
धर्म की छत तले अधर्म का कैक्टस पले,
जातिवाद का कहर और जिहाद का ज़हर
चखकर आज कबीर की वाणी मुख हो गई,
ना जाने कबीर की कलम कहांँ खो गई।
ना जाने कबीर की कलम कहांँ खो गई….
नारी निर्मला की दशा निम्न से निम्नतर हो गई
निर्मला के आँसू रीते नहीं कि वह कब हो गई
जालिमों का शिकार और बन गई निर्भया,
देखकर प्रेमचंद का मन भी सिसकता होगा
न जाने मेरी कलम कहांँ खो गई सोचता होगा
न जाने मेरी कलम कहांँ खो गई सोचता होगा.
आज़ाद भारत में हो रहे गरीबों के सपने कैद
फाइलों में दौड़ते कागज़ी घोड़े देख
धूमिल का मन आज भी सड़क से संसद तक गश्त लगाता होगा
कहांँ खो गई मेरी कलम हुंँकार उठाता होगा
कहांँ खो गई मेरी कलम हुँकार उठाता होगा
असहाय कृषकों को कष्ट से कराहता देख
राजनीति में वोट बैंक का बनता मुहरा देख
दिनकर की कलम ने भी सोचा होगा आज कि
मैं किसकी जय बोलूँ? किसीकी जय बोलूँ
यदि एक बार फिर हो जाए दिनकर उदय तो आज निश्चित ही इन सब की पोल मैं खोलूँ।
आज निश्चित है इन सब की पोल मैं खोलूँ।
आरक्षण की दौड़ में भागते सब भले चंगे
प्रतिस्पर्धा की होड़ में अवसरवादी कराते दंगे
इनमें दब गई गणेश शंकर विद्यार्थी की आवाज़
हांँ वे खोजते होंगे कहांँ गई मेरी कलम आज?
हांँ वे खोजते होंगे कहांँ गई मेरी कलम आज?
खोई कलम को तू खोज ले
नवीनता की स्याही सजा ले
कलम की ताकत को जगा ले
साहित्यकारों को सादर नमन कर
फिर एक नया राष्ट्र सृजन कर
फिर एक नया राष्ट्र सृजन कर……