गजल

गज़ल / ना भूले आदमी काटेगा वो जो बोता है…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

0तमाम सर्दियों फुटपाथ पर जो सोता है,

क़सूर उसका मज़दूर होना होता है।

 

0वो एकता का मसीहा बना जो बैठा है,

वही तो मुल्क में नफरत के बीज बोता है।

 

0खुद अपने हाथ से एक हाथ काट लेता है,

जो घर को बांट के भाई को भाई खोता है।

 

0वो आदमी जो हमेशा सभी पे हंसता था,

पता चला वो अकेले में खुद पे रोता है।

 

0मैं खुद पड़ौस की खुद्दारियों का मुजरिम हूं,

मेरा पड़ौसी कई बार भूखा सोता है।

 

0जो बेटा बाप का अपने अदब नहीं करता,

ना भूले आदमी काटेगा वो जो बोता है।

 

0सफ़ाई तन की ही काफी हुआ नहीं करती,

वो ‘सोप’ चाहिये जो मन का मैल धेता है।

 

0मुखालिफों की महरबानियां भी हम देखें,

नज़र में उनकी हमारा वजूद होता है।।

 

 

नोट- मसीहाः नेता,खुद्दारीः स्वाभिमान,सोपः साबुन,वजूदः अस्तित्व