कविता

चार राग

भोर मे भैरवी के स्वर छिड़े हैं,

इन्ही के साथ हम प्रभु से जुड़े हैं,

संगीत साधना बनी आराधना ,

फिर कंहीं क्यों और करूँ प्रार्थना ।

 

स्वर ताल मे बंदिशों को बाँधकर ,

साज़ों मे संगीत लहरी ढालकर,

तक धिं तक ता तारानों मे डालकर ,

गा भैरव कोमल रिषभ संभालकर ।

 

मालकौस मे रे ग ध नी कोमल लगें,

साज़ पर धुन कोई द्रुत लय मे बजे ,

लयकारी जब स्वर मे बंधकर चले ,

गीत, भजन और बंदिशे इसमे सजें।

 

राग यमन मे तीव्र मध्यम ही लगे ,

तीनताल मे जब सम सम पर ही लगे,

कर्ण प्रिय राग मधु मधुर मन मे सजे,

भावना कोमल कोमल मन मे जगें।