समाज

स्वतंत्रता बनाम उच्‍छृंखलता

-प्रवीण कुमार

किसी भी सभ्य समाज में जिसको किसी भी प्रकार के मसल पवार का उपयोग निंदनीय है खासकर यदि वह महिलाओं के विरोध में हो तो शर्मनाक भी है। परन्तु सामाजिक मापदण्डों को स्वतंत्रता के नाम पर तोड़ना भी निंदनीय है। बेलेटाईन डे या फ्रेडशिप डे के नाम पर हम जिस समाज की रचना करने जा रहे हैं, क्या वह समाज हमें स्वीकार्य है? तथाकथित बुद्धिजीवी, स्वतंत्रता के झंडबरदार केवल इसलिए वैलेटाईन डे या फ्रेडशिप डे का समर्थन करते हैं क्योंकि बजरंग दल या धर्म सेना उसका विरोध कर रहे हैं?

हमारा मीडिया केवल प्रसिद्धि कमाने के लिए या अपनी पत्र-पत्रिकाओं के रंगीन पृष्ठ बढ़ाने के लिए इस बाजारवादी अपसंस्कृति का प्रचार कर रहा है। दावे के साथ यह कहा जा सकता है स्वतंत्रता एवं प्रगतिशीलता के पूरोधा क्या अपने दिल पर हाथ रखकर अपने लोगों को इस प्रकार की संस्कृति में हिस्सेदारी करने देंगे? जैसे हिन्दी भाषा के ध्वजवाहक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढाते हैं। वैसे हि पब संस्कृति के यह प्रचारक अपने बच्चों को पबसंस्कृति से दूर रखने का प्रयास नहीं करते है ? फिर यह पब संस्कृति या वैलेटाईन डे या फ्रेडशिप डे के संस्कृति को बाजारवाद के नाम पर स्वतंत्रता के नाम पर अमेरिका समाज ने अपनाया ,वहां उसका परिणाम अमेरिका में बढ़ती कुंवारी माताओं की संख्या,बाल अपराध की बढ़ती संख्या के रूप में देखा जा रहा है। वहां की सरकार एवं समाजशास्त्री इस दुष्परिणाम से चिंतित है एवं अब भारतीय समाज व्यवस्था की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। हिन्दू समाज ने कभी भी अंग्रेजी का असंगत विरोध नहीं किया। न कभी लड़के-लड़कियों के एक साथ पढ़ने का विरोध किया? ना कभी महिलाओं के राजनीति में चाहे नौकरी में हो चाहे व्यवसाय में जाने का विरोध नहीं किया। हिन्दू समाज ने कभी भी घूंघट निकालकर महिलाओं को बाहर निकालने के लिए कोई फतवा जारी नहीं किया ना ही किसी ज्ञान की प्राप्ति न ही धर्म के नाम पर विरोध किया।

परन्तु हिन्दू समाज स्वतंत्रता के नाम पर उच्छखंलता,असामाजिक मर्यादा फैलाने वाले पबसंस्कृति बेलेटाईन डे या फ्रेडशिप डे को क्यों बर्दाशत करेगा। यह बात सच है कि विरोध संविधान के अंदर रहकर करना चाहिए। परन्तु प्रत्येक समाज के भी अपने कायदे कानून है। यहां तक की देश का कानून भी प्रेम या शारीरिक संबंधों को सार्वजनिक स्थानोचर इजहार करने की अनुमति नहीं देता क्या बेलेटाईन डे या फ्रेडशीप डे के नाम पर देश के कानून को तोड़ने की अनुमति देना उचित है? समाज शास्त्री, चिंतक, बुद्धिजीवी, हिंसा का विरोध अवश्य करें परन्तु पबसंस्कृति वैलेटाइन डे को महिमामंडित न करें। कैसा देश एवं समाज हम आने वाली पीढ़ी को सौंपना चाहते है इसकी चिंता करें।

(लेखक विश्व संवाद केन्द्र रायपुर के प्रमुख हैं)