गजल

गजल-खूं बहाके दंगों में जन्नतें नहीं मिलती…..इक़बाल हिंदुस्तानी

महनती ग़रीबों को देवता बना देना,

कुदरती वसाइल पर सबका हक़ लिखा देना।

 

लोग जिनके ज़हनों को रहनुमा चलाते हैं,

अब भी वो गुलामी में जी रहे बता देना।

 

सच को सच बताने की क़ीमतें जो चाहते हैं,

उनकी खुद की क़ीमत भी माथे पर लिखा देना।

 

जुल्म और हक़तल्फ़ी ख़ामोशी से देखे जो,

मर चुका ज़मीर उसका उसको ये बता देना।

 

कश्तियां किनारों तक हर दफ़ा नहीं जाती,

साहिलों पे जाने को तैरना सिखा देना ।

 

मुल्क से बड़ा कुछ भी जो कोई समझता हो,

इस तरह के लोगों को मौत की सज़ा देना।

 

खूं बहाके दंगों में जन्नतें नहीं मिलती,

ज़िंदगी ख़ज़ाना है यूं ही मत लुटा देना।

 

सीधे सादे लोगों में दुश्मनी जो फैलायें,

ऐसी सब किताबों को आग में जला देना।