शिक्षा के लिए संघर्ष करती किशोरियां

0
262

निरमा
अजमेर, राजस्थान

हमारे देश में महिलाओं और किशोरियों को आज भी जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पितृसत्तात्मक समाज से संघर्ष करनी पड़ती है. कभी आधुनिकता और कभी संस्कृति एवं परंपरा के नाम पर उसके पैरों में बेड़ियां डालने का काम किया जाता रहा है. शिक्षा, हर रुकावट को दूर करने का सबसे सशक्त माध्यम है. लेकिन महिलाओं और किशोरियों के सामने इसी क्षेत्र में सबसे अधिक बाधा उत्पन्न की जाती है. उन्हें पढ़ने और सशक्त बनने से रोका जाता है. भले ही शहरी क्षेत्रों में अब किशोरियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने में रुकावटें हटने लगी हैं, लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बालिकाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष करनी पड़ती है. 

2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता के मामले में देश में जो तीन सबसे कमजोर राज्य हैं उनमें राजस्थान भी है. जहां साक्षरता की दर राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत की तुलना में केवल 67.06 प्रतिशत है. ऐसे में यहां महिलाओं में साक्षरता की दर का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है और बात जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय में महिलाओं के साक्षरता दर की करेंगे तो यह आंकड़ा और कितना कम होगा, यह पता लगाना बहुत अधिक मुश्किल नहीं होगा.

राज्य के अजमेर जिला स्थित नाचनबाड़ी गांव ऐसा ही एक उदाहरण है. जिला के घूघरा पंचायत स्थित इस गांव में अनुसूचित जनजाति कालबेलिया समुदाय की बहुलता हैं. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार गांव में लगभग 500 घर हैं. गांव के अधिकतर पुरुष और महिलाएं स्थानीय चूना भट्टा पर दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं. जहां दिन भर जी तोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें इतनी ही मज़दूरी मिलती है जिससे वह अपने परिवार का गुज़ारा कर सके. यही कारण है कि गांव के कई बुज़ुर्ग पुरुष और महिलाएं आसपास के गांवों से भिक्षा मांगकर अपना गुज़ारा करते है. समुदाय में किसी के पास भी खेती के लिए अपनी ज़मीन नहीं है. खानाबदोश जीवन गुज़ारने के कारण इस समुदाय का पहले कोई स्थाई ठिकाना नहीं हुआ करता था. हालांकि समय बदलने के साथ अब यह समुदाय कुछ जगहों पर पीढ़ी दर पीढ़ी स्थाई रूप से निवास करने लगा है. लेकिन इनमें से किसी के पास ज़मीन का अपना पट्टा नहीं है. इस समुदाय में बालिका शिक्षा की स्थिति अब भी कम है.

हालांकि पहले की तुलना में कालबेलिया समुदाय के लोग अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने लगे हैं लेकिन अधिकतर लड़कियों की 12वीं के बाद शादी कर दी जाती है. इस संबंध में समुदाय की एक 37 वर्षीय महिला शांति बाई बताती हैं कि “नाचनबाड़ी में केवल एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां पांचवी तक की पढ़ाई होती है. इसमें गांव के सभी बच्चे पढ़ने जाते हैं. लेकिन इसके आगे के लिए बच्चों को तीन किमी दूर घूघरा जाना पड़ता है. जहां अपनी लड़कियों को भेजने के लिए अभिभावक तैयार नहीं होते हैं.” शांति बाई बताती हैं कि उनकी तीन लड़कियां हैं जो 10वीं, 9वीं और 6वीं में पढ़ने के लिए घूघरा गांव जाती हैं. यह समुदाय की पहली लड़कियां हैं जो 5वीं से आगे शिक्षा प्राप्त करना शुरू की थी. उनके इस कदम से समुदाय के कुछ जागरूक अभिभावकों ने भी अपनी लड़कियों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए घूघरा गांव के हाई स्कूल में एडमिशन कराया है.

शांति बाई की बड़ी बेटी रौशनी जो 10वीं की छात्रा है, बताती है कि उसे और उसकी बहनों को पढ़ना अच्छा लगता है. इसलिए वह प्रतिदिन स्कूल जाती हैं. वह बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है. लेकिन स्कूल में विज्ञान के शिक्षक का पद खाली है, इसलिए वह घर में इस विषय की तैयारी करती है. रौशनी की बात को आगे जोड़ते हुए शांति बाई कहती हैं कि वह लोग आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं. उनके पति स्थानीय चूना भट्टा पर दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं. जिसमें इतनी ही मजदूरी मिलती है जिससे परिवार का किसी प्रकार गुजारा हो सके. इसके बावजूद वह अपनी बच्चियों को पढ़ाना चाहती हैं. वह कहती हैं कि उनके समुदाय के उत्थान के लिए सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं, जिसका लाभ उठाकर समुदाय विकास कर सकता है. लेकिन जागरूकता के अभाव में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि रौशनी और उसकी बहनों जैसी नई पीढ़ी शिक्षित होकर एक दिन समुदाय की सोच और दशा अवश्य बदलेगी.

वहीं 48 वर्षीय सदानाथ कालबेलिया बताते हैं कि उनके समुदाय में शिक्षा के प्रति अभी भी बहुत अधिक जागरूकता नहीं आई है. अधिकतर लड़के 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर परिवार के साथ मजदूरी करने निकल जाते हैं या फिर ताश और जुआ जैसे बुरे कामों में लिप्त हो जाते हैं. माता-पिता भी उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं. ऐसी परिस्थिति में लड़कियों की शिक्षा के बारे में यह समुदाय कहां सोचेगा? वह कहते हैं कि कालबेलिया समुदाय की अधिकतर लड़कियां 5वीं से आगे पढ़ नहीं पाती थी. हालांकि अब इसमें थोड़ा बहुत बदलाव आ रहा है और अब कुछ माता-पिता लड़कियों को पांचवीं से आगे पढ़ाने के लिए दूसरे गांव भेजने लगे हैं. लेकिन यह रुझान बहुत अधिक नहीं है. लेकिन अगर नाचनबाड़ी गांव में ही 10वीं और 12वीं तक के स्कूल खुल जाएं तो शायद इस दिशा में प्रगति हो सकती है.

वह बताते हैं कि उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं. जिन्हें वह पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन लड़कियों की शिक्षा के प्रति समाज की नकारात्मक सोच इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा बन रही है. विशेषकर जब घर के ही बड़े बुजुर्ग लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाने की जगह उनकी शादी करने का दबाव डालने लगें तो अभिभावकों के सामने विकट परिस्थिति आ जाती है. ऐसी परिस्थिति का वह स्वयं सामना कर रहे हैं. लेकिन शिक्षा की महत्ता को समझते हुए वह अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने का प्रयास करेंगे.

इस संबंध में स्थानीय समाजसेवी वीरेंद्र बताते हैं कि कालबेलिया समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता अभी कम है. यही कारण है कि इस समुदाय की कोई भी लड़की आज तक 12वीं से आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी है. दसवीं के बाद से ही कालबेलिया समाज की ओर से माता-पिता पर लड़की की शादी कराने का दबाव बढ़ने लगता है. हालांकि इस समुदाय में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से बहुत अधिक प्रयास किए जाते रहे हैं. इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम संचालित करती हैं. लेकिन यह सभी प्रयास उस समय ही सफल हो सकते हैं, जब सरकारी पहल और इन संस्थाओं के साथ मिलकर कालबेलिया समाज आगे बढ़ेगा. इसके लिए समुदाय में जागरूकता का प्रसार करनी होगी ताकि इस समाज की किशोरियों को शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार के लिए संघर्ष न करनी पड़े.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,855 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress