अंतत: संगठित अपराधी गिरोह में तब्दील हुआ नक्सली आंदोलन

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naxal-cadres_ap_0नक्सलवादी अपने आप को वनवासियों का मसीहा बताते हैं। उनका दावा है कि वे वनवासियों की भलाई के लिए कार्य करते हैं। लेकिन यह उनका वास्तविक रुप नहीं है। वास्तविकता कुछ और ही है। अब यह किसी से छिपा नहीं है। नक्सलवादियों के बर्बर और अमानवीय चेहरे को सभी ने देखा है। नक्सलवाद पर नजर रखने वाले लोग जानते हैं कि वे इसके माध्यम से अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं। उनकी विचारधारा से असहमत लोगों की सबके सामने गला काट कर हत्या कर दी जाती हैं। नक्सलवादियों का सार्वजनिक हत्या करने का एकमात्र उद्देश्य होता है कि भविष्य में कोई भी उनकी कार्यपद्धति पर उंगुली उठाने से पहले सोचे। यहां तक कि अपने इलाके में किसी प्रकार का कोई विकास का कार्य नहीं होने देते, उन्हें इस बात की जानकारी है कि अगर विकास का कार्य हो जाएगा तब उनके साथ कौन आयेगा। इसलिए विकास कार्य को रोकना उनकी प्राथमिकता रहती है।

नक्सलवादियों में एक अजीब प्रकार की बिडंबना देखी जा सकती है। नक्सलवादी जब किसी इलाके में घुसपैठ करते हैं तो सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हैं। भ्रष्टाचार का विरोध किया जाना सर्वथा उचित है। लेकिन नक्सलवादी सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल रहेगांववासियों की सहानुभूति प्राप्त करते हैं लेकिन एक बार उस इलाके में शक्तिशाली बन जाने के बाद बंदूक की नोंक पर स्वयं भ्रष्टाचार करने लगते हैं। सरकारी अधिकारी, ठेकेदारों व नेताओं से पैसे लेते हैं। दरअसल कहा जा सकता है कि नक्सलवादियों का तंत्र सर्वाधिक भ्रष्ट है। नक्सलवादी अपने प्रभावित इलाको में सभी से हफ्ता वसूलते हैं। चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो, ठेकेदार हो, दुकानदार हो या फिर आम किसान। किसको कितना देना है यह पहले से तय रहता है। छत्तीसगढ का अविभाज्य बस्तर हो या फिर ओडिशा का अविभाज्य कोरापुट जिला हो, सभी इलाकों में यह चीज देखी जा सकती है। इसके बारे में नक्सलवाद पर नजर रखने वाले लोगों को जानकारी है।

अभी हाल ही में ओडिशा में नक्सलियों का एक और असली चेहरा फिर सामने आया है। इसके बारे में अभी तक काफी कम लोगों को जानकारी है। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों के निशाने पर वनवासी बालक व बालिकाओं के लिए चल रहे कन्याश्रम व सेवाश्रम व अन्य विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में बच्चों के लिए बन रहे भोजन व अन्य सामग्रियों में से वे अपना हिस्सा ले रहे हैं। इस संबंध में राज्य सरकार को हाल ही में रिपोर्ट प्राप्त हुई है।

इसके अनुसार नक्सल प्रभावित इलाकों के विद्यालयों में नक्सली न सिर्फ चावल व दाल ले रहे हैं बल्कि कई बार पके हुए भोजन भी ले रहे हैं। नक्सलियों के भय से शिक्षक भी इस बारे में कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। विद्यालय के शिक्षक पुलिस में शिकायत नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षा विभाग के स्थानीय अधिकारियों को इस बारे में जानकारी होने के बावजूद वे भी इस मामले में चुप्प हैं। यह घटना खास कर वनवासी बहुल मालकानगिरी, कोरापुट, रायगडा, नवरंगपुर जिले में हो रही है।

पूरे राज्य में विभिन्न सरकारी आवासीय विद्यालयों में 3 लाख 26 हजार अनुसूचित जाति तथा जनजाति वर्ग की छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं। इनके लिए सरकार द्वारा छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके तहत प्रति छात्र को 500 रुपये प्रति माह तथा छात्राओं को 530 रुपये प्रति माह प्रदान किया जाता है। इस पैसे को किस तरह से खर्च किया जाएगा, इसके लिए भी सरकार ने दिशा निर्देश बनाया है। इसके तहत छात्र-छात्राओं को भोजन में प्रतिदिन 500 ग्राम चावल, 80 ग्राम दाल, 266 ग्राम सब्जी, 30 ग्राम तेल देने का प्रावधान है। इसके अलावा नमक, ईंधन के लिए प्रति माह 25 रुपये,अल्पाहार के लिए प्रतिदिन 2 रुपये के हिसाब से महीने में 60 रुपये का प्रावधान रखा गया है। मिट्टी के तेल, दवाई व पोषाक के लिए महीने में 50 रुपये देने का प्रावधान है। इसके अलावा छात्र को जेब खर्च के रुप में 85 रुपये प्रतिमाह तथा छात्राओं को 115 रुपये प्रति माह दिया जा रहा है।

शिक्षा विभाग के वरि ष्ठ अधिकारियों के अनुसार नक्सलियों ने इन विद्यालयों के प्रधानाचार्य को फोन कर भोजन सामग्री में उनका हिस्सा तय करने के लिए कहा है। इसके तहत एक निश्चित मात्रा में दाल, चावल वह प्रति माह इन विद्यालयों से ले जाते हैं। कुछ स्थानों पर नक्सलियों ने पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानाचार्यों से कहा है। इसके तहत रात के सात बजे तक इन छात्रावासों में रहने वाले छात्र-छात्राओं को भोजन करवाया जाता है और उसके बाद उन्हें कमरे में बंद कर दिया जाता है। रात के दस बजे के आस पास नक्सली इन विद्यालयों में आ कर भोजन करते हैं। जिस कक्ष में ये नक्सली भोजन करते हैं वहां किसी शिक्षक या छात्र को जाने की अनुमति नहीं होती। नक्सलियों के भोजन की व्यवस्था शिक्षकों द्वारा छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली जेब खर्च के लिए राशि में कटौती करके की जाती है। स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि कुछ विद्यालयों में तीन बार भोजन देने के बजाय दो बार भोजन दिया जा रहा है।

नक्सलवादी आंदोलन वर्तमान में एक हथियारबंद गिरोह का रुप ले चुका है। जैसे कुछ डाकू हथियारों के बल पर साधारण लोगों को लूटते हैं, वैसे ही नक्सलवादियों का काम धमका कर लूटना मात्र रह गया है। अंतर केवल यह है कि यह सब कुछ विचारधारा के नाम पर किया जाता हैं। एक ऐसी विचारधार जिसके दर्शन जमीन पर नहीं होते। डाकुओं, माफियाओं और नक्सलवादियों में कोई अंतर नहीं रह गया है। इसके अतिरिक्‍त नक्सलवादी लोगों से पैसे लेकर किसी की भी हत्या करते हैं। पिछले दिन ओडिशा में ही इस प्रकार का एक उदाहरण देखा गया जब वनवासी क्षेत्र में चार दशकों से कार्य कर रहे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की गई।

सर्वहारा की बात करते-करते नक्सलवादी सर्वहारा के थाली से भी हिस्सा लेने लगे हैं। वनवासियों का उत्थान करने का दावा करते करते नक्सलवादी अब भूखे वनवासी बच्चों के थलियों में से हिस्सा लेने लगे हैं। इसे त्रासदी कहना चाहिए कि जो आंदोलन वर्ग संघर्ष को आधार बना कर स्वतंत्रता और समानता के सुनहरे सपनों को साकार करने के लिए लिए चला था वह अंतत: अपराधियों के एक ऐसे गिरोह में तब्दील हो गया है जिनके लिए वर्ग संघर्ष का लक्ष्य केवल शोषण करना और अपने सुख सुविधाओं के लिए अपराधियों की तरह धन ऐंठना मात्र रह गया है।

-समन्वय नंद

12 COMMENTS

  1. शब्दशः सहमत हूँ आपसे…बहुत बहुत सही लिखा है आपने…सौ पैसे सही…

    विचारधारा के नाम पर क्षद्म डकैतों,हत्यारों का समूह है यह…इनमे और खूंखार तालिबानियों
    में नाम मात्र का फर्क बच गया है..बल्कि कहा जाय कि कई मामलों में वे इनसे बेहतर हैं तो कोई अतिशियोक्ति न होगी…तालिबानी कम से कम पैसे लेकर हत्याएं तो नहीं करते…

    विकास के कट्टर विरोधी ऐसे तत्वों को कठोरता से कुचल देना चाहिए सरकार को….लेकिन क्या कहें, जब राजनेता ही इनका सदुपयोग अपने हित के लिए करते हैं, तो उनपर वार कैसे करेंगे….हाँ दिखावे के लिए छोटे मोटे लोगों को पकड़ /मरवा अपनी खाना पूर्ती करते हैं.

  2. समन्वय आप सॆ मॆरा परिचय पुराना हॆ ऒर मैनॆ हमॆशा आपकॆ दिल मॆ वनवासियऒ कॆ लियॆ दर्द का ऎहसास किया हॆ.आपनॆ यहा भी वनवसासियॊ की परॆशानियॊ कॆ साथ हॊ रहॆ अत्याचार का कच्चा चित्ता खॊला हॆ. यॆ जानकर हमारॆ अन्द्र् कि भावनायॆ तॊ जागती हॆ लॆकिन सरकारी तन्त्र पता नही कब जगॆगा

  3. Jab samshad me apradhi pahunch ra he hain our desh me gundo our mafiao ka pratkha raj ho telgi jaise kand ho rahe hon our Boforse jaise ghotale leagl hora he hon our jab desh me vote our kurshi ki hi ladai hai to naxal jaisi snmashya ka samadhan kaise hoga yah to badha ta hi jaye ga?

  4. ये बेहद ही शर्म कि बात है कि मुठी भर गुंडों (हमारी थल , जल , और वायु सेना के आगे ये मुठी भर ही है ) से डरकर उड़ीसा सरकार उन्हें सेवा आश्रम और कन्या आश्रम में बैठा -बैठा कर खाना खिला रही है ! मैं यहाँ कमल शर्मा जी के विचारो से पूर्णतः सहमत हू कि इन गुंडों को देखते ही गोली मरने के आदेश होने चाहिए! जो सरकार के भ्रष्टाचार के नाम पर अपनी दुकान लगाने में लगे रहते है!
    आपके इस लेख के लिए आपको बधाई देते हुए नाक्सल्वादियो का असली चेहरा दिखाने के लिए आपको धन्यावद देती हू

    – आरती शर्मा

  5. Dear Sir
    Your article In Naxalite Movement is really providing the very facts of reality.Hence appropriate action (not polic) at the Govt. level is the need of the hour to tackle.
    Thanks

  6. Jab sardar Patel our Lalbahadur Sastri jaise log mare ja sakte hain bechare naxali youn ko hi apradhi kahana ka han tak uchit hai? Lalu raj our chara ghotala, fake encounter yita di se kya pramanit ho ta hai?

  7. नक्‍सलवाद को जो लोग विचार बता रहे हैं वे ठाले बैठे लोगों के लिए बकर बकर करने का मसला है। ये सब अब लोकल गुंडे हैं और इनको देखते ही गोली मारने के आदेश होने चाहिए। ये लोग पुलिस वालों को मार देते हैं अधिकारियों को मार देते हैं…क्‍या ये पहले पता लगाते हैं जो आदमी पुलिस में है या कोई अधिकारी है उसके मरने के बाद उसके घर का क्‍या होगा। वह कोई सरकार तो है नहीं वह तो एक नुमाइंदा है और अपना कार्य कर रहा है पेट भरने के लिए लेकिन इन गुंडों को यह समझ में नहीं आता। पूछिए जितने पुलिस वाले मरे है आज तक देश में उनके घरों का हाल क्‍या है। नक्‍सलवाद के समर्थक इस दर्द को समझ नहीं पाते। कोई गरीब होकर नौकरी ढूढंता पुलिस में जा पहुंचा तो इनका दुशमन हो गया। मानवाधिकार और ऐसी विचारधारा के नाम पर किसी को भी ये मार दे और कोई इनके खिलाफ नहीं बोलता। शूट करो इन गुंडों को।

  8. हमारी सरकार के ध्‍यान देने योग्‍य है, हर प्रकार के आंतकवाद से हमारा देश कमजोर हो रहा है, आंतकवाद से निपटने के बहुत से उपाय होते हैं पर उन्‍हें अपनाये कौन,
    कशमीरी आंतकवाद के लिये सरकार ने DD Urdu चेनल आरंभ किया था की उनकी भाषा में ही उनको समझाया जायेगा पर उर्दू दुश्‍मनों ने सरकार को इतना मजबूर कर रखा है कि वह इसे अपने ही किसी कमरे में प्रसारण कर लेती है जिससे हिन्‍दी वाले भी खुश, उर्दू वाले भी खुश उनको सिरयिल बनाने के पेसे मिल जाते हैं, आंतकवादी भी खुश उन्‍हें किसी ने समझाया ही नहीं उस भाषा में जिसे वह जानते थे, बस हम तुम चीखते चिल्‍लाते रहते हैं,
    लेकिन भाई उम्‍मीद का दामन नहीं छोडना चाहिये,
    अच्‍छा लेख बधाई

  9. महॊदय समन्वय नन्द् जी, मुझॆ लगता है कि आप् छद्म् नक्सलियॊ कॆ बारॆ मॆ बात् कर् रहॆ है / नक्सल्वाद् ऎक् विचार है ना कि हथियार बन्द् लॊगॊ का समूह् /

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