मोदी सरकार की मुसीबत बढ़ाएगा सोना

-प्रमोद भार्गव-
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रिर्जव बैंक द्वारा सोने में आयात के नियमों में ढील देने के घातक नतीजे निकलेंगे, क्योंकि सोने का आयात विदेशी मुद्रा डॉलर से होता है। जाहिर है, यदि इस अनुत्पादक और मृत संपदा में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार खप जाएगा तो निकट भविश्य में नरेंद्र मोदी सरकार के सामने विदेशी मुद्रा का संकट मुंह बाए खड़ा हो जाएगा। एक समय भले ही भारत सोने की चिड़िया कहा जाता हो, लेकिन आज तो उसे अपनी जरूरतों के लिए 95 फीसदी सोना दूसरे देशों से खरीदना होता है। कच्चे तेल के बाद सोने के आयात में ही सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च होती है।

भारतवासियों को सोने का बढ़ा महत्व और लालच है। सोना भारतीय परंपरा में धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा-पाठ से लेकर शादी में वर-वधु को सोने के गहने देना प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक है। जीवन में बुरे दिन आ जाने की आशंकाओं के चलते भी सोना सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति आम आदमी में खूब है। इसलिए जैसे ही सोना सस्ता होता है, इसकी खरीद बढ़ जाता है, जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में बीते साल तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जनता से अपील की थी कि वह एक साल तक सोना न खरीदे। ताकि देश की माली हालत संभाली जा सके। चिदंबरम ने चेतावनी दी थी कि सोना डॉलर में आयात किया जाता है। इस वजह से व्यापार घाटा खतरनाक तरीके से बढ़ जाता है। इस कारण रूपए की कीमत भी गिरने लगती है। इसीलिए संप्रग सरकार ने सोने के आयात को रोकने के लिए आयात शुल्क बढ़ाकर 6 से 8 फीसदी कर दी थी। तय है, सोने के आयात का यही सिलसिला चलता रहा तो चालू खाते का घाटा बढ़ेगा और भुगतान संतुलन का संकट पैदा होगा।

ऐसी ही गलत नीतियों के कारण 2003 में जहां हम 3.8 अरब डॉलर सोने का आयात करते थे, वहीं देश के धनी लोगों की स्वर्ण-लिप्सा के चलते 2011-12 में यह आंकड़ा 57.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया। संप्रग के बीते 5 साल के कार्यकाल में ही 250 अरब डॉलर के सोने का आयात किया गया, जबकि भारत लगातार गरीबी, महंगई और बेरोजगारी से जूझ रहा है। इस विदेशी मुद्रा का उपयोग देश का सरंचनात्मक ढांचा सुदृढ़ करने में किया जाता तो जीडीपी दर बढ़ती और युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सुलभ होते। विडंबना देखिए एक मृत और अनुत्पादक धातु की महज चमक के लालच में विदेशी मुद्रा देश से बाहर भेज दी गई।

जीडीपी लगातार गिरते जाने के कारण देश की अर्थव्यस्था डांवाडोल है। खुद रिजर्व बैंक भी यह आकलन कर चुका है कि विकास दर 6-7 पर पहुंचना नामुमकिन है। इसीलिए मुद्रास्फीति बेकाबू के और निर्यात के मुकाबले आयात इस कदर बढ़ा है कि पिछले 30-32 साल में चालू खातों में उतना घाटा नहीं रहा, जितने बीते 2-3 साल में रहा है। मौसम विभाग द्वारा कमजोर मानसून के संकेत मिलने के कारण भी अर्थव्यवस्था का एकाएक उज्जवल पक्ष सामने आने वाला नहीं है। लिहाजा यह आशंका भी बलवती होती है कि कहीं जाते-जाते संप्रग सरकार के इशारे पर रिर्जव बैंक ने आयात में ढिलाई का निर्णय नरेंद्र मोदी सरकार को आर्थिक संकट में डालने की दृष्टि से तो नहीं लिया ? मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ यह चर्चा भी आमफहम है कि रिर्जव बैंक के गवर्नर रघुरामन के दिन भी गिने-चुने हैं।

सोने में आयात की शर्तों में छूट और गिरती कीमतों के बावजूद सोने की तस्करी भी जारी है। हाल ही में चेन्नई और हैदराबाद के हवाई अड्डों पर तस्करी करके लाया सोना बरामद हुआ है। चेन्नई के एक कूड़ेदान में 7.5 किलोग्राम सोने के बिस्कुट मिले हैं। जिनकी कीमत 2 करोड़ 60 लाख है। दूसरी तरफ हैदराबाद हवाई अड्डे के शौचालय में 7 किलो सोना मिला है। इन बरामदगियों से पता चलता है कि बड़ी मात्रा में सोने में कालाधन खफाया जा रहा है। इसी साल जनवरी में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सार्वजानिक रूप से कहा था कि देश में हर महीने तस्करी के जरिए तीन टन सोना आ रहा है। तय है, इससे कहीं अधिक मात्रा में सोना तस्करी के जरिए आ रहा है। साल 2012-13 में सोने की तस्करी से जुड़े 870 मामले सामने आए थे और सौ करोड़ का सोना जब्त किया गया था। यहां सवाल उठता है कि जब सरकार सोने की तस्करी की जानकारी दे रही है तो उसे इस पर सख्त पाबंदी लगाए जाने वाले उपायों की भी जानकारी देनी चाहिए थी। देश के सभी हवाई अड्डों पर तस्करी रोकने के लिए एक बड़ा संस्थागत ढांचा कस्टम विभाग है। इसके अलावा स्थानीय राज्य पुलिस भी गड़बड़ियों पर चौकसी रखती है। देश के बंदरगाहों और समुद्री सीमा पर तस्करों पर निगाह रखने के लिए भी राज्य पुलिस के साथ जल सेना भी है। देखने में आया है कि कस्टम अधिकारियों की मिलीभगत से ही सोने की तस्करी अंजाम तक पहुंचाई जा रही है। सरकार के पास तस्करी करके लाए सोने और पंजीबद्ध किए गए मामलों की जानकारी तो है, लेकिन यह जानकारी नहीं है कि वह कितने मामलों में अधिकारियों को सजा दिलाने में सफल रही। उसके पास यह भी जानकारी नहीं है कि उसने गड़बड़ियों में लिप्त पाए गए कितने अधिकारियों को निलंबित या बर्खास्त किया है। मोदी सरकार के केंद्र में वजूद में आने के बाद यह आशंका भी बढ़ी है कि अब कालाधन वापिसी के लिए ठोस पहल होगी। बाबा रामदेव ने भी इसी शर्त को लक्ष्य तक पहुंचाने की दृष्टि से भाजपा को समर्थन दिया था। लिहाजा जिन जमाखोरों का कालाधन विदेशों में जमा है, वह भी आयात की छूट का लाभ उठाकर कालेधन को सोने में बदलने लग गए हैं। लिहाजा खाड़ी देशों के साथ ही टैक्स हैवन की सुविधा प्राप्त देश मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपिंस, इंडोनेशिया, थाईलैंड समेत दक्षिण पूर्वी देश सोने की तस्करी में बैंक ग्राहकों की मंशा के अनुरूप सहयोग देने लग गए है। बहरहाल तय है, सोने की देश में बेतहाशा बढ़ती आमद मोदी सरकार को आर्थिक संकट में डालने का काम करेगी। ऐसा हुआ तो यह स्थिति नई सरकार के लिए गरीबी में आटा गीला करने जैसी आर्थिक मुसीबत का सबब बनेगी।

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