हैं, उसमें रहना हमारे लिये फक्र की बात हो या बाध्यता, लेकिन हमें हिन्दुत्व की कमियों को उजागर करते हुए, लगातार तथ्यात्मक आलोचना करते रहने के साथ-साथ हिन्दू धर्म का रक्षण करना भी, हिन्दू होने के कारण हमारा जन्मजात धार्मिक दायित्व है। इस बारे में आप विसम्मत हों तो आपको अपना विचार रखने या आपने विचारों को प्रकट करने का अधिकार है।

    मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं धर्मान्तरण का समर्थक नहीं हूँ। इसी कारण मैं डॉ. अम्बेडकर की हिन्दू धर्म को छोडकर अन्य धर्मों को अपनाने की नीति का समर्थन नहीं करता।

    इसलिये मेरा ऐसा मानना है कि यदि हमारा अपना घर ठीक नहीं है, तो हमें पडौसी के अच्छे दिखने वाले मकान में नहीं घुस जाना चाहिये। किसी के भी अच्छे दिखने वाले घर के अन्दर के हालातों को बाहर से नहीं पहचाना जा सकता। अपने घर को ठीक करने के बजाय, दूसरे के घर को अच्छा समझकर, उसमें घुस जाना बुद्धिमता नहीं है।
    sehmat hoon…………..
    aapne jo bhi kaha hai wo mere liye anmol hai mein iska pura dhyaan rakhungi aur kabhi esa na ho pryaas karti rahungi….
    mene ye kahin na kahin dabaav me aakar zarur likha hai mujhe khud aisa prtit hua aapki baat ko padhkar clear ho gaya hai
    aapka dhanywaad…… deepa sharma

  5. देश की आधी आबादी की पीडा को व्यक्त करने में लेखक सफल रहे हैं। इसके अलावा लेखक ने धर्म की आड में नारी के हजारों वर्षों से किये जा रहे अपमान एवं शोषण को भी बखूबी व्यक्त किया है। धन्यवाद।

  6. श्रीमान डा. मीना जी! में स्वस्थ हूँ, धन्यवाद. ईश्वर से आपके तन और मन के स्वास्थ्य की कामना करता हूँ!
    आपने काफि कुछ लिखा पर आरोप लगाने और उपदेश देने के इलावा तो कुछ भी समाधानकारक या तर्कसंगत मुझे कुछ नहीं मिला. एक अछे विचारक और लेखक की आपकी छवि के कारण बड़ी आशा थी की आप मेरी आपके प्रती पैदा आशंकाओं को दूर करने वाली कोई ठोस बात कहेंगे. पर आपके प्रती पैदा आशंकाओं का एक भी जवाब न देकर आपने अपनी छवि को और अधिक धूमिल करने का काम किया है. खैर आपकी इच्छा. कुछ और भी निवेदन कर दूँ——————–
    * संवाद और वाद विवाद में दुश्मनी की बात कहाँ से आगई ? मेरे मन में आपके प्रती अंश मात्र भी ऐसी भावना कभी पैदा नहीं हुई. आपके मन में ऐसी भावना आने से आप स्वयं अपने बड़प्पन व स्तर का मूल्यांकन करें. इतनी जल्दी संतुलन बिगड़ने लगा ? भाई साहेब आप हमारे पूर्वजों, संस्कृति, परम्पराओं के लिए अत्यंत अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं, उनसे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहात होती हैं. परवाह की आपने कभी इस बात की ?
    * इस मंच की गरिमा हमारे श्रद्धा केन्द्रों के लिए घोर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने से बढ़ती है क्या ? जवाब में तो हमने अभी कुछ कहा ही नहीं और आप तिलमिला उठे. मेरे प्रिय बंधू , आपके मान-अपमान से इस मंच की गरिमा प्रभावित होती है और करोड़ों की श्रद्धा का अपमान करने से बढ़ती है क्या ? डा. मीना जी हमारी संस्कृति को अपमानित करने का अधिकार आपको किसने प्रदान किया है ?
    * अगर आप में थोड़ी इमानदारी और सच्चाई है तो मेरे द्वारा उठाये प्रश्नों का समाधानकारी उतार दें जिससे आपके प्रती पैदा संदेह दूर हो सकें.
    * अरनी कुमार जी के प्रश्नों से बचने का आपने अछा रास्ता चुना है आपने. सचमुच आपके लिए उनकी बातों का जवाब देना संभव नहीं. उनके आगे निरुत्तर होना आकी मजबूरी है, यह समझा जा सकता है.
    * मुझे आप आप उपदेश दे रहे हैं कि अरनी कुमार जी को अपनी बात स्वयं कहने दें. यानी किसी के बात से सहमत होने और सहमती प्रकट करने के लिए आपकी अनुमति लेनी पड़ेगी? क्योंकि वह टिप्पणी आपकी पसंद की नहीं. साथ ही आपने अपने समर्थकों का आह्वान किया है कि वे मेरे कहे का उत्तर देंगे. हर जगह ये दोहरे मापदंड अपनाने से लगता है कि आप अपने फैलाए जाल में स्वयं उलझते जा रहे हैं. ये दोहरे माप दंड इमानदारी का परिचायक तो है नहीं.
    * एक बात नैसर्गिक न्याय की आपको समझ लेनी चाहिए कि जब आप किसे के विरोध में कुछ कहते हैं तो उस समाज या व्यक्ती को कानूनी व नैतिक अधिकार होता है कि वह अपने विरुद्ध कहने वाले, आरोप लगाने वाले से प्रती प्रश्न करे, संवाद और विवाद करे. यदि आपको ये प्रति प्रश्न और आरोप पसंद नहीं तो इसके दोषी तो आप ही हैं. मत करिए किसी समाज पर कीचड उछालने का घटिया और दुर्भावना पूर्ण प्रयास.
    * अपने जो अंतिम पंक्तियाँ लिखी हैं उनके बारे में मेरा निवेदन है कि —
    !!प्रेम करने के लिए ये उम्र बहुत कम है, दुश्मनी की फुर्सत किसे है!!
    कृपया हमारे प्रेम के भावों को बना रहने दें और ये घृणा फैलाने का अभियान बंद करें. प्यार, स्नेह और आत्मीयता से भी समाज की बुराईयों को दूर किया जा सकता है जैसे कि महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, राजा राम मोहन राय, ईसामसीह, ने किया और श्री श्री रविशंकर जी कर रहे हैं ; शर्त बस इतनी है कि हमारी नीयत ठीक हो. सुधार के नाम पर समाज को तोड़ने, विघटन के बीज बोने की न हो.
    * आप तो संवाद करने की बड़ी वकालत करते थे, जब आपसे असुविधाजनक सवाल पूछे गए तो आप मैदान छोड़ गए. आप पहले स्वयं समझ लें कि आप कहना क्या चाहते हैं अन्यथा हम लोग तो समझ ही रहे हैं.
    ** इश्वर आप लोगों को सद्भाव, विवेक एवं स्वस्थ, सकारात्मक सोच का वरदान दे, इन्ही शुभकामनाओं सहित आपका शुभचिंतक,

    • Rajesh kapoor ji, shat shat naman,
      vistrit tippani baad me dungi.
      Abhi sirf itna ki manch chodkar aap bhagte hein apne meri kai tippaniyo ko bich me chod diya aur bhag gaye. Koe baat nahee. Lekin is par bad me cömment dungi is puri tippani par! Abhi sirf itna ki aap swami vivekanand aur raja ram mohan roy ko hamari trah bharat ninda rog ka shikar bta chuke hen us bare me 15-20 din ho gaye hein apne kahin bhi jawab nahi diya jbki ham ye baat kaee jagah likh chuken he ki aap kahin kuch likh dete ho kahin kuch.
      Krpiya he leeladhari saman purush hamko apni leelaon me na uljhao, hamari shankaon ka samadhan karo ki ye purush apke anusar alag alag vyakhyao me kyon aa rahe hen
      aapki shubhchintak deepa sharma ‘pretbadha’

  7. डॉ. राजेश कूपर जी,
    आशा है आप स्वस्थ होंगे।

    1. आपकी टिप्पणी से आपके वैचारिक स्तर एवं आपकी मानसिक स्थिति का स्वत: ही पता चल रहा है, ऐसे में बेहतर होगा कि स्वस्थ चर्चा के इस मंच को गरिमा प्रदान करते हुए मैं इन पर एक भी शब्द व्यक्त नहीं करूँ और यह कार्य स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष पाठकों पर छोड दूँ, जिन्हें आप मेरे समर्थक कहकर, अलंकारित करने के लिये स्वतन्त्र हैं!

    2. आपने श्री अरण्य कुमार जी के विचारों पर, मुझसे टिप्पणी करने को लिखा है, क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप स्वयं श्री अरण्य कुमार जी को ही अपनी बात कहने दें। उन्हीं को मुझसे सीधे संवाद करने दें।

    3. अभी तक मेरी टिप्पणी का प्रतिउत्तर श्री अरण्य कुमार जी को ओर से प्रस्तुत करना शेष है। जरूरी समझें तो आप दि. 13.08.10 की 02.58 बजे की मेरी टिप्पणी को देख सकते हैं।

    4. आपको याद दिला दूं कि मैंने आज तक आपसे या अन्य किसी से, अन्य किसी पाठक की टिप्पणी पर प्रतिउत्तर नहीं माँगा है, क्योंकि मैं केवल अपनी ही टिप्पणियों के लिये उत्तरदायी हूँ। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस-किस के विचारों के लिये स्वयं को उत्तरदायी मानते हैं?

    5. चूँकि आपने श्री अरण्य कुमार जी का बार-बार उल्लेख किया है। जो इस बात का जीता-जगाता प्रमाण है कि आप स्वयं सुनियोजित तरीके से एक टीम बनाकर इस मंच पर टिप्पणियों के साथ उपलब्ध हैं। यदि ऐसा है और, या यदि आप श्री अरण्य कुमार जी के समर्थक या उनके रचनाकार या उनके एजेण्ट हैं, या स्थिति इसके विपरीत है, तो कृपया श्री अरण्य कुमार जी से कहें कि सबसे पहले वे मेरी दि. 13.08.10 की 02.58 बजे की टिप्पणी को देखें और यदि वे अपने विचारों को मुझ तक पहुँचाना चाहते हैं तो विदेशियों की भाषा अंग्रेजी, जिसमें आज भी काले अंग्रेज इस देश के लोगो का शोषण कर रहे हैं में या इस देश का हजारों वर्षों से शोषण करने वालों की भाषा संस्कृत में नहीं, बल्कि इस मंच की भाषा (केवल हिन्दी) में ही अपने विचारों को अभिव्यक्ति दें।

    6. यदि आपको लगता है कि श्री अरण्य कुमार जी के विचारों पर टिप्पणी करने से आपको विजयश्री हासिल हो जायेगी, तो आप अपने दल-बल के साथ उनके विचारों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने को स्वतन्त्र हैं, (क्योंकि स्वयं श्री अरण्य कुमार जी हिन्दी में लिख नहीं सकते, जैसा कि उन्होनें लिखा है) फिर देखा जायेगा कि श्री अरण्य कुमार जी के विचार कितने पवित्र, कितने विचारयोग्य और प्रतिउत्तर में कुछ लिखे जाने योग्य हैं भी, या नहीं।

    7. अन्त में आपकी एवं आपके सभी समर्थकों की सेवा में, किसी विद्वान की ओर से लिखी गयी एक सलाह-

    दुश्मनी जमकर करो, मगर इतनी गुंजाइश रहे।
    फिर कभी दोस्त बन जायें, तो शर्मिन्दा न हों।।

    सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  8. डा. मीना जी , अरनी कुमार जी के सीधे, साफ़ सवालों का एक भी तर्क सगत जवाब आप ने नहीं दिया है. ऐसा लगता है कि आप को हिन्दू समाज की प्रशंसा में कहा गया एक भी शब्द सहन नहीं है. हिन्दू समाज की कमियां दूर करने की बात तो केवल एक नाटक है, वास्तव में आप तो प्रतिबद्ध हैं हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए. यदि मेरा आरोप गलत है तो ज़रा बतलईये कि आपको हिन्दू धर्म में कौनसी बात अच्छी मिली? पहले भी आपको ये चुनौती दे चुका हूँ जिसका आपने कोई जवाब नहीं दिया है.
    # ईसाईयों के देशभक्त संगठन पुअर क्रिश्चन मूवमेंट की सूचनाओं के अनुसार कुछ सांप्रदायिक कट्टरपंथी क्रिप्टो क्रिश्चन ( गुप्त क्रिश्चन) विदेशी ताकतों के इशारे पर देश में धर्मांतरण तथा देश विरोधी काम कर रहे हैं. इनका प्रमुख काम है कि धर्मांतरण के साथ समाज में घृणा व विद्वेष फैलाएं. आपकी शैली से हम क्यों न संदेह करें कि आप भी वही काम कर रहे हैं?
    # कट्टरपंथी ईसाई प्रचारक जिस भाषा, शैली और हिन्दू धर्म के प्रती घृणा को प्रकट करते हैं, आपकी शैली व भाषा भी वैसी ही है. देश में हज़ारों क्रिप्टो क्रिश्चन हिन्दू धर्म के विरुद्ध विश वमन और धर्मांतरण कर रहे हैं. आप पर वही होने का संदेह क्यों न किया जाए ? आपके पूर्वाग्रहों से हम आपको और क्या समझें ? क्या आप अपनी स्थिती स्पष्ट करेंगे ? अपने किसी एजेंट के द्वारा नहीं, साहस है, सच्चाई है तो साफ़-साफ़ अपनी बात स्वयं कहें . अरण्य जी का सामना करने का साहस तो आप में है नहीं, ये सब पाठक देख चुके हैं. सच का सामना झूठ कहाँ कर पाता है. अपने समर्थकों की ओट तलाशनी पड़ती है.
    # हिन्दू धर्म की ठेकेदारी तो किसी की भी नहीं हो सकती. पर क्या हिन्दू शास्त्रों में तलाश-तलाश कर केवल बुरे पक्ष और वे भी ज़बरदस्ती उजागर करने वाले लोग हिन्दू धर्म के ठेकेदार बनेंगे? किसने दिया है ये ठेका ऐसे हिदू विरोधियों को ?
    चनौती है कि किसी एक भी हिन्दू धर्म ग्रथ पर अध्ययन किया हो तो उसपर वाद-विवाद करो. जानता हूँ कि कुछ नहीं पढ़ा होगा. केवल हिन्दू हित का नाटक करके हिन्दुओं को अपमानित करना और छोटा, घटिया दिखाना है. मेरी बात गलत साबित हो, आप मन से हमारे शुभचिंतक हों तो मुझे प्रसन्नता होगी.

  9. आदरणीय दीपा जी,

    यहाँ लिखी गयी टिप्पणियों से ऐसा लगता है कि आप पर उन लोगों के दबाव तथा चालाकियों का असर करने लगा है, जो हिन्दू धर्म को अपनी बपौती समझते हैं एवं जो लोग हिन्दू धर्म की खामियों को उजागर करने वाले सद्भावी आलोचकों को हिन्दूत्व का विरोधी ही नहीं, बल्कि भारत का विरोधी घोषित करके, देशद्रोही एवं विदेशी ताकतों तथा इस्लाम या ईसाइयत का ऐजेण्ट घोषित करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं। इन्हें तो लगता है कि हर वह व्यक्ति जो इनकी हाँ में हाँ नहीं मिलाता है, वह मानसिक रूप से बीमार है, विक्षिप्त है, देश और संस्कृति का दुश्मन है। आपने अपनी एक टिप्पणी में इस बात को साफ तौर पर स्पष्ट भी किया है।

    गैर-बराबरी एवं भेदभावूर्ण व्यवस्था को बनाये रखने के पक्षधर और भारत के संविधान में विश्वास नहीं रखने वाले लोगों के दबावों के आगे झुककर आपने ईसाई एवं इस्लाम धर्म में स्त्रियों की दशा पर पर टिप्पणियाँ की हैं, जो सही होते हुए भी आपको अपने मार्ग से भटका सकती हैं।

    मेरा विनम्र मत है कि सौभाग्य से या दुर्भाग्य से हम जिस परिवार एवं धर्म में पैदा हुए हैं, उसमें रहना हमारे लिये फक्र की बात हो या बाध्यता, लेकिन हमें हिन्दुत्व की कमियों को उजागर करते हुए, लगातार तथ्यात्मक आलोचना करते रहने के साथ-साथ हिन्दू धर्म का रक्षण करना भी, हिन्दू होने के कारण हमारा जन्मजात धार्मिक दायित्व है। इस बारे में आप विसम्मत हों तो आपको अपना विचार रखने या आपने विचारों को प्रकट करने का अधिकार है।

    मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं धर्मान्तरण का समर्थक नहीं हूँ। इसी कारण मैं डॉ. अम्बेडकर की हिन्दू धर्म को छोडकर अन्य धर्मों को अपनाने की नीति का समर्थन नहीं करता।

    इसलिये मेरा ऐसा मानना है कि यदि हमारा अपना घर ठीक नहीं है, तो हमें पडौसी के अच्छे दिखने वाले मकान में नहीं घुस जाना चाहिये। किसी के भी अच्छे दिखने वाले घर के अन्दर के हालातों को बाहर से नहीं पहचाना जा सकता। अपने घर को ठीक करने के बजाय, दूसरे के घर को अच्छा समझकर, उसमें घुस जाना बुद्धिमता नहीं है।

    इस बात में भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि जो लोग दूसरों पर हिन्दू धर्म को कमजोर करने का आरोप लगाते हैं, वे स्वयं ही हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के सबसे बडे दुश्मन हैं। इन्हीं जैसी मानसिकता के लोगों के कारण शोषित, दमित गैर-बराबरी और भेदभाव के शिकार हिन्दू, हिन्दू धर्म को छोडकर अन्य धर्म की शरण में जाते हैं।

    बेशक हिन्दू धर्म को कोई हिन्दू मजबूरी में ही छोडता है, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि दूसरे धर्म को अपनाना कोई समाधान है। इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों से मैं अनेकों बार मिला हूँ। मैंने पाया है कि वहाँ पर भी उनके हालात ठीक नहीं हैं। इसलिये हमें दृढतापूर्वक हमें अपने घर को ठीक करने पर ही ध्यान देना चाहिये। जब तक कोई दूसरा हमारे घर में दखल नहीं दे, हमारे घरेलु मामलों में दखल नहीं करे, हमें भी दूसरों के घरेलु मामलों में दखल नहीं देना चाहिये। अन्यथा होगा ये कि हमारी सारी शक्ति बाहरी लोगों से उलझने पर खर्च हो जायेगी और हमारी घरेलु हालात ज्यों की त्यों बने रहेंगे।

    यहाँ पर जो लोग आपको या उन लेखकों को जो हिन्दु धर्म की कमजोरियों को उजागर करके हिन्दू धर्म को ताकतवर बनाने का पवित्र कार्य कर रहे हैं, उनको हिन्दू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और विदेशी ताकतों का एजेण्ट घोषित करके चुनौतियाँ दे रहे हैं और कह रहे हैं कि इस्लाम या ईसाइयत की कटु निन्दा करके दिखाओ! इसके पीछे भी एक षडयन्त्र है। आपको दो मोर्चों पर घेरना इनका कुटिल इरादा है।

    हिन्दु धर्म के अन्दर जो विकृतियाँ हैं, उन्हें ठीक करने के लिये चलाये जा रहे आपके प्रयासों को रोक कर, ये लोग इस्लाम एवं अन्य धर्मों की कमियाँ आपसे उजागर करवाकर आपको सभी धर्मों का विरोधी और अन्तत: धर्म विरोधी या अधार्मिक घोषित करवाना चाहते हैं, ताकि आपके समर्थक और किसी भी धर्म में आस्था रखने वाले निष्पक्ष लोग भी आपसे दूर होकर आपके विरोधी हो जायें। आपको अधार्मिक घोषित करके आपकी हिन्दू धर्म में सुधार के प्रति जो पवित्र सोच है, उसे भी नष्ट कर देना इनका दूरगामी लक्ष्य है।

    इसलिये दूसरे धर्मों के बारे में टिप्पणी करना कम से कम भारत में उन दबे-कुचले हिन्दुओं या शोषित स्त्रियों के लिये फिलहाल उचित नहीं है, जो स्वयं ही हिन्दू धर्म की भेदभावपूर्ण व्यवस्था के कारण शोषण एवं अन्याय के शिकार हो रहे हैं।

    ऐसे हालात में हमारा अधिक जरूरी कार्य यही है, अपने धर्म की रक्षा करते हुए; अपने धर्म की उन बातों को धर्म के आवरण से बाहर करना, जिनका लक्ष्य, देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को जीवनभर के लिये हीन एवं हीनतर बनाये रखना और मुठ्ठीभर लोगों की अनुयाई बनाये रखना है।

    इन बातों पर चोट करने से उन लोगों को पीडा होना स्वाभाविक है, जो अपने आपको हिन्दू धर्म का ठेकेदार समझते हैं। उनकी पीडा उनकी दृष्टि से जायज है। हर पीड़ित व्यक्ति, पीडा में बौखला जाता है, इस बोखलाहट भरे आक्रोश से डरकर या घबराकर या विचलित होकर पीडा का उपचार करने के प्रयास में जुटे लोगों को घबराने या रास्ता बदलने की कोई जरूरत नहीं है। यह मानकर चलना होगा कि हर हाल में आपको अपमानित होना पडेगा और न जाने कैसे-कैसे लांछनों को सहना पडेगा, इसके लिये तैयार रहें और अपने हिन्दू धर्म पर से ठेकेदारों को बेदखल करें। तब ही हिन्दू, हिन्दुस्तान तथा हिन्दुत्व का भला हो सकता है।

    मैं तो अन्त में विसम्मत राय रखने वालों से भी अनुरोध करना चाहूँगा कि यदि आप वास्तव में हिन्दुत्व के रक्षक हैं तो हमारे इस पवित्र कार्य में सहभागी बनें।

  10. महोदय ;
    मुझ पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप न लगे इस्ल्ये मेरा सोचना है की धर्म का दूसरा अर्थ स्त्री विरोध ही है सभी धर्मों ने स्त्री को नकारा है और अपमानजनक शब्दों से पुकारा है। पुरुष प्रधान समाज ने तो सारी की सारी अश्लील और अभद्र गालियां स्त्री के अंगों से जोड़ कर गढ़ी हैं। उसने स्त्री को बराबर तो कभी माना ही नहीं। संहिताओं में कभी ढील दे दी गई, तो कभी उन्हें कस दिया गया।
    वह द्रौपदी बन कर पांच पतियों को झेलती रही और सदैव दांव पर लगाई जाती रही। वह न तो बराबर समझी गई और न ही अपना निर्णय खुद ले सकने में सक्षम। जो रजिया, अनारकली, हीर, लैला या शीरीं, दुर्गावती और महारानी लक्ष्मीबाई बनीं, वे मार डाली गईं या गार्गी की तरह धमकाई जाती रहीं।
    स्त्रियों के प्रति मनु की आचार संहिता की संकीर्णताएं हें या इस्लाम के तालिबानी मुल्ला-मौलवियों या उनके पर्सनल लॉ की संहिताएं अथवा इसाई धर्म के पोप के स्त्रियों के खिलाफ ग़र्भपात, तलाक या दूसरे विवाह को लेकर बनाये गए निर्देष, एक बात जो सभी में समान है, वह यह कि किसी भी धर्म ने स्त्री को न तो निर्णय लेने का अधिकार दिया और न ही उसे स्वालम्बी बनने दिया। इससे बड़ा मानवीय अधिकारों का उल्लंघन और क्या हो सकता है? सच तो यह है कि धर्म भेदभाव करता रहा है।
    चाहे कबीर हों, चाहे तुलसी जैसे भक्त कवि , चाहे वेदों की ऋचाएं गाने वाले ऋषि अथवा पुराणों की कथाएं सुनाने वाले पाण्डे या कुरान की आयतें या बाइबिल पढ़ने वाले मुल्ला-पादरी, सभी के सभी औरत को पुरुष के अधीन रहने की हिदायत ही नहीं देते, बल्कि वे उन्हें ‘नरक का कुण्ड’, ‘माया’, ‘महाठगनी’ व ‘ताड़न की अधिकारी’ बताते रहे हैं। पश्चिमी धर्मो में तो औरत को आदिम की ‘पसली’ से बना बताया गया है। वैदिक धर्म में ब्रह्मा ने जबरन अपनी पुत्री सरस्वती से ही संभोग कर सृष्टि रच डाली। यानी सृष्टि भी बलात्कार की उपज है। ठीक इसके विपरित आदिवासी मिथकों में स्त्री-पुरुष दोनों हंस के अण्डे से एक समान बराबर-बराबर पैदा हुए। कोई किसी के अधीन नहीं। दोनों ने मिलकर सृष्टि रची।
    महोदय ab तो अपनी झूठी बातों को लगाम लगाओ और इस हकीकत को पहचानो की bharat me striyon को सामान कभी नहीं समझा गया, pooja pooja का sirf drama kiya jata है jiske karan ye sab लिखा गया है उस परिचर्चा का आधार है गलत है
    deepa sharma jai hind

  11. जनाब, पुरोहित जी
    जब भी कोइ व्यक्ति सत्य लिखता है तो आप रुढ़िवादी वास्तविक संस्क्रती के रक्षक उसको इसाई या मुस्लिम ही क्यों बताते हो, क्या हिन्दू में सत्य बोलने का साहस नहीं होता है क्या?या गेरब्राह्मन हिन्दू को अधिकार नहीं की वो अपने धर्म की बुरी बातों को कह सके उन पर विचार कर सके या फिर सिर्फ ब्राह्मणों को ही ये अधिकार है वो ही बताते रहें सही क्या है गलत क्या है और शोषण करते रहें
    पुरोहित जी ,
    सालों से हम ब्रहमन मनुस्मृति की खाते आ रहे हैं जिसका खा रहे है उसके गुलाम तो होंगे ही , तो हम क्यों मनुस्मृति की कमियों को मानेंगे

    और तुलिसिदास महोदय की बात , तो वो रामचरितमानस लिखकर हम ब्राह्मणों और पुरोहितो , पंडितों के लए सदियों तक का रोज़गार दे गए हैं अब हमारी निष्ठां तो होगी ही न उनके प्रति,

    पुरोहित जी कुछ लोगो की हटधर्मिता की आदत होती है , की
    ” इस बार मरो तो जानू, “इस बार मरो तो जानू ”
    महोदय “पंडतों”(?) वाले कार्य छोड़कर वास्तविकता को देखो सामने लिखा हुआ नज़र नहीं आता है या समझने की संस्क्रती नहीं है
    मेरा निवेदन है पंडताई छोड़कर मानवीय दृष्टिकोण भी रखो .
    रुढ़िवादी हिन्दू ब्राह्मणों को मात्र एक ही तकलीफ है की जो वर्ग कभी उनका गुलाम था उसमे बोलने का साहस कहाँ से पैदा हो गया है , पुरोहित जी आज भारत वेद, स्मरति और ग्रंथों से नहीं चलता जो हर कोई रुढ़िवादी हिन्दू ब्राह्मणों की गुलामी करेगा आज संविधान है जिसने ऐसी वर्जनाओं को तोड़ दिया है तो विनती है आप एक बार फिर लेख देखें वर्ना शास्तार्थ की परम्परा में विश्वास हो तो उससे भी पीछे नहीं हैं ,
    स्वतंत्र दिवस की बधाई के साथ दीपा शर्मा , धरमपुर देहरादून

    • Bahut achchha likha,par jara ye batayengi ki kisi ko kisi ki gulami karani chahiye ye mene kab likha?mere gar me khana tulasibaba karan nahi ata hai,mere pitaji v meri yogyta se ata hai jise arakshan ki bhikh nahi chahiye.jis prakar ki gatiya bhasha ka proyog apane mere v “pandito” ke bare me kiya hai vo apaki gatiya sanskriti ko hi darsata hai.jab dharm me kharabi hai hi nahi to kyo sune hum?vo bhi ese logo se jo desh ko todane vali bate karate ho,dimag kholiye samaj v dharm ka antar samjhiye.rahi shastrat ki bat to sivay brahamno ko kosane ke apake pas tark kya?

      • Mahoday, ye peeda tb bhe kiya kare jb aap talibani tippani karte hue. Kisi ko christian aur kisi ko islamic atankwadi bata dete hein. Kisi bhe vad vivad me do paksh zarur hote hen. Lekin aap khud ki tippani dekho, apne meena ji ko christian btaya hua he. Aap kisi ko kuch bhe ulta bole. Ham jara sahee baat kehne lagte hen to aapko pareshani ho jati he. Mahoday jo vyavhar apko khud ke liye pasnd nahe wo dusro ke liye na karen. Aur agar karte hen to sehne ki himmat bhe rakhen.

  12. are janab ko samajh me hi nahi aya ki kya comment likha huva hai.mujhe to ye sajjan converted chrition lagate hai jo reservetion ki malayi ko bhi nahi chhodana chahate hai.
    kabhi jindagi me bhi manu smriti ya achary shankar ko padha hota to aj etane kalushit nahi hote.
    1.manu maharaj ne likha hai ki striyo ko protection evam care ki jarurat hai na ki svachandata ki our ye janab slok ko ulta guma rahe hai.
    2.manu maharaj likhate hai ki kisi bhi gar ki dhuri stri hai,uasake dvara hi gar gar banata hai vo agar svachchhand bharman karegi to gar kese banega??
    3.slok no 15 our 45 me koe apati ki bat lagi apko??stri ka svbhav hota hai chamak-damak se bharbhavit hona our esa purusho ka bhi hota hai,patni to patni hi rahati hai hamesha.slok no 75 kaha se laye ho janab??
    4.ab ate hai bhagavatpadachary shankar par,to esa hai apani kalushit v bharsht mansikta ko un par adhyaropit karane ka prayas mat karo,kisi bhi sanyasi ke liye nari se aashakti narak ka hi dvar hai.
    5.kabir or tulasi baba ki barabri karane chalo ho??jo bat tulasi baba ke khalnayak ya kam mahatvpurn patr ramcharit manas me kahate hai usako aadhar banaya hai kya??ya gyaniyo our sadhuo ko savadhan karane ke liye likhe gaye doho ko??
    6.our chanaky ne kya galat likha hai,jara batana to?
    7.pahale jakar pata karo ki shringarshatak kisane likha hai??panchtantra ka bhag hai vo???yaha koe anpadh nahi hai jise pata nahi chale ki kis slok ko aap kis disha me guma rahe ho.
    saty bat to ye hai janab ki apako kuchh pata hi nahi hai,phate me tang adana to adat hai hi apaki,apane ko hi budhijive kahana,jati ke nam par desh ka batvara karvana our bhi na jane kya kya??
    8.aap jese sajjan hi stri ko bhogya samajhate hai our nari me matr svrupa ke manu maharaj ke spst adaesh ko na chhap kar kutil nariyo se bachane ko di gayi salah ya kahe chetavani ko chhapate hai.apani jado ko khodana to koe aapse sikhe,lage rahiye janab……………..vah samay bhi jaldi aa jayega jab apako apane asali chrition nam ko chhipane ki jarurat nahi padegi………….

    • what do you mean by converted christan lagte hai jo reservation ki malai nhi chodna chahte hai……
      भाई साहब जब तक लोग आपका जुल्म सहते रहे तब तक सब ठीक है . आप(हम ) लोग एक तरफ आदिवासियों के साथ बुरा सुलूक करते हिया और जब वो अपना धरम परिवर्तन कर लेते है तो उन्हें देश द्रोही कह देते है. अछि तरह सोच विचार कीजिये फिर किसी के बारे में बोलिए की क्या बोलना है……….
      आपका जितना ज्ञान हिया उस से कही अछि बाते लिखी है उन्होंने और देश भक्त होना हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई या नारी या पुरुष या जाती पर ही निर्भर करता होता तो आज भारत का हाल कुछ और होता .

      • Pahali bat to ye ki mene kisi par julm nahi kiya,dusari bat ki jo convert hota hai vo deshdrohi hai,tisari mene apase mere gyan ka certivicate nhi manga hai.

  13. अरण्य कुमार जी आपने मारा है असली तमाचा उनके मुंह पर जो हमारी संस्कृति को कोसने में बड़ा सुख मानते हैं. पर इनसे शर्म या खेद की आशा तो नहीं कर सकते. इनका तो काम ही भारत को बदनाम करना है. अरण्य जी काश आप अपना ये उत्तर हिदी में भी छाप देते. क्या अब ये हो सकेगा ?

  14. लेखक ने जिन मुद्दों को उठाया हैऔर जिस ढंग से उठाया है वे उनकी चतुराई, बुद्धीमत्ता और भारतीय संस्कृति के प्रति अत्यधिक कटुता तथा पुवाग्रहों को प्रकट करती है. भारत- भातीयता के विरोध में वातावरण बनाने की जल्दबाजी उनके पूर्वाग्रही कथनों में बार-बार झलक जाती है. उनके विद्वेष पूर्ण, पूर्वाग्रही कथनों से जो बातें उभरकर सामने आती हैं वे ये हैं ————————-
    १. कांग्रेस के विरोध में निशाना साधने का अपराध कर रहे हैं वे लोग जो इन खेलों में सेक्स वर्कर पोषण का आरोप सरकार पर लगा रहे हैं. ( तो फिर ये भी तो कहा जा सकता है की कुछ लोग कांग्रेस के भातीय संस्कृति व भारत विरोधी कार्यों पर पर्दा डालने का काम करते हैं .इस लिए वे कांग्रेस के कुकर्मों का भेद खोलने वाले हर प्रयास का विरोध करते हैं, ऐसे प्रयास करने वालों की छवी खराब करने का प्रयास करते हैं )
    २. दूसरा अपराध है की इस प्रकार की ख़बरें परोसने वाला मीडिया अपने आप को राष्ट्रवादी कहलाने वाले संगठनों की नज़र में लाना चाहता है. ( ये आरोप दूसरे लोग भी लगाएं तो कैसा रहे की कुछ लोग राष्ट्र विरोधी मीडिया की नज़र में आने के लिए भारतीयता को बदनाम करने का काम करते है.)
    ३. आप कह रहे हैं कि गरबा नाच में लड़के-लडकियां बड़ी मात्रा में शारीरिक संबंध बनाते हैं. देश में अन्य दिनों भी सेक्स वर्कर काफी बड़ी संख्या में सक्रीय रहते हैं. इसलिए कामवासना को मान्यता देकर सुचारू, सुव्यवस्थित ढंग से चलाना चाहिए. महोदय अगर इसको तर्क कहते हैं तो फिर कुतर्क किसे कहेंगे ? अरे भाई देश में ब्रस्ताचार हर स्टार पर हो रहा है तो क्या उसे मान्यता दे दें ? शूटर पैसा लेकर हत्याए करते हैं यह एक स्थापित व्यवसाय बन चुका है. क्या इसे भी मान्यता दें? मिलावट, जहरीली मिठाईयां, जहरीली सब्जियां, ई. वी. एम् के द्वारा देश के मतदाताओं को धोखा देकर सत्ता पर कब्जा, हिन्दू प्रतीकों व हिदू संगठनों/ समर्थकों को गाली आदि-अदि ये सब बड़े व्यापक स्तर पर हो रहा है. क्या सबको मान्यता देदें?
    ४.पानी पी-पी कर भारतीय संस्कृति को कोसने से पहले ये तो जान लें कि हमारे देश के धर्म ग्रंथों में दर्जनों स्थानों पर स्त्रियों की महानता की प्रशंसा की गई है. आप केवल नकारात्मक पक्ष को प्रकट करने वाले उद्धरण ही क्यों देते हैं ? यदि आपकी नीयत में कोई खोट नहीं तो दोनों पक्ष बतलाकर संतुलित निष्कर्ष क्यों नहीं देते ?
    * ध्यान से देखें कि अधिकाँश उद्धरण आध्यात्मिक सन्दर्भों के हैं जहां केवल स्त्री को ही नहीं, धन-सम्पत्ती, मोह -माया सबको विश के सामान बतलाया गया है. आप लोग शिकायत करते हैं कि कुरआन शरीफ के हमारे द्वारा उद्धृत अर्थ सन्दर्भ से काट कर दिए गए हैं ( जबकी ऐसा होता नहीं है.) फिर भारतीयता को लेकर दोहरे मापदंड क्यों? यानी मान लें कि इमानदारी से न चलने की आप लोगों की धाधली चलेगी ही चलेगी.
    ५.आपका पुरजोर आग्रह है कि हम अपनी आलोचना करें. आपकी भाषा को अगर मैं ठीक से समझ पाया हूँ तो आप कहना चाहते हैं कि भारत- भारतीयता की केवल आलोचना, आलोचना और आलोचना ; इसके इलावा कुछ नहीं. ताकी देश भक्ती की वह भावना पूरी तरह समाप्त हो जो विदेशी व्यापारी व साम्राज्यवादियों के रास्ते का रोड़ा बन रही है. # अगर ऐसा नहीं तो क्या अप भारतीय संस्कृति के कुछ उदहारण बतलाने की कृपा करेंगे जो गौरव करने योग्य हैं ? ताकी पाठकों का आपकी नीयत पर जगा संदेह समाप्त हो कि आप केवल भारत की संस्कृति को बदनाम करने के लिए नियुक्त हैं.#
    ६.आपको ज़रूर पता होगा कि स्वामी तीर्थ ने एक घटना का उदहारण देते हुए बतलाया था कि जापान में ट्रेन में बैठे हुए उन्हें खाने को किसी भी स्टशन पर कुछ नहीं मिला तो उन्हों ने आलोचना के कुछ शब्द कहे जिन्हें सुनकर एक जापानी कहीं से कुछ फल लाया और कहा कि भारत जाकर जापान की आलोचना न करना. यह सोच दुनिया के हर देश के लिए उचित है कि देश,इतिहास, संस्कृति का गौरव जगाएं. तो फिर भारत के सन्दर्भ में ये कसौटियां बदल क्यों जाती है ? है कोई जवाब आपके पास ?
    * आत्म आलोचन से किसे इनकार है. हम सब चाहते हैं कि हम अपनी प्रत्येक कमीं को समझें, उसकी जड़ को ढूंढें औए उसका समाधान करें पर जो प्रयास हमें केवल हमारी कमियाँ ही कमियाँ बतलाकर हमें हीनता, आत्म ग्लानी के दरया में डुबाने के लिए चल रहे हैं ; उनकी असलियत अब हमसे छुपी हुई नहीं है. उनका शिकार हम नहीं बनाना चाहते.
    * भारतीय संस्कृति के विरुद्ध जो विषवमन आप लोग कर रहे हैं वह असहनीय होता जा रहा है. हमारे हित चिन्तक बनने का नाटक करके हमारे ही जड़ें खोदने के तरीकों को अंब हम अछे तरह समझने-पहचानने लगे हैं. ## मेरी चुनौती है और आपकी परिक्षा है कि अगर आपकी नीयत में कोई खोट नहीं तो बतलाईये कि आपकी नज़र में भारत के अतीत, इतिहास और संस्कृति में क्या उत्तम, श्रेष्ठ है ? आखिरकार आप विद्वान हैं, बुद्धीमान हैं. आपकी बुद्धीमत्ता केवल हम भारतीयों और हमारे संस्कृती को अपमानित करने तक ही सीमित है क्या?
    # एक लेखक को आपने टिप्पणी में लिखा है कि आप उनसे सहमत हैं, पर जिनके विरोध में लेखक लिख रहा है वे ठीक लोग नहीं अतः सावधान रहें. ऐसी परोक्ष धमकी मुझे देने की कृपा न करें.
    # जातिवादी जनगणना के ऊपर लिखे आपके लेख में मेरे द्वारा उठाये गए एक भी प्रश्न का अपने जवाब नहीं दिया और मौन साध गए जबकि उसी स्थान पर आपने और आपके समूह के प्रोफेशनल समर्थकों ने बेकार, बेमतलब विवाद खड़ा करके विषय से भटकाने का सुपरिचित प्रयोग किया था. इतना बेकार का लिखा, मेरे उठाये प्रश्नों के जवाब भी दे देते. पर क्या सच के सामने आने से परहेज़ था ?
    ## डा. मीना जी ! जानता हूँ कि आपको और आपके साथियों को मेरे इस आलेख से बहुत बुरा लगेगा. मुझे और मेरे साथ्यों को भी आपके कथनों से भारी कष्ट होता है जब आप भातीय संस्कृति के विरोध में अत्यधिक कटु भाषा का प्रयोग भरपूर पूर्वाग्रह के साथ करते हैं. अत्यंत दुरागाह प्रदर्शित करते हैं हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध. इतना तो ”विदेशी” मिशनरी के ईसाई भी न करते होंगे. और आप….?
    – हमें अपमानित, बदनाम करना अगर आपका प्रमुख एजेंडा नहीं तो सभी संप्रदायों, संस्कृतियों, समूहों का संतुलित विश्लेषण क्यों नहीं करते ? कुछ तो दाल में काला है जो आपको हमारे संस्कृति में कमियाँ ही कमियाँ नज़र आती हैं. आखिर क्यों…………?
    # भारत को प्यार करने वाले इसकी संस्कृति के विरुद्ध पक्षपात से भरी उक्तियों को सुन कर व्यथित और आंदोलित न हों, ये नहीं हो सकता और ख़ास करके तब जब कहने वाले की नीयत पर ही संदेह हो.
    ### अंतिम बात ये है कि आपके सारे आलेख का सार यह है कि देश में सेक्स वर्कर और सेक्स बाज़ार को मान्यता दे देनी चाहिए. आप जानते हैं कि ये किसके हित की बात है? जो लोग अरबों डालर का बाज़ार सेक्स का बना कर कमा रहे हैं, एड्स का बहुत बड़ा बाज़ार चाहते है ताकि उनकी दवाएं खूब बिकें ; ये उनका उद्देश्य है. चीन के बाद भारत ही तो है इतना विशाल बाज़ार. तो क्या अप उसके लिए काम कर रहे हैं जो केवल एक ही पक्ष की बात करने को प्रतिबद्ध हैं ? आपके इस ( लेख में) अभियान से यही सन्देश उभरता नज़र आ रहा है.

    • महोदय , जो बात आप ने आज कही है की हमें अपनी संस्कृति के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों के बारे सोचना चाईये तो मेरे अनुसार इस बात की जरुरत ही नहीं आती की आज पुरुषोतम जी को भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ ख़राब बोलने की जरुरत महसूस नहीं होती.
      जो बात यहाँ इस बहस में आप लिख रहे है की वो बाते अगर हमारे बड़ो ने या जो अपने आपको भारतीय संस्कृतीत का रक्षक कहते है, उन्हीने कही होती, वो भी बंद कमरों में नहीं, खुले में सबके सामने और हम सब देश की जनता को प्रेरित किया होता की यह सही है की हमारी संस्कृति में , हमारे धरम गर्न्थी में ये कमिय है तो आज दीपा जी को यहाँ कहने का मौका नहीं मिलता की धरम सिर्फ नारियो का शोसन करने के लिए है. जो की आज के हालत में देखा जाये तो बहुत गलत नहीं कहा है उन्होंने. उन्होंने अपने विचार रखे है है तो क्यों हम उनके विचारो को दबा देते है क्यों नहीं उनकी समाधान करते है.
      हम हर उस व्यक्ति को मुस्लमान या क्रिश्चन क्यों बोलते है जो हमारे धरम ग्रंतो की कमियों के बारे में बताता है. क्यों हम पश्चिमी सभ्यता को गलत बताते है. कोई भी सभ्यता गलत नहीं हो सकती महोदय उसमे जो बाते होती है वो वहा के वातावरण के अनुसार होती है. उसमे से कुछ बाते अगर हमारी सभ्यता के लिए हानिकारक है तो इसका मतलब ये तो नहीं की हम पूरी सभ्यता को गलत बता दे. हमारी सभ्यता में भी कुछ कमी है (आधुनिक वातावरण के हिसाब से ) अगर हमें किसी सभ्यता की कुछ बाते अच्छी लगती है तो हम उन्हें स्वीकार कर लेते है. हमे इस बात को खुले मन से स्वीकार कर लेना चईये की चाहे हमारे नारियो की स्तिथि किसी अन्य देश से बेहतर हो पर बहुत अच्छी हरगिज नहीं है. ये बात हमारे लिए आदर्श बात हो सकती है या हमारी कल्पना भी हो सकती है की भारत में नारियो की पूजा होती है. . यह बात सत्य हरगिज नहीं है पर यह प्रतीक है इस बात का की हमें नारियो का आदर करना चईये. माता जीजा बाई , सती सावित्री की कहानी इसलिए सुनाई जाती है की महिलाओ में आतम सम्मान का भाव बना रहे वो भी इस समाज का उतना ही हिस्सा हिया जितना बाकि अन्य सब. पर हम सबने इन सब बातो को अपने आप को प्रभावी बनाने के लिए इस्तेमाल किया है . महर्षी मनु या चाणक्य ने कभी यह सोच कर यह बाते नहीं लिखी होगी की नारी को घर में पीटा जाये या उससे दोयम दर्जे का व्यव्यार किया जाये वो सब बाते अलग अलग परिप्रेक्ष्य में लिखी गयी थी पर हमने बिना पूरी तरह समझे बिना जहा हमें फायदा लगा वहा इस्तेमाल कर लिया और जहा नुकसान लगा लगा वहा किसी दूसरी बात का इस्तेमाल कर लिया जैसे आज भी हम अधिकारों की बाते तो करते है पर कर्त्तव्य की कभी नहीं करते है.
      अब मुद्दे पर आता हू, मुद्दा यह है ही नहीं की नारियो की पूजा होती थी या नहीं, मुद्दा यह है की अगर सरकार ऐसी बातो की अनुमति देती है (जिसका भी अभी तक पता नहीं है की सही है या गलत ) तो वो सही है या गलत. और इस बात पर विचार करने के लिए पहले हमें अपनी द्रष्टिकोण बड़ा करना होगा. हमें सोचना होगा की अगर सरकार इस बात की अनुमति दे रही है तो वो क्यों दे रही है (कम से कम इस कारन क्या दिया गया है ) और हम विरोध कर रहे है तो क्यों कर रहे है . और अगर कुछ लोग इस बात का समर्थन कर रहे है तो वो क्यों कर रहे है. इस से क्या नुकसान हिया और क्या फायदा है ? हम अगर अपने मुद्दे की बात करेंगे तो शायद लोगो को हम आसानी से सही बात समझा सकते है.
      बहर्तिया संस्कृति में बहुत सी कमिया जरुर है मीना जी लेकिन अछैया उस से कही ज्यादा है.बात यह जरुर है की जिनका जो करम था, जिमको हमारे समाज ने अधिकार दिए थे उन्होंने वो काम सही तरीके से नहीं किया है. अगर भारतीय संस्कृति में इतनी अच्छाई नहीं होती तो आज यहाँ इतनी बहस नहीं होती फैसला बहुत ही आसानी से हो जाता
      १. अगर कोई मुस्लिम देश होता तो वहा यह संभव नहीं है.
      २. अगर कोई यूरोपियन देश होता तो कोई दिक्कत नहीं है.
      तो में यहाँ यह बात कहना चाहता हू की जो मेरे देश की संस्कृति की कमजोरिया बताते है वे देशभक्त नहीं है यह बिलकुल गलत है. उन्होंने कमजोरिया बताई इसलिए की उन्होंने इतने ध्यान से भारतीय संकृति को समजा है और उसमे कुछ सुधर करना चाहते है तो उन्हें मौका मिलना चईये ना की उन्हें दबाने की कोसिस करनी चाईए
      हो सकता है की में विषय से थोडा भटक गया हू. पर उसके लिए माफ़ी चाहता हू. हां में दीपा जी , और मीना जी से बहुत प्रभावित हू. पर उनसे मेरी अपेक्षा है की जो गलती हो चुकी है उसकी दिन्डोरा पीटने की बजाय उसमे सुधार करे ताकि कोई और ऐसे सवाल लेकर खड़ा ना हो. मीना जी के बारे में तो मेने वैसे भी थोडा पड़ा है की बहुत सारे काम कर रहे है कभी मौका मिला तो आपसे मिलने की तथा आपके काम से कुछ सिखने की इच्छा जरुर है.
      जय हिंद जय भारत .

  15. Respected Nirankush Ji

    Namaskar

    You have a raised a valid point. Sex trade is there in India from ancinent times. Yes It may be the case. But One sholuld not encourage this. It should be discouraged. Atleast the civil society should oppose this move.

    You have quoted some shlokas from ancient scriptures. You have deleberately choose to quote those shlokas which suits you. In earlier discussion You have already written all these. Again You have repeated those. You have written in a way in which it seems Indian scriptures are anti- woman. A new reader will have a negative impresssion on reading your article. An unknown reader , who has less knowledge about Hindu Scriptures might think Hindu scriptures are Anti Woman . To avoid that situation I am hereby giving a article about Vedas on girl Child . I am repeating the same. Earlier I have posted this article. I am quoting this article so that readers can get a balanced view. The readers should get a clear picture on Indian scripture and woman. After reading Your article and than this article they can make their mind clear.
    Please don’t comment on my english. Being South Indian I can read and understand Hindi but can not write in Hindi . I sencerly feel sorry for this. Being an Bharatiya I should know Hindi .

    I would like to request Editor Sir, to publish this post so that Readers can get a clear and complete view on Indian scriptures . Otherwise they might get a
    one sided or We can say biased view. After reading two articles it is up to the readers to decide.

    Thanking You

    Aranya Kumar

    Vedas On girl child

    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: !
    यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: !! मनु:

    Prosperity reigns supreme where women are held in high esteem. All their actions fail to bring wellbeing, where women are held in disrespect.
    This has been a uniquely Indian tradition from Vedic times, and is not found in any other world civilization.
    Modern world society seeks to draw attention to important issues, by assigning a DAY to each issue. Not inappropriately, we have a ‘Girl Child’ day also. This day should also help us to do a little introspection on the state of our society.
    Our elitist educated class in imitating the west is seeking for women in the Indian society an equal opportunity statute.

    Swami Vivekand was asked by an American in 1890, if women enjoyed status equal to men in India. Eloquent Swami ji is reported to have dumb founded Indians in his audience by saying ‘NO’, and then after a pause, ‘The women India are accorded a higher status than men.’
    In the above quote from Manu it is stated that all efforts of a society to achieve well fare for its people bear no fruit, if the women in that society are not treated with respect.

    Reflecting on the state of our Indian society today, we witness even our elected leaders, surrounded by high security, constantly living under fear of violent attacks by members of our own society. Daily violent attacks on innocent people, miseries and crimes against society fill the front page space in our media. We are witnessing hunger, poverty, social, educational inequalities. Worsening food security and food safety are of great concern. Adverse climate changes seem to be beyond our control. With all the advances of sciences and technology in the modern world, with the best of intentions, think tanks, task forces, missions and commissions, we find all our efforts slipping, in addressing these problems. Has the mankind ‘really’ made real progress?

    It may come as a surprise that description of such a society is found verbatim in Vedas.
    “Where the truth speaking learned men and honest citizens do not enjoy, free speech; Where there is no audience to hear sane voices of reason; Where members of its society are maltreated because they are poor, meek and soft; Where girl child and women are left uncared, unkempt, unsafe, and exploited; Where learning, education, knowledge and scholarship are not given due importance and Where the unborn fetuses are aborted.”
    There the king and his bejeweled consort, even under best of security feel threatened and spend sleepless nights in their chambers. High remunerations paid to the employees in administration, services and defense forces fail to ensure expected good performances.
    Where prosperity earned out of honest living is not adulated, Health from good milk giving cows, good food from fertile fields and bulls and lotus bearing ponds are missed, Strong horses are not yoked to the chariots, People plunder, exploit and shed blood of each other, Brothers cheat and kill each other, Calamities rain on the society, like thunder bolts from the sky, or rain of blazing hot lava rocks.”

    Vedas point out that this situation is brought about by not understanding the role of women in inculcating right values in the society and by the unmindful neglect of the female of the species.

    Girl child starting from her birth, growing through infancy, adolescence, puberty and marriage, performs the role of continuing the human society by giving birth to new generations.

    Mother is the first teacher to cultivate sense for aesthetics to avoid ugliness in life and cultivate the right value system for the human society by proper family upbringing of the young ones. Vedas attribute this most important role assigned by nature to the female of the species.
    Rig Veda and Atharva Veda mention the deliberation of the divine forces on this subject, when female of the species was created. Role of females in society, duties of the society in development of the full potential of female talents, and finally the consequences of abrogation and neglect by the society of its duties towards the welfare of female, are the topics covered very exhaustively in Vedas. It is left to the learned audience to judge as to how relevant and erudite are these ideas, even in the light of modern sociology.
    It may be considered inappropriate but the truth of the matter is that this present state of our Indian society is that of a ‘TALIBANISED’ society. Is it not the hall mark of most Islamic nations in which girl child and female of the species is not accorded due respect and protection, and treated as very inferior? It may not be out of place to mention that according to Christian and Islamic scriptures females did not have a soul.
    From Vedas वेदों से
    On the conceived Role of Female in building Human Society
    1-.तेS वदन् प्रथमा ब्रह्मकिल्विषे S कूपार: सलिलो मातरिश्वा ! वीडुहरास्तप उग्रं मयोभूरापो देवी: प्रथमजा: ऋतस्य !! ऋ10/109/1, अथर्व 5/17/1
    “In the beginning three devataas viz. akoopaar, salilo and matarishwa, (Solar energy, the primordial soup and the moving winds laden with microbes) – that had taken part in creation of the physical humans, te awadan- deliberated among themselves. To brahmkilvishe – plan for preventing degradation of human society by Veeduharaastapugram – defeating the fires of strong dominating commandeering forces, of ugliness, violence, gross selfishness and over confidence uncivilized behavior, by mayobhoorapo dousing these fire with cool waters. For this prathamaaja devee first born female was conceived by ritasya – by God almighty’s wisdom.
    (Invincible Samson was cooled off by Delilah in bible) Vedas are in fact giving the same allegorical interpretation, but in a more comprehensive and scientific form, as follows.
    2- सोमो राजा प्रथमो ब्रह्मजायां पुनः प्रायच्छदहृणीयमानः ।
    अन्वर्तिता वरुणो मित्र आसीदग्निर्होता हस्तगृह्या निनाय॥ ऋ10-109-2, अथर्व 5-17-2
    सोमस्य जाया प्रथमं गन्धर्वस्तेऽपरः पतिः।
    तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः॥ अथर्व 14-1-3, ऋ 10-85-40
    सोमो ददद्‌ गन्धर्वाय गन्धर्वो ददग्नये।
    रयिं च पुत्रश्चादादग्निर्मह्यमथो इमाम्‌॥ अथर्व14-2-4, ऋ10-85-41
    These three Ved mantras also occurring in different places explain the same three stages in the development of the female temperament.
    In the beginning is what modern science refers to the age before formation of ‘the blood brain barrier’ in the children i.e. up to about 4 years age. According to our Shastras the girl child is under the guardianship of Soma.
    Vedas elaborate on Soma as god of intellect and poetically describe Soma being the first husband of the females during their infancy.
    (Modern science tells us that that DHA (Decosa Hexaenoic Acid) and EPA (Ecosa Pentaenoic Acid) are the two fatty acids that power the human brain in all its activities related to human faculties. DHA is particularly associated with eyesight. Both DHA and EPA are made in the human body from ALA the Omega 3 fatty acids.
    In young females capacity for conversion of dietary Omega 3 to DHA is nearly 20 higher and EPA is nearly three times higher than males. Thus it is the female of the species that has been given the extra responsibility to ensure good brains, eye sight, the intellectual strength for the human progeny.
    Nature has thus provided the females with a far superior role in building a human society than men, because to start with only sharp and farsighted brains ensure a sustainable happy society.
    This fact is borne out by the observation that in modern society not only in India but even in the Ivy leage colleges in USA, girls are regularly obtaining the academic laurels far ahead of boys. This is no different from Indian experience. Girls are seen to be snatching the top scholastic positions in all examinations in India.
    This is the scientific basis of the unique Vedic Culture that addresses the girl child as an object of veneration and the females to be accorded high position and treated with respect in society.
    In the second stage till the age of puberty around 12/13 years, during adolescence the girl child is possessed by Gandharvas.
    Gandharwas represents aesthetics, all which is beautiful, delicate, sensitive, empathic and virtuous in this world. In visuals the talents for appreciation of beauty in nature, arts, physical forms, and ability to replicate the same in paintings/sculptures and such visual art forms. In audiovisual areas gandharwas, would represent good sounds, music, dance forms and drama, good vocal abilities, creative writings. Sensitivity for harmonious relations and peace loving attitudes, delicacy, creativity are the gifts to humanity of the Gandhrwas. The girl child in her teens remains preoccupied with these artistic pursuits. These natural traits of females must be given full opportunities to develop. Females thus become the embodiment of these qualities for the human race. Poetically Vedas describe the Gandhrwas as the second husbands of the females.)
    In the third stage, with development of physical body functions, in Vedic language female body is as if afire with – the flesh gets stronger – by कामाग्नि.
    Female becomes ready for taking on her role of a wife by being married to a human being. And thus bring forth good progeny for progress and continuation of human society.
    3-हस्तेनैव ग्राह्यआधिरस्या ब्रह्मजायेयमिति चेदवोचन्‌ ।
    न दूताय प्रह्ये तस्थ एषा तथा राष्ट्रं गुपितं क्षत्रियस्य॥ ऋ 10-109-3अथर्व 5-17-3
    But it is also said that at this age to prevent the young females from being led astray, they require protective hand holding, just like a nation whose safety and security is ensured by the Kshatriyas.
    4-यामाहुस्तारकैषा विकेशीति दुच्छनां ग्राममवपद्यमानाम्‌ ।
    जाया वि दुनोति राष्ट्रं यत्र प्रापादि शश उल्कुषीमान्‌ ॥ अथर्व-5-17-4
    (It is at this stage here that this first Veda mantra is added by Atharwa Veda as a further elucidation of the subject.)

    Symbolized like unkempt hair of neglected deprived women, are the grown up undisciplined-unprincipled and ignorant females. When they bear children they propagate ignorance and lack of wise counsel to their young offspring. This brings to bear upon the society as a great scourge, like the destructive thunder bolts falling from the sky.
    5-ब्रह्मचारी चरति वेविषद्विषः स-देवानां भवत्येकमङ्‌गम्‌ ।
    तेन जायामन्वविदद्‌बृहस्पतिः सोमेन नीतां जुह्वं ने देवाः ॥
    ऋ 10-109-5 अथर्व 5-17-5
    Brahmcharis the young well educated learned youth have ability to take even the fallen women and bring them to flower, their hidden potential to bear good progeny for intellectual progress of the human race as originally the Gods had desired.
    6-देवा वा एतस्यामवदन्त पूर्वे सप्तऋषयस्तपसे ये निषेदुः ।
    भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधाति परमे व्योमन्‌ ॥
    On this subject, based on the observation and experience of the elders through Saptrishis –The seven observers.
    (SevenRishis are named Kashyap,Atri,Bharadwaj, Jamadagni, Gautam. The seven sensory organs two eyes, two ears, two nostrils and mouth are also described as representing these Seven Rishis) i.e. basically what could be called ‘media reports’, it was expressed that women who are led astray by kidnapping or enticing, bring to bear upon the society very heavy social calamities, and it is the duty of the media to highlight such issues.
    7- ये गर्भा अवपद्यन्ते जगद्‌ यच्चापलुप्यते।
    वीरा ये तृह्यन्ते मिथो ब्रह्मजाया हिनस्ति तान्‌॥ अथर्व 5-17-7
    Even female fetuses that are destroyed bring forth in the society an atmosphere of rampant violence where chivalrous, strong men start violence and fights among themselves. This is seen as the curse of female fetuses destroyed.

    8-उत यत्‌ पतयो दश स्त्रियाः पूर्वे अब्राह्मणाः।
    ब्रह्मा चे द्वस्तमग्रहीत्‌ स एव पतिरेकधा ॥ अथर्व-5-17-8
    But a fallen woman even if she has been exploited by tens of men, finally gets accepted in a proper marriage to a good virtuous man, she is rehabilitated as being married to one man.
    9-ब्राह्मण एव पतिर्न राजन्यो3 न वैश्यः।
    तत्‌ सूर्यः प्रब्रुवन्नेति पञ्चभ्यो मानवेभ्यः ॥ अथर्व 5-17-9
    Like the illuminating light of the sun on the entire earth, this fact should also be very well known in the world that all people must develop their intellect. Merely on the strength of acquiring a higher status of a ruler over men, or a big warrior or a big moneyed person in life, no body acquires the qualification to be a good parent to father a progeny by taking a wife.
    10-पुनर्वै देवा अददुः पुनर्मनुष्या उत । राजानः सत्यं कृण्वाना ब्रह्म जायां पुनर्ददुः ॥ ऋ 10-109-6 अथर्व 5-17-10
    In case of any female if kidnapped or exploited, it becomes the duty of the state to rescue her and rehabilitate her in the society with due respect.
    11-पुनर्दाय ब्रह्मजाया कृत्वी देवैर्निल्बिषम्‌ ।
    ऊर्जं पृथिव्या भक्तवायो रुगायमुपासते ॥ ऋ 10-109-7 अथर्व 5-17-11
    Such women are considered innocent of any crime, and if need arises their rehabilitation should be at state expense.
    12-नास्य जाया शतवाही कल्याणी तल्पमा शये ।
    यस्मिन राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-12
    Even the ruler protected/surrounded by hundreds of security force does not feel secure enough, to have a sound sleep in his chamber, in a Nation where females are commandeered/forced upon against their free will.
    13-न विकर्णः पृथुशिरास्तस्मिन्वेश्मनि जायते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-13
    That nation/society becomes deaf/ignorant to the voice of the people and no intellectual scholars grow, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    14-नास्य क्षत्ता निष्कग्रीवः सूनानामेत्यग्रतः ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-14
    Chivalrous strong men do not show up in nations, where females are commandeered /forced upon against their free will.
    15-नास्य श्वेतः कृष्णकर्णो धुरि युक्तो महीयते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-15
    By not being able to mount the horses in their chariots – to perform Aswamedh yagna – That nation/state loses face and influence in the world, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    16-नास्य क्षेत्रे पुष्करिणी नाण्डीकं जायते बिसम्‌ ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-16
    Water bodies do not sport lotus flowers and the lotus flowers do not bear seeds to propagate themselves, – The environment suffers, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    17-नास्मै पृश्नि वे दुहन्ति ये ऽस्या दोहमुपासते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-17
    Cows are no longer able to provide good quantities of milk, where females are commandeered /forced upon against their free will.
    18-नास्य धेनुः कल्याणी नानड्‌वान्त्सहते धुरम्‌ ।
    विजानिर्यत्र ब्राह्मणो रात्रिं वसति पापया ॥ अथर्व-5-17-18
    Neither the cows bring welfare to society nor oxen get yoked, and without active participation of the women in the society, men are given to crime in night life.

  16. कथित रूप से स्त्री की पूजा करने वाले देश में, स्त्री की हकीकत : –
    =========================================
    तीसरी बीबी की पीट पीट कर हत्या
    —————————————
    रायगढ़ (एनएनएस24) 10अगस्त 2010। रायगढ़ जिले में एक वृद्ध ने अपनी तीसरी पत्नी की हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। धर्मजयगढ़ पुलिस अधिकारियों ने आज बताया कि पिरिमार निवासी शिव कुमार सारथी (65) ने खाना नहीं बनाने को लेकर हुई कहा सुनी के बाद अपनी तीसरी पत्नी रानी की लाठी डण्डे से पीट -पीट कर हत्या कर दी।

    • Respected Nirankush Ji

      I am very sorry to say that Once again You have proved that You are totally biased against Bharaitiya culture and you can not tolerate the good things of Bharatiya culture. When I presented some positive things about Bharatiya Shastra, instead of commenting on my presented facts you cited an news where somebody killed his 3rd wife. I couldnot understand how it was related to my post. When you got nothing you wrote about a news item. I can also give some positive news about woman in India. But it will be out of context That is why I will not quote any positive news item.

      Actually this shows your mindset where You are not ready to listen anybody’s argument. You think You are right and rest of the readers who disagree with your view are wrong. When you don’t find argument you cite news items.
      I dont think You are appropriate person with whom One can debate.

      • आदरणीय श्री अरण्य कुमार जी,
        मैं आपकी अंग्रेजी में प्रदर्शित दोनों टिप्पणियों में से किसी के भी गुणवगुणों पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं करके, केवल इतना सा स्पष्ट करना जरूरी समझता हूँ कि आपने प्रथम टिप्पणी में आपने विचार अंग्रेजी में विस्तार से इस पोस्ट पर दि. १३.०८.१० को ०९.५२ एएम पर प्रस्तुत किये हंै, जबकि मेरी उक्त खबर पर आधारित टिप्पणी दि. १३.०८.१० को ०९.०३ एएम पर आपकी टिप्पणी से पूर्व में ही प्रस्तुत की जा चुकी थी। अत: इस तथ्य को आधार बनाकर आपने अपनी दूसरी टिप्पणी में मेरे विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से जो कुछ भी अंग्रेजी में लिखा है, वह कितना सही और, या गलत है, यदि आप निष्पक्ष और इंसाफ पसन्द हैं तो इसका निर्णय भी आप स्वयं ही करेंगे। मैं केवल ऐसी आशा ही कर सकता हूँ। धन्यवाद।

  17. अदभूत!
    इसे कहा जा सकता है तमाचा, वो भी सवेंधानिक तमाचा , शायद संसकिरती के झूठे पराकारों को कुछ समझ आये
    ………………………….. दीपा शर्मा

  18. स्वयं की आलोचना करनेवाला और अपनी आलोचना सुनने वाला तथा उसपर गंभीरता से सोच विचार करने वाला ही असल इंसान है ,बांकी सब ढोंगी है …

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