चुनाव राजनीति

आरक्षण का सवाल या राजनीति की चाल

-असर कानपुरी- reservation

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मई २०१३ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा में वृद्धि को ४.५० लाख से बढ़ाकर ६ लाख सालाना कर दिया है अर्थात लगभग ५० हज़ार रुपये तक की मासिक आय वाले परिवार आरक्षण का लाभ ले सकेंगे | साल २००८ में भी सरकार ने संसदीय चुनावों से पूर्व क्रीमी लेयर के लिए सालाना आय सीमा २.५० लाख से बढ़ाकर ४.५० लाख की थी | अब प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या सरकार के इस क़दम से सचमुच में पिछड़े वर्ग को उनका वास्तविक हक़ मिल पायेगा ? क्योंकि जिस परिवार की मासिक आय ५० हज़ार रुपये होगी वो समाज का पिछड़ा वर्ग कैसे कहला सकता है ?

वास्तव में पिछड़ा वर्ग की परिभाषा यह है, समाज के धनहीन, भूमिहीन एवं सामर्थ्यहीन तबका जिसमे वस्तुत: नाइ, धोबी, तेली, कुम्हार, लुहार, काश्तकार इत्यादि आते हैं, लेकिन सफ़ेद टोपी धारक भ्रष्टाचारी वर्ग जो मूलरूप से बड़े किसान हैं, वो इसमें शामिल हो जाते हैं वास्तविक पिछड़ों का हिस्सा खाने के लिए !

देश की सबसे बड़ी त्रासदी है आरक्षण! अयोग्य व्यक्ति जब ऊंचे पदों पर पहुंच जाते हैं तो ना समाज का भला होता है और ना ही देश का ! और सही बात तो यह है कि आरक्षण जैसी चीजें मूल जरूरतमंदों के पास तक तो पहुंच ही नहीं पाती ! बस कुछ मलाई खाने वाले लोग इसका फायदा उठाते हैं ! आरक्षण, चाहे वो गरीबी उन्मूलन हो या सरकारी राशन कि दुकानें, सब जेब भरने का धंधा है और कुछ नहीं ! 1950 में संविधान लिखा गया और आज तक आरक्षण लागू है! बाबा साहब अंबेडकर ने भी इसे कुछ समय के लिए लागू किया था ! अंबेडकर एक बुद्धिमान व्यक्ति थे ! वो जानते थे कि ये आरक्षण बाद में नासूर बन सकता है इसलिए उन्होंने इसे कुछ वर्षों के लिए लागू किया था जिससे कुछ पिछड़े हुए लोग समान धारा में आ सके ! अंबेडकर ने ही इसे संविधान में हमेशा के लिए लागू क्यू नहीं किया? इसका जवाब तो हर किसी के पास अलग अलग होगा परन्तु सत्य यह है कि जिस तरह से शराबी को शराब कि लत लग जाती है, इसी तरह आरक्षण भोगियों को इसकी लत लग गयीं है अब ये इसे चाह कर भी नहीं छोड़ सकते ! क्योंकि बिना योग्यता के सबकुछ जो मिल जाता है तो पढ़ने कि जरूरत ही कहां है?

वैसे तो जो भी ग़रीबी रेखा से उपर हैं, वे सभी आयकर सहित सारे करदाता होने चाहिए, क्रीमी लेयर में होने चाहिए और सारी सरकारी सब्सिडी और आरक्षण से वंचित होने चाहिए. इसमें ना कोई जाति, ना धर्म, ना वर्ग, तभी हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ग़रीब के हित में होगी ! फिर देखते हैं आंकड़ों की बाजीगरी कैसे चलती है ?

फिर वोट बैंक के लिए ग़रीबी की रेखा उपर खिसकेगी, जो अभी नीचे खिसक रही है |

जब गरीबी जाति देखकर नहीं आती तो फिर आरक्षण जाति के आधार पर क्यों ? पहले तो कुछ ही संपन्न जातियां असली पिछड़ों का हक खा रही थी, अब पिछले कुछ वर्षों से ठाठ बाट से संपन्न जातियों को भी इसमे शामिल करके पहले से चले आ रहे  षड्यंत्र को और मजबूत किया है | इन मज़बूत लोगों के दबाव में आकर सरकार कोई आयोग बनाती है और उससे इनके हक़ में रिपोर्ट लेकर आरक्षण का लाभ दे देती है | ये ही हो रहा है और बेचारे पिछड़े हमेशा पिछड़े ही रहेंगे, ऐसे चाल चली जा रही है ?