केजरीवाल सरकारः ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया

-डॉ. अरविंद कुमार सिंह-  kejriwal
दिल्ली में जिस वक्त अन्ना हजारे जी का आन्दोलन चल रहा था, उस वक्त मेरे जेहन में एक यक्ष प्रश्न उठता था। लाख माथा पच्ची करने के बावजूद उसका उत्तर मुझे नहीं मिलता था। जो उत्तर मुझे मिलता था, उस दिशा में जाते हुए अन्ना हजारे दिखायी नहीं देते थे। आइये पहले यक्ष प्रश्न की चर्चा करे – आखिर अन्ना का जनलोकपाल बिल संसद क्यों पारित करेगी? यदि संसद में एक अच्छी खासी संख्या में अपराधी पृष्ठभूमि के सांसद है तो वे क्यों जनलोकपाल बिल पारित होने देगें? यह तो वही बात हो गयी – यदि मैं आपसे कहूं अपने गर्दन को उतारने के लिये आप मुझे एक तेज धार की तलवार बनाकर दे, तो क्या आप मुझे वो तलवार बनाकर देंगे? शायद हरगिज नहीं। और वो सांसद तो हरगिज यह तलवार ( जनलोकपाल बिल ) बनाकर नहीं देंगे, जिन्हें पूरा यकीन है कि इसके पारित होते ही सबसे पहले उन्हीं की गर्दन उतरेगी। जबकि इस तरह का उदाहरण सिंगापुर में देखा जा सकता है, जहं इस तरह के बिल पारित होते ही आधे सांसद जेल की सलाखों के पीछे थे।
फिर सवाल उठता है ऐसे में यह आन्दोलन अपने अंजाम तक कैसे पहुंचता ? इसका उत्तर न तो अन्ना के पास था और ना ही देश के आवाम के पास। और जैसा की डर था संसद अन्ना के जनलोकपाल बिल को न पारित करने पर अड़ गयी। आन्दोलन आश्वासनों पर जाकर समाप्त हो गया। इस प्रश्न का उतर मेरे जेहन में आता तो जरूर था पर उसके पूर्ण होने में सन्देह नजर आता था। आइये थोड़ी चर्चा इस प्रश्न के उत्तर के सन्दर्भ में – जिसे गर्दन उतरने का खौफ न हो, उसे यह तलवार बनाकर देने में क्या हर्ज ? आइये इसे स्पष्ट करूं। अगर चुनाव में जनता ईमानदार व्यक्तियों को जिताकर संसद में भेजे तो उनके द्वारा इस जनलोकपाल बिल को पारित कराना आसान होगा, पर इस उत्तर के प्रतिउत्तर में एक दूसरा यक्ष प्रश्न जेहन में खड़ा हो जाता था। जाति-पाति तथा बिरादरी में बंटी जनता आखिर क्यों ईमानदार सांसदों को संसद में भेजेगी ? भरोसा खो चुकी राजनीति- आखिर भरोसे के साचे में कब ढलेगी ? आखिर वो कौन व्यक्ति होगा जिस पर देश भरोसा करेगा ? यह कुछ ऐसे प्रश्न थे जिनका कोई स्पष्ट उत्तर उस वक्त नहीं सुझता था।
ऐसे में यकायक अन्ना एवं अरविन्द केजरीवाल में मतभेद की सूचना मीडिया के माध्यम से मिलने लगी।अरविन्द जहां राजनीति में उतर कर व्यवस्था परिवर्तन को बदलने की दिशा में चलने की इच्छा व्यक्त कर रहे थे, वही अन्ना इसका विरोध कर रहे थे। आखिर दोनों के रास्ते अलग हो गये। दिल्ली विधान सभा के चुनाव में जनता ने 28 सीटें देकर केजरीवाल के सोच पर मोहर लगा दी।उधर अन्ना, तमाम कोशिशों के बावजूद जनलोकपाल बिल  पारित कराने में नाकामयाब रहे। अन्ना एक बार पुनः अनशन पर बैठे, स्थान बदला हुआ था, साथी बदले हुए थे। अनशन का परिणाम जल्द ही सामने आया। सरकार एवं विपक्ष द्वारा लोकपाल बिल पारित कर दिया गया।
लेकिन यह कदम चौकाने वाला था। कल तक जो सरकार और विपक्ष इसे पारित करने पर राजी नहीं थे, आज ऐसा क्या हो गया कि इसे आनन-फानन में पास कर दिया ? जो अन्ना कल तक सरकारी लोकपाल का विरोध कर रहे थे, आज वो खुश थे इसे पारित होने पर। आखिर ऐसा क्या हो गया ? आइये इसे समझने का प्रयास करते हैं। केजरीवाल आज की तारीख में एक राजनैतिक सच्चाई है। इस सच्चाई की आंच कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों को झुलसाने लगी। इस आंच को कम करना था। डर एक और भी था यदि लोकपाल को दिल्ली में लागू करने की पहल केजरीवाल करते तो उनका यह कदम उनका सियासी कद और बढ़ा देता। इस कद को छोटा करने और केजरीवाल की साख की आंच कम करने के लिये लोकपाल संसद में पारित कर दिया गया तथा उसकी सारी क्रेडिट अन्ना हजारे को दे दी गयी। यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा कि जो संसद कल तक अन्ना हजारे को पानी पी-पीकर कोस रही थी, वही संसद आज उनके सम्मान में कसीदे पढ़ रही थी। इसका रियेक्शन भी तत्काल दिखाई दिया। जहां अन्ना ने इसका स्वागत किया, वहीं केजरीवाल के शब्दों में – इस बिल के चलते एक चूहा भी जेल नहीं जायेगा, कहकर बिल के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया गया। अन्ना के आन्दोलन का प्रत्यक्षतः लाभ केजरीवाल को मिला। जनता ने 28 सीट देकर कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरोध में मुहर लगा दी। केजरीवाल को आम आदमी से खास आदमी में तब्दील कर दिया। यहां तक तो ऐसा लगा जैसे एक एक्शन फिल्म की पटकथा लिखी जा रही हो। कुछ नया होने वाला है, देश में कुछ ऐसा होगा जो कभी नहीं हुआ। और हुआ भी कुछ ऐसा ही ।
भ्रष्टाचार की सारी हदे तोड़ देने वाली कांग्रेस पार्टी, जनता द्वारा पूर्णतः नकार दिये जाने वाली कांग्रेस पार्टी आज फिर सत्ता के गलियारे में चर्चित हो उठी। यह अद्भुत नजारा दिल्ली में देखने को मिला, भ्रष्टाचार को मिटाने का दावा करने वाले, भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने की तैयारी करने वाले आज उन्हीं के बगलगीर दिखे। ईमानदारी की ईमारत को सत्ता सम्भालने के लिये भ्रष्टाचार की नींव की दरकार थी। दिल्ली की सरकार बन गयी पर विडम्बना देखिये कि दस सालों में भ्रष्टाचार का कीर्तिमान स्थापित करने वाली कांग्रेस पार्टी आज भी सत्ता की चाभी अपने पास रखने में सफल हो गयी। यह तो कुछ ऐसी ही मिसाल हुयी जैसे – चमड़े की रखवाली में कुत्ते की पहरेदारी है।
अरविन्द केजरीवाल जो कल तक कहते थे, हम कांग्रेस और भाजपा से न तो सर्मथन लेंगे और न ही सर्मथन देंगे। उनकी पहली बात आज गलत साबित है। यह जानते हुए कि हमारी सरकार दस दिनो के यात्रा के लिये भी कांग्रेस की मोहताज है तो फिर ऐसे में सरकार बनाने की क्या बाध्यता थी ? वह जानते थे कुछ ही महीने के बाद चुनाव अचार संहिता लागू हो जायेगी, सिवाय घोषणाओं के वो कुछ नहीं कर पायेंगे। ऐसे में सरकार बनाने की क्या बाध्यता थी ? उत्तर स्पष्ट है – फिलहाल तो यह सरकार सपनों की सौदागर है। यदि पुनः चुनाव हो जाता और खुदा-ना-खास्ता बीजेपी कहीं पूर्ण बहुमत पा जाती तो आप पार्टी का विधानसभा का ही नहीं लोकसभा का भी खेल बिगड़ जाता। कांग्रेस तो हाशिये पर है ही।
यही कारण था अप्रत्यक्ष रूप से दोनों ही पार्टी सता में आ गयी। अरविन्द केजरीवाल की लडाई कांग्रेस भाजपा से हटकर अब मात्र भाजपा विरोध तक सीमित रह गयी। आज तीन विकल्प देश के समक्ष है। राहुल, केजरीवाल तथा नरेन्द्र मोदी। राहुल तथा केजरीवाल को  अभी अपनी श्रेष्ठता साबित करना हैं। नरेन्द्र मोदी ने तीन बार अपनी श्रेष्ठता गुजरात में साबित की है। अपने विकास के ब्लू प्रिन्ट को हकीकत की जमीन पर उतारा है। अपनी प्रशासनिक क्षमता को प्रदर्शित किया है। वहीं दूसरी तरफ, इन दो शख्शियतों को अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिये अवसर की तलाश है।
राहुल की पार्टी दस सालों में कुछ नहीं कर पायी। यदि मैं ये कहूं वो इस दौड़ से पूर्णतः बाहर हैं तो गलत नहीं होगा। रही केजरीवाल की बात, तो यदि कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी तो सिर्फ यही कहा जायगा – ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया।
एक तरफ सपनों का सौदागर है तो दूसरी तरफ विकास का मसीहा है। यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा कि आने वाला वक्त किसे पंसद करता है। कभी देश के राष्ट्रपति कलाम साहब ने कहा था – सपने वे नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं, सपने वे, जो हमें सोने नहीं देते।

11 COMMENTS

  1. ==>राहुल, केजरीवाल तथा नरेन्द्र मोदी।

    ==> राहुल और केजरीवाल इन दोनों को, अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिये अवसर की तलाश है।”
    (१)और अभी कुछ ही दिन में तो “आप” आपस में गुर्रा रही है| (२) आगे आगे क्या होगा? अनुमान कीजिए| ==>पर बिना टिकट नौटंकी देखने को तैयार रहिए|
    (३)==> नरेन्द्र मोदी ने तीन बार अपनी श्रेष्ठता गुजरात में साबित की है। अपने विकास के ब्लू प्रिन्ट को हकीकत की जमीन पर उतारा है। अपनी प्रशासनिक क्षमता को प्रदर्शित किया है। वहीं दूसरी तरफ, इन दो शख्शियतों को अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिये अवसर की तलाश है।
    प्रामाणिकता से उत्तर दे सको तो पूछता हूँ|
    ==> एक ही प्रश्न: आप अनुभवी सर्जन से अपनी सर्जरी करवाओगे, या किसी नवसिखे झोला छाप से?
    आप झोला छाप से भी सर्जरी करवाने के लिए स्वतंत्र ही हो|
    और सामने से दूसरा प्रश्न कर के उत्तर टाल भी सकते हो।

  2. आप कारण गिनते रहिए मोदीजी पीएम बनकर रहेंगे upa को देख लिया और हवा है़

  3. सर जी,
    मै तो सिर्फ इतना जानता हूॅ – बुरा जो खोजन मै चला, मुझसे बुरा ना कोय। मेरी क्या विसात जो मै किसी की बुराई को इंगित कर सकूॅ। पहले अपनी बुराईया तो दूर कर लूॅ।
    आपका
    अरविन्द

  4. मोदी जी अच्छे नेता हैं, गुजरात का लोकायुक्त नकारा है तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं, गुजरात सरकार में भ्रष्ट और दागी मंत्री हैं तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं, जनलोकपाल पर मोदी जी कभी एक लफ़ज नहीं बोले तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं, गुजरात में आंगनबाड़ी के नाम से हवाला का कारोवार खूब होता है तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री सविंधान को तक पर रख कर जासूसी कराते हैं तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं, मोदी जी भ्रष्ट योदरपा को बीजेपी में शामिल करते हैं तो क्या हुआ , मोदी जी अच्छे नेता हैं!!!

  5. गलत साधन से कभी सही साध्य नहीं प्राप्त किया जा सकता. भ्रष्ट कांग्रेस की सहायता से भ्रष्टाचार नहीं मिटाया जा सकता. भगवान ने बुद्धि सबको दी है. तर्क-कुतर्क करने का अधिकार सबको है. लेकिन यह तर्क गले के नीचे उतरता ही नहीं कि केजरीवाल जो करें, वह सही और बाकी करें, तो भ्रष्टाचार. कांग्रेस ने यह स्वीकार कर लिया है कि उसकी हार निश्चित है. अब वह मोदी को रोकने के लिए प्रॉक्सी वार लड़ रही है. केजरीवाल बड़ी आसानी से रानी का मोहरा बन गए. आज की तारीख में लालू, मुलायम, मायावती, शरद पवार , नितीश और अरविंद केजरीवाल में कोई अंतर नहीं है.

  6. Soon after taking office with Congress support, Kejariwal changed his stance about his aligations on Sheila Dixit from being a highly corrupt person to not responsible for corruption!

    This was the result of the support taken fro m corrupt congress.

    • रमेश सेठ जी,आप गलत है.शीला दीक्षित या किसी अन्य भ्रष्टाचारी के विरुद्ध अरविन्द केजरीवाल या आम आदमी पार्टी के रवैये में कोई अंतर नहीं आया है. अरविन्द के पास अखबारों में छपी रिपोर्टं के आधार पर जो सामग्री है .एक तो वे उसके लिए सबल प्रमाण जुटा रहे हैं और दूसरे जनलोकायुक्त ला रहे है.उसका इन्तजार कीजिये आपको निराश नहीं होना पड़ेगा.

  7. आपके लेख की हर बात सही है, पर कांग्रेस से समर्थन मांगा नहीं गया था। केजरीवाल पर जनता व मीडिया ने इतना दबाव डाला था कि वो दिल्ली को दोबारा चुनाव मे भेजने से बचायें, वादे पूरे नहीं कर सकते इसलियें सरकार नहीं बना रहे वगैरह… आप को मालम है कि उनकी सरकार किसी भी दिन गिराई जा सकती है फिर भी वो अपनी नीतियों से समझौता नहीं करेंगे…. जितना समय उनके पास है उसमे यथासंभव कुछ करने का प्रयास करते रहेंगे।

    • मोदी पी एम बनने लायक नही, इसके 12 कारण पड़े – 1. गोधरा काण्ड…जो इसका पीछा अगले 10 सालों तक नही छोड़ेगा…चाहे कितनी सफाई दे ले. 2. फर्ज़ी एनकाउंटर…जो इसने अपने बचाव में करवाया था. 3. मल्लिका सारा भाई पर नकली केस दर्ज करवाया और बेचारी को राजस्थान तक भागना पड़ा. 4. गुजरात के प्रति व्यक्ति पर 23,163 का कर्ज़ चढ़ाया, विकास के नाम पर. 5 भुज में आये भूकंप की दान राशि जीन बेंकों में डलवाई, दिवालिया होगेए. 6. ज़मीन घोटाला, सस्ती जमीने बड़े घरानो में बांटी गयी. 7. कुपोषण पर असफल…बेतुके बयान बाज़ी. 8. अपने मंचो पर मुसलमानो का अपमान करना. 9. गठबंधन में और अपनी ही पार्टी में अलोकप्रिय होना. 10. आँठवे नंबर के गुजरात के विकास को बड़ा-चड़ा कर पी एम बनने का भरसक और नाकामयाब प्रयास करना. 11. लोकयुक्त को अपने दायरे मे रख इए जिससे इसकी कोई जांच ना हो सके. 12. मोदी को अमेरिका वीज़ा नही दे रहा पता है क्यो, क्योकि अमेरिका दंगे के आरोपी तक को अपने देश मे घुसने नही देता … क्या आप इसे पी एम बनाना चाहेंगे

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