“ईश्वर-वेद-ऋषि भक्त श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री”

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मनमोहन कुमार आर्य

समूचे आर्यजगत में श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी की यश व कीर्ति पताका फहरा रही है। आप यज्ञों में गहन श्रद्धाभाव रखने वाले अनुकरणीय याज्ञिक सत्पुरुष हैं। जन्म के आरम्भ से ही आप नित्य यज्ञ करते आ रहे हैं। आपके पिता श्री गणेश दास अग्निहोत्री एवं माता श्रीमती शान्तिदेवी जी आर्यजगत के विख्यात सन्त महात्मा प्रभु आश्रित जी के सत्संगी थे और उनकी ही प्रेरणा से आपने यज्ञ करना आरम्भ किया था।आपके जीवन में ऐसा कोई दिन नहीं गया जिस दिन आपने यज्ञ न किया हो। सन् 1947 में पापिस्तान बनने पर आपको अपने परिवार सहित भारत आना पड़ा। इतिहास का यह एकमात्र उदाहरण हैं कि आपके पिता श्री गणेश दास अग्निहोत्री ने अपनी समस्त चल व अचल सम्पत्ति वहीं छोड़कर अपने गले में मात्र यज्ञकुण्ड टांग कर यज्ञ के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए परिवार के लोगों के साथ भारत आये थे। आपने अपने घर की अग्नि को कभी बुझने नहीं दिया। दिल्ली व अन्यत्र आर्यसमाज के कई बड़े आयोजनों में आपके घर के यज्ञकुण्ड की अग्नि को ले जाकर यज्ञ किया जाता है। आपके यज्ञकुण्ड की यज्ञाग्नि विगत लगभग 70 वर्षों से अधिक समय से अखण्ड यज्ञाग्नि है जिसका अपना महत्व है। आप के घर पर तीन बार यज्ञ होता आ रहा है। दो बार आप व आपका परिवार यज्ञ करता है और दिन में पड़ोस की महिलायें आकर यज्ञ करती रही हैं। यज्ञ में ऐसी श्रद्धा के हमें अन्य धनिक व्यक्तियों में दर्शन नहीं होते। आर्यसमाज के उन परिवारों में जहां दो पीढ़ियों से प्रतिदिन यज्ञ होता आ रहा है, हमें ज्ञात हुआ कि उनकी नई पीढ़ी की सन्तानें यज्ञ में वह आस्था व विश्वास नहीं रखती जो उनका व उनके पूर्वजों का रहा है। यह भी तथ्य सामने आया है कि युवा पीढ़ी कहती है कि यज्ञ में समिधा व सामग्री आदि के जलने से कार्बन-डाई-आक्साईड गैस बनती है जो कि हानिकारक होती है। घर के लोग इसका समाधान नहीं कर पाते। हमने ऐसे लोगों को कहा है कि हमें आक्सीजन वृक्षों से मिलती है। वह वृक्ष अपने लिये प्राण वायु के रूप में कार्बन-डाई-आक्साईड गैस का ग्रहण करते हैं। अतः हमारी यज्ञीय कार्बन-डाई-आक्साईड गैस वृक्षों का भोजन है। उनके उस भोजन को हम यज्ञीय कार्बन-डाई-आक्साईड को उन वृक्षों की प्राणवायु बनाकर उन्हें प्रदान करते हैं। यज्ञ के अनेक लाभ हैं। उन लाभों की तुलना में कार्बन-डाई-आक्साईड गैस का कुछ मात्रा में बनना लाभों की दृष्टि से हानिकारक नहीं है। यदि यज्ञ न करें तो इससे होने वाले आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभों से हम वंचित हो जायेंगे और हमारा पर्यावरण व स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

 

श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन सोसायटी के वर्षों से प्रधान हैं। इस आश्रम की एक सौ से अधिक बीघा भूमि हैं जिस पर अनेक भवन बने हुए हैं। साधको के लिये कुटियाओं सहित दो वृहद यज्ञशालायें हैं। दो सभागार हैं। गोशाला है तथा एक भव्य चिकित्सालय है जिसमें सभी पैथियों से चिकित्सा कराने की सुविधा है। इस चिकित्सालय में नेत्र व कार्य चिकित्सक आदि की व्यवस्था का करने का प्रयास भी किया जा रहा है। आश्रम का अपना एक विद्यालय ‘‘तपोवन विद्या निकेतन है जहां नर्सरी से कक्षा 8 तक 400 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। इस विद्यालय का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहता है। सभी विद्यार्थियों को वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों का अध्ययन कराया जाता है। सप्ताह में एक दो बार यज्ञ भी होता है और आश्रम के धर्माधिकारी पं. सूरत राम शर्मा जी विद्यालय के विद्यार्थियों को धर्मशिक्षा का अध्ययन कराते हैं। बच्चों को ऋषि दयानन्द के जीवन एवं आर्यसमाज विषयक प्रायः सभी प्रमुख जानकारियां हैं। शिक्षा का स्तर उच्च है जहां निर्धन बच्चों के साथ मध्यम व उच्च परिवारों के बच्चे भी प्रवेश हेतु प्रयास करते हैं परन्तु स्थान व कक्षाओं की सीमित व्यवस्था के कारण अनेक विद्यार्थियों को प्रवेश के लिये निराश होना पड़ता है। विद्यालय को सरकारी मान्यता व शिक्षकों को सरकार की ओर से वेतन आदि की व्यवस्था नहीं है तथापि यहां के शिक्षक अल्प वेतन में ही शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूर्णतः सजग व सचेष्ट हैं। इसके दर्शन प्रत्येक वर्ष आश्रम के शरदुत्सव में आयोजित विद्यालय के वार्षिकोत्सव में स्कूल के छात्रों की प्रस्तुतियों को देखकर होते हैं। यह भी बता दें कि श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी नर्सरी से कक्षा 8 तक प्रत्येक प्रथम, द्वितीय व तृतीय आने विद्यार्थियों को 175, 150 व 100 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति देते हैं जो लगभग एक लाख पचास हजार रुपये होती है। इसे हम श्री अग्निहोत्री जी के उदार स्वभाव का परिणाम ही मानते हैं।

 

वैदिक साधन आश्रम में आवश्यकता के सभी प्रकार के भवनों सहित लगभग एक सौ कक्ष बने हुए हैं जिसमें साधक साधिकायें आकर रह सकते हैं। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी, श्री आशीष दर्शनाचार्य, मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी आश्रम के उत्सव में आये ऋषि भक्तों को परिवार सहित आकर आश्रम में कुछ दिन निवास करने और यहां यज्ञ व प्रवचन में भाग लेकर जीवन को लाभान्वित करने की प्रेरणा देते हैं। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने पहले भी और इस बार भी वानप्रस्थ की आयु वाले लोगों को यति बनकर यहां आकर वानप्रस्थी जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी है और साथ ही इसके लाभ व घर पर रहने से होने वाली हानियों से परिचित कराया है। आश्रम दो स्थानों पर बना है। दोनों के बीच तीन किलोमीटर की दूरी है। मुख्य आश्रम नालापानी गांव में हैं। नगर से यह 6 किमी. की दूरी पर है। दूसरा आश्रम पहले आश्रम से 3 किमी. दूर पहाड़ियों पर है जो चारों ओर से साल के ऊंचे वृक्षों से घिरा है तथा आसपास का स्थान पूर्णतः निर्जन स्थान हैं। यहां महात्मा आनन्द स्वामी, महात्मा प्रभु आश्रित जी, महात्मा दयानन्द जी सहित स्वामी योगी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने साधना की है। आज भी यहां का वातारण प्रदुषण से सर्वथा मुक्त एवं शान्त है। यह कह सकते हैं कि इस स्थान की खोज महात्मा आनन्द स्वामी जी ने की थी। वह अपने गृहस्थ जीवन से समय निकाल कर यहां आते थे और कई सप्ताह व महीने भर यहां रहकर साधना करते थे। बाद में उन्होंने अमृतसर के कपड़ा उद्योग के स्वामी बावा गुरमुख सिंह जी को प्रेरणा देकर इस आश्रम का निर्माण कराया था। इस आश्रम को ऋषिभक्त सत्यनिष्ठ सेवाभावी स्वार्थशून्य मान-प्रतिष्ठा व धन की एषणा से मुक्त समर्पित युवाओं की आवश्यकता है जो आश्रम से जुड़े कर इसकी व्यवस्थाओं में सहयोग दें अन्यथा इसका भविष्य उन्नति को प्राप्त होगा या नहीं होगा, इसमें हमें सन्देह है।

 

श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र हैं। आपकी एक बहिन भी है। आपके दो पुत्र व एक पुत्री है। हमारी जानकारी के अनुसार पुत्रों के व्यवसाय अलग-अलग हैं। वह फर्नीचर आदि की मैनुफ्कचरिंग का काम करते हैं। पिता श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री जी डिलाईट फर्नीचर के नाम से फर्नीचर से सम्बन्धित उत्पादों की मार्केटिंग का कार्य करते हैं। आपकी धर्मपत्नी माता सरोज अग्निहोत्री जी भी यज्ञ के प्रति गहरी निष्ठा व समर्पण का भाव रखती हैं और श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी की सत्य अर्थों में सहधर्मिणी व धर्म कार्यों में दान व सेवा में प्रेरक एवं सहयेगी हैं। आश्रम में उत्सव में जो विद्वान, भजनोपदेशक आदि पधारते हैं उन सबका नाश्ता, दिन एवं रात्रि का भोजन श्री अग्निहोत्री जी की कुटिया वा कक्ष में ही होता है और बहुत श्रद्धा भाव से आप सब अतिथियों व विद्वानों को भोजन कराते हैं।

 

श्री अग्निहोत्री जी वैदिक भक्ति साधन आश्रम, रोहतक को भी सम्भालते हैं। वहां प्रतिवर्ष वार्षिकोत्सव एवं वेद पारायण यज्ञ होते रहते हैं। अतिथियों का उत्तम रीति से सम्मान व आतिथ्य होता है। महात्मा प्रभु आश्रित जी के सभी ग्रन्थों का प्रकाशन भी आप करते हैं जो इसी आश्रम के माध्यम से जनता को सुलभ व प्राप्त होते हैं। आप आर्यसमाज की प्रमुख सभी संस्थाओं में बड़ी-बड़ी धनराशियां दान देते हैं। हमने हरिद्वार के गुरुकुल सम्मेलन में मंच से की गई घोषणा में सुना था कि वहां जो यज्ञ हुआ उसमें समस्त घृत व सामग्री के व्यय का भार आपने ही वहन किया था। आप देश की अनेक आर्य संस्थाओं व गुरुकुलों की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपका अपना एक ‘‘अग्निहोत्री धर्मार्थ न्यास है जिसके माध्यम से आप अनेक परोपकार के कार्य करते हैं। इसके अन्तर्गत आप अनेक संस्थाओं के आर्य विद्वानों व कार्यक्रताओं को पुरस्कृत व सम्मानित भी करते हैं। वैदिक साधन आश्रम तपोवन के प्रत्येक उत्सव में कई-कई विद्वानों को एक साथ पुरस्कृत किया जाता है। इस वर्ष भी आश्रम के शरदुत्सव में 6 विद्वानों व कार्यक्रर्ताओं का अभिन्नदन व सम्मान किया गया है। आप अनेक वर्षों तक प्रसिद्ध गुरुकुल एटा के भी प्रधान रहे हैं।

 

वैदिक साधन आश्रम तपोवन का सौभाग्य है कि इसे श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी जैसा तपस्वी, उदार, वैदिक धर्म, संस्कृति व यज्ञों का प्रेमी, ईश्वर-वेद-ऋषि भक्त व दानी स्वभाव वाला प्रधान मिला है। आपके नेतृत्व में आश्रम निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है। हम ईश्वर से श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री व उनकी धर्मपत्नी एवं परिवारजनों के लिये मगल कामनायें करते हैं। आप पति-पत्नी दोनों स्वस्थ एवं दीर्घायु हों, यह हमारी ईश्वर से विनती है। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी भी कर्मठ व समर्पित ऋषि भक्त हैं। आपका जीवन भी साधना, परोपकार सहित आश्रम के कार्यों में व्यतीत हो रहा है। आपके नेतृत्व में यहां वृहद यज्ञशाला, भव्य वृहद अस्पताल, गोशाला आदि का निर्माण हुआ है। पहाड़ियों पर आश्रम की चारदीवारी हुई है। वर्तमान में भी आश्रम को सरकारी आदेश से अपनी आगे की बाउण्ड्री वाल को पीछे करना पड़ा है जो निर्माणाधीन है। लाखों रुपये का व्यय इस पर हो रहा है। आश्रम के साधन सीमित हैं। हमें आश्चर्य होता है कि श्री शर्मा जी और प्रधान जी कैसे इन सब कार्यों को कर पा रहे हैं। तपोवन विद्या निकेतन का कार्य भी श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी भली प्रकार से देख रहे हैं। हम शर्मा जी के भी स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की ईश्वर से कामना करते हैं।

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