गजल

गज़ल:उनके इंतज़ार का…– सत्येंद्र गुप्ता

उनके इंतज़ार का, हर पल ही मंहगा था

हर ख़्वाब मैंने उस पल देखा सुनहरा था।

दीवानगी-ए-शौक मेरा ,मुझसे न पूछ दोस्त

दिल के बहाव का वह जाने कैसा जज़्बा था।

मेरे महबूब मुझसे मिलकर ऐसे पेश आये

जैसे उनकी रूह का मैं, खोया हिस्सा था।

तश्नगी मेरे दिल की कभी खत्म नहीं हुई

जाने आबे हयात का वह कैसा दरिया था।

मिलता नहीं कुछ उसकी रहमत से ज्यादा

मेरा तो सदा से बस एक यही नज़रिया था।

मेरी बंदगी भी दुनिया-ए-मिसाल हो गई

मेरे मशहूर होने का, जैसे वह ज़रिया था।

 

अपनी तस्वीर ख़ुद ही बनाना सीखो

अपनी सोई तक़दीर को जगाना सीखो।

दुनिया को फुरसत नहीं है, ज़रा भी

अपनी पीठ, ख़ुद ही थपथपाना सीखो।

मुश्किलें तो हर क़दम पर ही आएँगी

हौसलों को बस, बुलंद बनाना सीखो।

गिर गये तो मजाक बनाएगी दुनिया

इसे अपने क़दमों पर झुकाना सीखो।

खुशियाँ रास्ते पर पड़ी मिल जाएँगी

अपने जश्न, ख़ुद ही मनाना सीखो।

दुनियादारी, कभी खत्म नहीं होगी

ज़िंदादिली से इसे भी निभाना सीखो।

 

जाने को थे कि, तभी बरसात हो गई

खुलके दिल की दिल से फिर बात हो गई।

चाँद भी झांकता रहा, बादलों की ओट से

कितनी ख़ुशनुमा,वही फिर रात हो गई।

तश्नगी पहुँच गई लबों की जाम तक

बेख़ुदी ही रूह की भी सौगात हो गई।

जुल्फें तराशता रहा फिर मैं भी शौक़ से

कुछ तो, नई सी यह करामात हो गई।

दिल ने तमन्ना की थी जिसकी बरसों से

बड़ी ही हसीन वो एक मुलाक़ात हो गई।