गजल

गजल:गीत ज़िन्दगी के हम गुनगुनाते रहे-हिमकर श्याम

जहां तक हुआ खुद को बहलाते रहे

गीत ज़िन्दगी के हम गुनगुनाते रहे

 

छूटती रही ख़ुशियों की डोर हाथों से

वक़्त हमें, हम उसे आजमाते रहे

 

राहों में न सही हौसलों में दम है

बस क़दम दर क़दम हम उठाते रहे

 

आरज़ू थी जो दिल की रह गयी दिल में

हादसे दर हादसे कहर ढाते रहे

 

नादां थे, जो उनको मसीहा जाना

संगदिलों को हाले दिल सुनाते रहे

 

जो हटा हिजाब तो टूटा भरम सारा

सजदे में किसके हम सर झुकाते रह