राजनीति

‘‘आगे-आगे देखिए होता है, क्या?…………’’

वीरेन्द्र सिंह परिहार

nitish and modi                अभी 13 अप्रैल तक ऐसा माना जा सकता था कि जद यू ने प्रधानमंत्री के प्रश्न पर गुजरात के नरेन्द्र मोदी के प्रति अपना रूख नरम कर लिया है। लेकिन 14 अप्रैल को नितीश कुमार ने जद यू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मोदी का नाम लिए बगैर ही मोदी के संबंध में जो कुछ कहा, उससे यह स्पष्ट है कि जद यू नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी मानने को तैयार नहीं है। इस संबध्ंा में उन्होने चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया कि यदि गाड़ी डिरेल हुई यानी पटरी से हटीं तो रास्ता तय करना पडेगा। उनका कहने का आशय यह कि यदि फिर भी भाजपा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है, तो 17 वर्ष पुराना भाजपा और जद यू का संबंध टूट जाएंगा। संभवतः राजनैतिक क्षेत्रों  में ऐसा माने जाने पर कि नितीश कुमार स्वतः प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी का रास्ता रोक रहे हे, इस पर नितीश कुमार ने यह सफाई दी कि हम प्रधानमंत्री बनने का भ्रम नहीं पालते। क्यांेकि हमें चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा और गुजराल का हश्र मालुम है। उनका कहने का आशय यह था कि यदि वह भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन भी गए तो वह चन्द दिनों की बात होंगी। क्योकि कांग्रेस पार्टी कतई विश्वसनीय नहीं है।

मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार न बनने देने के लिए नितीश कुमार ने कुल मिलाकर वहीं धर्मनिरपेक्षता का राग अलापा। इसके लिए उन्होने सबको साथ में लेकर चलने की बात कहीं, जोर जबरस्ती से न चलने की बात कहीं। कभी टोपी पहनने की भी वकालत की। देश को चलाने के लिए अटल जी के रास्ते की दुहाई दी। उनके राजधर्म के पालन किए जाने की बातों का हवाला दिया। ऐसी स्थिति में यह देखा जाना जरूरी है, कि क्या मोदी का रास्ता सबको साथ में लेकर चलने वाला न होकर जोर -जबरजस्ती का है। नितीश कुमार ने ऐसा कोई उदाहरण भी प्रस्तुत नहीं किया कि मोदी ने किस जगह पर जोर जबरजस्ती का रास्ता अपनाया। ऐसा तो है नहीं कि गुजरात में मोदी के नेतृत्व में जो विकास हुआ, उसका फायदा मात्र हिन्दुओं को मिला हो, मुसलमानों को न मिला हो। संभवतः उसका उदाहरण नितीश कुमार यह कहकर बताना चाहते हो कि वर्ष 2011 के सितम्बर माह के सद्भावना उपवास में मोदी ने एक मौलवी की टोपी नहीं पहनी थी। अब मोदी ने उक्त टोपी क्यों नहीं पहनी, इसके सैंद्धातिक कारण हो सकते है। आखिर में मोदी ने उसी मोलवी की शाल पहनने से इंकार नहीं किया था। संभवतः वह इस तरह से यह बताना चाहते थे कि तुष्टिकरण की राजनीति के पक्षधर नहीं है। नितीश कुमार अटल जी के राजधर्म के पालन की दुहाई दे रहे है। निशाना यहां भी मोदी पर ही-है, जब 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भ में तात्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म के पालन की नसीहत दी थी। पर साथ ही यह भी कहा था कि गुजरात में राजधर्म का पालन हो रहा है। परन्तु इस देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले राजनीतिज्ञ चाहे वह नितीश कुमार ही क्यों न हांे, आधा सच बोलकर झूठ से भी ज्यादा खतरनाक बातें कर जाते हैं। सच्चाई यह है कि जब औसत राजनीतिज्ञ की हैसियत का लाभ उसके नजदीकी संबंधियों को तो मिलता ही-है। वहीं मोदी जिस कठोर राजधर्म का पालन कर रहे है, उसमें उनके भाइयों तक के बारे में लोगों को पता ही नहीं कि यह उनके भाई है। अब भले राजीव शुक्ला जैसे लोग कहे कि मोदी जब अपने भाईयों को साथ में लेकर नहीं चल सकते तो पूरे देश को लेकर कैसे चल सकते है? पर सच्चाई यही है या तो आप अपनों को लेकर चल सकते है या देश को लेकर चल सकते है। आशय कोई तुलना का नहीं, पर देश और समाज की चिंता के चलते स्वामी विवेकानन्द अपनी माॅ और भाईयों की उचित देख-रेख नहीं कर पाए थे।

नितीश कुमार कहते है, मूलभूत सिद्धांत से समझौता नहीं होंगा, यानी धर्म निरपेक्षता से कोई समझौता नहीं होगा। पर मोदी धर्मनिरपेक्ष नहीं है, इसके लिए सतत 2002 के दंगों की दुहाई दी जाती है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में गठित एस.आई.टी. को भी मोदी की इन दंगों में कहीं संलिप्तता नहीं मिली। नितीश कुमार साथ में यह भी कह रहे है, कि अयोध्या में राम मंदिर, काश्मीर में धारा 370, समान नागरिक संहिता को लेकर जद यू का रवैया बदलने वाला नहीं है। इसके मायने यह हुआ कि यदि भाजपा को जद यू का साथ चाहिए तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण, काश्मीर में धारा 370 की सम्पति और पूरे देश मे एक समान नागरिक संहितों की बाते जो भाजपा के मूलभूत उद्देश्य है, उन्हे स्थगित रखना पडेगा। यानी सत्ता के लिए उसे अपने मूलभूत उद्देश्यों को अलग रखना पड़ेगा। कुल मिलाकर भाजपा जिन मुद्दों को तुष्टिकरण की राजनीति कहती है, कमोवेश उसे भी वहीं करना पड़ेगा।

यद्यपि नितीश कुमार यह भी कहते है कि हवा बंध गई, बंध रही है, इससे धोखे में नहीं रहना चाहिए। हवा बंधने से यह जरूरी नहीं कि वोट मिल ही जावे। इस तरह से प्रकारान्तर से नितीश कुमार मोदी की लोकप्रियता को तो स्वीकार कर रहे है, यह भी स्वीकार कर रहे है कि हवा उनके पक्ष मंे है। फिर भी उन्हे मानने को तैयार नहीं है। बड़ा सवाल यह कि ऐसी स्थिति में भाजपा क्या करेगी? क्या नितीश के दवाब में वह मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोंषित नहीं करेगी। पर मामला इतना ही नहीं है नितीश कुमार का यह भी कहना है कि दिसम्बर तक भाजपा को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ही कर देना चाहिए। भाजपा यदि किसी और को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करती है, तो क्या राजनैतिक दृष्टि से इसे बुद्धिमत्तापूर्ण कदम कहा जा सकता हैं, कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोंषित किया गया तो भाजपा को मात्र 30 सीटों का लाभ होगा। पर सच्चाई यह है कि मोदी को यदि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो भापजा को कम-से-कम 50 सीटों का लाभ होगा। सच्चाई यह भी है यदि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होगे तो मुस्लिम मतों का विभाजन होगा। पर मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए अपना जन समर्थन बचाए रखने के लिए कुछ राजनैतिक दल मोदी को निशाना बनाए हुए है। ऐसी स्थितियां भी आ सकती है कि नितीश यदि भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ें तो बिहार में मोदी उन्ही के किले को दरका दे, क्योकि मोदी देश के समक्ष एक रोल-माॅडल बन चुके है।अब जब भाजपा पूरी तरह नितीश कुमार की बातों को खारिज कर चुकी है,तो स्पष्ट है की घोषणा चाहे जब हो भाजपा की ओर से मोदी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। सबसे बड़ा सवाल यह कि ऐसी स्थिति में नितीश कुमार क्या करेगे? क्या वह कांग्रेस के साथ जाएगे? इसके लिए किसी शायर के शब्दों में यहीं कहा जा सकता है-‘‘इब्ताये इश्क में होता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या?’’