फ्री फण्ड जनसेवा पार्टी

कस्तूरी दिनेश                                                           

                                      जैसे ही मुझे पता चला कि सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और समाजसेवी दामोदर भाई ने ठीक चुनाव के समय अपनी पुरानी पार्टी छोड़कर एक नई ‘फ्री फण्ड जनसेवा पार्टी’ का गठन किया है,वैसे ही पत्रकार होने के नाते मैं सबसे पहले उनका इंटरव्यू लेने उनके पार्टी ऑफिस पहुँच गया | अभी नई पार्टी के गठन के कारण वे कुर्सी विहीनता की अवस्था में बड़े बेचैन दिख रहे थे | रातें किसी खंडहर में इधर से उधर उड़ते उल्लू की तरह फड़फड़ाते बीत रही थीं, सो वे अल सुबह ही पार्टी ऑफिस की एक त्रिटंगी घायल कुर्सी को दीवार के सहारे टिकाये पसरे हुए थे | सामने उन्नीस सौ सैंतालिस के बुढ़ियाए टेबल पर प्लेट में दूध और जलेबी रखी हुई थी जिसे वे मलेच्छों की तरह भकोस रहे थे |                                                                                                                                                              मुझे देखते ही वे कुछ शर्माते हुए कंजूसी से मुस्कुराए | मैंने भी उन्हें मुस्कुराते हुए नमस्कार किया | वे दूध में भीगे जलेबी के एक बड़े टुकड़े को मुंह के अंदर उँगलियों से ठेलते हुए कूके— ‘आईये–आइये दिनेश जी…!’फिर सामने एक प्लास्टिक के जर्जर-बीमार स्टूल की तरफ इशारा करते हुए बोले—‘आपके लिए भी मंगाऊँ..?’उनके ओठों पर बहकर चिपके दूध के साथ जलेबी के टुकड़ों से मन में उपजे जुगुप्सा के भाव को दबाते हुए मैंने मुस्कुराकर कहा—‘नहीं-नहीं,मुझे क्षमा करे दामोदर भाई,मैं घर से नाश्ता करके चला हूँ…!’ मैंने बेचारे उस बूढ़े-जर्जर स्टूल पर सम्हलकर बैठते हुए अपना आधा भार खुद दोनों टांगों को सौंप दिया ताकि हम दोनों किसी भावी दुर्घटना से सुरक्षित रहे सकें |

मैंने उनसे निवेदन किया—‘नई पार्टी गठन पर आपसे इंटरव्यू के लिए कल बात हुई थी,सो आज आया हूँ …!’ उन्होंने जलेबी का एक टुकड़ा मुंह में रखकर दूध गटकते हुए कहा—‘ पूछिए,क्या पूछना है…? मैंने प्रश्न उछालते हुए कहा—‘इस निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में ’जो मांगोगे वही मिलेगा,नहीं मांगोगे तो भी जबरदस्ती मिलेगा’ की शैली में सारी पार्टियां चुनाव जीतने के लिए प्रचार कर रही हैं | जनता भी गदगद है और उस पार्टी की तरफ लाल मुंह के बंदरों की तरह उछलती कूदती दौड़ रही है जो भर-भर के रेवड़ियां बाँटने का संकल्प-पत्र और घोषणा-पत्र जारी कर रहा है ! मुफ्त शिक्षा,मुफ्त सिलेंडर, मुफ्त बिजली-पानी,मुफ्त बस सेवा,मुफ्त राशन,पांच रूपये में भर पेट भोजन,मुफ्त इलाज, ऐसे में आप अपनी नई-नवेली पार्टी को कैसे चुनाव जितवाएंगे ?यह तो एकदम असंभव लगता है !’

वे महाभारत के शकुनि मामा की तरह एक पल मुस्कुराए, फिर जलेबी का आखरी ग्रास मुंह में ठूंसकर,दूध के गिलास को एक ही सांस में हलक के नीचे उतारते हुये फरमाए—‘मेरे भोले पत्रकार,अभी आपके दूध के दांत टूटे नहीं हैं इसलिए ऐसा सोच रहे हैं | असंभव शब्द मूर्खों की डिक्शनरी में होता है ! अक्ल हो और आँखें खुली हों तो आदमी अपनी चाल से बड़ी से बड़ी जंग चुटकी बजाते जीत सकता है…!अभी हमारी पार्टी ने अपना घोषणा-पत्र का पासा फेंका कहाँ है…?’ मैं अपनी अज्ञानता पर थोड़ा शर्मिंदा होते हुए मिनमिनाया—‘भाई थोड़ा खुलासा करके बताइए  न…!’ वे मुस्कुराकर मुझ पर तरस खाते हुए कूके—‘ कल हमारा घोषणा-पत्र जारी होगा ! अपने घोषणा-पत्र में ये फ्री,वो फ्री का झंझट पालने वाले नहीं हैं ! हम यदि सत्ता में आये तो जनता को पालने-पोसने की पूरी जवाबदारी हमारी ! काम-धाम करने की चिकचिक से हंड्रेड परसेंट छुट्टी !हमारा सिद्धांत है,’अल्ला दे खाने को तो कौन जाए कमाने को…!’अजगर की तरह घर में पड़े पड़े आराम फर्मावो,मौज-मस्ती,पिकनिक करो ! हमारी पार्टी जगह-जगह एटीएम की तरह सरकारी मशीन लगाएगी जिसमें जनता रोज अपना खर्च किये हुए पैसों का बिल डालकर रूपए निकाल सकेगी ! शहर के फाइव स्टार,थ्री-स्टार होटल में रोज भोजन करो | मुर्ग-मुसल्लम-   बिरियानी के साथ वोदका,जिन,रम का बोतल उड़ावो,खर्च हुए बिल एटीएम में डालो और तत्काल बिल का भुगतान पावो | रोज मार्केटिंग करो,एटीएम में बिल डालो,पेमेंट ले जाओ ! मल्टीप्लेक्स थियेटरों में महीने भर मस्त पिक्चर देखो बिल डालो,पैसे ले जाओ ! विदेश यात्रा करो, हनीमून मनावो,खर्च किये हुए बिल डालो,पेमेंट ले जाओ ! जितना चाहे बच्चे पैदा करो,अस्पताल का बिल घुसावो,पैसा ले जाओ ! दंगा भड़काओ,चोरी-डकैती, मर्डर,रेप करो,सुप्रीम कोर्ट का धाँसू वकील लगावो,एटीएम से वकील और जमानत दोनों का पैसा ले जावो….|’                                                                                                                                 उनके इस अनुपम-अकल्पनीय महान घोषणा-पत्र का आधा हिस्सा सुनते-सुनते ही मैं कब बेहोश होकर वहीं,उस जर्जर-बीमार स्टूल के साथ नीचे जमीन पर भूलुंठित हो गया,मुझे नहीं पता ! आँखें खुलीं तो मैं अस्पताल के आईसीयू में पड़ा था !

कस्तूरी दिनेश

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