लाइब्रेरी तक लड़कियों की पहुंच अब भी दूर है

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आराधना
लूणकरणसर, राजस्थान

रात का सन्नाटा था और मिट्टी के आँगन में टिमटिमाती लालटेन की रोशनी में सरिता अपनी किताब खोलकर बैठी थी। वह परेशान है क्योंकि उसके पास न तो इससे जुड़ी कोई संदर्भ पुस्तकें हैं और न ही कोई अतिरिक्त सामग्री, न कोई ऐसा स्थान जहाँ वह चैन से पढ़ सके। हालांकि पढ़ाई की ललक उसकी आँखों में साफ नजर आती है, लेकिन साधनों की कमी उसकी राह में बार-बार दीवार खड़ी कर रही है। यह अकेले सिर्फ राजस्थान के नाथवाना गांव की स्थिति नहीं है बल्कि देश के ऐसे कई गांव हैं जहां लड़कियों को शिक्षा के लिए संघर्षों की कई दीवारों को तोड़ना पड़ता है। कुछ लड़कियों के सपने इन दीवारों के अंदर ही टूट जाते हैं।

दरअसल, गांव की लड़कियों के लिए शिक्षा सिर्फ़ परीक्षा पास करने और डिग्री लेने का साधन नहीं है, बल्कि यह उनके सपनों को आकार देने का ज़रिया भी है। घर की जिम्मेदारियों के बीच जब वह समय निकालकर पढ़ाई करना चाहती है, तो उसे यह एहसास और गहरा चोट पहुँचाता है कि पास में कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ वह किताबों की दुनिया में डूब सके, क्योंकि जब गाँव में पुस्तकालय नहीं होता, तो लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर कई स्तरों पर असर पड़ता है। स्कूल की पाठ्यपुस्तकों के अलावा अन्य किताबें या संदर्भ सामग्री तक उसकी पहुँच नहीं बन पाती है। वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी तो करना चाहती है, लेकिन आवश्यक किताबें उपलब्ध न होने से उनकी तैयारियां अधूरी रह जाती हैं। किताबों और ज्ञान की यह कमी उसके आत्मविश्वास को धीरे-धीरे कम कर देती है।

इसके अलावा, घर का माहौल हमेशा पढ़ाई के लिए अनुकूल नहीं होता। घरेलू कामों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच लड़की के पास पढ़ने का शांत समय और स्थान नहीं बचता। ऐसे में एक स्थानीय पुस्तकालय उसका सहारा बन सकता है, जहाँ उसे एक समर्पित जगह और किताबों का संग्रह मिल सकता है। लेकिन जब यह सुविधा नहीं होती, तो उसकी पढ़ाई अक्सर बीच में रुक जाती है। समूह में पढ़ने और चर्चा करने से मिलने वाली प्रेरणा भी ऐसी लड़कियों के जीवन से छूट जाती है। पुस्तकालय न होने का मतलब है कि वह अपने सवाल पूछने, विचार साझा करने और आत्मविश्वास से बोलने के अवसर खो देती है। यही कारण है कि आगे जाकर उच्च शिक्षा या पेशेवर जीवन में कदम रखते समय उसे आत्म-संदेह और सूचना की कमी का सामना करना पड़ता है।

सिर्फ सरिता ही नहीं, बल्कि गांव की 21 वर्षीय सुमन की इच्छा थी कि वह नर्स बनकर अपने गाँव की औरतों की मदद करे। लेकिन उसके स्कूल में केवल बुनियादी किताबें थीं और आसपास कोई पुस्तकालय नहीं था। वह विज्ञान की अतिरिक्त किताबें चाहकर भी नहीं खरीद पाती थी। उसने बताया, “मुझे अक्सर लगता था कि मैं डॉक्टर या नर्स बनने का सपना देख भी कैसे सकती हूँ, जब मेरे पास उतनी किताबें ही नहीं हैं।” उसकी यह पीड़ा इस बात का प्रतीक है कि पढ़ने की सुविधा का अभाव सीधे सपनों को सीमित कर देता है।

दूसरी ओर, लूणकरणसर ब्लॉक की नीलम का अनुभव उम्मीद जगाता है। जहां हाल ही में एक पंचायत पुस्तकालय खुला है। वहाँ उसे प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें और समाचार पत्र की सुविधा मिली है। वह कहती है, “पहले मुझे पढ़ाई अकेली और अधूरी लगती थी, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं भी शहर की लड़कियों की तरह तैयारी कर सकती हूँ।” इस बदलाव ने नीलम को आत्मविश्वास दिया और उसका लक्ष्य अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है। लेकिन यहां लाइब्रेरी की सदस्यता लेने की फीस 800/- रुपए महीना है। जो आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों की पहुंच से बाहर की बात है।

लाइब्रेरी की कमी सिर्फ़ शिक्षा तक सीमित समस्या नहीं है। यह किशोरियों के जीवन की दिशा को भी प्रभावित करती है। जब उसे स्वास्थ्य, करियर, कानूनी अधिकार या स्वरोज़गार जैसी जानकारियाँ किताबों से नहीं मिलती, तो उसके पास अपने भविष्य के लिए विकल्प कम रह जाते हैं। क्योंकि किताबें सिर्फ़ अक्षरों का संग्रह नहीं होतीं, वे उसकी कल्पना, सोच और नए अवसरों की खिड़कियाँ खोलती हैं।

इस पृष्ठभूमि में हाल के वर्षों में शुरू की गई योजनाएं आशा जगाती हैं। राजस्थान सरकार ने ग्राम पंचायत स्तर पर सार्वजनिक पुस्तकालय खोलने की पहल की है। पहले चरण में भरतपुर और जोधपुर जिलों में 50-50 पुस्तकालय यानी कुल 100 पुस्तकालय शुरू किए गए। इनमें विद्यार्थियों के पढ़ने और उनके करियर निर्देशन सामग्री जैसी सुविधाएँ भी हैं। फिलहाल उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में कुल 323 सार्वजनिक पुस्तकालय दर्ज हैं। लेकिन राज्य की भौगोलिक और ग्रामीण संरचना को देखते हुए यह संख्या अभी भी ग्रामीण लड़कियों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त नहीं है। नई योजनाएं इस कमी को पूरा कर सकती हैं और गाँव की लड़कियों को पढ़ाई के लिए एक ठोस आधार दे सकती हैं।

वास्तव में, जब गाँव में लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुलेगा, तो यह दरवाज़ा सिर्फ़ किताबों का नहीं बल्कि किशोरियों के उज्ज्वल भविष्य का रास्ता बनेगा। उन्हें घर के पास ही स्कूल की किताबों के अलावा प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियों से जुड़ी किताबें भी उपलब्ध हो सकती हैं। हालांकि सरकार को लाइब्रेरी फीस की तरफ ध्यान देने की जरूरत है ताकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की किशोरियों को भी समान रूप से अवसर उपलब्ध हो सके।

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