राजनीति

विदेश यात्रा से सर्जिकल स्ट्राइक तक

modiडा. अरविन्द कुमार सिंह

कार्य का सबूत देना और कार्य करना दोनो अलग फितरत है। झूठ बोलने वाले को ये हमेशा याद रखना पडता है कि उसने कब कहाॅ – क्या कहा ? पर सच बोलने वाले को इसकी कोई आवश्यकता नहीं है कि उसने कब कहाॅ – क्या कहा ।

जो कार्य नहीं करते उन्हे सबूत देने की आवश्यकता होती है। जो कार्य करते , उनका कार्य ही उनकी प्रामाणिकता होती है। यही कारण है, सेना सबूत नहीं देती है। सूर्य अपने सुबह आगमन और शाम रवानगी का सबूत नहीं देता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाने का सबूत नहीं देती ।

इन सबसे सबूत माॅगकर मैं अपने अहमक होने का सबूत नहीं दे सकता। यह हिम्मत, यह जिगरा तो सिर्फ केजरीवाल, संजय निरूपम, पी चिदम्बरम तथा द्विग्विजय सिंह का ही है। जो आज भारत सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माॅग रहे हैं।

ये भी ख्याल में लेने वाली बात है कि संम्पूर्ण दुनिया में, भारत द्वारा किये गये सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माॅत्र पाॅच व्यक्ति खोज रहे हैं। पाकिस्तान, केजरीवाल, संजय निरूपम, पी चिदम्बरम तथा द्विग्विजय सिंह। अगर चार की बात छोड भी दूॅ तो विडम्बना देखिए सुहागरात मनाने वाला सुहागरात का सबूत माॅग रहा है। ये चार भी खूब अच्छी तरह से जानते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक हुआ है पर क्या करे – दिल है कि मानता नहीं – भोले सनम बने हुए हैं।

पाकिस्तान, जितनी घृणा भारत से करता है। उतनी ही घृणा केजरीवाल, संजय निरूपम और राहुल गाॅधी भारत के प्रधानमंत्री या भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी से करते है। अगर ऐसा न होता तो केजरीवाल सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत न माॅगते, निरूपम इसे फर्जी न बताते और राहुल गाॅधी नरेन्द्र मोदी को जवानों के खून की दलाली करने वाले दलाल न बताते।

अब नरेन्द्र मोदी को भी क्या कहा जाय? वो अपने फितरत से परेशान है। अगर उनके शब्दो में कहा जाय तो वो ये कहते है –

वो और होगें जो तेरे बाजार में बिकते होंगे।
हम तो सिर्फ एखलाक के हाथ ही बीका करते हैं।।

आप भाजपा के नेता के साथ नहीं खडे होते हैं यह बात समझ में आती है पर आप देश के प्रधानमंत्री के साथ भी खडे नहीं होंगे, यह चरित्र समझ के परे है। वैसे चरित्र तो तब भी समझ में नहीं आया जब –
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारें लगे – अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा है – भारत तेरे टुकडे होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह – जंग रहेगी जारी, भारत तेरे बर्बादी तक ।तब देश के किसी विरोधी दल के नेता ने , सरकार से सबूत नहीं माॅगा कि नारें लगे या नहीं लगे? नारें लगाने वालों के सर्मथन में केजरीवाल, राहुॅल गाॅधी, सीताराम येचुरी, डी राजा सभी जेएनयू दौड गये।

हाॅ पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत दिलाने के लिए कुछ लोग बेचौन है। दरअसल बेचौनी सबूत की नहीं वरन सेना के बढे हुए मनोबल और प्रधानमंत्री का बढता हुआ कद है।
एक रणनीति के तहद् मोदी ने सत्ता सम्भालते ही सबसे पहले विदेश दौरा कर भारत की साख मजबूत की। आयुद्ध सामग्रियों का सौदा कर देश की रक्षा पंक्ति मजबूत की। पाकिस्तान को बातचीत का निमंत्रण देकर सकारात्मक रूख का परिचय दिया।

और अब पडोसी की नियत न सुधरने पर एक सुलझे राष्ट्र का परिचय देते हुए पाकिस्तान को कूटनीति के क्षेत्र में पीछे धकेलते हुए पूरे विश्व में उसे अलग थलग कर दिया। सार्क सम्मेलन के पाॅच राष्ट्र सम्मेलन का बहिष्कार कर भारत के कूटिनीतिक चालों के बेहतर कार्य प्रणाली का सबूत दे रहे हैं।

और अब सर्जिकल स्ट्राइक की बात। किसी भी राष्ट्र द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक दो भागों में सम्पन्न होती है –
क्या हुआ ?
कैसे हुआ ?
प्रथम हिस्सा देश की जिज्ञासा की विषयवस्तु होती है। दूसरा हिस्सा संम्पूर्ण विश्व की सेनाओं का ध्यान आकर्षित करती है। तभी तो सैनिक कार्यवाई का वीडियों भारत को क्यों नहीं जाहिर करना चाहिए – इसपर पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी कहते हैं – यह वीडियों पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए हीरें – जवाहरात से भी किमती है। सरकार को किसी हालात में इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। दुनिया की कोई फौज ऐसा नहीं करती। जो इस कार्यवाई पर संदेह कर रहे हैं, वे या तो अविश्वसनीय रूप से मूर्ख या धूर्त हैं या फिर किसी और के इशारे पर बोल रहे हैं।

सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे से मोदी सर्मथकांे और विरोधियों के बीच की खाई और चौडी हो गयी है कि आप हमारे साथ हैं या विरोध में , तटस्थ रहने का समय नहीं है। इसीलिए शुरू में प्रधानमंत्री और सेना की तारिफ करने के बाद आखिरकार राजनीति देशहित पर हावी हो गया।

अब तो एक बात स्पष्ट हो गयी है, मोदी विरोध करना है, यह विरोध भले ही देशहित के बरखिलाफ ही क्यों ना हो। इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि मोदी सरकार अच्छा कर रही है या बुरा। देशहित में काम कर रही है या नहीं? गैर कांगे्रसवाद से शुरू हुयी सत्ता विरोध की राजनीति, धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता और बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यकवाद से होती हुई मोदी विरोध पर केंद्रित हो गई है।
विदेश यात्रा से चलकर सर्जिकल स्ट्राइक तक पहुॅचे नरेन्द्र मोदी से संम्पूर्ण देश यही आकांक्षा रखता है कि राष्ट्र आर्थिक रूप से सम्पन्न होते हुए आने वाले वक्त में विकसित राष्ट्रों की कतार में दिखायी दे।