तलाश

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यहाँ भीड़ मे हर कोई,

इक पहचान ढूँढता है।

जैसे परीक्षा परिणाम मे कोई,

अपना नाम ढूँढता है।

नाम जो मिल जाये तो,

फिर काम ढूँढता है,

काम मिल जाये तो,

आराम ढूँता है।

आराम मिल गया तो,

सुख शाँति ढूढता है,

सुख शाँति न मिले तो,

भगवान ढूँढ़ता है!

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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