भाजपा को संघ से अलग करने में जुटा अमेरिका: राकेश उपाध्याय

सन् 2004 की अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट कई मामलों में चैंकाने वाली है। क्या कोई मान सकता है कि भारतीय जनता पार्टी में चल रही वैचारिक कलह के तार इस रिपोर्ट से भी जुड़े हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी में आरएसएस और हिंदुत्व विचारधारा के विरोधी विचारक तत्व भले ही इस बात को माने या ना माने लेकिन सच्चाई यही है कि वे अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के स्वर को ही प्रकारांतर से मजबूती से उठा रहे हैं।

आयोग ने सन् 2004 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिकी सरकार से पहली सिफारिश की थी कि अमेरिका सरकार भाजपा नेतृत्व पर आरएसएस की उग्र नीति की भर्त्‍सना के लिए दबाव बनाए।

दूसरी सिफारिश में कहा गया है कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को स्पष्‍ट रूप से इस चिंता से अवगत कराया जाए कि उनके नेताओं के जहरीले राष्ट्रवादी भाषणों के कारण षड्यंत्रकारियों को धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले की प्रेरणा मिलती है।

सिफारिश के तीसरे बिंदु में कहा गया है कि भारत सरकार पर दबाव डाला जाए कि वो अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों के खिलाफ हमले का षड्यंत्र रचने वालों की धरपकड़ करे।

चौथे बिंदु में कहा गया है कि वो भारत सरकार पर दबाव बनाए कि सरकार उपासना पद्धति के चयन या धर्मांतरण के विरूद्ध कोई कानून पारित न करे।

पांचवे बिंदु में कहा गया है कि भारत सरकार मानवाधिकारों और पांथिक स्वतंत्रता से संबंधित विभिन्न आयोगों को आधिकारिक यात्रा करने की अनुमति प्रदान करे।

छठे बिंदु में कहा गया है कि भारत सरकार को सीधे तौर पर यह संदेश जाना चाहिए कि भारत और अमेरिका के बीच बेहतर आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के लिए ये जरूरी है कि भारत अपने यहां धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करे, धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हो रहे हमलों को कड़ाई से रोके और इसके गुनहगारों को दण्डित करे, देश में कानून के राज की स्थापना करे।

सन् 2004 की रिपोर्ट में आयोग ने भाजपा को संघ परिवार का अंग बताते हुए कहा कि भारत में जैसे जैसे संघ परिवार की ताकत बढ़ी है, अल्पसंख्यकों पर हमले भी तेज हो गए हैं। संघ परिवार बहुत सारे उग्रवादी हिंदू संगठनों का वह समूह है जो गैर हिंदुओं को भारत में विदेशी मानता है। संघ परिवार भारत सरकार की नीतियों को संस्कृति के हिंदूकरण को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक तरीके से प्रभावित करने की कोशिश करता है। 1998 में इस संघ परिवार के राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार गठित होने के बाद से ऐसा वातावरण बना है जिसमें उग्रपंथियों को ये भरोसा हो गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला करने के बाद भी वे सुरक्षित रह सकते हैं।

कुल मिलाकर आयोग की रिपोर्ट सिर्फ और सिर्फ संघ एवं भाजपा के विरोध में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझती है। चूंकि आयोग ने अब तक भारत का प्रत्यक्ष दौरा कर पाने में कामयाबी हासिल नहीं की है इससे स्पश्ट है कि आयोग ने किसी तीसरे माध्यम से जानकारी प्राप्त कर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। सवाल उठता है कि ये तीसरा माध्यम कौन हैं। जाहिर तौर पर भारत में कार्यरत ईसाई संगठनों व कुछ गैर सरकारी संगठनों की जो भाशा संघ परिवार और भाजपा के प्रति सदा से रहती आई है वही भाशा आयोग की रपटों में भी प्रकट होती है। आयोग ने भाजपा शासित राज्यों को छोड़कर किसी अन्य राज्य में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर कोई विचार अपनी किसी रिपोर्ट में नहीं किया है। प्रत्येक वर्श की रिपोर्ट में गुजरात दंगों, ईसाइयों पर हमले, धर्मांतरण विरोधी कानून से जुड़े मुद्दे हुबहू दुहरा दिए गए हैं। रिपोर्ट में कहीं पर पंजाब, पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर, केरल आदि राज्यों के बारे में एक षब्द नहीं लिखा गया है। जहां भी मौका मिला है आयोग ने कांग्रेस की प्रषंसा करने में कोई कोताही नहीं बरती है वैसे ही जैसे संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया है।

सन् 2005 में केंद्र में भाजपा गठबंधन सरकार के पतन के बाद कांग्रेस गठबंधन सरकार सत्तारूढ़ हुई। आयोग ने इस परिवर्तन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिहाज से गंभीर चिंता का विषय अब नहीं माना जाना चाहिए। भारत को अब सीपीसी अर्थात कंट्री ऑफ पर्टीकुलर कन्सर्न के स्थान पर अतिरिक्त निगरानी सूची में रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि आयोग ने दुनिया को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिहाज से तीन श्रेणियों में विभाजित कर रखा है। पहली श्रेणी सीपीसी यानी कंट्रीज ऑफ पर्टीकुलर कन्सर्न दूसरी श्रेणी वाचलिस्ट अर्थात निगरानी सूची और तीसरी श्रेणी अतिरिक्त निगरानी सूची के नाम से संबोधित की जाती है।

आयोग ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व में भारत सरकार का अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति रवैया अच्छा नहीं था। उसके द्वारा गुजरात सहित विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसा को रोकने के लिए की गई कार्रवाई अपर्याप्त थी। इसके बजाए अनेक वरिश्ठ भाजपा नेता अपने को उग्र हिंदू संगठनों से अलग रखने में असमर्थ सिद्ध हुए और तो और सार्वजनिक रूप से उन संगठनों के साथ खड़े हुए।

आयोग ने भाजपा शासन में शिक्षा के कथित भगवाकरण का विशय उठाते हुए 2005 की रिपोर्ट में कहा कि मनमोहन सरकार ने षिक्षा के संप्रदायीकरण की कोशिशों को खारिज कर दिया है। आयोग ने रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानूनों के पारित होने पर भी चिंता जताई और कहा कि संघ परिवार विभिन्न राज्यों में चर्चां और अल्पसंख्यकों पर हमला करने से बाज नहीं आ रहा है। इस सिलसिले में आयोग ने अमेरिका सरकार को सिफारिश करते हुए कहा कि-

* अमेरिका सरकार अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हमले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाए।

* भारत सरकार पर सांप्रदायिक दंगों के निरोध के संबंध में नया कानून पारित करने के लिए दबाव बनाया जाए। गुजरात दंगों सहित अन्य हिंसात्मक कार्यों से जुड़े अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

* जहरीला पाठ्यक्रम शीघ्र खत्म किया जाए।

सन् 2006 की रपट में एक बार फिर आयोग ने भाजपा और संघ परिवार पर निषाना साधते हुए कहा कि भाजपा गठबंधन सरकार ने अल्पसंख्यकों पर हुए जुल्मों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में एक स्थान पर श्रीरामजन्मभूमि स्थान का नामोल्लेख करने से परहेज किया है। आयोग ने रिपोर्ट में जुलाई, 2005 में अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि स्थान पर हुए आतंकवादी हमलों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आतंकवादियों ने अयोध्या में उस धार्मिक स्थान पर हमला किया जहां सन् 1992 में हिंदू उग्रवादियों ने सोलहवीं सदी की एक मस्जिद का ध्वंस किया था। इस ध्वंस के परिणामस्वरूप देश भर में दंगे हुए जिसमें लगभग 3000 लोग मारे गए जिसमें अधिकांश मुस्लिम थे।

आयोग ने राजस्थान की भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि राज्य में कार्यरत ईसाई संस्थानों के खिलाफ सरकार लगातार कार्रवाई कर रही है।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों की चर्चा करते हुए आयोग ने कहा कि भाजपा शसित राज्यों जैसे उड़ीसा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, अरूणाचल प्रदेश ‘लोभ-लालच’ और ‘बलपूर्वक’ किए जाने वाले मतांतरणों के खिलाफ बनाए गए कानूनों का अभी भी उपयोग कर रहे हैं।

इस रिपोर्ट में आयोग ने आरोप लगाया कि हिटलर अनेक उग्र हिंदू राश्ट्रवादी तत्वों का प्रिय नेता है। आयोग ने गुजरात राज्य में सामाजिक विज्ञान विषय की एक पुस्तक पर टिप्पणी देते हुए ये बात कही।

मार्च, 2005 में आयोग ने नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित अमेरिका यात्रा को रद्द करने के लिए अमेरिकी विदेष विभाग को चिट्ठी लिखी इसका जिक्र भी आयोग की इस रिपोर्ट में आया है।

सन् 2007 की आयोग की रिपोर्ट में एक बार फिर भाजपा और संघ परिवार के खिलाफ वही पुराने आरोप दुहराए गए। गुजरात दंगों पर फिर से टिप्पणी की गई और नरेंद्र मोदी को कोसा गया। राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में ईसाई पादरियों और चर्चों पर हुए हमलों के लिए हिंदू संगठनों को जिम्मेदार ठहराया गया । उड़ीसा में घटी एक घटना के लिए बाकायदा बजरंगदल को आयोग ने आरोपित किया। हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून पारित होने पर आयोग ने शिकायती लहजे में कहा कि ये कानून उस कांग्रेस नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने पारित किया है जो कांग्रेस अमूमन इसका विरोध करती है।

सच्चर कमेटी के गठन और इसकी रिपोर्ट के आधार पर मुस्लिमों के साथ हुए सामाजिक-आर्थिक असन्तुलन को दूर करने की प्रधानमंत्री की घोशणा का भी सकारात्मक रूप में जिक्र रिपोर्ट में किया गया है।

2008 की रिपोर्ट में एक बार फिर गुजरात दंगों की चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के आलोक में प्रधानमंत्री की प्रषंसा की गई है। रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़ी एक समिति ने गुजरात को भययुक्त और असुरक्षित राज्य कहकर संबोधित किया है। सरकार द्वारा गुजरात दंगों में मारे गए लोगों के निकट परिजनों को 8000डालर की अतिरिक्त सहायता की घोषणा का भी रिपोर्ट में स्वागत किया गया है।

आयोग की रिपोर्ट में पुनः स्कूली पाठ्यक्रमों में परिवर्तनों की प्रशंसा की गई। गुजरात के डांग में आयोजित शबरी कुंभ के बारे में आयोग ने यह कहते हुए टिप्पणी दी कि इस आयोजन के बहाने पुनर्धमांतरण की कोशिश तेज कर दी गई। उग्र हिंदू नेताओं ने ईसाइयों के खिलाफ खुलकर जहरीले भाशण दिए। इससे ईसाई समुदाय फिर से हिंसा के भय से आक्रांत हो गया तब केंद्र ने सेना तैनात कर बुद्धिमानी से हिंसा भड़काने की कोशिशों को असफल कर दिया। इसी प्रकार 2006 में वाराणसी और मुंबई में विस्फोट हुए, तब भी उग्र हिंदूवादियों ने हिंसा फैलाने की कोशिश की लेकिन केंद्र सरकार की सावधानी के चलते देश का माहौल बिगड़ने से बचा।

आयोग ने केंद्र सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों में जान-माल की सुरक्षा के प्रति विश्वास बढ़ा है। फिर भी हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के कारण अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभी भी हिंसा की घटनाएं पूरे तौर पर नहीं रूक सकी हैं। विषेशकर जहां जहां भाजपा सरकारें हैं वहां अल्पसंख्यक हिंसा के शिकार हो रहे हैं जैसे उड़ीसा में 24 दिसंबर, 2007 को ईसाइयों को क्रिसमस का त्योहार मनाने से बलपूर्वक रोकने की कोशिशें हिंदू उग्रवादियों ने की। इस कारण राज्य के कुछ इलाकों में हिंसा फैल गई। यद्यपि कुछ लोगों के अनुसार पहले हमला ईसाई लोगों ने किया लेकिन ये मामला गौण है। मूल बात ये है कि 20 से अधिक चर्च जलाकर खाक कर दिए गए। भारतीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी यह तथ्य स्वीकार किया है कि हमले में ईसाई समुदाय और उनके उपासना स्थलों को दंगाइयों ने चुनचुनकर निशाने पर लिया।

आयोग के अनुसार, भाजपा शासित राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को ईसाइयों के खिलाफ एक हथियार बना लिया है। इसके सहारे वे भीड़ को ईसाई समूहों के खिलाफ उकसाते हैं। आयोग के अनुसार, संघ परिवार के कार्यकर्ताओं और धर्मांतरण विरोधी अभियानों की भूमिका को ईसाइयों पर हमले के संदर्भ में गंभीरता से जांचे जाने की जरूरत है।

2 COMMENTS

  1. अपना घर सम्भलता नही और दूसरॊ कॊ सलाह देते हॆ. अमेरीका के स्कूलॊ मे बच्चे बन्दूक लेकर जाते हे वहा हमारे देश से ज्यादा अपराध होते हे. भारत मे दुनिया के सबसे ज्य़ादा थाने हे, ज्य़ादा कॊर्ट हे, ज्य़ादा वकील हे, सबसे बडा समवीधान हे, सबसे ज्य़ादा कमेटिया बनती, सबसे ज्य़ादा रिपॊर्ट पेश होती हे. हमे अमेरीका की सलाह की आवश्य़कता नही हे. हमारे देश कॊ अमेरीका से डरने की जरूरत नही हॆ. भारत कॊ चाहिए की वह अमेरीका से कहे कि हमारे आतरिक मामले मे दखलदाजी न करे.

  2. इस आयोग की यह रिपोर्ट कूड़े के डिब्बे में डालिये और अपना काम करिये… यह आयोग तो बना ही है भारत पर दबाव डालने के लिये और धर्मान्तरण विरोधी कानून को बनने से रोकने के लिये… इसकी चिंता पालने की आवश्यकता नहीं है। हाँ लेकिन भाजपा के नेता इस रिपोर्ट को गम्भीरता से लेने लगे हैं और “सेकुलर राग” अलापने लगे हैं, पहले उन्हें ठीक करना हो्गा।

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