शिवानन्द मिश्रा
1968 से 1992 तक अमेरिका के लिए रिपब्लिकन युग कहा जा सकता है क्योंकि इन 24 वर्षों में सिर्फ 4 साल डेमोक्रेट्स के पास रहे, शेष 20 साल रिपब्लिकन पार्टी का राज रहा। 1988 के चुनाव में जब जॉर्ज बुश जीते, उनके उपराष्ट्रपति ने खुलकर कहा था कि अब डेमोक्रेट्स को जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है ताकि कोई तीसरा मोर्चा उभर ना पाए।
डेमोक्रेट्स ने इस उपहास को गंभीरता से लिया और 1992 में बिल क्लिंटन के नेतृत्व में जीत दर्ज कर अपनी वापसी की।
आज भारत में बीजेपी उसी रिपब्लिकन स्थिति में है जहाँ कांग्रेस को जीवित रखना बीजेपी का रणनीतिक हित बन गया है ताकि तीसरी पार्टियों का खतरा कम हो। आज कांग्रेस पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना तक सिमट चुकी है।
राहुल गांधी की सबसे बड़ी “उपलब्धि” यही है कि उन्होंने राज्य स्तर पर खुद को शून्य किया, प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद में। कांग्रेस को अब अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए सैकड़ों प्रमोद महाजन या अमित शाह जैसे नेताओं की आवश्यकता होगी।
उनकी 99 सीटें उनकी उच्चतम उपलब्धि थीं; उसके बाद शुरू हुआ पतन। अब मामला वोट चोरी तक पहुंच चुका है। एक अनुमान के मुताबिक अगला टारगेट न्यायपालिका, पुलिस या सेना हो सकता है। यह वही सत्ता की निराशा है जिसे मुहम्मद अली जिन्ना ने भी झेला।
जब से ममता बनर्जी ने राहुल को नेता प्रतिपक्ष पद से हटने का सुझाव दिया, उनके लिए खुद को प्रासंगिक बनाए रखना जरूरी हो गया है।
बिहार में वे खुद शून्य हैं, साथ में आधा दर्जन सीटों वाला तेजस्वी यादव उनके साथ। अब ये दोनों हुड़दंग को जन आंदोलन बताने में लगे हैं।
बीजेपी के हित में यही जरूरी है कि कांग्रेस प्रासंगिक रहे, ताकि कोई तीसरा चेहरा कांग्रेस से ऊपर ना उठ पाए। राहुल गांधी की “ट्यूशन से सीखी राजनीति” से निपटना आसान है लेकिन कोई जननेता आ जाए तो चुनौती बढ़ जाएगी।
अमित शाह का उदय हाल के दिनों में तेज़ हुआ है। मोदीजी उनके भरोसे संसद के बिल पास करवा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि अगले दशक में अमित शाह का युग लगभग निश्चित है। 2029 में मोदीजी अगर फिर चुनाव लड़े तो नेहरू का रिकॉर्ड टूट सकता है लेकिन 2029 या 2034 से अमित शाह का समय शुरू होना लगभग तय है। जो कांग्रेसी अब मोदीजी को “वोट चोर” बोल रहे हैं, वे भविष्य में मोदी का फोटो लगाकर रोते नजर आएंगे। मोदीजी अब नेता वाली लीग से बाहर, उनका नाम अमर। संघर्ष अब नए नेताओं का है और जब विपक्ष में राहुल गांधी हों तो ये संघर्ष आसान होता है।
राजनीतिक रणनीति यही है:
कांग्रेस अगर सिर्फ 4-5 राज्यों में लड़े तो हमेशा नंबर 2 बनेगी और यह बीजेपी के लिए उचित परिणाम होगा। बस शर्त यही है कि उनके यहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी जैसा कोई बिल क्लिंटन न आए, जो रास्ते खुद कांग्रेस ने बंद कर रखे हैं।
राजनीति = गणित + रणनीति + धैर्य
राहुल गांधी और कांग्रेस का खेल इस समय सिर्फ बीजेपी के हित में प्रासंगिक बने रहने का है।
शिवानन्द मिश्रा