कविता विविधा

उड़ान

flyकोई बता दे मुझे मेरी पहचान क्या है

हूँ दीया कि बाती, या फिर उसकी

पेंदी का अंधकार, हूँ तिलक उनकी ललाट पर

या बस म्यान में औंधी तलवार…

है आज द्वंद उठी, आंधी सवालों की

एक हूक थी दबी जो अब मार रही चित्कार…

हूँ कलश पल्लव से ढ़की, या बस चरणोदक

या फिर उनके गिरमल हार से झड़ चुकी पुष्पक

है मातृत्व अंदर छुपा, स्त्रीत्व से भरी

हूँ ममतामयी, यौवन से कभी मदमस्त भी

मन निर्मल है मेरा, छुपा है प्रेम अथाह

जो चाहत हो किसी की, परिपूर्ण हूँ मैं…

अट्ठाहस ना कर मर्दानगी पर, तुमने वो रुप अभी देखा कहाँ

खुद भीग कर पसीने से तू जो मेरे आंसू बटोर रहा…

ये पहर तेरी ख़िदमत में तो क्या वो भोर मेरा होगा…

गढ़ सकती हूँ मैं संसार नया मैं सृजनी हूँ,संचाली भी

कहीं तो सवेरा होगा…माथे पर लगी इस लाल

दाग का बस पर्याय है तू…परमेश्वर कहूँ तुझे कैसे

मेरे लिए तो अभिशाप है तू, सिरमौर नहीं

बस एक ठौर है तू , हूँ उजाड़ सी बिना अधिकार के मैं

लाज की घूंघट ओढ़ कब तक, झुकूँ मैं तेरे सामने…

मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही बस अब नहीं…

आ देख मुझे हो सके तो रोक ले छन-छन पायलों की

सरगम धड़कनों की अब खामोश हुई

हर घुटती सांसों को आजाद कर मैं हूँ बढ़ चली…

पहचान हो गई मुझे आत्म सम्मान की

परम शांति उस अंत की और खुले आसमान की

ये है मेरी पहली उड़ान अनंत तक…!!