खुशी की दिल में चाहत गर, खुशी के गीत गाते हैं
भरोसा क्या है साँसों का, चलो गम को भुलाते हैं
दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते
सहज मुस्कानवाले कम, जो दुनिया को सजाते हैं
है कीमत कामयाबी की, जहाँ पर लोग अपने हों
उसी अपनों से क्यूँ अक्सर, वही दूरी बढ़ाते हैं
मुहब्बत और इबादत में, कोई तो फर्क समझा दो
मगर उस नाम पर जिस्मों, को अधनंगा दिखाते हैं
चलो बच्चों के सर डालें, अधूरी चाहतें अपनी
बढ़ी है खुदकुशी बच्चे, अभी खुद को मिटाते हैं
सलीका सालों में बनता, मगर वो टूटता पल में
ये दुनिया रोज बेहतर हो, सलीका फिर सिखाते हैं
भला क्या मोल भावों का, सुमन पागल अरजने में
पलट कर देख इस कारण, कई रिश्ते गँवाते हैं