पुनीत उपाध्याय
संभलने का वक्त आ गया है। यदि मनुष्य अभी भी नहीं बदला तो आने वाले भविष्य में उसे गंभीर प्राकृतिक चुनौतियां झेलनी पड़ेगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है। खुद इंसान पर तो इसका असर पड़ने लगा है। खेती, पशु भी इससे बच नहीं पा रहे हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में चेताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते बढ़ता तापमान न केवल फसलों के उत्पादन को घटा रहा है बल्कि मजदूरों की काम करने की क्षमता को भी कमजोर कर रहा है। इससे किसानों और मजदूरों की जीविका पर सीधा असर पड़ रहा है। कृषि मजदूरों में हीट स्ट्रेस, डिहाइड्रेशन और गर्मी से जुड़ी बीमारियां कहीं अधिक होती हैं। भारत पर इसका असर दिख रहा है. उसके पड़ौसी देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश भी गंभीर खतरे में हैं।
रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि लगातार बढ़ते तापमान के कारण जहां फसलों का उत्पादन घट रहा है साथ ही पशुधन की उत्पादकता भी घट रही है। आशंका है कि भीषण गर्मी में मजदूरों के काम करने की क्षमता 27 फीसदी तक घट सकती है। इससे न केवल उनकी आमदनी में गिरावट आएगी साथ ही पूरा खाद्य तंत्र भी कमजोर पड़ सकता है।यह रिपोर्ट ष्एशिया.प्रशांत डिजास्टर रिपोर्ट 2025 के नाम से जारी की गई है जिसे गत दिनों संयुक्त राष्ट्र एशिया.प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग ने जारी किया था।
खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़
भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो इस रिपोर्ट में कही गई बात हमारे लिए चिंता पैदा करती है क्योंकि खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र की जीडीपी में एक.चौथाई से अधिक का योगदान देती है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र की ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी जीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है। यही वजह है कि कृषि इस क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा और जीविका के लिए बेहद मायने रखती है। रिपोर्ट ने चेताया है कि बढ़ती गर्मी फसलों और पशुधन को भारी तनाव में डाल रही है। भारत में मार्च 2022 में पड़ी भीषण गर्मी ने गेहूं की फसल को बुरी तरह झुलसा दिया था। गर्मी से कृषि पर पड़ने वाले खतरे को मापने के लिए यूएनईएससीएपी ने एग्रीकल्चर हीट स्ट्रेस स्कोर तैयार किया है। एग्रीकल्चर हीट स्ट्रेस स्कोर और लगातार गर्म दिनों की अवधि के आधार पर देशों को मध्यम, उच्च और अत्यधिक उच्च जोखिम श्रेणियों में रखा गया है। गर्मी के दबाव का यह अध्ययन तीन समय अवधियों में किया गया है।
भारतीय गायों का चार फीसदी तक घट सकता है दूध
इधर अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित लेख के अनुसार बढ़ती गर्मी और नमी से गायों में हीट स्ट्रेस बढ़ रहा है जिससे भारत जैसे देशों में दूध उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है। जलवायु में आते बदलावों का असर अब पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के बढ़ते जल स्तर और फसलों तक सीमित नहीं है। अब इसका सीधा असर गायों के दूध उत्पादन पर भी पड़ रहा है। एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने चेताया है कि भीषण गर्मी से महज एक दिन में ही गायों के दूध उत्पादन में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। इतना ही नहीं, यह असर 10 से ज्यादा दिनों तक बना रह सकता है। इस गिरावट का सबसे बड़ा असर दुनियाभर के उन 15 करोड़ परिवारों पर पड़ेगा जो अपनी आजीविका के लिए दूध उत्पादन पर निर्भर हैं। शोध से पता चला है कि अगले 10 वर्षों में दुनिया में दूध उत्पादन में होने वाली आधी से ज्यादा बढ़ोतरी दक्षिण एशिया में होने की संभावना है जहां हीटवेव और गर्म व नमी भरी जलवायु और भी ज्यादा गंभीर रूप ले सकती है। भारत जैसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश जहां पहले ही गर्म और उमस भरा मौसम आम है इस खतरे की सीधी चपेट में हैं। अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज ने इजराइल की डेयरी व्यवस्था को आधार बनाकर यह आकलन किया है कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन दूध उत्पादन को कैसे प्रभावित कर सकता है।
क्लाइमेट रिस्क की जद में हैं देश के आधे से ज्यादा कृषि जिले
विशेषज्ञों का दावा है कि मौसम में हो रहे बदलावों से बच्चों और बुजुर्गों और गरीबों पर सबसे अधिक प्रभावए स्वास्थ्यए आजीविका और आर्थिकी पर असर पडे़गा भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। देश की रीढ़ माने जाने वाला कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का बड़ा दंश झेल रहा है। देशभर में 573 कृषि जिले क्लाइमेट रिस्क केटेगरी में आ गए हैं। इन 573 जिलों में से 90 फीसदी जिले ग्रामीण क्षेत्रों के अधीन हैं।उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और राजस्थान उच्च संवेदनशील राज्यों में आ गए हैं। देश के 10 राज्यों एसे भी हैं जिनके 10 से अधिक जिले अतिसंवेदनशील श्रेणी में आ गए हैं जो इसके खतरों की गंभीरता को बयान कर रहा है। भारत में 2030 तक 5.8 फीसदी काम के घंटों का नुक्सान होगा और ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पादकता में कमी होगी।
पुनीत उपाध्याय