पचास लाख इराकियों की हत्या ग्लोबल मीडिया चुप क्यों?

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

इराक में इन दिनों युद्ध चल रहा है, इस युद्ध को 18 साल से ज्यादा समय हो गया है। अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्रों की ओर से इराकी जनता पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। हमलावर सेनाओं ने अवैध रूप से पूरे इराक पर कब्जा किया हुआ है। आम जनता का जीवन पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने और जनसंहारक अस्त्रों की खोज करने नाम पर निकली हमलावर सेनाएं सद्दाम और उसके परिवार के सफाए के बाद भी अभी तक वापस अपने देशों की ओर नहीं लौटी हैं। ग्लोबल मीडिया जो कल तक सद्दाम का भयावह चेहरा पेश कर रहा था उसने हमलावर सेनाओं के हाथों हुई भीषण तबाही की खबरें देनी बंद कर दी हैं।

इराक में जो कुछ घट रहा है वह मानव सभ्यता के इतिहास की विरल अमानवीय घटना है। इराक के तेल के कुओं पर हमलावर सेनाओं का कब्जा है और आम राजनीतिक भाषा में कहें तो इराक की नागरिकों की गुलामों से भी बदतर अवस्था कर दी गयी है। मध्य-पूर्व में इराक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था, जहां औरतों को व्यापक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इराक की आम जनता खुशहाली की जिंदगी गुजार रही थी और सामान्य जीवन में पूर्ण शांति थी।

सीनियर बुश के शासनकाल में सद्दाम हुसैन को नष्ट करने और कुवैत से इराक का कब्जा हटाने के बहाने से हमलावर सेनाओं के जो हमले आरंभ हुए थे वे अभी भी जारी हैं। सद्दाम हुसैन और इराकी प्रशासन के खिलाफ अमेरिका ने झूठे आरोप लगाए और विश्वभर के मीडिया से उसका अहर्निश प्रचार किया।

तरह-तरह के बहानों के जरिए इराक पर पहले आर्थिक पाबंदी लगायी गयी बाद में कुवैत पर इराक के अवैध कब्जे को हटाने के बहाने हमला किया गया और इस समूची प्रक्रिया ने इराक जैसे सम्पन्न संप्रभु राष्ट्र की संप्रभुता को सरेआम रौंदते हुए हमलावर सेनाओं ने अपने कब्जे में ले लिया।

विगत 18 सालों में अमेरिकी पाबंदियों और अमरीका और उसके मित्र देशों की सेना के अवैध कब्जे में इराक का समूचा चेहरा ही बदल गया है। हमलावर सेनाओं की कार्रवाईयों से 50 लाख से ज्यादा इराकी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं,लाखों विस्थापित हुए हैं, हजारों को बगैर कारण बताए जेलों में बंद कर दिया गया है।

विचार करने की बात यह है कि ग्लोबल मीडिया और भारत का कारपोरेट मीडिया इराक की इतनी व्यापक तबाही देखकर भी चुप क्यों है?

एक जमाना था जब सद्दाम के द्वारा मानवाधिकारों के हनन की खबरों को देने के लिए रूप में मीडिया के लोग खास करके टीवी चैनलों के लोग बगदाद में डेरा लगाए हुए थे लेकिन सद्दाम हुसैन के मारे जाने और हमलावर सेनाओं के कब्जे में इराक के आते ही ये सभी चैनल धीरेधीरे इराक को छोड़कर चले आए और यह मान लिया गया कि हमलावर सेनाओं के शासन में इराकी जनता के मानवाधिकार पूर्ण सुरक्षित हैं। सच यह नहीं है।

ग्लोबल मीडिया और भारत के कारपोरेट मीडिया ने हमलावर सेनाओं के सहायक के रूप में अब तक काम किया है। हमलावर सेनाओं के मान-सम्मान की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। 50 लाख इराकियों के मारे जाने पर भी कारपोरेट मीडिया के तथाकथित सत्यप्रेमी समाचार संपादकों को इराक की तबाही को अभी तक प्रमुख एजेंडा बनाने की याद नहीं आयी है।

इराक के संदर्भ में कारपोरेट मीडिया जनरक्षक नहीं जनभक्षक नजर आता है। अमेरिकी मीडिया और उनके भारतीय पिछलग्गू टीवी चैनलों में इराक का नियमित कवरेज क्यों गायब हो गया? यह सवाल प्रत्येक चैनल वाले से पूछना चाहिए। बाजार में ऐसी किताबें प्रचलन में हैं जिनमें इराक युद्ध में अमेरिकियों की कैसे मदद की गई। अमेरिकी शासक कितने भले और सभ्य होते हैं। इसका खूब प्रचार किया जा रहा है।

सद्दाम हुसैन को नष्ट करके जो लोग विजय दर्प में डूबे हुए हैं उन्हें यह जबाब देना होगा कि सद्दाम को सबक सिखाने कि इतनी बड़ी कीमत इराक की जनता क्यों दे रही है?

मीडिया में 9/11 के पीडितों को लेकर जितना प्रचार किया गया उसकी तुलना में सहस्रांश भी इराकी जनता की पीड़ा और कष्टों के बारे में नहीं बताया गया। इराक की जनता के प्रति कारपोरेट मीडिया का यह उपेक्षा भाव सोची समझी योजना का हिस्सा है, इसका प्रधान लक्ष्य है विश्व जनमत के दिलोदिमाग से इराकी जनता के मानवाधिकार हनन की धो-पोंछकर सफाई करना।

इराक के प्रसंग में मूल समस्या यह नहीं है कि कौन सही है या था। बल्कि बुनियादी समस्या है कि एक संप्रभु राष्ट्र पर अमेरिका का अवैध कब्जा कैसे हटाया जाए? आज इराक में चारों ओर सेना है, प्रतिवादी जत्थे हैं और सिर्फ खून-खराबा है। शांति और मानवाधिकारों की स्थापना के नाम पर आयी अमेरिकी सेना ने समूचे इराक को बम और बारूद और खून के ढ़ेर में बदल दिया है।

इराक में किसी के पास कोई अधिकार नहीं हैं। लोकतंत्र के नाम पर पाखंड चल रहा है। अमेरिका में रहने वाले आप्रवासी इराकियों की कठपुतली सरकार काम कर रही है और इस सरकार के पास में भी कोई अधिकार नहीं हैं ,इराकी प्रशासन का असल बागडोर सीआईए और युद्ध उद्योग के मालिकों के हाथों में है।

संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी कमिशनर के द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि युद्ध के कारण इराक के 24 मिलियन लोग शरणार्थी बना दिए गए हैं। यह आंकड़ा 30मई 2010 का है। 50 लाख लोगों को घरविहीन कर दिया गया है। ये लोग बेहद खराब अमानवीय श्थितियों में टेंट में रह रहे हैं। ये लोग जहां रह रहे हैं वहां पर पीने का साफ पानी नहीं है, शौचालय नहीं हैं। बिजली नहीं है। इनमें से ज्यादातर लोग रेल लाइनों और पुलों के किनारे पड़े हुए हैं।

तकरीबन 2-3 मिलियन इराकी शरणार्थी सीरिया के शरणार्थी शिविरों में नारकीय अवस्था में रह रहे हैं। एक जमाना था इराक में शिक्षित मध्यवर्ग की मध्यपूर्व के देशों में सबसे बड़ी शिक्षित आबादी थी आज इराक का मध्यवर्ग पूरी नष्ट हो गया है। इराकी औरतों को अमेरिकियों की तरफ से जबर्दस्ती वेश्यावृत्ति के धंधे में ठेला जा रहा है। इराकी बच्चों को बाल मजदूरों के काम में ठेलकर भयानक शोषण किया जा रहा है। इराक में युद्ध से मरने वालों की संख्या चौंकाने वाली है। इतनी बड़ी मात्रा में हिटलर ने भी जर्मनी में यहूदियों को नहीं मारा था। जिन लोगों का हिटलर के हत्याकांड और जनसंहार को देखकर खून खोलता है उनका खून इराकियों की मौत पर ठंड़ा क्यों है? वे इसका प्रतिवाद क्यों नहीं करते?

(चित्र परिचय- इराकी युद्ध के प्रतिवाद में बनायी कलाकृति)

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