कविता

पिता

विपिन किशोर सिन्हा

वह तुम्हारा पिता ही है जिसने —

तुन्हें अपनी बाहों में उठाकर हृदय से लगाया था,

जब तुम इस पृथ्वी पर आए थे;

उंगली पकड़ाकर चलना सिखाया था,

जब तुम लड़खड़ाए थे.

 

वही है वह, जो सदा तुम्हें प्रोत्साहित करता है,

तुम्हारे सारे सत्प्रयासों को दिल से सराहता है,

कोई भी लक्ष्य जब तुम पाते हो,

खुश होता है, मंद-मंद मुस्काता है.

 

बाल मन – जब कोई झटका लगता है, उदास हो जाते हो,

उन क्षणों में तुन्हें मुस्कुराने की प्रेरणा देता है,

गालों पर लुढ़क आए अश्रुकणों को पोंछ,

पेट में गुदगुदी लगा हंसा देता है.

 

 

तुम्हारी कभी खत्म न होनेवाली शंकाएं,

उससे बात करते ही दूर भाग जाती हैं,

तुम्हारे तरह-तरह के प्रश्न —

धैर्यपूर्वक सुनता है,

समाधान निकालता है,

मार्गदर्शन करता है,

आगे बढ़ने की हिम्मत अनायास आ जाती है.

 

तुम्हारी छोटी उपलब्धि पर भी,

उसकी आंखें चमक जाती हैं,

आगे तुम बढ़ते हो,

छाती चौड़ी उसकी हो जाती है.

 

बार-बार मां की तरह,

सीने से नहीं लगाता है,

वात्सल्य, स्नेह और मधुर भाव,

कोशिश कर छुपाता है.

 

समय के प्रवाह में,

जब स्वयं पिता बन जाओगे,

कृत्रिम कठोरता का राज,

स्वयं समझ जाओगे.

फादर्स डे, (२१-०६-२०११) के अवसर पर विशेष