राजनीति

निष्‍पक्ष व पारदर्शी चुनाव के लिए आवश्‍यक है ईवीएम का विश्‍वसनीय होना

चुनाव आयोग की हीरक जयंती जयंती पर विशेष

-अशोक बजाज

भारत में निर्वाचन आयोग अपनी स्‍थापना के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हीरक जयंती मना रहा है। इस तारतम्‍य में राज्‍य की राजधानियों में फोटो प्रदर्शनी लगाई जा रही है। प्रदर्शनी में चुनाव आयोग की गतिविधियों को दर्शाने वाले विहंगम एवं दुर्लभ चित्र लगे हैं, जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है। चित्रों में दिखाया गया है कि मतदान दल को मतदान कराने के लिए दुर्गम रास्तों पहाडि़यों व बर्फीले स्थानों पर जाने के लिए किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। देश में आज भी ऐसे स्थान है जहां पैदल जाना मुश्किल है लेकिन मतदान दल ऊंट या हाथी जैसे साधन का उपयोग करते है। गुजरात में एक स्थान हैं जहां केवल एक ही मतदाता है उसी एक मतदाता के लिए मतदान दल को मतदान के एक दिन पूर्व से ड्यूटी करनी पड़ती हैं।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश हैं। विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली माना जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में 18 वर्ष या उससे अधिक के हर व्यक्ति को गुप्त मतदान के माध्यम से अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हैं। इस व्यवस्था में प्रत्येक मतदाता को केवल एक व्होट देने का अधिकार है। चाहे वह व्यक्ति गरीब से गरीब हो या चाहे देश का राष्ट्रपति हो सबको केवल एक वोट का अधिकार हैं। इस मामले में आम मतदाता और सर्वाधिकार सम्पन्न राष्ट्रपति का अधिकार समान हैं।

देश में पहले राजतांत्रिक व्यवस्था थी। भारत अनेक राजवाड़ों में बंटा था। पूरा शासन तंत्र राजाओं-महाराजाओं एवं सामंतों के इशारे पर चलता था। यदि राजा नहीं रहा तो शासन की बागडोर उसके उत्तराधिकारी के हांथ में आ जाती थी। इसलिए कहा जाता हैं कि राजा पहले रानी के पेट से निकलता था अब पेटी से निकलता है। पेटी से आशय मतपेटी से है। मतदान के लिए अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ईवीएम का उपयोग होने लगा है। बटन दबाओं राजा निकल आता है। राजा चुनना अब जितना आसान हो गया है उतना ही इससे रिस्क बढ गया है। लोग पिछले कुछ वर्षो से ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। संचार क्रांति के इस युग में इलेट्रानिक उपकरणो से छेडछाड़ करके आसानी से परिणाम को बदला जा सकता है। ईवीएम में वाई.फाई का इस्तेमाल होता है यदि बैटरी बंद भी हो जाये तो प्रोग्राम को परिवर्तित किया जा सकता हैं।

विद्वानों एंव सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने समय समय पर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के मॉडलों का प्रयोग करके यह साबित कर दिया है कि इन मशीनों को आसानी से हैक किया जा सकता है केवल बीप की आवाज से ही यह स्पष्ट नहीं हो सकता कि वोट दिया जा चुका है। यदि चुनाव अधिकारी निष्पक्ष नहीं हुआ तो वह नाम व चिन्ह लोड करते समय भी गड़बडी़ कर सकता है। हैकर्स इस बात को प्रमाणित कर चुके है कि मशीन की प्रोग्रामिंग को गलत तरीके से सेटिंग करके अन्य उम्मीदवारों के मत को किसी एक खास उम्मीदवार के खाते डाला जा सकता है। पहले पहल तो ईवीएम का उपयोग ट्रायल के तौर पर सीमित स्थानों में किया गया था इसलिए ज्यादा हो हल्ला नहीं मचा लेकिन अब तो व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा है। इंजीनियरों की सहायता से भविष्य में इन दोषों को दूर करने का उपाय करना होगा। चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए इसका पूरी तरह निष्पक्ष व पारदर्शी होनी आवश्यक है अन्यथा जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जायेगा।