भारत का इतिहास तब तक अधूरा है जब तक उसमें महात्मा गांधी का नाम न लिया जाए। 2 अक्टूबर 1869 को जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि सत्य, अहिंसा और नैतिकता की मूर्त प्रतिमा थे। उन्होंने न केवल भारत को आज़ादी दिलाने का मार्ग दिखाया बल्कि पूरी दुनिया को यह सिखाया कि असली शक्ति हिंसा या हथियारों में नहीं, बल्कि सत्य और नैतिकता में निहित है। आज 2025 में जब हम उनकी 156वीं जयंती मना रहे हैं, तो प्रश्न यह उठता है कि क्या हम उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन और समाज में उतार पा रहे हैं?
आज की दुनिया युद्ध, हिंसा, पर्यावरण संकट, राजनीतिक अस्थिरता, तकनीकी दुरुपयोग और नैतिक पतन से जूझ रही है। ऐसे में गांधी जी की शिक्षाएँ पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठती हैं। वे केवल अतीत के ‘राष्ट्रपिता’ नहीं हैं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के मार्गदर्शक भी हैं।
सत्य : हर युग की जरूरत
गांधी जी ने कहा था – “सत्य ही ईश्वर है।” उनके लिए सत्य केवल व्यक्तिगत आचरण का हिस्सा नहीं था, बल्कि सार्वजनिक जीवन की भी आत्मा था। आज के समय में जब झूठी खबरें, भ्रामक सूचनाएँ और सोशल मीडिया पर फेक नैरेटिव समाज को विभाजित कर रहे हैं, तब सत्य को पहचानने और उसके साथ खड़े होने की आवश्यकता और बढ़ गई है।
नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि कैरियर की दौड़, सोशल मीडिया की चमक और त्वरित सफलता की चाहत के बीच अगर सत्य से समझौता किया गया, तो लंबी अवधि में उसका नुकसान ही होगा। गांधी जी का जीवन यह सिखाता है कि असफलता भी तब स्वीकार्य है जब वह सत्य पर आधारित हो।
अहिंसा : वैश्विक संकट का समाधान
गांधी जी का सबसे बड़ा हथियार था – अहिंसा। उनके लिए अहिंसा केवल युद्ध न करना नहीं था, बल्कि मन, वचन और कर्म से किसी को भी आहत न करना था। आज दुनिया युद्धों के खतरे, धार्मिक कट्टरता और बढ़ती असहिष्णुता का सामना कर रही है।
परिवार से लेकर राष्ट्र तक, संवाद की जगह टकराव ने ले ली है। ऐसे में गांधी की अहिंसा का मार्ग ही वास्तविक समाधान है। नई पीढ़ी को यह सीखना होगा कि मतभेद विचारों का हो सकता है, लेकिन उसके कारण हिंसा और नफरत का जन्म नहीं होना चाहिए।
स्वराज और स्वावलंबन
गांधी जी ने स्वराज की व्याख्या केवल अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता के रूप में नहीं की थी, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आत्मनिर्भरता के रूप में की थी। आज भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, लेकिन क्या हम सचमुच आत्मनिर्भर हैं?
तकनीक और ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’, और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों का सपना तभी साकार होगा जब युवा गांधी के स्वावलंबन को आत्मसात करेंगे। केवल रोजगार पाने की बजाय रोजगार देने वाले बनें। यह गांधी के ‘चरखे से उद्योग’ की भावना का आधुनिक रूप है।
ग्राम स्वराज और पर्यावरण संतुलन
गांधी जी का सपना था -“भारत का भविष्य उसके गाँवों में बसता है।” वे मानते थे कि यदि गाँव आत्मनिर्भर होंगे तो पूरा राष्ट्र मजबूत होगा।
आज जब हम शहरीकरण, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और असमान विकास से परेशान हैं, तब गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा समाधान प्रस्तुत करती है। जैविक खेती, स्थानीय संसाधनों का उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता – ये सब गांधी जी की ही शिक्षाओं से उपजे विचार हैं।
नई पीढ़ी को चाहिए कि वे तकनीक का उपयोग केवल शहरी जीवन सुधारने में न करें, बल्कि गाँव और प्रकृति को संवारने में भी करें। यही सतत विकास का असली अर्थ है।
सत्याग्रह : अन्याय के विरुद्ध अहिंसक संघर्ष
गांधी जी का सत्याग्रह आंदोलन केवल राजनीतिक हथियार नहीं था, बल्कि अन्याय के विरुद्ध अहिंसक संघर्ष का प्रतीक था। आज जब समाज में भ्रष्टाचार, असमानता, लैंगिक भेदभाव और जातीय विषमताएँ मौजूद हैं, तो सत्याग्रह की भावना हमें प्रेरित कर सकती है कि हम बिना हिंसा के इन अन्यायों का डटकर मुकाबला करें।
नई पीढ़ी सोशल मीडिया और तकनीकी साधनों का उपयोग सकारात्मक जनजागरूकता फैलाने में करे, न कि केवल आत्मप्रचार में। डिजिटल सत्याग्रह आज के समय का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है।
नैतिकता और सरल जीवन
गांधी जी का जीवन सादगी का प्रतीक था। एक धोती और चादर में भी वे पूरी दुनिया के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व बन गए। वे हमें सिखाते हैं कि असली ताकत भौतिक साधनों में नहीं, बल्कि चरित्र और नैतिकता में होती है।
आज उपभोक्तावाद और दिखावे की होड़ ने युवाओं को भ्रमित कर दिया है। नई पीढ़ी को गांधी से यह सीखना चाहिए कि भव्यता से अधिक महत्वपूर्ण है सादगी, और शक्ति का असली स्रोत है आत्मसंयम।
धार्मिक सहिष्णुता और मानवता
गांधी जी ने हमेशा कहा कि सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं। वे गीता पढ़ते थे तो कुरान और बाइबिल का भी सम्मान करते थे। आज जब समाज में धर्म के नाम पर विभाजन और कटुता बढ़ रही है, तब गांधी का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक है।
नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि इंसान पहले है और धर्म बाद में। सहिष्णुता, परस्पर सम्मान और करुणा ही समाज को जोड़ सकती है।
आज के समय में गांधी का मार्ग
आज भारत और विश्व जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं –
जलवायु परिवर्तन
युद्ध और आतंकवाद
आर्थिक असमानता
तकनीक का दुरुपयोग (एआई, सोशल मीडिया आदि)
मानसिक स्वास्थ्य संकट
इन सभी समस्याओं का उत्तर गांधी की शिक्षाओं में छिपा है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए उनका ‘प्रकृति के साथ संतुलन’ का संदेश।
शांति के लिए अहिंसा।
आर्थिक न्याय के लिए स्वावलंबन।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए सादगी और आत्मसंयम।
और नैतिक पतन के विरुद्ध सत्य की खोज।
महात्मा गांधी कोई बीते युग के संत नहीं हैं जिन्हें केवल प्रतिमा बनाकर पूजा जाए। वे एक जीवित विचारधारा हैं, जो हर पीढ़ी को राह दिखाती है। 2025 की नई पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा प्रश्न यही है – क्या हम गांधी को केवल ‘गांधी जयंती’ तक सीमित रख देंगे, या उनके विचारों को अपने जीवन और समाज में उतारेंगे?
गांधी जी ने कहा था – “भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आज आप क्या करते हैं।” यदि आज की युवा पीढ़ी सत्य, अहिंसा, स्वावलंबन और नैतिकता को अपने जीवन का आधार बनाए, तो न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया एक बेहतर स्थान बन सकती है।
इस गांधी जयंती पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम गांधी को केवल इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि अपने आचरण और विचारों में जीवित रखेंगे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
उमेश कुमार साहू