हिंद स्‍वराज

गाँधी के लंगोट की कहानी

अगर एक व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधारण जीवन की ओर बढ़ना चाहिए ,ऐसा बापू का कहना था जिसे वे ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक मानते थे. उनकी सादगी  ने पाश्चात्य जीवन शैली को त्यागने पर मजबूर किया और वे दक्षिण अफ्रीका में लोकप्रिय होने लगे थे .इसे वे “ख़ुद को शुन्य के स्थिति में लाना” कहा करते थे . इस अवस्था में आवश्यकताओं में कटौती , साधारण जीवन शैली को अपनाना और अपने काम स्वयं करना आवश्यक बताते थे .उनकी सादगी का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि दक्षिण अफ्रीका में एक अवसर पर गाँधी जी ने वहां के किसी जमींदार  की ओर से  उनकी अनवरत सेवा के लिए प्रदान किए गए उपहार को भी वापस कर दिया था .mahatma_gandhi
गाँधी सप्ताह में एक दिन मौन धारण करते थे.उनका ऐसा विश्वास था कि  बोलने के परहेज से उन्हें आतंरिक शान्ति  मिलती है. उनपर यह प्रभाव हिंदू मौन सिद्धांत का है, वैसे दिनों में वे कागज पर लिखकर दूसरों के साथ संपर्क करते थे. 37 वर्ष की आयु से साढ़े तीन वर्षों तक गांधी जी ने अख़बारों को पढ़ने से इंकार कर दिया जिसके जवाब में उनका कहना था कि जगत की आज जो स्थिर अवस्था है उसने उसे अपनी स्वयं की आंतरिक अशांति की तुलना में अधिक भ्रमित किया है।
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात् उन्होंने पश्चमी शैली के वस्त्रों का त्याग किया.उन्होंने भारत के सबसे गरीब इंसान के द्वारा जो वस्त्र पहने जाते हैं उसे स्वीकार किया, तथा घर में बने हुए कपड़े (खादी) पहनने की वकालत भी की.गाँधी और उनके अनुयायियों ने अपने कपड़े सूत के द्वारा ख़ुद बुनने के अभ्यास को अपनाया और दूसरो को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया . गाँधी का मत था कि अगर भारतीय अपने कपड़े ख़ुद बनाने लगे, तो यह भारत में बसे ब्रिटिशों को आर्थिक झटका लगेगा. फलस्वरूप, बाद में चरखा को भारतीय राष्ट्रीय झंडा में शामिल किया गया.  गाँधी जी के जीवन में व्याप्त सादगी और उनके वस्त्र त्याग के पीछे एक कहानी मैंने अक्सर सुनी है – ” अफ्रीका से लौटे बारिस्टर गाँधी जब गोपाल कृष्ण गोखले के पास गये तो उन्होंने गाँधी जी को भारत भ्रमण की सलाह दी . अपने राजनीतिक गुरु की सलाह मन कर जब गाँधी भारत  दर्शन करके वापस आये तो उनके शारीर पर अंग्रेजी शूट की जगह मात्र लंगोट जैसी  धोती बची थी .भारतवासिओं में व्याप्त गरीबी से मर्माहत बापू ने आजीवन इस व्रत को निभाया . “